Hut Near Sea Beach

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House Boat

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Poly House

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Lotus Temple Delhi

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Enjoy holiday on Ship

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शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

ग्रीन सीमेंट

मुकेश के झा 


ग्रीन सीमेंट का कॉन्सेप्ट विनिर्माण के क्षेत्र में क्रान्तिकारी खोज है। इको-सिस्टम के दिन -प्रति- दिन खराब सेहत को दुरूस्त करने में यसीमेंट अमोघ अस्त्र भी बन सकता है। इसे बनाने में अन्य सीमेंट की अपेक्षा ऊर्जा की ज़रूरत भी कम होती है और साथ ही वातावरण से कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण भी करता है। इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने इसे निर्माण क्षेत्र के लिये एक खूबसूरत तोहफा बताया है।

घर ले आना

महंगाई के इस युग में घर खरीदना इतना आसान नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई ने एक अदद आशियाने के सपने को साकार करना मुश्किल कर दिया है। दिन प्रति दिन फ्लैट की कीमत बढ़ती ही जा रही है। ऐसी स्थिति में आप यदि बेहतर पैसा भी कमा रहे हैं तो भी आपको बैंक से लोन लेने की ज़रूरत पड़ सकती है। इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि घर खरीदने से पहले अपने इकॉनमी स्थिति के साथ होम लोन फाइनेंसर की तलाश भी बड़ी सुझबुझ से करनी होती है। 


अगर आपको कोई मकान पसंद आ गया है और उसकी कीमत भी वाजिब लग रही है, तो आपकी अगली तलाश होम लोन फाइनेंसर की होगी। यह लाखों रुपये का मामला है और आने वाले कई सालों तक आपको एक निश्चित रकम इस मद में बचानी होगी, तो एक सही फाइनेंसर ढूंढना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
फाइनेंसर का चुनाव 
इस मामले में ध्यान रखें कि लोन सेंक्शन होने के बाद भी पूरी लोन अवधि के दौरान आपको अपने फाइनेंसर के साथ संपर्क बनाए रखना होगा, इसलिए आपके फाइनेंसर की कस्टमर केयर पॉलिसी अच्छी होनी चाहिए। कस्टमर रिलेशंस मेंटेन करने पर कंपनी का ध्यान होगा तो आपके कई मुश्किलें बेहद आसानी से दूर हो जाएंगी, वरना शिकायतों का अंबार लग सकता है। कस्टमर के प्रति फाइनेंस कंपनी या बैंक का रवैया जानने के लिए उसके पुराने ग्राहकों से संपर्क कर सकते हैं। अगर आपके किसी दोस्त या परिचित ने भी उस कंपनी से लोन लिया है तो इस बारे में उससे जानकारी लेना न भूलें। कंपनी का पुराना रेकॉर्ड भी चेक करें कि उसने ब्याज दरों में कमी का कितना फायदा अपने ग्राहकों को दिया है और वह कंपनी ब्याज दरें सबसे पहले बढ़ाने वालों में से तो नहीं है। इन तहकीकातों को करने से आप एक सही फाइनेंसर का चुनाव कर सकेंगे। आपको कितना लोन चाहिए, यह तय करने से पहले अपनी आर्थिक क्षमताओं का आकलन कर लीजिए। अपनी इनकम और देनदारियों पर एक निगाह डालने के बाद आप यह अनुमान आसानी से लगा सकेंगे कि आप होम लोन की किस्तों के लिए अधिकतम कितनी रकम बचा सकते हैं। अपने पास मौजूद रकम का अनुमान लगाने के लिए आप अपनी इनकम, सेविंग्स, इनवेस्टमेंट्स, पेंशन फंड, इंश्योरेंस और अन्य होल्डिंग्स पर गौर करना न भूलें। इससे पता चलेगा कि आप अपने नए मकान पर कितनी रकम खर्च कर सकते हैं। 
होम लोन के रूप में इतनी बड़ी रकम का  सिर पर मत लीजिए, जिसे आप चुका न सकें। इससे आपको डिफॉल्टर घोषित करने का डर पैदा हो सकता है। मकान की कीमत की सारी रकम लोन के रूप में नहीं लेनी चाहिए। आमतौर पर यह संभव भी नहीं होता। ऐसे में होम लोन लेने से पहले डाउन पेमेंट के लिए कुछ रकम का इंतजाम करना ज़रूरी होता है। यह रकम जितनी ज्यादा होगी, आपको उतना ही कम होम लोन लेना पड़ेगा। नतीजतन, आपके सिर पर कम से कम ईएमआई का बोझ चढ़ेगा। यह भी ध्यान रखें कि आपको सिर्फ होम लोन इंटरेस्ट के रूप में खर्च नहीं करना है, बल्कि मकान लेने के बाद आपको उसकी मेंटेनेंस, टैक्स, होम इंश्योरेंस, लोन इंश्योरेंस जैसे मदों में भी खर्च करना पड़ेगा।
आपको होम लोन कितने समय में वापस करना है, मतलब- लोन टेन्योर कितना रहेगा, इसका फैसला भी सोच-समझकर करना चाहिए। कुछ लोग लोन को जल्दी से जल्दी वापस कर देना चाहते हैं, जिससे उन पर भार कम हो सके। दरअसल, उन्हें डर होता है कि ब्याज दरें उनकी पहुंच से बाहर जाने पर वे लोन नहीं चुका सकेंगे और तब उन्हें डिफॉल्टर घोषित किया जा सकता है। ऐसे लोग कम अवधि के लोन लेना पसंद करते हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें ज्यादा ईएमआई देनी पड़ती है और वे जितने समय तक लोन चुकाते हैं, इसके लिए उन्हें हर महीने मोटी रकम बचानी पड़ती है। जो लोग हर महीने मोटी रकम ईएमआई के लिए नहीं बचा सकते, उनके लिए लंबी अवधि का होम लोन लेना सही रहता है। ज्यादा अवधि में लोन वापसी के लिए ईएमआई की रकम कम होती है, जो काफी पॉकेट फ्रेंडली नज़र आती है। हालांकि इस स्थिति में होम लोन इंटरेस्ट के रूप में कुछ ज्यादा रकम चुकानी पड़ती है। आपके लिए कितनी अवधि का लोन सही रहेगा, इसका फैसला लेने के लिए इस बात पर गौर करें कि आप ब्याज दरों में कितना उतार-चढ़ाव झेल सकते हैं, आप हर महीने कितनी रकम बचा सकते हैं और आपकी अन्य देनदारियां कितनी हैं, आमतौर पर यह देखा गया है कि ज्यादातर लोग आठ-दस सालों में होम लोन चुकाना पसंद करते हैं। अगर आप इससे ज्यादा समय के लिए लोन लेते हैं, तो ऐसी कंपनी के पास जाएं, जो प्री.पेमेंट पेनल्टी बहुत कम या नहीं लेती। इससे आपको ज्यादा लोन मिल सकेगा और ईएमआई का बोझ भी कम पड़ेगा।
कागजात है महत्वपूर्ण
होम लोन के लिए अप्लाई करने से पहले तमाम ज़रूरी कागजात अपने पास सुरक्षित रख लेने चाहिए। किसी कागज़ की कमी या अधूरी जानकारी आपकी लोन एप्लीकेशन रिजेक्ट होने का कारण बन सकती है। ज्यादा बैंक या फाइनेंस कंपनी कागजात के रूप में एज प्रूफ फोटो, आईडीए फॉर्म 16, तीन महीने की सैलरी स्लिप, सैलरी अकाउंट की छह महीने की बैंक स्टेटमेंट, रेजिडेंशल एड्रेस पूफ्र आदि मांगते हैं। सेल्फ एंप्लॉयड लोगों से इनकम टैक्स रिटर्न, ऑडिटर रिपोर्ट, बैलेंस शीट, दो सालों का लॉस-प्रॉफिट अकाउंट आदि मांगे जाते हैं।
स्कीम का चुनाव 
होम लोन कंपनी आपके सामने कई तरह के विकल्प रखेगी जैसे- फिक्स्ड, फ्लोटिंग, स्टेप अप, स्टेप डाउन और हाइब्रिड लोन। माना जाता है कि फ्लोटिंग रेट के मुकाबले फिक्स्ड लोन ज्यादा महंगे रहते हैं। लेकिन फ्लोटिंग होम लोन के मामले में आप ब्याज दरों का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। ये कभी ज्यादा होंगी तो कभी घटेंगी भी। हाइब्रिड लोन इन दोनों के बीच की कड़ी है। इसमें लोन की कुछ रकम फिक्स्ड रेट से और कुछ फ्लोटिंग रेट से वापस की जाती है।

लीज होल्ड या फ्री होल्ड प्रॉपर्टी

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सैन्ड होटल

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फ्लैट बुकिंग

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ये वादियां ये फिजाएं बुला रही हैं तुम्हें...

मुकेश के झा 


प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक लओत्से का कहना  था कि प्रकृति की ओर लौटो। वर्तमान में यह कथन रियल एस्टेट के लिए अक्षरश: साबित हो रहा है। प्राकृतिक सौन्दर्य से लवरेज स्थानों में आशियाना की दुनिया रफ्तार पकड़ चुकी है। इसमें नित्य नए स्थान जुड़ रहे हैं। खासकर, भारतीय पर्वतीय इलाकों में इसकी पौ-बारह हो चुकी है। यदि जानकारों की मानेें तो लोग शहरी जीवन से ऊब कर शांति  और सुकून की तलाश में इस ओर रूख कर रहे हैं। जहां कुछ समय पहले तक इन स्थानों को सैर-सपाटा के लिए ही जाना जाता था, वहीं यह स्थान रियल एस्टेट के लिए हब बन चुका है।
समय के साथ मनुष्य के सोच और रहन-सहन में भी परिर्वतन आया है। प्रकृति की सुन्दरता से लगाव हर  इंसान में होता है। अगर इस सुन्दरता  में रहने का अवसर मिले तो फिर क्या कहना। आज के भीड़-भाड़ और प्रदूषण से दबे शहर में शहरवासियों को यह सोचने पर मज़बूर किया है कि आशियाना ऐसे जगह पर बनाया जाए, जहां खुला वातावरण हो, पर शहरी कोलाहल नहीं हो। शहर के भीड़-भाड़ से भरी जि़न्दगी से लोग अब ऊब से गए हैं। ऐसे में ऐसे जगह पर घर की तलाश शुरु हो गयी है, जहां पर शांति, स्वच्छ आबोहवा और प्रकृति के बिल्कुल करीब हो। पर्वतीय क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त जगह के रुप में उभड़ा है।  मकान.कॉम के द्वारा किए गए एक सर्वे में यह सामने आया है। यह सर्वे एक जून से 23 जून 2011 तक करीब 4800 लोगों के ऊपर किया गया था। इस सर्वे में भारत के सभी बड़े शहरों को शामिल किया गया। इस सर्वे में 26 से 35 साल के उम्र के लोगों ने भाग लिया था। सर्वे में अधिकतर लोगों का मानना था कि वह पर्वतीय क्षेत्र में निवेश के लिए नहीं बल्कि रहने के लिए घर खरीदना चाहते हैं।
पैसा... नो प्रॉब्लम

भारत की आर्थिक स्थिति मज़बूत होने से पैसे का कोई इश्यू नहीं है। बिज़नेस ै मैन से लेकर कामगार युवा अच्छी खासी रकम अर्जित कर रहे हैं। काम का बोझ और हेक्टीक लाइफ स्टाइल से बोर होकर हर कोई शांति और सुकून की जि़न्दगी चाह रहा है। वे निवेश ऐसे स्थान पर करना चाह रहे हैं, जहां पर जि़न्दगी शांति से  व्यतित कर सकें। हिल स्टेशन इसके लिए माकूल जगह बन कर उभड़ा है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता, शांति और स्वच्छ वतावरण सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। इस क्षेत्र में निवेश के लिए बैंक से लोन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं है। बैंक आसानी से लोन दे रहा है। इसको देखते हुए निवेशकों की संख्या में नित वृद्धि हो रही है। निवेशकों को देखते हुए यहां पर रियल एस्टेट का कारोबार तेज़ी से बढ़ रहा है। नौकरी पेशा के लोग यहां पर रिटायरमेंट के बाद बसने की योजना बना रहे है। बिज़नेस तबके के लोग छुट्टिïयां और साल में एक से दो बार यहां आ ही जाते हैं। इसे देखते हुए वे यहां पर घर खरीद रहे हैं। आने वाले समय में यहां पर भी हाईराइज बिल्डिंग बनते दिखेंगे।

मार्केट में भी मांग बढ़ी है..

रियल एस्टेट में भी हिल स्टेशन की घर मांग जोरों पर है। रियल्टी क्षेत्र छोटे से बड़े शहर तक अपना पांव पसार ही चुका है। अब यह हिल स्टेशन की ओर रुख किया है। डेवलपर्स भी हिल स्टेशन पर सेकेंड होम को फोकस कर रहे हैं। हिल स्टेशन के आस-पास का एरिया गुलजार होना शुरु भी हो गया है। ज्यादातर निवेशक ऐसी जगह पर अपना घर चाह रहे हैं, जहां से कुल्लू, मनाली, शिमला, नैनीताल आदि से 30 से 40 मिनट में पहुंचा जा सके। यहां पर डेवलपर्स निवेशको के बजट के देखते हुए अफोर्डेबल रेंज से लेकर लग्जुरियस मकान भी बना रहे हैं और निवेशक भी इसे हाथो-हाथ ले रहे हैं। डेवलपर्स इसे बड़ा बाज़ार बनता हुआ देख कर तरह-तरह के स्कीम लॉन्च कर रहे हैं।

क्या-क्या सुविधा की डिमांड है?

अभी सेकेंड होम का कॉन्सेप्ट यहां पर है। ज्यादातर लोग या तो छुट्टिïयां या घूमने के लिए वर्तमान में घर खरीद रहे हैं। पर वह इस घर के अन्दर वह सभी सुविधा चाह रहे हैं, जो एक स्थायी  घर के अन्दर होता है। निवेशको का पहला डिमांड लोकेशन का है। हर कोई हॉट लोकेशन पर ही रहना चाह रहा है, जहां से पर्वत, बर्फ, पानी औ हरियाली का पूरा-पूरा आनंद लिया जा सके। इसके अलावे कम्यूनिकेशन, पावर बैकअप तो होना ही चाहिए। पीने का पानी सप्लाई और सुरक्षा के दृष्टिï से भी सही हो। बाज़ार के जानकारों का मानना है कि यहां पर 2 से तीन बेडरूप के घर की मांग सबसे ज्यादा होगी।

मांग क्यों बढ़ी है?

