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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

क्या है कारपेट एरिया और बिल्टअप एरिया ?


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 रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट) बिल  में कारपेट एरिया की परिभाषा दी गई है। इससे बिल्डर्स के लिए सुपर एरिया के आधार पर अपार्टमेंट बेचना मुश्किल हो जाएगा। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कारपेट एरिया क्या होता है और बिल्टअप एरिया और सुपर बिल्टअप एरिया क्या होता है। इन तीनों में बेसिक फर्क क्या है।  इस मामले को समझना काफी ज़रूरी होता है, प्रत्येक होम बायर्स के लिए। 
वास्तव में देखा जाय तो कारपेट एवं सुपर बिल्टअप एरिया में 20 फीसदी तक का फर्क रहता है। यदि ग्राहक फ्लैट या आफिस लेना चाहता है, तो बिल्डर दो विकल्प देता है जैसे पहला विकल्प 1000 स्क्वयेर फीट का फ्लैट 16 लाख रुपए में, दूसरा विकल्प 1200  स्क्वयेर फीट का फ्लैट भी 16 लाख रुपए में। ऐसे में ग्राहक बराबर कीमत को देखते हुए 1200  स्क्वयेर फीट  का फ्लैट लेना चाहेगा। बस गड़बड़ी भी यहीं से शुरू होती है। बाज़ार के नीति के अनुसार कीमत कारपेट एवं सुपर बिल्टअप दोनों को मिलाकर तय की जाती है। फ्लैट खरीदते समय सामान्य जोड़-घटाव के बदले एरिया के कैलकुलेशन पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण स्वरूप यदि फ्लैट का सुपर बिल्टअप एरिया 1200  स्क्वयेर फीट है, तो इसका मतलब हुआ कि उपयोग वाला एरिया 960  स्क्वेयर  फीट ही हुआ। यानि पेमेंट 1200  स्क्वेयर फीट का और इस्तेमाल के लिए एरिया 960  स्क्वेयर फीट मिला। डील फाइनल करते समय एरिया की स्पष्ट जानकारी बिल्डर से लेनी चाहिए। अगर बिल्डर एरिया की बात कर रहा है तो वास्तविक उपयोगी एरिया को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

कारपेट एरिया :
कारपेट एरिया का मतलब है कि फ्लैट में इस्तेमाल की कितनी जगह मिलेगी। इसे दीवार से दीवार तक का कुल एरिया भी कहा जा सकता है। दूसरे अर्थ में अगर दीवार से दीवार तक कारपेट बिछाना है, तो जितने बड़े कारपेट की ज़रूरत पड़ेगी, वह फ्लैट का कारपेट एरिया माना जाएगा। फ्लैट का दरवाजा बंद करने के बाद जो हिस्सा है, वह कारपेट एरिया होता है।