होटल या रिज़ौर्ट लेने में ढ़ेर सारा पैसा खर्च होता है। ज्यादा तर लोग आर्थिक रुप से समृद्ध होते हैं। उनका मानना है कि यदि उनका अपना घर हो तो उनका पैसा भी कम खर्च होगा और अधिक दिनों तक यहां पर रह भी सकते हैं। अपना घर होने से आजादी भी रहेगी और जब दिल करेगा वे यहां पर आ कर रह सकते हैं।

कैसे बना Londinium लंदन

मुकेश के झा

दुनिया के प्रसिद्ध शहरों में शुमार लंदन सपने सरीखे जैसा शहर है। यहां की कला, संस्कृति और रहन-सहन दुनिया भर के लोगों को लुभाता रहा है। कई खासियतों के कारण इसे क्लासिकल सिटी की दर्जा दी जाती है। इस सिटी का विकास और विस्तार क्रम में भी एक रोचकता है। यह सिटी कैसे विकास क्रम के उफान पर चढ़ा, कैसे आधुनिक शहर के रूप में ढला और कैसे सभ्यता क्रम में पला। इस सभी के बारे में जानने की उत्सुकता भला किसमें नहीं होती है। पाठकों के लिए यह विशेष लेख मांग पर दी जा रही है। यहां लंदन कैसे क्लासिकल शहर बना, इसके बारे में विस्तृत वर्णन किया जा रहा है। यहां पर दी जा रही जानकारी कई महत्वपूर्ण साइटों से ली गई हैं। 


लंदन इंग्लैंड की राजधानी है। यह यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ी शहर है। मेट्रोपोलेटन सिटी में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाली शहर में इसकी गिनती होती है। यहां पर करीब 2 हज़ार सालों से बड़ी आबादी बसी हुई है। इस प्रसिद्ध शहर की स्थापना रोमनों ने किया था। रोमन इस शहर को लांदोनियम ((Londinium)) कहा करते थे।  प्राचीन समय में यह सिटी अपना एक विशेष स्थान रखता था। मध्यकालीन इतिहासकार के  Geoffrey of Monmouth अनुसार वर्तमान का लंदन को प्रसिद्ध शासक ब्रुटस ऑफ ट्रॉय ने स्थापित किया था। ब्रुटस प्रसिद्ध युद्ध ट्रोजन के नायक थे। उन्होंने सिटी का नाम न्यू ट्रॉय रखा। इस नाम में इंग्लैंड का गौरव झलकता था। लंदन को सर्वप्रथम त्रिनोबंतेस जाति के समूह ने बसाया। यह पूर्व रोमन ब्रिटेन के आदिवासी थे। उनका राज्य टेम्स नदी के उत्तरी छोड़ पर स्थित था। वर्तमान में (Essex) काउंटी और सुफ्फोल्क काउंटी  और ग्रेटर लंदन का क्षेत्र के रूप में इसका राज्य विस्तार था। इसके राज्य सीमा के उत्तर में आइसनी और पश्चिम में कातुवेल्लानी राज्य थे। बाद में रोमनों ने इस शहर को व्यवस्थित रूप दिया। इसका नाम बाद में कैर ट्रोइअ (Caer Troia)  रखा गया। करीब 73 ईसा पूर्व में राजा लुड  (Lud) ने इसका नामकरण कैरलुदें (CaerLudein) कर दिया। यह नाम कालान्तर में परिवर्तित होकर लंदन हो गया।

 प्रागैतिहासिक काल में इस क्षेत्र के बारे में जानकारी मिलती है।  लेकिन इस काल में कोई महत्वपूर्ण मानव आबादी के बारे में स्पष्टï प्रमाण नहीं मिलता है।  यद्यपि इन क्षेत्रों में उस समय के कृर्षि जनित कार्य और शवाधान स्थल के प्रमाण मिलते हैं। प्राचीन समय में लंदन एक कम बसे ग्रामीण क्षेत्र था। हालांकि कांस्य युगीन काल में  करीब 300 ईसा पूर्व का बैटरसी शिल्ड टेम्स नदी के क्षेत्र में आने वाले चेल्सी में मिला है। इससे संकेत मिलता है कि यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। बैटरसी शिल्ड वर्तमान में ब्रिटीश म्यूजि़यम में रखा गया है। इस शिल्ड पर सेल्टिक रूपांकन और ताम्र साज-सज्या बड़ी बारिकी से किया गया है।

 इसके बारे में इतिहासकारों का मानना है कि नदी में इस शिल्ड को धार्मिक अनुष्ठïान के बाद प्रवाहित कर दिया गया हो। कांस्य और लोहे के कई टुकड़े पूरे ब्रिटेन में नदियों के किनारे मिले हैं। इतिहासकारों का मानना है कि ब्रेंटफोड  (Brentford)और एघम (Egham) काउंटी में संभव है कि कुछ मानव बस्तियां उस समय रही हो। लेकिन लंदन के आस-पास कोई भी सिटी नहीं थी। प्रसिद्ध रोमन शासक क्लौडिउस जब इस भू-भाग को 43 ई. में जीत लिया था। रोमन समय में लंदन को लोंदीनियम कहा जाता था। लेकिन बहुत सारे विद्वान इस नाम से लंदन की उत्पति के बारे में असहमत हैं। उनका कहना है कि इस नाम की उत्पति यहां के क्षेत्र में विस्तृत रूप से बहने वानी नदियों के भयानक प्रवाह से जुड़ा हुआ है। इसके बारे में अनुसंधानकर्ता रिचर्ड कोअटेस  (Richard Coates)  का सलाह है कि यहां पर नीचे क्षेत्र में जो नदी बहती थी, उसे प्लोवोनिदा (Plowonida) के नाम से पुकारा जाता था  और टेम्स नदी ऊपरी क्षेत्र में बहती थी। इन दोनों के प्रवाह क्षेत्र के आस-पास रहने वाली आबादी ने शायद इस प्रकार का नाम दिया हो।  दूसरा मत यह भी है कि इस सिटी का नाम राजा लुड के नाम से लिया गया है। माना जाता है कि उसने ही सिटी में पहली बार प्लानिंग वे में सड़के बनवायी थी।

लंदन में पहले लैटिन भाषा बोली जाती थी। ग्रीक भाषी की संख्या भी कम नहीं थी। ग्रीक बोलने वाले सैनिक और व्यापारी इस सिटी में रहते थे। लंदन का विकास नगर सभ्यता के रूप में करीब 50 ई. में होने लगा था। रोमन समय में लंदन आकार लगभग में वर्तमान के हाउड पार्क के समान था। अपनी स्थापना के फौरन बाद ब्रिटेन की रानी बौदिका (Queen Boudica)   की सेना ने पूरी शहर को अपने अधिकार में कर लिया। सिटी में लाल राख की एक लेयर भी खोजी गई। यह लेयर उस समय की है। यह लाल राख इस बात का संकेत देता है कि सिटी को आग के हवाले कर दिया गया था। रोम के प्रसिद्ध इतिहासकार टासिटस का कहना है कि रोमनों ने इस बात का इस युद्ध का जवाब देते हुये करीब 80,000 ब्रिटीशर्स को मार दिया और राजा को फांसी पर चढ़ा दिया। रानी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। करीब 120 ई. में सिटी की जनसंख्या बढ़कर 60 हज़ार के आस-पास पहुंच गई। यह ब्रिटेन की राजधानी बन गई। रोमन ब्रिटेन की रजधानी के रूप में यह प्रसिद्ध सिटी बन चुकी थी। 

औपचारिक रूप में इसे कोलचेस्टर की संज्ञा दी गई। यह ब्रिटेन की सबसे पुरानी व्यस्थित सिटी की श्रेणी में आ गई। उसके बाद रोमनों ने 200 ई. में सिटी की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर किलाबन्दी कर दी। लंदन की सीमा का किलाबन्दी इस रूप में किया गया कि कई सौ सालों तक यह शहर सुरक्षित रूप में फलता-फूलता रहा। चौथी शताब्दी तक आते-आते लंदन समृद्धशाली और सुरक्षा के मामले में अव्वल हो गया। 410 ई. में रोमन ने लंदन सिटी को छोड़ कर चले गए। व्यवहारिक रूप से यह शहर को 40 साल बाद छोड़ दिया गया था। जब रोमन को यहां के जुतेस  (Jutes)  और केंटिश   (Kentish)  जातियों से भयंकर युद्ध हुआ, तब उसने  इस सिटी को मीलिट्री ऑपरेशन बेस के रूप में इस्तेमाल करने लगा। सक्सोंस के बढ़ते प्रभाव के कारण रोमनों ने 456 ई. में केंट को छोड़ दिया और इसके बाद भी यहां पीढ़ी दर पीढ़ी कई भयंकर युद्ध हुए। यह काल क्रम पूरे यूरोप में चलता रहा लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद पूरे यूरोप का कायाकल्प हो गया। औद्योगीकरण ने शहरीकरण के स्वरूप पर गहरा असर डाला है। हालांकि 1850 के दशक तक भी ज्यादातर पश्चिमी शहर मोटे तौर पर ग्रामीण किस्म के शहर ही थे। लीड्स और मैनचेस्टर जैसे  प्रारंभिक औद्योगिक शहर अठारहवीं सदी के आखिर में स्थापित किए गए कपड़ा मिलों के कारण प्रवासी मजदूरों को बड़ी संख्या में आकर्षित कर रहे थे। 1851 में मैनचेस्टर में रहने वाले तीन चौथाई से ज्यादा लोग ग्रामीण इलाकों से आए और प्रवासी मजदूर थे। 

औद्योगिक क्रांति ने रंग जमाना इंग्लैंड में शुरू किया तो उसका व्यापक प्रभाव लंदन में देखने को मिला। इसके बाद लंदन  का शवाब पूरे जोर पड़ था। यहां पर एक आधुनिक शहर का कॉन्सेप्ट जन्म ले चुका था। 1750 ई. तक इंग्लैंड और वेल्स का हर नौ में से एक आदमी लंदनवासी बन चुका था। यह एक विशालकाय शहर के रूप में तब्दिल हो चुका था और आबादी 6,75,000 तक पहुंच चुकी थी। 19 वीं शताब्दी में लंदन इसी तरह फैलता रहा। यहां की जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही थी। यहां की आबादी 1810 ई. से लेकर 1880 ई. तक 40 लाख हो चुकी थी। इस सत्तर साल में इसकी आबादी चौगुनी बढ़ चुकी थी। यह अलग बात है कि लंदन में उस समय विशाल कारखाने तो नहीं खुले थे लेकिन उसे भविष्य के शहर की संज्ञा दी जाने लगी। परिणामस्वरूप प्रवासी आबादी चुंबक की तरह उसी की तरफ खिंची चली आती थी। इस स्थिति के बारे में गैरेथ स्टेडमैन जोन्स ने काफी सटीक शब्दों में कहा कि उन्नीसवीं शताब्दी का लंदन क्लर्कों और दुकानदारों, छोटे पेशेवरों और निपुण कारीगरों, कुशल व शारीरिक श्रम करने वालों की बढ़ती आबादी, सिपाहियों, नौकरों, दिहाड़ी मजदूरों, फेरीवालों और भिखारियों का शहर था। लंदन में मुख्य रूप से पांच तरह के बड़े उद्योगों में बहुत सारे लोगों को रोजगार मिला हुआ था।  

परिधान और जूता उद्योग, लकड़ी व फर्नीचर उद्योग, धातु एवं इंजीनियरिंग उद्योग, छपाई और स्टेशनरी उद्योग तथा शल्य चिकित्सा उपकरण व घड़ी जैसे सटीक माप वाले उत्पादों और कीमती धातुओं की चीजें बनने वाले उद्योग में लोग कार्य करते थे। इन पांच उद्योगों में ही पहले ज्यादा लोग काम करते थे। कालान्तर मोटरकार और बिजली के उपकरणों का भी उत्पादन होने लगा और विशाल कारखानों की संख्या बढ़ते-बढ़ते इतनी हो गई कि शहर की तीन चौथाई नौकरियां इन्हीं कारखानों में सिमट गईं। यह स्थिति लंदन की प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौरान थी। कहते हैं न विकास अपने साथ कई खामियों को भी लाता है। कुछ खामियां लंदन में भी आने लगी थी। जैसे-जैसे लंदन तरक्की का मार्ग प्रशस्त करता गया, उसी प्रकार से वहां अपराध भी बढऩे लगे। कहा जाता है कि 1870 ई. के दशक में लंदन में कम से कम बीस हजार अपराधी रहते थे। उस समय अपराध व्यापक चिंता और बेचैनी का कारण बन चुके थे। पुलिस कानून व्यवस्था को लेकर चिंतित थी, परोपकारी समाज की नैतिकता को लेकर बेचैन थे और उद्योगपति परिश्रमी व अनुशासित मज़दूर वर्ग चाहते थे। इन्हीं सारी बातों को ध्यान में रखते हुए अपराधियों की गिनती की गई, उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जाने लगी और उनकी जि़न्दगी के तौर तरीकों की जांच की जाती थी।
19 वीं सदी के मध्य में हेनरी मेह्यïू ने लंदन के मजदूरों पर कई किताबें लिखीं। हेनरी ने मज़दूर की यथास्थिति पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने ऐसे लोगों की एक लंबी सूची भी बनाई, जो अपराधों से ही अपनी आजीविका चलाते थे। अपराधियों की इस सूची में दर्ज बहुत सारे ऐसे लोग भी थे, जो मकानों की छतों से शीशा चुरा लेते थे। दुकानों से खाने की चीजें उठा लेते थे, कोयले के ढेर उठा ले जाते थे या बाड़ों पर सूखे कपड़े उठा ले जाते थे। दूसरी ओर ऐसे अपराधी भी थे, जो अपने धंधे में माहिर थे, जिन्हें अपराधों को पूरी सफाई से अंजाम देना अच्छी तरह आता था। लंदन की सड़कों पर ठगों और जालसाजों, जेबकतरों और छोटे मोटे चोरों की भरमार रहती थी। जनता को अनुशासित करने के लिए शासन ने अपराधों के लिए भारी सजाएं तय कर दीं और जो 'लायक गरीब थे उन्हें रोजगार देने का इंतजाम शुरू किया।

लंदन में 18 वीं सदी के आखिर में और उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में कल-कारखाने में बहुत सारी औरतें भी काम करती थीं। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक की दुनिया में तरक्की हुई और उसमें सुधार आया। इस सुधार से कारखानों में औरतों की नौकरियां छीनने लगीं। यहां के औरतें घरेलू कामों में सिमट कर रह गईं। 1861 की जनगणना से पता चला कि लंदन में लगभग ढाई लाख घरेलू नौकर हैं। उनमें औरतों की संख्या बहुत ज्यादा थी। उनमें से अधिकांश हाल ही में शहर में आई थीं। बहुत सारी औरतें परिवार की आय बढ़ाने के लिए अपने मकानों का भी इस्तेमाल करती थीं। वे या तो किसी को भाड़े पर रख लेती थीं या घर पर ही रह कर सिलाई-बुनाई, कपड़े धोने या माचिस बनाने जैसे काम करती थीं। बीसवीं सदी में हालात एक बार फिर बदले। जब औरतों को युद्धकालीन उद्योगों और दफ्तरों में काम मिलने लगा, तो वे घरेलू काम छोड़ कर फिर बाहर आने लगीं.