बिल्टअप एरिया :
फ्लैट, मकान, ऑफिस, दुकान के कारपेट एरिया में दीवारों के नीचे की जगह को शामिल किया जाए तो वह कुल बिल्टअप एरिया कहलाता है। बिल्टअप एरियों को फ्लैट का कुल बिल्टअप एरिया कहा जाता है।
सुपर बिल्टअप एरिया :
कारपेट एरिया, बिल्टअप एरिया के साथ कॉमन स्पेस को जोड़ दिया जाए तो वह सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है। बिल्डर्स, बायर्स से हमेशा सुपर बिल्टअप एरिया की बात करते हैं। बिल्डिंग में कॉमन रूम, सीढिय़ां, एलीवेटर, फ्लैट के बाहर की गैलरी को बिल्टअप एरिया में जोड़कर सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है। सुपर बिल्टअप एरिया में क्या-क्या शामिल हो, इसे बिल्डर अपने हिसाब से तय करता है। एक्सपर्ट की राय में बड़े और प्रोफेशनल बिल्डर्स को साझा इस्तेमाल की कुछ चीज़ों को सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल नहीं करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सोसायटी का ऑफिस, कॉमन टायलेट, इलेक्ट्रिक मीटर रूम, पंप रूम, जेनरेटर रूम, सिक्युरिटी चेम्बर, सीढिय़ां, लिफ्ट मशीन रूम, ओवरहेड एवं अंडरग्राउंड टैंक, कॉमन टैरेस, ओपन स्टोट्र्स एरिया, स्वीमिंग पूल, कपड़े सुखाने का एरिया आदि। 
अक्सर देखने में आता है कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में लिफ्ट एवं सीढिय़ां होती हैं, इसलिए इसे सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल कर लिया जाता है। अभी तक लगभग रियल एस्टेट सेक्टर में यह भी तय नहीं था कि बिल्टअप अथवा सुपर बिल्टअप एरिया में से कीमतें किस पर तय होगी। सब कुछ बिल्डर पर निर्भर है। सुपर एरिया कैलकुलेशन में भी बिल्डर्स की मजऱ्ी चलती है। कस्टमर मार्केट इनके शिकंजे में फंस जाता है। 
जब ग्राहक बिल्डर के पास जाता है तो उसे अलग-अलग एरिया के नाम पर कीमतें बताई जाती है। एरिया को लेकर कोई भ्रम नहीं हो, इसके लिए ज़रूरी है कि सुपर बिल्टअप एरिया का कॉन्सेप्ट बिल्डर्स और बायर्स मार्केट के बीच स्पष्ट हो। इसके लिए एक स्टैंडर्ड तय किया जाना चाहिए। अगर बिल्डर इसका पालन करेंगे तो, सुपर बिल्टअप एरिया का कॉन्सेप्ट ज्यादा बेहतर तरीके से अपनाया जा सकता है। ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड के अलावा कई अन्य सरकारी एजेंसियां इस पर मंथन कर रही है। कारपेट एरिया को नेशनल रेफरेंस एरिया के आधार पर कीमतें निर्धारित करने का कानून बनाए जाने की पहल हो रही थी और इस बिल में इसके बारे में तय कर दिया गया। अक्सर देखने में आता है कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में लिफ्ट एवं सीढिय़ां होती हैं, इसलिए इसे सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल कर लिया जाता है। अभी तक लगभग रियल एस्टेट सेक्टर में यह भी तय नहीं था कि बिल्टअप अथवा सुपर बिल्टअप एरिया में से कीमतें किस पर तय होगी। सब कुछ बिल्डर पर निर्भर है। सुपर एरिया कैलकुलेशन में भी बिल्डर्स की मजऱ्ी चलती है। कस्टमर मार्केट इनके शिकंजे में फंस जाता है। 
एक्सपर्ट की राय में बड़े और प्रोफेशनल बिल्डर्स को साझा इस्तेमाल की कुछ चीज़ों को सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल नहीं करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सोसायटी का ऑफिस, कॉमन टायलेट, इलेक्ट्रिक मीटर रूम, पंप रूम, जेनरेटर रूम, सिक्युरिटी चेम्बर, सीढिय़ां, लिफ्ट मशीन रूम, ओवरहेड एवं अंडरग्राउंड टैंक, कॉमन टैरेस, ओपन स्टोट्र्स एरिया, स्वीमिंग पूल, कपड़े सुखाने का एरिया आदि।

निर्माण की गुणवत्ता को कैसे परखें?