बहुत सारे बच्चों को भी मामूली वेतन के लिए कामों पर भेजा जाने लगा। बहुधा उनके मां-बाप ही उन्हें काम पर भेजते थे। 1880 के दशक में द बिटर क्राई ऑफ आउटकास्ट लंदन नामक पुस्तक लिखने वाले पादरी ऐंड्रयू मीयन्र्स ने इस बात पर रोशनी डाली कि लंदन के अल्पवेतन कारखानों में मजदूरी करने की बजाए अपराध ही ज्यादा फायदेमंद क्यों है : माना जाता है कि साल का एक बच्चा चोरी-चकारी करके हर हफ्ते आराम से 10 शिलिंग 6 पेंस कमा लेता है। अगर इसी उम्र का कोई लड़का उस चोर के बराबर कमाना चाहे, तो इसके लिए उसे हफ्ते में माचिसों के 56 डिब्बे यानी रोजाना 1,296 माचिसें बनानी पड़ेंगी। 1870 के अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा कानून और 1902 से लागू किए गए फैक्ट्री कानून के बाद बच्चों को औद्योगिक कामों से बाहर रखने की व्यवस्था लागू कर दी गई।

आवास


औद्योगिक क्रांति के बाद लोग बड़ी संख्या में शहरों की तरफ रुख करने लगे, तो लंदन जैसे पुराने शहर नाटकीय रूप से बदलने लगे। फैक्ट्री या वर्कशॉप मालिक प्रवासी कामगारों को रहने की जगह नहीं देते थे। फलस्वरूप, जिनके पास जमीन थी ऐसे अन्य लोग ही इन नवांगतुकों के लिए सस्ते और सामान्यत: असुरक्षित टेनेमेंटï्स बनाने लगे। यू तो गांवों में भी गरीबी खूब थी लेकिन शहरों में तो बहुत घनी और साफ दिखाई पड़ती थी। 1887 में लिवरपूल के एक जलपोत मालिक चाल्र्स बूथ ने लंदन के ईस्ट एंड (पूर्वी छोर) में लंदन के अल्पकुशल मजदूरों का पहला सामाजिक सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि लंदन में कम से कम 10 लाख (लंदन की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा) लोग बहुत ही गरीब हैं और उनकी औसत उम्र 29 साल से ज्यादा नहीं है (संपन्न वर्ग और मध्यवर्ग की औसत उम्र 55 साल थी)। बूथ ने पाया कि इन मजदूरों के किसी वर्कशॉप अस्पताल या पागलखाने में मरने की संभावना ज्यादा है। चाल्र्स बूथ ने अपने सर्वेक्षण में निष्कर्ष निकाला कि लंदन को अपने निर्धनतम नागरिकों को बसाने के लिए कम से कम 4,00,000 कमरे और बनाने होंगे।
कुछ समय तक शहर के खाते-पीते बाशिंदे यही मांग करते रहे कि झोपड़ पट्टिïयों को साफ कर दिया जाना चाहिए। लेकिन धीरे धीरे लोग इस बात को समझने लगे कि शहर के गरीबों के लिए भी आवास का इंतजाम करना जरूरी है। इस बढ़ती चिंता के क्या कारण थे? पहली बात तो यह थी कि गरीबों के एक कमरे वाले मकानों को जनता के स्वास्थ्य के लिए खतरा माना जाने लगा था। इन मकानों में भीड़ रहती थी, वहां हवा-निकासी का इंतजाम नहीं था और साफ सफाई की सुविधाएं नहीं थीं। दूसरा, खस्ताहाल मकानों के कारण आग लगने का खतरा बना रहता था। तीसरा, इस विशाल जनसमूह के कारण सामाजिक उथल-पुथल की आशंका दिखाई देने लगी थी। 1917 की रूसी क्रांति के बाद यह डर काफी बढ़ गया था। लंदन के गरीब कहीं विद्रोह न कर डालें, इस आशंका से निपटने के लिए मजदूरों के लिए आवासीय योजनाएं शुरू की गईं।

लंदन की सफाई

लंदन को साफ सुथरा बनाने के लिए तरह तरह से प्रयास किए गए। भीड़ भरी बस्तियों की भीड़़ कम करने, खुले स्थानों को हरा भरा बनाने, आबादी कम करने और शहर को योजनानुसार बसाने के लिए कोशिशें शुरू कर दी गईं। इसी तरह की आवासीय समस्याओं से जूझ रहे बर्लिन और न्यूयार्क जैसे शहरों की तर्ज पर अपार्टमेंट्स के विशाल ब्लॉक बनाए गए। लेकिन टेनेमेंट्स की वजह से यहां की समस्या विकट थी। मकानों की भारी किल्लत के असर को काबू करने के लिए प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान किराया नियंत्रण कानून लागू किया गया।
उन्नीसवीं सदी के औद्योगिक शहरों में घुटन भरे भीड़-भड़क्के ने देहाती साफ हवा की चाह बढ़ा दी थी। लंदन और पेरिस के बहुत सारे अमीर तो देहात में अवकाश गृह बनवाने का खर्चा उठा सकते थे, पर यह विकल्प सबके पास नहीं था। शहर के लिए नए फेफड़ों का इंतजाम करने की बात उठने लगी। लंदन के गिर्द हरी पट्टïी आदि विकसित करके देहात और शहर के फासले को पाटने के प्रयास भी किए गए। वास्तुकार और योजनाकार एबेनेजर हावर्ड ने गार्डन सिटी (बगीचों का शहर) की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने एक ऐसे शहर का खाका खींचा, जहां पेड़ पौधों की भरमार हो और जहां लोग रहते भी हों, काम भी करते हों। उनका मानना था कि इस प्रकार बेहतर नागरिक तैयार करने में भी मदद मिलेगी। हार्वड के विचारों के आधार पर रेमंड अनविन और बैरी पार्कर ने न्यू अर्जविक नाम से एक गार्डन सिटी का डिजाइन तैयार किया। इसमें साझा बाग, बगीचे, खूबसूरत नजरों का इंतजाम किया गया था। हर चीज को बड़ी बारीकी से सजाया गया था। लेकिन ऐसे मकानों को तो केवल खाते पीते कामगार ही खरीद सकते थे।

विश्वयुद्धों के दौरान (1919-39) मजदूर वर्ग के लिए आवास का इंतजाम करने की जिम्मेदारी ब्रिटिश राज्य ने अपने ऊपर ले ली और स्थानीय शासन के जरिए 10 लाख मकान बनाए गए। इनमें से ज्यादातर एक परिवार के रहने लायक छोटे मकान थे। इस दौरान शहर इतना फैल चुका था कि अब लोग पैदल अपने काम तक नहीं जा सकते थे। शहर के आसपास यानी उपशहरी बस्तियों के अस्तित्व में आने से सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अनिवार्य हो चुकी थी।

शहर में आवागमन

अगर लोगों को उपनगरीय बस्तियों से शहर तक लाने के लिए यातायात की सुविधा नहीं है, तो भला लोगों को शहर छोड़ कर उपनगरीय गार्डन आबादियों में जाकर रहने के लिए कैसे तैयार किया जा सकता था? लंदन के भूमिगत रेलवे ने आवास की समस्या को एक हद तक हल हल कर दिया था। इसके जरिए भारी संख्या में लोग शहर के भीतर बाहर आ जा सकते थे।
दुनिया की सबसे पहली भूमिगत रेल के पहले खंड का उदï्घाटन 10 जनवरी, 1863 को किया गया। यह लाइन लंदन की पैडिंग्टन और फैरिंग्टन स्ट्रीट के बीच स्थित थी। पहले ही दिन 10,000 यात्रियों ने इस रेल में यात्रा की। इस लाइन पर हर दस मिनट में अगली गाड़ी आ रही थी। 1880 तक भूमिगत रेल नेटवर्क का विस्तार हो चुका था और उसमें सालाना चार करोड़ लोग यात्रा करने लगे थे। शुरू में भूमिगत यात्रा की कल्पना से लोग डर जाते थे। इस बारे में अखबार के एक पाठक ने इन शब्दों में चेतावनी दी थी :
मैं जिस डिब्बा में बैठा था। वह पाइप पीते मुसाफिरों से भरा हुआ था। डिब्बे का माहौल सल्फर, कोयले की धूल, और ऊपर लगे गैस के लैंप से निकलती गंध से अटा हुआ था। हालत ये थी कि जब हम मूरगेट स्टेशन पहुंचे तब तक मैं श्वासावरोधन और गर्मी के कारण अधमरा हो चुका था। मेरा मानना है कि इन भूमिगत रेलगाडिय़ों को फौरन बंद कर दिया जाना चाहिए। ये स्वास्थ्य के लिए भयानक खतरा है।
बहुत सारे लोगों का मानना था कि इन लौह दैत्यों ने शहर में अफरा तफरी और अस्वास्थ्यकर माहौल को बढ़ा दिया है। निर्माण की प्रक्रिया में होने वाले बेहिसाब विनाश के बारे में चाल्र्स डिकेन्स ने डॉम्बी एंड सनïï (1848) में लिखा है :
''मकान गिरा दिए गए, सड़कों को तोड़ कर बंद कर दिया गया, जमीन में गहरे गड्ढïे और खाइयां खोद दी गईं, चारों ओर बेहिसाब मिट्टïी और धूल के अबांर लगा दिए, अधूरेपन की सौ हजार शक्लें और पदार्थ सामने थे, उलट पुलट अपनी जगह अदलते-बदलते, जमीन में धंसे हुए।
तकरीबन दो मील लंबी रेलवे लाइन बिछाने के लिए औसतन 900 घर गिरा दिए जाते थे। इस प्रकार लंदन में बनी टयूब रेलवे के कारण लंदन के गरीबों को बड़ी संख्या में उजाड़ा गया, खासतौर से दो विश्वयुद्धों के बीच।
बहरहाल, इन सारी अड़चनों के बावजूद भूमिगत रेलवे एक जबरदस्त कामयाबी साबित हुई। बीसवीं सदी आते आते न्यूयॉर्क, टोकियो और शिकागों जैसे ज्यादातर विशाल महानगर अपनी सुव्यवस्थित सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के बिना नहीं रह सकते थे। नतीजा यह हुआ कि शहर की आबादी और बिखरने लगी। सुनियोजित उपनगरीय इलाकों और अच्छे रेल नेटवर्क की बदौलत बहुत सारे लोगों के लिए मध्य लंदन से बाहर रहते हुए रोज काम पर आना आसान हो गया।
इन नई सुविधाओं ने सामाजिक ऊंच नीच को कमजोर किया, तो नए किस्म के विभेद भी पैदा हो गए। इन बदलावों से लोगों के घरेलू और सार्वजनिक जीवन पर क्या असर पड़ा? क्या उनकी सभी सामाजिक समूहों के लिए एक जैसा महत्व था?


शहर में सामाजिक बदलाव


अठारहवीं सदी में परिवार उत्पादन और उपभोग के साथ साथ राजनीतिक निर्णय लेने के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण इकाई था। औद्योगिक शहर में जीवन के रूप रंग ने परिवार की उपादेयता और स्वरूप को पूरी तरह से बदल डाला।
परिवार के सदस्यों के बीच अब तक जो बंधन थे वे ढीले पडऩे लगे। मजदूर वर्ग में विवाह संस्था टूटने की कगार पर पहुंच गई। दूसरी ओर ब्रिटेन के उच्च एवं मध्यमवर्ग की औरतें अकेलापन महसूस करने लगी थीं। हालांकि नौकरानियों के आ जाने से उसकी जि़न्दगी काफी आसान हो गई थी। ये नौकरियां बहुत मामूली वेतन पर घर का खाना बनाती थीं, साफ सफाई का काम करती थीं और बच्चों की देखभाल भी करती थीं।
वेतन के लिए काम करने वाली औरतों का अपने जीवन पर ज्यादा नियंत्रण था। विशेष रूप से निम्रतर सामाजिक वर्गों की महिलाओं का अपने जीवन पर अच्छा खासा नियंत्रण था। बहुत सारे समाज सुधारकों का मानना था कि एक संस्था के रूप में परिवार टूट चुका है। इस आशंका को दूर करने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि घर से बाहर जाकर काम करने वाली औरतों को दोबारा घर की चारदीवारी में भेजा जाए।

शहर में मर्द, औरत और परिवार


इसमें कोई संदेह नहीं है कि शहर पुरुषों और महिलाओं, दोनों में व्यक्तिवाद की एक नई भावना पैदा कर रहा था। वे सामूहिक मूल्य मान्यताओं से दूर जाने लगे थे, जो कि छोटे ग्रामीण समुदायों की खासियत थी। परंतु इस नई शहरी परिधि में पुरुषों व महिलाओं की पहुंच एक समान नहीं थी। जैसे जैसे औरतों के औद्योगिक रोजगार खत्म होने लगे और रूढि़वादी तत्व सार्वजनिक स्थानों पर उनकी उपस्थिति के बारे में अपना असंतोष व्यक्त करने लगे, औरतों के पास वापस अपने घरों में लौटने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। सार्वजनिक परिधि केवल पुरुषों का दायरा बनती चली गई और घरेलू दायरे को ही औरतों के लिए सही जगह माना जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी के ज्यादातर आंदोलनों, जैसे चार्टिज्म (सभी व्यस्क पुरुषों के लिए मताधिकार के पक्ष में चलाया गया आंदोलन), दस घंटे का आंदोलन (कारखानों में काम के घंटे निश्चित करने के लिए चला आंदोलन) में पुरुष बड़ी संख्या में एकजुट हुए। औरतों के मताधिकार आंदोलन या विवाहित औरतों के लिए संपत्ति में अधिकार आदि आंदोलनों के माध्यम से महिलाएं काफी समय बाद जाकर (1870 के दशक से) राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो पाईं।
बीसवीं शताब्दी तक शहरी परिवार एक बार फिर बदलने लगा था। इसके पीछे आंशिक रूप से युद्ध के दौरान औरतों के बहुमूल्य योगदान का भी हाथ था। युद्ध की जरूरतों को पूरा करने के लिए महिलाओं को बड़ी संख्या में काम पर रखा जाने लगा था। इन परिस्थितियों में परिवार काफी छोटा हो गया था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि अब परिवार वस्तुओं और सेवाओं के तथा विचारों के नए बाजार का केंद्र बिंदु बन चुका था। यदि नए औद्योगिक शहर ने सामूहिक श्रम के लिए नए अवसर कराए, तो उसने रविवार और अन्य छुट्टिïयों के दिनों में आमोद प्रमोद और मनोरंजन की समस्या भी खड़ी कर दी। लोगों का मनोरंजन करने के लिए जो समय मिला उसका उन्होंने किस प्रयोग किया?