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 हर इंसान के जि़न्दगी में घर खरीदने का फैसला बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि घर रोज़-रोज़ नहीं खरीदे जा सकते। हर कोई इसे खरीदने से पहले बहुत सोच-विचार करता है। ढ़ेर सारी जानकारी इक्ट्ïठा करता है कि प्रोजेक्ट का लोकेशन कैसा है, कौन डेवलपर डेवलप कर रहा है, रेट क्या है, फ्लैट का इंटीरियर कैसा है, कब तक बन कर तैयार होगा आदि। लेकिन एक जो सबसे मुख्य जानकारी होती है, वह कम कस्टमर ही जानने की कोशिश करता है, वह है प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन क्वालिटी कैसी है। ऐसा इसलिए भी होता है कि कंस्ट्रक्शन के विषय में आम कस्टमर को जानकारी न मात्र की होती है। प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन क्वालिटी को आप कैसे जांचे आइए जानते हैं।
रियल एस्टेट एक के बाद एक नई इबारत लिख रहा है। देश के छोटे-बड़े शहरों में गगनचुंबी इमारत से लेकर लग्जुरियस अपार्टमेंट का निर्माण हो रहा है। डेवलपर्स भी घर की बढ़ती ज़रूरत को देखते हुए नए-नए प्रोजेक्ट लॉन्च करते जा रहे है। लॉन्च हुए प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते है। मार्केट में प्रतिस्पर्धा होने से कस्टमर कि ओर से शिकायत आती है कि उसे जो घर दिया गया है उसमें निर्माण में कई तरह की खामियां है। इसके लिए डेवलपर्स को दोषी ठहराना जायज नहीं होगा। इसके लिए सरकारी तंत्र भी जि़म्मेदार है। जानकारों का मानना है कि बढ़ता भ्रष्टïाचार, लेट-लतीफी नौकरशाही के कारण निर्माण में बिल्डिंग कोड का बड़े पैमाने पर उल्लंघन भी है। डेवलपर्र्स अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में बिल्डिंग की संरचना और सुरक्षा में लापरवाही बरत रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह सिर्फ वहां पर रह रहे लोगों के लिए किसी बड़े दुर्घटना के आमंत्रण से कम नहीं है, बल्कि आस-पास रह रहे लोगों के लिए भी खतरा हो सकता है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम कर रहे कामगार बताते हैं कि यह बड़ा ही पेचीदा मामला है और इस सेक्टर के सभी पहलुओं पर प्रकाश नहीं डाला जा सकता। उदाहरण के तौर पर, सामान्य लोगों को यह पता नहीं होता है कि इस बिल्डिंग स्ट्रक्चरली ठीक है या नहीं। इसके लिए कस्टमर को चाहिए कि वह बिल्डिंग का स्ट्रक्चरल और आर्किटेक्चरल विवरण एक स्वतंत्र वास्तुकार से दिखाकर समझे। वह आपको बिल्डिंग की सही जानकारी उपलब्ध कराएगा। आप नीचे दिए गए कुछ बिंदुओं को जानकर खुद भी सारी जानकारी इक्ट्ïठा कर सकते हैं। 
सही पेपर वर्क
हालांकि रियल एस्टेट में काम कर रहे सभी डेवलपर्स क्वालिटी कंस्ट्रक्शन कि बात करते हैं, पर इस विषय पर कोई गहन विवरण कस्टमर को पेपर पर उपलब्ध नहीं कराते, लेकिन एक डेवलपर्स के लिए ज़रूरी है कि वह अपने कस्टमर को कंस्ट्रक्शन संबन्धी जानकारी दें। कस्टमर को भी कंस्ट्रक्शन संबन्धी जानकारी जानने का हक है। हालांकि डेवलपर्स अपने कस्टमर को बुकिंग के दौरान बिल्डिंग में क्या सुविधा मिलेगी, फ्लोरिंग कैसा होगा, दरवाजे और खिड़की, सेनेटरी, बिजली वायरिंग किस क्लास का यूज किया जाएगा आदि जानकारी देता है, पर वह इसका विस्तृत विवरण नहीं देता। कस्टमर को चाहिए कि अपने फ्लैट का पजेसन लेने से पहले यह सुनिश्चत कर लें कि बुकिंग के समय डेवलपर्र्स ने जो वादा किया था, उसे पूरा किया है या नहीं। काफी कस्टमर की शिकायत होती है कि जो वादा किया गया, उसे पूरा नहीं किया गया। यदि किया भी गया तो जिस रूप-रेखा में कहा गया था, वैसा नहीं किया गया है। कस्टमर को चाहिए कि घर की चाबी लेने से पहले डेवलपर्स पर दवाब डालें कि आपने जो पेपर पर मेनसन किया था, वह सारी सुविधा उपलब्ध कराई जाए। 
मीङ्क्षटग