मनोरंजन और उपभोग

अमीर ब्रिटेनवासियों के लिए बहुत पहले से ही लंदन सीजन की परंपरा चली आ रही थी। अठारहवीं सदी के आखिरी दशकों में 300-400 संभ्रांत परिवारों के समूह के लिए ऑपेरा, रंचमंच और शास्त्रीय संगीत आदि कई प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते थे। मेहनतकश अपना खाली समय पब या शराबघरों में बिताते थे। इस मौके पर वे खबरों का आदान प्रदान भी करते थे और कभी कभी राजनीतिक कार्यवाहियों के लिए गोलबंदी भी करते थे।
धीरे धीरे आम लोगों के लिए भी मनबहलाब के तरीके निकलने लगे। इनमें से कुछ सरकारी पैसे से शुरू किए गए थे। उन्नीसवीं सदी में लोगों को इतिहास का बोध देने के लिए और लोगों को ब्रिटेन की उपलब्धियों से परिचित कराने के लिए बहुत सारे पुस्तकालय, कला दीर्घाएं और संग्रहालय खाले जाने लगे। शुरुआती दिनों में लंदन स्थित ब्रिटिश म्यूजियम में आने वालों की सालाना तादाद सिर्फ 15,000 थी। 1810 में इस संग्रहालय में प्रवेश शुल्क समाप्त कर दिया गया, तो दर्शकों की संख्या तेजी से बढऩे लगी। 1824-25 में 1,27,643 दर्शक आए जबकि 1846 तक दर्शकों की संख्या बढ़कर 8,25,901 तक जा पहुंची। निचले वर्ग के लोगों में संगीत सभा काफी लोकप्रिय थी और बीसवीं सदी आते आते, तो विभिन्न पृष्ठïभूमि के लोगों के लिए सिनेमा भी मनोरंजन का जबरदस्त साधन बन गया।
ब्रिटिश औद्योगिक मजदूरों को छुट्टïी के दिनों में समुद्र किनारे जाने की सलाह दी जाती थी, जिससे वे खुली धूप और स्वच्छ हवा का आनंद ले सकें। 1883 में ब्लैकपूल स्थित समुद्र तट पर सैर सपाटे के लिए आने वालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा थी। 1939 तक 70 लाख से ऊपर जा चुकी थी।

शहर में राजनीति

1886 में कड़ाके की सर्दी के दिनों में चारदीवारी के बाहर काम करना असंभव हो गया, तो लंदन के गरीब दंगों पर उतारू हो गए। उनकी मांग थी कि उन्हें भयानक गरीबी से आजादी दिलाई जाए। डेप्टफोर्ड से लंदन की ओर बढ़े चले आ रहे 10,000 लोगों की भीड़ से भयभीत दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं। जुलूस को तितर बितर करने के लिए पुलिस बुलाई गई। इसी तरह का दंगा 1887 के आखिरी महीनों में भी हुआ। इस बार पुलिस ने ज्यादा सख्ती दिखाई। इस पुलिस कार्रवाई को नवंबर 1887 के खूनी रविवार के नाम से याद किया जाता है।
दो साल बाद लंदन के हजारों गोदी कामगारों ने हड़ताल कर दी और शहर भर में जुलूस निकाले। एक लेखक के अनुसार, हजारों हड़ताली शहर भर में जुलूस निकाल रहे थे लेकिन न तो किसी की जेब कटी और न ही खिड़की टूटी। 12 दिन तक चली इस हड़ताल में मजदूरों की मांग थी कि गोदी कामगारों की यूनियन को मान्यता दी जाए।
इन उदाहरणों से आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि शहर में बहुत सारे लोगों को एक साथ राजनीतिक कार्रवाईयों में खींचा जा सकता था। इस प्रकार शहर की विशाल जनसंख्या एक अवसर भी थी और एक खतरा भी। शहरों में विद्रोह की आशंकाओं को कम करने और शहरों को सुंदर बनाने के लिए सरकारी तंत्र ने हर संभव उपाए किए हैं। इस बात को पेरिस के बारे में दिए गए उदाहरणों से समझा जा सकता है।

एक अनोखा होटल

आपने अक्सर पानी पर बुलबुला बनते देखा होगा। इसके पारदर्शी रूप में सुन्दरता के कई रूपहले स्वरूप भी आपको नज़र आए होंगे, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह बुलबुला का स्वरूप भी निर्माण की दुनिया में धमाकेदार एंट्री की है, वह भी होटल के रूप में। आप यहां सोच रहे होंगे कि भला बुलबुला का निर्माण की दुनिया से क्या ताल्लुकात। जब आप इसके इस रूप को जानेंगे तो आश्चर्यचकित भी हो सकते हैं। यह बबल होटल फ्रांस Auvergne के  क्षेत्र के मार्स एइल्ले फ्रांस में स्थित है। यह स्थानattrap-reves के नाम से प्रसिद्ध है।  इस अनोखे होटल का डिज़ाइन पैरी स्टीफन डुमास(Pierre-Stephane Dumas)   ने तैयार किया है। 

यह बबल होटल छोटा ज़रूर है लेकिन सभी आरामदायक सुविधाओं से लैस है। होटल में रूम बुलबुले के रूप में है। यह विभिन्न प्रकार के आकार-प्रकार में है। कुछ रूम पूर्ण रूप से पारदर्शी है तो कुछ आधे अपारदर्शी के रूप में भी है। प्रकृति के गोद में स्थित इस नयनाभिराम होटल के रूम करीब 13 फीट के व्यास के आकार में है। रूम की सीलिंग हाइट 10 फीट है और यह एयरलोक है। यहां पर एक रात ठहरने के लिए आपको 109  यूरो से ज्यादा खर्च करने होंगे। यहां के पारदर्शी रूप में ऊपर नीला आसमान और सितारों की दुनिया के मध्य आप हमजोली बन सकते हैं। होटल के बबल रूम में मच्छरों और कीट-पतंगों से बचने के लिए बेहतर वेंटीलेशन और फिल्टर सिस्टम लगाए गए हैं।

ओल्ड एज होम

बाज़ार में ओल्ड एज  होम का प्रचलन बढ़ रहा है। वैसे  तो भारतीय बाज़ार के लिये यह एक प्रकार से नया आइडिया है लेकिन पश्चिम के देशों में यह पहले ही पॉपुलर हो चुका है। इस कॉन्सेप्ट के अन्तर्गत बुजुर्गों की ज़रूरतों के अनुसार घर बनाए जाते हैं। ऐसे लोगों के लिये यह घर काफी सुरक्षित और फायदेमंद है, जो रिटायरमेंट के बाद उसमें रहना चाहते हैं। इस प्रकार के घर बनाने के समय डेवलपर्स  लोकेशन चुनते वक्त यह विशेष ध्यान रखते हैं। रिटायरमेंट होम में बुनियादी सुविधाओं के साथ वहां के पर्यावरण का भी ख्याल रखा जाता है।  इस कॉन्सेप्ट को देश के जानी-मानी डेवलपर्स कंपनी भी अपना रही है।  कई डेवलपर्स और डिगनीटी लाइफ स्टाइल टाउनशिप इस कॉन्सेप्ट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। 

समय के साथ सब कुछ बदल रहा है। अब संयुक्त परिवार की अभिधारणा खत्म सी हो गयी है। मार्केट में न्यूक्लिर फैमिली का कॉन्सेप्ट जोर पकड़ लिया है। घर में मियां-बीबी और बच्चे ही परिवार को आधार दे रहे हैं। आप इसे व्यक्गित सोच भी कह सकते हैं। पहले जहां माता-पिता, चाचा-चाची एक परिवार की तरह रहते थे, वहीं वर्तमान में परिवारिक स्वरूप में ये लोग कुछ अलग-थलग से हो गये हैं। अपने बच्चों के सपने को साकार करने के लिये माता-पिता ने जो दिन-रात एक किया था, वह बच्चे अपने सपने को साकार करने के बाद अपनी मां और पिता को भूल जाते हैं। जब स्थिति ऐसी हो तो मानकर चलें कि वर्तमान में ही आपको अपने भविष्य को सुरक्षित करने में ही भलाई है। इस बात का इससे बड़ा सबूत और किया हो सकता है कि आये दिन मीडिया की खबरों में बुर्जुग दंपत्ति से लूटपाट और हत्या जैसी वारदात की खबरें  रहती है। ऐसे भी देखा जाय तो रिटायरमेंट के बाद अधिकतर लोग शांत, स्थिर और तसल्ली की जि़न्दगी जीना चाहते हैं। जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में रिटायरमेंट के बाद शहर के शोर से दूर और परिवार से अलग आत्मनिर्भर रहने की चाहत बढ़ी है और नतीजतन वरिष्ठ नागरिकों के लिए मकान की मांग बढ़ी है। इस ट्रेंड का प्रचलन पश्चिमी देशों में खास लोकप्रिय रहा है। यह ट्रेंड अब भारत में भी अपनी जगह बना रहा है।  प्रसिद्ध ग्लोबल रियल एस्टेट कंसल्टेंसी कंपनी जोंस लैंग लसाल मेघराज (जेएलएलएम) की एक रिपोर्ट के अनुसार पुणे, कोच्चि, बंगलुरु, चेन्नई, मुंबई और दिल्ली एनसीआर में रिटायरमेंट होम लोकप्रिय हो रहे हैं। इस होम में बुजुर्गों के लिये बेहतर होता है। यह होम आरामदायक होने के साथ-साथ सुरक्षा की बेहतर चाक चौबंद रहती है। सबसे अच्छी बात यह  है कि यहां रहने वालों के लिये घर के पास ही आधुनिक मेडिकल सुविधा भी मिल जाती है, जो बढ़ती उम्र में एक प्रकार से ज़रूरत बन जाती है। उपभोक्ता चाहे तो अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपार्टमेंटस के डिज़ायन में कुछ बदलाव भी करवा सकते हैं या और भी कोई विशेष सुविधा चाहते हैं तोइसका पूरा ख्याल रखा जाता है। जानकारों का मानना है कि  रिटायरमेंट होम एक नया आइडिया है। इसमें बुजुर्गों की ज़रूरतों के अनुसार घर बनाए जाते हैं, जो लोग दूसरा घर खरीदते हैं, उनमें से ज्यादातर रिटायरमेंट के बाद उसमें रहना चाहते हैं। इसलिए इसका लोकेशन चुनते वक्त यह देखा जाता है कि यह पहले घर के करीब हो। बुनियादी सुविधाओं के साथ वहां के पर्यावरण का भी ख्याल रखा जाता है। देश में कुछ ऐसे डेवलपर्स हैं, जो खासतौर पर रिटायर तबके के लिए घर बना रहे हैं। जैैसे,  जयपुर, पुणे और भिवाड़ी में आशियाना हाउसिंग के रिटायरमेंट रिजॉर्ट हैं। हाल में इस गु्रप ने उत्सव रिटायर्ड होम्स भी लॉन्च किया है। इस प्रकार के घरो के कीमतों में अंतर भी होता है। जयपुर में जहां इसकी शुरुआती रेंज करीब 15 लाख रुपये हैं, तो वहीं भिवाड़ी में करीब 20 लाख रुपये हैं। 

जीम कार्बेट नेशनल पार्क

जीम कार्बेट नेशनल पार्क पर्यटकों के लिए आकर्षक स्थान है। यह प्राकृतिक सौन्दर्य के आगोश में समटा हुआ है।  यहां पर बहने वाली नदी रामगंगा के कलकल करते ध्वनि से प्राकृतिक सौन्दर्य का रंग और निखार देता है। विभिन्न जीव-जन्तु, कई  किस्मों के पेड़-पौधे और प्राकृतिक तत्वों से भरपूर यह स्थान आकर्षक छटा बिखेरती है। खासकर, यहां की जीप सफारी और हाथी सफारी करने का एक अपना ही मजा है।  जब कभी भी पर्यटकों को मौका मिलता है, वह प्राकृतिक सौन्दर्य के खूबसूरत वादियों को अपने यादों के झरोखों में कैद करते हैं। यहां पर विभिन्न वन्य प्राणियों का वास-स्थान है, जो आपमें रोमांच का अहसास कराता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के तत्वों से भरपूर जीम कार्बेट आपको प्रकृति के नज़दीक और निहारने का वह मौका देता है, जहां पहुंच कर आप इसके आलौकिक सौन्दर्य में खो से जाएंगे। वर्तमान समय में प्रत्येक साल देश-विदेश से यहां पर घूमने के लिए करीब 70 हज़ार लोग आते हैं। 





photo source http://www.jimcorbettnational-park.com/
जीम कार्बेट नेशनल पार्क देश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल और बिजनौर जिले में विस्तृत है। वर्तमान समय में पार्क 1358.54 स्क्वेयर किमी. के संरक्षित क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें 520 स्क्वेयर मीटर का क्षेत्र कोर एरिया और 797.72 स्क्वेयर किमी. का क्षेत्र बफर एरिया में आता है।
इसका कोर एरिया का उत्तरी भाग कांडा रिज से घिरा हुआ है । इस रिज का सबसे ऊंचा भाग करीब 1043 मीटर है। संरक्षित क्षेत्र का पूरा भाग शिवालिक और हिमालय से घिरा हुआ है। यहां पर बहने वाली नदी रामगंगा के कलकल करते ध्वनि से प्राकृतिक सौन्दर्य के रंग और निखर देता है। राम गंगा,गंगा की सहायक नदी है। रामगंगा यहां की प्राकृतिक सौन्दर्य को कई गुणा बढ़ा देती है। यह पूर्व से पचिश्म की ओर बहती है। संरक्षित क्षेत्र के दक्षिणी और पश्चिमी भाग के अंतिम छोड़ पर कालगढ़ बांध स्थित है, जिसे वर्ष 1974 में निर्माण किया गया था। आजादी के बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क कर दिया गया था लेकिन वर्ष 1956 में इसका नाम प्रसिद्ध शिकारी जीम कार्बेट के याद में जीम कार्बेट नेशनल पार्क रख दिया गया। भारतीय बाघों के संरक्षण के लिए यहां पर वर्ष 1973 में एक महत्वाकांक्षी परियोजना चलााई गई।
 इतिहास के आइने में जीम कार्बेट नेशनल पार्क
जीम कार्बेट नेशनल पार्क सन् 1815-20 के मध्य यहां के स्थानीय शासकों का व्यक्तिगत संपत्ति  के रूप में था। जब अंग्रेज़ों के हाथ में इस पार्क का अधिकार मिला तो उसने भी पार्क पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। इनका एकमात्र उद्देश्य था कि यहां की प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाय और जंगलों से मुनाफा कमाया जाय। सिर्फ वर्ष 1858 में मेजर रामशे ने जंगलों की संरक्षण को लेकर पहली बार योजना बनाई। उन्होंने इस योजना को कड़ाई से पालन भी कराया, जिसके कारण वर्ष 1896 तक आते-आते जंगलों की स्थिति में सुधार भी आया। उनके इसी सोच के कारण कालान्तर में फोरेस्ट्री साइंस की उप्पति हुई।  वर्ष 1861-62 में  इन इलाकों के नीचे की घाटी में खेती पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। यहां पर पालतू जानवरों के लिए लगे बाड़े को हटा दिया गया। यहां पर पालतू जानवरों को जंगल में घुसना मना कर दिया गया। स्थायी रूप से यहां कर्मचारियों की नियुक्ति की गई, जो जंगलों को आग और अवैध कटाई से बचाते थे। इमारती लकड़ी वाले वृक्ष को लकड़हाड़ा को काटने की लाइसेंस दी गई और पेड़ो की भी गिनती भी शुरू की गई। वर्ष 1868 में जब वन्य विभाग की स्थापना के बाद जंगलों की जिम्मेदारी उस पर सौंप दी गयी। जंगलों के संरक्षण के लिए 1879 में वन्य जीव अधिनियम बना।  बाद में 3 जनवरी, 1907 में सर माइकल किन ने प्रथम बार इसे वन अभयारणय के रूप में ढालने का प्रयास किया लेकिन योजना सफल नहीं हो पाई। बाद में इस योजना को अमली जामा 1934 में गर्वनर सर मलकोल्म हैली ने पहनाया। उन्होंने माइकल के इस प्रस्ताव को सर्मथन किया। वे चाहते थे कि एक अध्यादेश के तहत जंगलों की रक्षा के लिए कानून बने। बाद में मेजर जीम कार्बेट ने पार्क को 1936 में द यूनाइटेड प्रोविन्स नेशनल पार्क एक्ट के अनुसार चारों तरफ से चाहारदीवारी लगवायी और इसका सीमांकन किया गया। इसके बाद यह देश का पहला संरक्षित वन क्षेत्र बन गया। इसका नाम इसके संस्थापक सर मल्कम हैली के नाम पर रखा गया था। शुरुआत में पार्क केवल 323.75 स्क्वेयर किमी. का था लेकिन यहां पर बाघ और हाथी जैसे जंगली जानवरों के वास-स्थान को देखते हुए इसका क्षेत्रफल 520 स्क्वेयर किमी. कर दिया गया। वर्तमान में इसका कोर एरिया का क्षेत्रफल भी यही है जो वर्ष 1966 में था। वर्ष 1973 में वाइल्ड लाइफ को संरक्षित करने के उद्देश्य से इसे विशेष दर्जा दिया गया । इस मुहिम के तहत के विश्व के सभी देशों में बाघ संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर कार्यक्रम के अन्तर्गत विश्व का सबसे बड़ा पर्यावरण संरक्षण प्रोजेक्ट चलाया गया । इस प्रोजेक्ट की शुरूआत भारत का पहला नेशनल पार्क से किया गया था।
मुख्य आकर्षण 
जंगली जीव- जीम कार्बेट नेशनल पार्क विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं का निवास स्थान है। यहां के बाघ पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण है। पार्क में  हाथी, पैंथर, जंगली बिल्ली, फिशिंग केट्स, हिमालयन केट्स, हिमालयन काला भालू, स्लोथ बीयर, हिरन, होग हिरन, बार्किग हिरन, घोरल, जंगलीबोर, पैंगोलिन, भेडि़ए, मार्टेन्स, ढोल, सिवेट, नेवला, ऊदबिलाव, खरगोश, चीतल, सांभर, हिरन, लंगूर, नीलगाय आदि जंगली पशुओं की क्रियाविधि को कैमरे में आप कैद कर सकते हैं। वाइल्ड लाइफ के प्रत्येक पहलुओं से रूबरू होने का मौका यह पार्क आपको देता है। पार्क में बहने वाली नदियों में घडिय़ालों को भी देखा जा सकता है।
पक्षी-जीम कार्बेट में चिडिय़ों का संसार आपके मन को मोह लेगा। इसके कलरव ध्वनि आपमें नई ताज़गी और उमंग भर सकता है। यहां पर लगभग  600 चिडिय़ों की प्रजातियां पाई जाती हैं। बगुला, डार्टर, जलकौवा, टिटहरी, पैराडाइज फ्लाईकैचर, मुनिया, वीवर बर्ड्स, फिशिंग ईगल, सर्पेन्ट ईगल, जंगली मुर्गा, मैना, मोर, बार्बेट, किंगफिशर, बत्तख, गीज, सेंडपाइपर, नाइटजार, पेराकीट्स, उल्लू, कुक्कू, कठफोड़वा, चील आदि यहां की दुनिया को प्राकृतिक रस में सराबोर कर देता है।
पेड़-पौधे- जीम कार्बेट नेशनल पार्क प्राकृतिक सौन्दर्य से लवरेज है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता किसी को मन मोह सकता है। यह स्थान पहाडिय़ों और नदियों के मध्य प्राकृतिक आगोश में लिपटा नज़र आता है। इसका नीचे का भाग खूबसूरत शाल के पेड़ों से घिरकर हरियाली से अच्छादित है। ऊपरी हिस्सा में कई प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। यहां पर पेड़-पौधे में विविधता इस रूप में है कि प्राकृतिक सौन्दर्य की खूबसूरती को अपने आप बढ़ा देता है। इसके कई भाग में चिर, अनौरी और बकली के पेड़ देखने को मिलते हैं। यहां पर बांस की कई किस्में देखी जा सकती है, जो हर प्रकार के मौसम में हर रूप में प्राकृतिक छटा बिखेरती है।
जीप सफारी- जीम कार्बेट में जीप सफारी करने का एक अपना ही अंदाज है। पार्क में घूमने के लिए यह एक बेहतर माध्यम है। जीप सफारी से इसके प्राकृतिक सौन्दर्य के हर रूप का आंनद उठा सकते हैं। कैमरा से प्राकृतिक सौन्दर्य के हर रूप को आप कैद करके अपने एलबम बना सकते हैं।  खासकर, जीप सफारी से जंगल और जंगली पशुओं को देखने का अपना ही मजा है।
हाथी सफारी-यहां पर बाघों को देखने के लिए हाथी की सवारी सबसे बेहतर और उपयुक्त मानी जाती है। इस सफारी का अनुभव अविस्मरणीय होता है। पार्क के पेड़-पौधे की विविधता से भरी दुनिया और जीव-जन्तु की अनोखी दुनिया से रूबरू होने के लिए हाथी सफारी करने का अपना ही एक अलग आंनद आता है। बाघ को देखने के लिए हाथी सफारी काफी बेहतर माना जाता है।
वर्तमान समय में जीम कार्बेट नेशनल पार्क पर्यटकों का पसंदीदा स्थान बन गया है। यहां के कुछ चुने हुए स्थानों पर ही पर्यटक को आने-जाने को आज्ञा है।  जब कभी भी पर्यटकों को मौका मिलता है, वह प्राकृतिक सौन्दर्य के खूबसूरत वादियों को अपने यादों के झरोखों में कैद करते हैं। यहां पर विभिन्न वन्य प्राणियों का वास-स्थान है, जो आपमें रोमांच का अहसास कराता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के तत्वों से भरपूर जीम कार्बेट आपको प्रकृति के नज़दीक और निहारने का वह मौका देता है, जहां पहुंच कर आप इसके आलौकिक सौन्दर्य में खो से जाएंगे। वर्तमान समय में प्रत्येक साल देश-विदेश से यहां पर घुमने के लिए करीब 70 हज़ार लोग आते हैं।
सामान्य जानकारी
मौसम और भूस्थलाकृति के बारे में 
जीम कार्बेट नेशनल पार्क समुद्र की सतह से करीब 1143 मीटर की ऊंचाई पर है। सालाना यहां पर करीब1000-2800मिलीमीटर वर्षा होती है।जाड़े के समय तापमान करीब 4 डिग्री सेल्सियस और गर्मी में करीब 42 डिग्री सेल्सियस रहता है।
कैसे पहुंचे- जीम कार्बेट पार्क सड़के और रेल से बेहतर रूप से देश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली से आप रेल से भी पहुंच सकते हैं। जयपुर, आगरा, देहरादून,ऋषिकेश, हरिद्वार, दिल्ली, लखनऊ और अन्य महत्वपूर्ण शहरों से आप बाई बस भी आ सकते हैं।
हवाई सेवा-फूलबाग, पंतनगर निकटतम हवाई अड्डा है, जो रामनगर से करीब 50 कि0मी0 दूर है। निकटतम अंतरराष्टï्रीय हवाई अड्डा दिल्ली 300 कि0मी0 दूर है।
रेल सेवा
रामनगर बड़ी लाइन का रेलवे स्टेशन है और मुरादाबाद, काशीपुर एवं दिल्ली से रेल सेवा से जुड़ा है।
सड़क मार्ग 
ढिकाला दिल्ली से 300 कि0मी0, 445 कि0मी0 लखनऊ से एवं रामनगर से 51 कि0मी0 दूर है। दिल्ली से हापुड मुरादाबाद होकर और लखनऊ से बरेली, किच्छा, रूद्रपुर काशीपुर होकर मार्ग है।
मुख्य स्थानों से दूरी 
दिल्ली- 270 किमी.
चंडीगढ़/ अंबाला-70किमी.
पोंता साहिब-49 किमी.
देहरादून-46 किमी.
ऋषिकेश-25 किमी.
हरिद्वार-56 किमी.
नाजिबाबाद- 71 किमी.
काशीपुर- 30 किमी.
कैसे वस्त्र धारण करें-
-यदि आप भूरा और हरा रंग के कपड़े पहन कर यहां आते हैं तो यहां के वातावरण के अनुरूप होता है। यह दोनों ही रंग यहां के प्राकृतिक वातावरण को कम प्रभावित करता है।
-यहां पर परफ्यूम लगे वस्त्र धारण न करें
- प्रतिबन्धित क्षेत्र में धु्रमपान निषेध है
-जाड़े के मौसम में गर्म ऊनी के कपड़े ज़रूर ले जाएं। खासकर, सफारी करने में दिक्कत नहीं आएगी। गर्मी में सूती वस्त्र का यहां के लिए आदर्श माना जाता है।
कब आएं- 
साल के तीन मौसम में आप यहां पधार कर प्राकृतिक सौन्दर्य की दुनिया के रंगों से सराबोर हो सकते हैं।
जाड़े के मौसम में- अक्टूबर से मार्च तक
( खासियत- दिन में सुहावना होता है और रात ठंड होती है)
चिडिय़ों की दुनिया के आकर्षक छटा के आप दीवाने हैं, तो आपके लिए यह मौसम काफी बेहतर है। इस मौसम में पर्वत के विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
गर्मी ऋतु- अप्रैल से जून 
 ( खास बात-इन दिनों यहां पर दिन का मौसम गर्म होता है और रात का मौसम कूल होता है )
वन्यप्राणी से लगाव है तो यह मौसम आपके लिए बेहतर है। खासकर, इस मौसम में हाथियों का झूंड आपको मनमोहक अंदाज़ में दिख सकता है।
मौनसून - जुलाई से सितम्बर तक  
(खास बात- इन दिनों मौसम में आद्र्रता ज्यादा होती है और रात सुहावना होता है) यह मौसम घुमने के लिए अच्छा माना जाता है। ट्रैकिंग और रैफ्टिंग के लिए यह मौसम अनुकूल होता है। कोशी नदी में इन दोनों शौक को पूरा करने में आपको दुगूना मजा आ सकता है।
महत्वपूर्ण टिप्स-
जहां प्रतिबन्धित क्षेत्र है, यहां पर आप न घुमें
- जानवर आदमी की आवाज़ सुनकर घबरा जाते हैं, अत: शोर-गुल न करें।
  -संगीत  और कार का होर्न बजाना दोनों ही मना है।
आप व्यक्तिगत फस्र्ट मेडिकल एड और कीट-पतंगों से बचने के लिए निरोधक क्रीम, दूरबीन, कैमरा, फिल्म रॉल्स, फ्लैश लाइट, रूचिवद्र्धक किताब आदि को कैरी कर सकते हैं।


प्रसिद्ध शिकारी जीम कार्बेट 


जीम कार्बेट एक परिचय
जन्म- 25 जुलाई, 1875
स्थान- नैनीताल, यूनाइटेड प्रोविन्स,
पेशा- शिकारी, लेखक, पर्यावरणविद्
मृत्यु- 19 अप्रैल, 1955, नैरे (केन्या)
 एडवर्ड जेम्स जीम कार्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल में हुआ था।  वह प्रसिद्ध शिकारी, संरक्षणविद्, प्रकृतिविद् और लेखक  थे। वह बचपन से ही बहुत मेहनती और नीडर स्वभाव के थे। ब्रिटीश इंडिया आर्मी  में जीम कर्नल रैंक के अधिकारी थे। उन्हें जंगलों की दुनिया से बहुत प्यार था। जब कभी भी उन्हें फुर्सत मिलता था, वह कुमांउ के जंगलों में घूमने आ जाया करते थे। वह वन्य पशुओं को बहुत प्यार करते थे। जो वन्य जन्तु मनुष्य का दुश्मन हो जाता -उसे वे मार देते थे। उन्होंने भारत में कई नरभक्षी बाघों और तेंदुआ को मार गिराया था। उनके पिता मैथ्यू एण्ड सन्स नामक भवन बनाने वाली कम्पनी में हिस्सेदारा थे। गर्मियों में जिम कार्बेट का परिवार अयायरपाटा स्थित गुर्नी हाऊस में रहता था। जीम उस मकान में 1945 तक रहे। आजादी के बाद  जिम कार्बेट अपनी बहन के साथ केन्या चले गयेे। केन्या में बस जाने के बाद, अस्सी वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हो गया। जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे। कुमाऊं था गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। वह सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे।
वह एक कुशल शिकारी थे।  शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है। कुमाऊं और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था। जिम कार्बेट जहां अचूक निशानेबाज थे, वहां वन्य पशुओं के प्रिय साथी भी थे। कुमाऊँ के कई आदमखोर शेरों को उन्होंने मारकर सैकड़ों लोगों की जानें बचायी थी। हजारों को भय से मुक्त करवाया था। गढ़वाल में भी एक आदमखोर शेर ने कई लोगों की जानें ले ली थी। उस आदमखोर को भी जिम कार्बेट ने ही मारा था। वह आदमखोर गढ़वाल के रुद्र प्रयाग के आस-पास कई लोगों को मार चुका था। जिम कार्बेट ने  'द मैन ईटर ऑफ रुद्र प्रयाग' नाम की पुस्तकें लिखीं।
भारत सरकार ने जब जिम कार्बेट की लोकप्रियता को समझा और यह अनुभव किया कि उनका कार्यक्षेत्र यही अंचल था तो सन् 1957 में इस पार्क का नाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क रख दिया गया । उनके नाम पर पार्क का नाम रखना, देखा जाय तो यह कुमाऊं-गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है। इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है। पूरी दुनिया में आज जीम का नाम प्रसिद्ध शिकारी के रुप में आदर से लिया जाता है।

बोस्टन एक ऐतिहासिक सिटी

मुकेश के झा 

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में अग्रदूत की भूमिका में रहा बोस्टन अमेरिका का 24 वीं सबसे बड़ी सिटी है। उसे अमेरिकी राज्य मैसाच्युट्स की राजधानी और राज्य की सबसे बड़ी सिटी होने का गौरव भी प्राप्त  है। यह मैसाच्युट्स के पूर्वी तट पर स्थित है।  बोस्टन प्रमुख नदी चार्ल्स  के मुहाने पर बसा है। चाल्र्स नदी उसे  कैम्ब्रिज और बोस्टन बंदरगाह से अलग करता है। बोस्टन के मेट्रोपोलिटन क्षेत्र में विश्व के प्रसिद्ध करीब 500 कंपनियों का मुख्यालय है। बोस्टन का इकॉनमी यहां के शिक्षा जगत, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा से लैस अस्पताल, वित्त और प्रौद्योगिकी उद्योग पर आधारित है। 


बोस्टन एक नज़र में 
 देश -संयुक्त राज्य अमेरिका 
राज्य- मैसाच्युट्स
काउंटी-सफोक 
व्यवस्थित- 17 सितम्बर, 1630 
निगमित सिटी (इन्कोर्परेटिड सिटी)- 4 मार्च, 1822 
सरकार
स्ट्रोंग मेयर कौंसिल 
मेयर- थॉमस एम. मेनिनो  ( डी)
क्षेत्र
सिटी-232.14 स्क्वेयर किमी.
भूमि-125.43 स्क्वेयर किमी.
जल-106.73 स्क्वेयर किमी.
भौगोलिक झुकाव 
43 मीटर
Website www.cityofboston.gov 

बोस्टन अमेरिका का प्रसिद्ध स्थान है। अमेरिकी इतिहास में इस स्थान का महत्वपूर्ण भूमिका रहा है। इस देश को एक नयी दिशा देने में बोस्टन का रोल हीरो मानिद है। यहां पर ही बोस्टन टी पार्टी की ऐतिहासिक घटना हुई थी। इस घटना में यहां के स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी ने करीब 340 चाय की पेटी को समुद्र में फेंक दिया था। इस घटना ने अमेरिका के इतिहास के रूप-रेखा और प्रशासनिक तंत्र को बदल कर रख दिया था। 
बोस्टन को बीनटाउन या द हब के नाम से भी जाना जाता है।  यह संयुक्त राज्य अमेरिका  का 24 सबसे बड़ी सिटी है। यहां की आबादी करीब 7 लाख है। बोस्टन मेट्रोपोलिटन सिटी क्षेत्रफल के मामले में 11 वां स्थान अमेरिका में रखता है। यह मैसाच्युट्स राज्य की राजधानी होने के साथ-साथ, सबसे बड़ी सिटी भी है। यह मैसाच्युट्स के पूर्वी तट पर स्थित है। यहां के प्रमुख नदी चाल्र्स के मुहाने पर बोस्टन बसा है। चाल्र्स नदी बोस्टन को  कैम्ब्रिज और बोस्टन बंदरगाह से अलग करता है। बोस्टन के मेट्रोपोलिटन क्षेत्र में विश्व के प्रसिद्ध करीब 500 कंपनियों का मुख्यालय है।  बोस्टन का इकॉनमी यहां का शिक्षा जगत, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा से लैस अस्पताल, वित्त और प्रौद्योगिकी उद्योग पर आधारित है। बोस्टन में अमेरिका का प्रसिद्ध स्वास्थ्य एजुकेशन संस्थान जैसे मैसाच्युट्स जेनरल हॉस्पिटल (Massachusetts General Hospital), बेथ इजराइल डीकनेस्स मेडिकल सेंटर(Beth Israel Deaconess Medical Center), ब्रिगम (Brigham) और वुमेन्स हॉस्पिटल है, जो चिकित्सा जगत को एक नई दिशा प्रदान कर रही है। यह स्थान म्यूचुअल फंड कंपनी फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स का होम प्लैस है।  इस सिटी को सर्वेक्षण के आधार पर वल्र्ड क्लास सिटी मानी गई है। बोस्टन सिटी के पड़ोस में ऑल्स्टोन (Allston), रॉक्सबरी(Roxbury),द बैक बे (the Back Bay), बीकन हिल((Beacon Hill)), चार्ल्स  टाउन, डोरचेस्टर जैसे प्रसिद्ध स्थान है, जहां पर सैर-सपाटा करने का अपना एक अलग ही मजा है। प्राकृतिक सौन्दर्य से लवरेज यह स्थान किसी का भी मन मोह सकता है। इन स्थानों का एक अपना ही अंदाज, ऐतिहासिक स्वरूप और चमक-दमक काफी प्रभावी है, जिस रूप और रंग में आकर आप डूब से जाएंगे। बोस्टन भूआकृति के हिसाब से एक कॉम्पैक्ट सिटी है। इसे गुड वॉकिंग सिटी की भी संज्ञा भी दी जाती है। यहां और उसके आस-पास के स्थानों पर आप आसानी से भ्रमण कर सकते हैं। 

इतिहास के झरोखों से 

बोस्टन को 1630 ई. में प्यूरिटन (Puritan) ने बसाया था। वे लोग इंग्लैंड के रहने वाले थे। प्रोटोस्टेंट धर्म के अनुयायी थे।  प्यूरिटन लोग अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु नहीं थे। यहां पर कई कॉलोनी की स्थापना इन लोगों ने भी की, जो प्यूरिटन के उत्पीडऩ के शिकार हो रहे थे।  बोस्टन और उसके आस-पास के इलाके के लोगों का अमेरिकी औपनिवेशिक इतिहास और क्रान्ति में महत्वपूर्ण भूमिका रहा। अमेरिकी क्रान्तिकारी युद्ध की शुरुआत बोस्टन के साथ-साथ कॉनकोर्ड  ( (Concord) ) और लेक्सिंगटन (Lexington) और मैसाच्युट्स में भी हुआ था। 

कुछ महत्वपूर्ण तिथियां बोस्टन के इतिहास में 

1620 ई. में कुछ तिर्थयात्री बोस्टन के दक्षिणी भाग पर आए। इसी दक्षिणी भाग पर उन्होंने प्लैमाउथ नामक कॉलोनी बसाई। यह कॉलोनी 1691 में मैसाच्युट्स के बे-कॉलोनी में शामिल कर लिया गया।  बोस्टन शिक्षा जगत के लिए किसी मदीना से कम नहीं है। यहां पर अमेरिका का फस्र्ट अंग्रेज़ी स्कूल 1635 में स्थापित किया गया था। 1636 में बोस्टन में पहला कॉलेज हावर्ड खोला गया, जो कैम्ब्रिज के नज़दीक ही था। 
5 मार्च, 1770 ई. में बोस्टन में  नरसंहार की घटना अमेरिकी क्रान्ति के लिए प्रांरभिक दौर के लिए अग्रदूत साबित हुआ। 
 बोस्टन में अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा बढ़ाया गया टैक्स से यहां की जनता बौखला गई। 16 दिसम्बर, 1773 ई. में बोस्टन बंदरगाह पर क्रान्तिकारियों की भीड़ ने बाहर से आए तीन जहाज में रखे चाय की पेटियों को समुद्र के हवाले कर दिया। 
बोस्टन में 1775 ई. में 18 / 19 अप्रैल के रात्री में पॉल रीवियर ,विलियम डॉस,सैम्युल प्रेस्कॉट   ने  'मिड नाइट राइडÓ का निर्माण  किया जो कॉनकोर्ड  ) और लेक्सिंगटन से बोस्टन में अंग्रेज के सैनिक दस्ते को आने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। यह निर्माण एक प्रकार से अंग्रेज़ी हुकूमत के लिए चेतावनी के रूप में था। 
 यहां पर सर्वप्रथम अमेरिकी क्रान्ति का बिगुल 19 अप्रैल, 1775 में फूंका गया था। इस घटना को शॉट हर्ड अरांउड द वल्र्ड की संज्ञा दी गई। यह अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई थी, जो कॉनकोर्ड के नज़दीक ओल्ड नॉर्थ ब्रिज के पास लड़ी गई।  लेक्सिंगटन और कॉनकोर्ड के बीच चल रहे युद्ध के दौरान यह ऐतिहासिक घटना हुई। 
19 अप्रैल, 1775 से लेकर 17 मार्च, 1776 तक बोस्टन के ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र को  घेराबंदी कर दी गई थी। 
17 जून, 1775 में बंकर हिल में युद्ध हुआ था, जिसे क्रान्ति का प्रारंभिक युद्ध कहा जाता है। वर्ष 1882 में बोस्टन को एक सिटी के रूप में अधिकृत किया गया।  वर्ष 1872 में बोस्टन में आग लगने की बहुत बड़ी घटना हुई थी।  यह आग करीब 12 घंटे तक लगी रही। इस आग की चपेट में करीब यहां की 65 एकड़ में लगी फसल चौपट हो गई। बोस्टन में 1876 ई. में एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीफोन का अविष्कार किया था। अमेरिका के 35 वें राष्टï्रपति जॉन एफ. कैनेडी का जन्म वर्ष 1917 में बोस्टन के पड़ोस में बु्रकलीन नामक स्थान में जन्म हुआ था। 
 प्रमुख दर्शनीय स्थल 

बोस्टन कॉमन - बोस्टन कॉमन सिटी ऑफ बोस्टन का प्रसिद्ध स्थान है। इस स्थान को द कॉमन के नाम से भी जाना जाता है। यह बोस्टन के सेन्ट्रल पार्क के रूप में प्रसिद्ध है। वर्ष 1634 से यह संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे पुराना सिटी पार्क के रूप में है। यह पार्क  करीब 50 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। 
पार्क ट्रेमोंट स्ट्रीट, पार्क स्ट्रीट, बीकन स्ट्रीट , चाल्र्स स्ट्रीट और बॉयल्स्तों स्ट्रीट से चारों ओर से घिरा हुआ है। कॉमन पार्क द एमेरल्ड नेकलेस पार्क-(the Emerald Necklace parks) का ही भाग है। यह रॉक्सबरी के फ्रैंकलिन पार्क तक विस्तृत है। यहां आने वाले विजिटर्स यहां के ट्रेमोंट पार्क के पास ही ज्यादा एकत्रित होते हैं, जो कॉमन पार्क के बगल में स्थित है। द सेंट्रल बरियिंग ग्राउंड  बॉयल्स्तों स्ट्रीट में  स्थित है, जो इस प्रसिद्ध पार्क के साथ ही जुड़ा हुआ है। यह स्थान ऐतिहासिक है। इस स्थान पर प्रसिद्ध कलाकार गिल्बर्ट स्टुअर्ट, विलियम बिलिंग्स अमेरिका के प्रसिद्ध कवि सैम्यूल स्प्रेग और उनका पुत्र चाल्र्स स्प्रेग को दफनाया गया है।  सैम्यूल स्प्रेग अमेरिका के प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्रांतिकारी युद्ध और बोस्टन टी पार्टी की घटना में भाग लिया था।  इस पार्क को क्रान्ति युद्ध के पूर्व ब्रिटीश राज्य के समय सेना के कैम्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता था लेकिन लेक्सिंगटन युद्ध और कॉनकोर्ड युद्ध के बाद ब्रिटीशर्स इसे छोड़ कर चले गए। वर्ष 1817 तक इस स्थान पर सार्वजनिक रूप से फांसी की सजा दी जाती थी। यहां पर मैरी डाइयर को 1660 ई. में फांसी दी गई। 19 मई, 1713 में करीब यहां पर दो सौ लोगों ने सिटी में खाद्ध पदार्थों की कमी को लेकर आंदोलन कर दिया था। बाद में लोगों ने जहाज और गोदामों को लूट लिया। यहां का धनी व्यापारी एन्ड्रयू बेल्चर  यहां का खाद्ध पदार्थ को कैरिबियन देशों में ले जाकर ज्यादा मुनाफा में बेचता था। इस आंदोलन के दौरान यहां का लेफ्टिनेंट गर्वनर को गोली मार दी गई थी। यह पार्क अमेरिकी इतिहास के कई गौरवपूर्ण क्षण का गवाह है। ब्रूवर फांउटन पार्क और ट्रेमोंट स्ट्रीट के पास स्थित है। यह फाउंटन 22 फीट लंबा और 15000 पाउंड  (कांसा) वजनी है। यह फांउटन पानी की दुनिया को रंगीन अंदाज दे रहा है। यहां पर पहली बार 3 जून, 1868 में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। 1855 में पेरिस वल्र्ड मेला में फाउंटन की लोकप्रियता के पर लगे। फ्रांस के कलाकार  लिएनार्ड(रुद्बुठ्ठड्डह्म्स्र) ने खूबसूरत रूप में इस एक्जिबेशन में दिखाया था। इस फाउंटन को समुद्र के देवता नेप्चून, नेप्चून की पत्नी  और असीस-गलतेआ के सुन्दर चित्रों से सजाया गया है। ग्रीक पौराणिक कथाओं के पात्र को स्थान चित्रों के सहारे देने के कारण इस फाउंटन का महत्व और भी बढ़ गया है। 
इस फाउंटेन का मरम्मत के कार्य में शायद कुछ कमियों के कारण, वर्ष 2003 तक आते-आते यहां के सालाना जलसे को खत्म कर दिया गया। पिछले साल ही यहां पर व्यापक रूप से मरम्मत के कार्य एक प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया गया। 26 मई, 2010 से यह फाउंटेन बोस्टन की दुनिया को एक बेहतर अंदाज में ढाल रहा है।  
फनेउइल हॉल  
यह बोस्टन का बहुत प्रसिद्ध स्थान है। यह वॉटर  फ्रंट के करीब और वर्तमान में बोस्टन के गर्वनमेंट सेंटर के पास स्थित है। यह स्थान बाज़ार और मीटिंग हॉल के रूप में वर्ष 1742 से ही प्रसिद्ध रहा है। इस स्थान पर अमेरिका के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सैम्यूल एडम्स, जेम्स ओटिस ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ जोश से भरा भाषण दिया था। यह स्थान अब बोस्टन नैशनल हिस्टोरिकल पार्क का अंग बन चुका है। यह स्थान  अमेरिका के प्रसिद्ध आजादी स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। इस स्थान को  आजादी के पालने ("the Cradle of Liberty") की संज्ञा दी जाती है।  Faneuil Hall  को वर्ष 1740-42 में प्रसिद्ध कलाकार जॉन स्मिबेर्ट ने निर्माण किया था। इसका निर्माण इंग्लैंड के वर्तमान बाज़ारों के अनुरूप किया गया था। हॉल की विशेषता थी कि इसमें ओपन ग्राउंड फ्लोर और एसेंबली रूम थे। उस समय बोस्टन के प्रसिद्ध धनी व्यापारी  Peter Faneuil इसके निर्माण में धन दिया था। वर्ष 1761 में यहां की बिल्डिंग आग की चपेट में आई। 1762 में हॉल का पुर्ननिर्माण किया गया। यहां पर प्रथम बार वर्ष 1839 में एक्जिबेशन मैसाच्युट्स चैरिटेबल मैकनिक एसोसियेशन के तत्वाधान में आयोजन किया गया था। 
यह स्थान बोस्टन के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के रूप में शुमार किया जाता है। यहां पर शॉपिंग की दुनिया बेहतर अंदाज़ में दिखता है। खासकर, स्थानीय कलाकारों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत गीत-संगीत का कार्यक्रम आपको पांव की थिरकाने की क्षमता रखता है।   
 क्विन्सी मार्केट  (Quincy Market ) -क्विन्सी मार्केट ऐतिहासिक स्थल Faneuil Hall के पास ही स्थित है। वर्ष 1824-26 में इस स्थान को बाज़ार का रूप दिया गया। इस स्थान का नाम यहां के लब्धप्रतिष्ठित मेयर Josiah Quincy  के नाम पर रखा गया। उन्होंने इस स्थान को एक बेहतर मार्केट प्लेस बनाने में न तो किसी से टैक्स लिया और न ऋण। 
गौरतलब है कि 19 वीं सदी  तक आते-आते बोस्टन में कॉमशिर्यल गतिविधियां बढऩे लगी और मार्केट का बाज़ार विस्तृत हो गया। इसके बढ़ते रूप के लिए  Faneuil Hall. का स्थान कम पडऩे लगा। दुकानों की बढ़ती संख्या को स्थान देने के लिए इस प्रसिद्ध मार्केट स्थल का निर्माण वक्त की मांग थी, जिसे मेयर क्विन्सी की सोच ने बेहतर रूप दिया। यहां पर बनी बिल्डिंग का डिज़ाइन एलेक्जेंडर पैरिस ने तैयार किया था। यह बिल्डिंग के  Faneuil Hall. पीछे पूर्व की ओर बनाया गया, जो प्रसिद्ध वॉटर फ्रंट के सामने था। यह स्थान यहां स्थित बंदरगाह के किनारे स्थित होने के कारण अपनी मार्केट की दुनिया को वक्त की रफ्तार में ला खड़ा किया।  यह मार्केट 535 फीट लंबा और 25,00 स्क्वेयर फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है। जहां, इसका बाहरी लुक परम्परागत ग्रेनाइट पत्थर से सजा है, वहीं इसकी आंतरिक दीवार लाल ईंटों से सुन्दरता का मिसाल प्रस्तुत करता है। यहां पर पहली बार इतनी संख्या में ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। यहां के सेकेंड फ्लोर और बेसमेंट लेवल पर रिटेल स्टोर है। यहां पर शॉपिंग करने का अपना ही मजा है। यहां पर जहां मौज-मस्ती के रेस्टोरेंट और बार हैं, वहीं पर मनोरंजन के लिए दो प्रसिद्ध कॉमेडी क्लव भी हैं। 

द जॉन ऑफ कैनेडी प्रेसीडेंशियल लाइब्रेरी व म्यूजि़यम   (The John F. Kennedy Presidential Library and Museum)

 यह स्थान बोस्टन के ज्ञान के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह अमेरिका के 35 वें राष्ट्रपति  जॉन एफ. कैनेडी के नाम समर्पित है। यह कोलंबिया पॉइंट में स्थित है, जो बोस्टन के डॉरचेस्टर के पास है। इस बिल्डिंग का डिज़ाइन प्रसिद्ध आर्किटेक्ट I. M. Pei ने तैयार किया था। यह बिल्डिंग संग्रहालय के रूप में है, जहां पर प्रशासन तंत्र के मूल कागज़ात और पत्राचार साम्रगी रखी जाती है। यहां पर प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और पत्रकार अर्नेस्ट हेमिंगवे के बारे में प्रकाशित और अप्रकाशित साम्रगी जैसे पेपर और किताब को भी रखा गया है। बाद में इस बिल्डिंग को लाइब्रेरी के रूप में ढाला गया। इस लाइब्रेरी में किताबों और दस्तावेज़ों का अमूल्य संग्रह है। बिल्डिंग से कुछ ही दूरी पर प्रसिद्ध नदी चाल्र्स बहती है यानि यह स्थान चाल्र्स नदी के किनारे स्थित है। इस स्थान के दूसरे तरफ जॉन. एफ. कैनेडी का निवास स्थान विनथ्रोप स्थित है, जहां पर कैनेडी ने काफी वक्त गुजारा था। 


हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम


स्टील विकास की धुरी

स्टील दिन प्रति दिन बुलंदियों को छू रहा है। यह वर्तमान में इन्फ्रास्ट्रेक्चर की दुनिया में जान डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बड़ी-बड़ी ऊंची बिल्डिंग्स, इन्फ्रास्टैक्चर, टूल्स, शिप, ऑटोमोबाइल, मशीन और घरेलू उपकरण में तो स्टील ने गजब की चमक बिखेरी है। आज के युग में इसके बिना तो विकास की बात करना अपने आप में बेईमानी ही मानी जाएगी।
स्टील लोहा का  मिश्रधातु है। ग्रेड के हिसाब से इसमें कार्बन की मात्रा पाई जाती है। C:110-10 Fe  में भार के हिसाब से कार्बन 0.2 प्रतिशत से लेकर 2.14 प्रतिशत तक होता है। ज्यादातर इसमें कार्बन की मात्रा ही प्रभावी होती है लेकिन लोहा के अन्य अपरूपों में मैगनीज, क्रोमियम, वैनडियम  औैर टंगस्टन भी होते हैं। कार्बन और दूसरे तत्व लोहा पर हारडेनिंग एजेंट के रूप में क्रिया करते हैं, जिसके कारण लोहा का आण्विक संरचना एक मज़बूत स्वरूप में बनी रहती है। स्टील में इन तत्वों की उपस्थिति के कारण ही इसमें कठोरता,द्रव्यता और तन्यता आदि के गुण पाये जाते हैं।  स्टील में कार्बन की मात्रा बढ़ाने से यह लोहा के अपेक्षा ज्यादा मज़बूत और कठोर के साथ इसे ज्यादा क्षणभंगूर भी बनाया जा सकता है। लोहा में कार्बन की धुलनशीलता वजन द्वारा 2.14 प्रतिशत, 1149 डिग्री सेल्सियस पर होती है। कम तापमान औैर उच्च सांद्रता की स्थिति में स्टील का उत्पादन कार्बन के साथ जुड़कर एक मज़बूत स्वरूप अख्यितार कर लेता है।   लोहा कार्बन की मात्रा जब ज्यादा हो जाती है, तब इसे ढलावां लोहा की संज्ञा दी जाती है। ऐसी स्थिति में इसका गलनांक बिन्दु न्यूनतम और ढालवांपन कम  होता है। स्टील में पायी जाने वाली अवांछित तत्वों में जैसे रॉट आयरन जिसमें अन्य तत्वों की भी मात्रा पाई जाती है, जो भार के हिसाब से 1-3 प्रतिशत के बीच होता है।  यह जंगरोधी के मामले में ज्यादा बेहतर है और बड़ी आसानी से मुड़ती भी है। सामान्य रूप से जिस लोहे और स्टील इंडस्ट्री की बात हम करते हैं, तो लगता है कि यह दोनों ही चीज़ें एक ही है लेकिन ऐतिहासिक संदर्भ में इसके विकास क्रम को देखें तो स्पष्टï है कि यह दोनों ही अलग-अलग चीज़ें हैं। यूरोप में पुुर्नजार्गरण से पहले ही स्टील का निर्माण कर्ई विधियों से किया जाता था लेकिन यह विधि इतना प्रभावी नहीं था। 17 वीं शताब्दी के बाद  स्टील का उत्पादन पहले से ज्यादा कुशल विधियों से किया जाने लगा, जिसके कारण इसका प्रयोग बढ़ता चला गया। 19 वीं शताब्दी के मध्य में बेसमर प्रक्रिया से स्टील बनने लगी और व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन होने लगा। यह प्रक्रिया थोड़ी सस्ती होने के कारण लोकप्रिय हो गयी। जब धीरे-धीरे इसके उत्पादन के साथ क्वालिटी बढ़ी तो मूल्य भी बढ़ा। वर्तमान में स्टील पूरी दुनिया में सबसे कॉमन मैटीरियेल्स है और  जिसके उपयोग के बिना सभ्यता-संस्कृति के विकास का क्रम बहुत ही पीछे रह जाता। इस बात से ही आप जान सकते हैं कि वास्तव में स्टील विकास की धुरी का आज पहिया बन चुका है। बड़ी-बड़ी ऊंची बिल्डिंग्स, इन्फ्रास्टैक्चर, टूल्स, शिप, ऑटोमोबाइल, मशीन और घरेलू उपकरण में तो स्टील ने गजब की चमक बिखेरी है। आज के युग में इसके बिना तो विकास की बात करना अपने आप में बेईमानी ही मानी जाएगी। स्टील को क्वालिटी के स्तर पर कई ग्रेड के द्वारा परिभाषित की जाती है। लोहा सामान्य रूप से अर्थ क्रस्ट के तत्व के रूप में नहीं पाया जाता है।  यह अर्थ क्रस्ट में ऑक्सिजन और सल्फर के साथ संयुक्त रूप में पाया जा सकता है।  लोहा कई तत्वों के अवयवों के रूप में हेमेटाइड, मैग्नेटाइड,पाइराइट और सिडेराइट के रूप में पाया जाता है।

इंटीग्रेटिड टॉउनशिप

बदलते वक्त के साथ कॉन्सेप्ट भी बदल रहा है। जहां एक घर के  सपने को पूरा करना येन-केन-प्रकारेण से पूरा करना जरूरी था लेकिन इस कान्सेप्ट को काफी हद तक वक्त की रफ्तार ने बदल कर रख दिया है। आप घर सारी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस लेना चाहते हैं या बनाना चाहते हैें। जब इस कॉन्सेप्ट को लेकर आप इतना संजीदगी दिखा रहे हैं तो रियल एस्टेट के डेवलपर्स पीछे कैसे रहे? कहावत है कि जो दिखता है, वह बिकता है घर चाहे छोटा सा क्यों न हो उसका सपना हर कोई देखता है। ++++++++++++++++++++++++

घर में रहने वाले ले लोगों के लिए सुरक्षा सहित और कई सुविधाएं महत्व रखती है। इस लिहाज से हर घर में आजकल बिल्डर्स गेटिड कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। जहां रहने वाले लोग अपने आपको पूर्ण रूप से सुरक्षित महसूस कर करते हैं। ग्रेटिड कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स की यह खासियत होती कि यह अन्र्तराष्टï्ीय स्तर के रेशिडेंसल जोन में स्थित होती है तथा इनमें उच्च स्तरीय सुरक्षा प्रदान की जाती है। हालांकि यह कॉन्सेप्ट विदशों से आयात किया गया है लेकिन आजकल भारत में भी यह प्रचलन में लाया जाने लगा है।
वैसे इस तरह के कम्युनिटी को अक्सर इंटीग्रेटिड टॉउनशिप या प्लांट टाउनशिप भी मान लिया जाता है। लेकिन इन दोनों में काफी अंतर होता है। इंटीग्रेटिड टाउनशिप के अन्तर्गत गोल्फ कोर्स, स्पा, सोशल क्लब, स्र्पोट्स क्लब तथा आधारभूत सुविधाएं जैसे स्कूल, ऑफिस, शॉप्स, पार्क आदि कुछ ही दूरी पर स्थित होती है। लेकिन गेटिड कम्युनिटीज में चारों तरफ से सुरक्षित घेरा उच्च स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था को ज्यादा महत्व दिया जाता है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर के अलावा इस तकनीक को काफी ज्यादा तरजीह दी जाने लगी है और आने वाले समय में लोगों की लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव भी ला सकता है। अब के घर पहले की तरह नहीं रहे, इसलिए उनमें सुरक्षित वातावरण, वास्तुशास्त्र और इंटीरियर, एक सौ प्रतिशत पॉवर बैकअप, आधुनिक तकनीक से परिपूर्ण भूकंपरोधी इमारत आदि का ध्यान निर्माण के समय से ही दिया जाने लगा है।
इस तरह की सुविधाओं से सजे घरों की डिमांड आने वाले भविष्य में और अधिक बढेगी।  यदि बात करें इस तरह की टाउनशिप के बढते चलन की तो रियल एस्टेट में इनके बढने का एक और कारण है जमीन से तेजी से होती जा रही कमी। इसलिए कई डेवलपर्स छोटे शहरों की ओर रूख कर रहे हैं और वहां पर बेहतरीन इन्फ्रास्टक्चर का इस्तेमाल कर उन शहरों को विकसित कर रहे हैं। सुनियोजित ढंग से बनी इस तरह की टाउनशिप में मुख्य रूप से सुरक्षा, स्वच्छ वातावरण, सोशल क्लब, स्कूल, हॉस्पिटल, शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्सस, बेहतरीन आधारभूत ढांचा, सावधानी से किए गए घर के डिजाइन, रेगुलर यातायात व्यवस्था , सौ फीसदी पॉवर बैकअप, स्टैंर्ड एयरकंडीशन आदि की प्रमुखता दी जाती है। रियल एस्टेट उद्योग में कई वर्षों से काम कर रहे बेस्ट ग्रुप क एमडी श्री हरजीत सिंह अरोडा का नये कॉन्सेप्ट के बारे में कहना है कि शहरीकरण के बढते चलन और सिंगल फैमिली के बढते रिवाज ने टाउनशिप को बढावा दिया है। ज्यादातर फैमिली घर खरीदते समय सुरक्षा और ऐसी कई सुविधाओं को ढूंढती है, जो आम तौर पर फ्लैट्स या अन्य घरों में नहीं मिल पाती है। साथ ही साथ श्री अरोडा का कहना है कि एक अच्छी टाउनशिप में यदि यह कॉन्सेप्ट यूज किया जाता है तो उसकी वैल्यू काफी बढ जाती है क्योंकि इनमें अन्तर्राष्टïीय स्तर की भव्यता, हाईटेक सुरक्षा आदि होती है। ताकि कस्टमर्स सटिसफाइड हो सकें। इस तरह की टाउनशिप के निर्माण से छोटे-छोटे शहरों की सूरत बदलने की काफी क्षमता होती है और यह देखने में भी आ रहा है।  अपनी बेहतरीन  इन्फ्रास्टक्चर तथा कठोर सुरक्षा व्यवस्था के द्वारा लोगों के जीवन स्तर को और भी ज्यादा हाईटेक बनाने में इन टाउनशिप का ज्यादा योगदान माना जा सकता है। कुल मिलाकर प्रॉपर्टी के बाजार में नये-नये कॉन्सेप्ट आते जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल फ्लैट्स, टाउनशिप में तेजी से किया जा रहा है। इस तरह के निर्माण से रियल एस्टेट का व्यापार काफी तेजी से बढता भी दिखाई दे रहा है।  आने वाले समय में छोटे-छोटे शहरों में जब इंटीग्रेटिड कॉन्सेप्ट का परिदश्य दिखलाई देगा तो निश्चियत रूप से यह रियल एस्टेट की सही तस्वीर होगी। 

ऑफिस-ऑफिस

एक छोटे  ऑफिस  में भी कम से कम 20 गुणा 20 फीट जगह की आवश्यकता होती है। बेहतरीन डिजाइनिंग के लिये समकोण ऑफिस को तरजीह दी जाती है।ऑफिस को डिजाइन करने के पहले एक फ्लो चार्ट बनाया जाता है जो कि बजट और जगह पर आधारित होता है। यदि ऑफिस में रिसेप्सन की जरूरत है तो उसके लिये थोड़ी जगह छोड़ी जा सकती है।
आमतौर पर ऑफिस का 20 प्रतिशत गलियारे के लिये छोड़ा जाता है ताकि इस जगह पर आसानी से चहलकदमी की जा सके। असल में छोटे ऑफिसों को ऐसे व्यवस्थित करना चाहिये ताकि कम से कम जगह को ज्यादा से ज्यादा उपयोगी बनाया जा सके। ऑफिस के अंदर एक छोटी सी जगह को स्टोर की तरह इस्तेमाल करें। यदि ऑफिस में स्पेशल केबिन की आवश्यकता न हो तो उससे बचे रहें। क्योंकि केबिन बनवाने से अतिरिक्त जगह की ज़रूरत होती है। इससे अन्य कर्मचारियों को परेशानी भी उठानी पड़ सकती है। अत: टॉप एग्जिक्यूटिव या अकाउंट डिपार्टमेंट के अलावा अन्य डिपार्टमेंट को एक साथ ही एडजस्ट किया जा सकता है।
ऑफिस को डिजाइन करने से पहले अपने बजट और डिजाइन की अधिकतम उपयोगिता को समझ लेना जरूरी है। इंटीरियर, प्रबंधन की गुणवत्ता, समय, अन्य साधनों के आधार पर बजट प्लान किया जाता है। इसी प्रकार डिजाइनिंग आधुनिक उपकरण पर निर्भर करता है। तमाम उपकरणों को अपनी सहूलियत के अनुसार ही खरीदें। ध्यान रखें ऐसी चीजें खरीदें जो ऑफिस को मार्डन लुक भी देती हों और आपकी जरूरत के अनुसार सुविधाजनक भी हो। ऐसी किसी चीज को ऑफिस के लिये न खरीदें जो भविष्य में बोझ मात्र बनकर रह जाए। ऑफिस में इस प्रकार की चीजों से अतिरिक्त जगह का भी इस्तेमाल होता है। इसके अलावा बेवजह आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ सकता है। ऑफिस को सेट करने के लिये कांट्रेक्टर से संपर्क करें और कम से कम में ज्यादा से ज्यादा फायदे पर विचार-विमर्श अवश्य करें, लेकिन ध्यान रखें कि ऐसे किसी कांट्रेक्टर के पास न जाएं जिसका मोलभाव आपके आफिस की तुलना में ज्यादा हो।
ऑफिस को मार्डन लुक देने में गुड लाइटिंग, पेंटिंग कलर और कुछ इंटीरियर शोकेस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऑफिस में कम से कम इतनी खिड़कियां हों ताकि दिन के उजाले में कृत्रिम रोशनी की जरूरत न पड़े। खिड़कियां होने से ऑफिस में खुली हवा आती है जो कि कर्मचारियों को सक्रिय रहने में मदद करती है। इससे काम में मन लगा रहता है और कम्पनी पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। कम्पनी के डेकोरेशन के दौरान यह ध्यान रखें कि ऑफिस को डिपार्टमेंट अनुसार विभाजित करते हुए दीवारों का कम इस्तेमाल करें। दरअसल दीवार स्थायी होती है इसलिये उसे बार-बार तोड़कर बनवाना आसान नहीं होता। इसलिये दीवार की बजाय पतली प्लाई का इस्तेमाल करें।

घर को दें राजसी लुक

आप रंग-रोगन करके एक नया लुक देते हैं। इसके साज-सज्जा में चार चांद लगाने के लिए  फैशनेबल कारपेट आजकल प्रचलन में है। इस फैशनेबल कारपेट से घर के फर्श की सुन्दरता में एक मनमोहक अंदाज़ आ जाता है। इसी क्रम में बाज़ार में फैशनेबल कारपेट घर की सुन्दरता में एक और खूबसूरत कड़ी के रूप में आया है।
 भरपूर वुलेन और बनाना सिल्क कारपेट कलेक्शन का रेंज बाज़ार में है, जो घर की रूमानियत, सुन्दरता और भव्यता को बेहतर अंदाज़ में ढाल रहा है। यह नया कारपेट कलेक्शन कई रंगों और रेंज में उपलब्ध है। यह चमकीले और आकर्षक कलेक्शन वुलेन और बनाना सिल्क से बना है, जिस पर उम्दा कढ़ाई की गई है। जो इस दीप पर्र्व की भव्यता को कई  गुणा बढ़ा सकता है। सुरूचिपूर्ण कढ़ाई से लैस यह कारपेट राजसी भव्यता लिए हुए संतुलित सुनहरे रंग के साथ-साथ गहरे लाल रंग, प्राकृतिक मटमैला रंग के साथ जुड़कर अनूठा संगम बनाता है, जो इसे रॉयल लुक प्रदान करता है। सौन्दर्यबोधक यह कारपेट आपके घर की सुन्दरता को काफी बढ़ाने में सक्षम है। कई खूबियों से भरपूर यह कारपेट  हाथों द्वारा निर्मित है, जो कई रंग, आकार में उपलब्ध है। प्रत्येक घर की आवश्यकतानुसार इस्तेमाल और इनवॉयरेन्मेंट फ्रेंडली इसे खास बनाता है। यह कारपेट फेस्टिव मूड को और ताजगी से भर सकता है। 

सौदर्यं और व्यक्तित्व की पहचान दरवाजा

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अफोर्डेबल हाउसिंग

अफोर्डेबल  हाउसिंग की डिमांड कितनी?   
हाल ही में एक सर्वे के द्वारा यह बात सामने आई है कि 2020 तक भारत में करीब 40 मिलियन अफोर्डेबल  रेंज के मकान की ज़रूरत होगी। रियल एस्टेट जानकारों का मानना है कि जिस तेज़ी से आम आदमी के माली हालात में सुधार हो रहा है, उससे घर की मांग और बढ़ेगी और इस सेग्मेंट की घर की आपूर्ति न होने से डिमांड और सप्लाई का गैप और बढ़ेगा। इस समस्या को कैसे निपटा जाए इसके लिए न तो डेवलपर्स कुछ सोच रहे हैं और न ही सरकार। ऐसे में स्थिति और गंभीर होगा और रहने के लिए एकमात्र विकल्प झुग्गी-झोपड़ी ही होगा। इससे जहां स्वास्थ और सर्वभौमिक विकास में बाधा आएगी वहीं विकसित देश बनने का सपना भी पूरा संभवत: नहीं हो जाएगा।
समस्या का समाधान क्या है?
समस्या विकराल रूप अख्तियार कर ले उससे पहले इसका निदान ज़रूरी है। डेवलपर्स ज़मीन की बढ़ी हुई कीमत, रॉ-मैटीरियल और लेबर कॉस्ट का दुहाई दे कर सस्ते प्रोजेक्ट बनाने में असर्मथता जता रहे है। पर एक बात गौर करने वाली है कि आज जो भी टाउनशिप या प्रोजेक्ट डेवलप किए जा रहे है। उसमेें वल्र्ड क्लास की सुविधा उपलब्ध हो, इस पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। पर आज भी हमारे देश में  50 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्हें सिर्फ एक छत की ज़रूरत है, जिसमें वह रहकर ढंग से अपना रात गुजार सके। उनके लिए न तो जीम ,न ही गोल्फ कोर्स , न ही मॉड्यूलर किचन, न ही खास प्रकार के इंटीरियर, न ही पार्क और क्लब की ज़रूरत है। वातानुकूलित और 24 ऑवर पॉवर बैकअप तो दूर की बात है। ज़रूरत है तो बस एक छत और दो कमरे की, जिसमे वे अपना एक छोटा सा परिवार को रख सके। फिर ये डेवलपर्स तमाम तरह के सुविधाओं के ताम झाम से क्यों अनायास ज्यादा कीमत लोगों पर थोप रहे हैं।  यदि डेवलपर्स आज भी एक साधारण प्रोजेक्ट डेवलप करे तो वह बड़े ही आसानी से 15-25 लाख में हर किसी को उनके सपने का आशियाना उपलब्ध करा सकते हैं।  इस गंभीर मुद्दे पर सोचने की ज़रूरत है और समय रहते इसका निदान हो, जिससे सबका भला हो। ऐसा न हो कि समाज का एक तबका अपने को आसमान में बैठा पाए और दूसरा पताल में।

एक वास्तविकता यह भी है

रियल एस्टेट का मार्केट समय के साथ रफ्तार में तो है लेकिन एक वास्तविकता यह भी है कि घरों की ब्रिकी उम्मीद से कम हो रही है। देश के जाने-माने डेवलपर्स इस जुगत में लगे रहते हैं कि घरों की ब्रिकी में तेज़ी आए। लेकिन घरों की खरीद के मामले में आर्थिक पहलू जुड़े होते हैं। आम लोगों के पास जब तक ढंग का पैसा नहीं होगा, तब तक वे घर खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। बढ़ती महंगाई के असर ने लोगों को बेदम कर रखा है। स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाली है।

जेब पर खाने-पीने से लेकर रहन-सहन भारी पडऩे लगे हैं। हालांकि उच्च मध्यम वर्ग वाले के पास निवेश करने के ऑप्शन भले ही मौजूद हो, लेकिन मध्यम व निम्र आय वर्ग वालों पर घर लेना या कहीं निवेश करना आसान नहीं होता है। जि़न्दगी भर की जमा-पूंजी घर में लगाना तभी संभव हो पाता है, जब उसे बैंक होम लोन की सुविधा प्रदान करता है। यह तो बैंक ही है, जो होम लोन देकर आपके आशियाने के सपने को साकार कर रहे हैं। स्थिति जब ऐसी हो तो प्रॉपर्टी मार्केट में कुछ न कुछ ऐसी व्यवस्था डेवलपर्स द्वारा प्रदान की जाती है, जो आपके घर लेने का सपना सकार हो सके। इसके लिए वह एक सशक्त माध्यम ऑफर या स्कीम को चुनते हैं। ऑफर या स्कीम का माध्यम भले ही सशक्त हो लेकिन इसके पीछे कई तर्कहोते हैं, जो सोच-समझ कर फायदा उठाने में ही भलाई है। देखा जाय तो रियल एस्टेट का बाज़ार में सुस्ती छाई होने के पीछे अर्थव्यवस्था में सुस्ती और कीमतों का आम आदमी की पहुंच से बाहर होना माना जाता है। यह हाल महानगर के रियल एस्टेट का ही नहीं, बल्किर टियर टू-थ्री शहरों में भी है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, सरकार की कमजोर नीति और अर्थव्यस्था में मंदी की वजह से परेशान है। इसी कारण यह सेक्टर भी कमजोर दिखाई दे रहा है। डेवलपर्स रेजिडेंशल प्रॉपर्टी को समय पर पूरा नहीं कर पा रहे हैं और इसकी मुख्य वजह खराब प्रोजेक्ट मैनेजमेंट है। दूसरी वजह ऊंची महंगाई और बढ़ती निर्माण लागत है, इस कारण भी प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हो पा रहे हैं। अधिकतर डेवलपर्स नगदी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। उनके पास प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पैसा नहीं है। एक प्रोजेक्ट का पैसा दूसरे प्रोजेक्ट में लगाकर अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, जिसके कारण तय समय पर प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पाते हैं। रियल एस्टेट में रेगुलेटर नहीं होने से भी परियोजनाओं में देरी हो रही है।