जब आप घर खरीदने जा रहे हैं और जिस प्रोजेक्ट में आप घर लेने का मन बनाया है, उस प्रोजेक्ट का मुआयना स्वयं करें। इससे आपको उस प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन क्वालिटी किस दजऱ्े की है, वह पता लग जाएगा। आप बिना बताए साइट पर जाएं और देखें कि निर्माण में किस प्रकार का मैटीरियल यूज किया जा रहा है। 
मिट्टïी की जांच

इमारत की बुनियाद की मज़बूती मिट्टी  पर निर्भर करती है। मिट्टी की क्वालिटी पर निर्माण की गुणवत्ता अलग-अलग जगहों पर तय की जाती है। उदाहरण के तौर पर क्लेरिच मिट्टीका गुण होता है वह नमी को सोखता है। हर बिल्डर निर्माण से पहले मिट्टïी की जांच करता है। आप डेवलपर्स सेमिट्टी की जांच की एक कॉपी मांग सकते है। 
स्ट्रक्चर डिज़ाइन
एक आम इंसान के लिए बिल्डिंग का डिज़ाइन और ले-आउट समझना मुश्किल काम है। इसके लिए आप उस प्रोजेक्ट के स्ट्रक्चर डिज़ाइन को किसी थर्ड स्ट्रक्चरल डिज़ाइनर से दिखा कर जानकारी हासिल कर सकते हैं और उस प्रोजेक्ट के विषय में तमाम जानकारी इक्ट्ïठा कर सकते हैं। आप प्रोजेक्ट के ले-आउट डिज़ाइन से यह जानकारी इक्ट्ठा कर सकते हैं। आप जिस प्रोजेक्ट में घर लेने जा रहे है वह भूंकपरोधी है या नहीं। यदि है तो वह कितने रियेक्टर पैमाने के भूंकप को सह सकता है। जहां पर प्रोजेक्ट को डेवलप किया जा रहा है, वह किस सिसमिक ज़ोन में आता है। क्या उस सिसमिक ज़ोन के अनुरूप प्रोजेक्ट का डिज़ाइन किया गया है। मौजूदा समय में ज्यादातर प्रोजेक्ट का निर्माण 4 रिक्टर पैमाने को सहने की क्षमता किया जा रहा है। कुछ बिल्डिंग का निर्माण 9 रिक्टर पैमाने पर भी किया जा रहा है। यह पैमाना बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन पर निर्भर करता है कि वह ज़मीन पर कितना दवाब दे रहा है और उसके निर्माण में इस्पात की गुणवत्ता कैसी है।
कंक्रीट मिश्रण
कंक्रीट का मिश्रण स्ट्रक्चर की मज़बूती पर निर्भर करता है। स्ट्रक्चर का लोड के अनुसार कंक्रीट का मिश्रण किया जाता है। कोई भी डेवलपर्स के लिए यह संभव नहीं है कि वह साइट पर जाकर हमेशा कंक्रीट के मिश्रण का अवलोकन करे, उनके लिए पहले से तैयार मिश्रण एक अच्छा विकल्प होता है। आप बिल्डर से पूछ सकते हैं या जानकारी ले सकते हैं कि किस परीक्षण प्रयोगशाला से मैटीरियल की जांच करायी गयी है और वह प्रयोगशाला ने क्या रेटिंग दी है। 
दीवार की मोटाई

बिल्डर को बुकिंग के समय ले-आउट डिज़ाइन में दीवार की चौड़ाई व मोटाई का उल्लेख करना  चाहिए। आप साइट पर जाकर यह पता कर सकते हैं कि बिल्डर ने जो आपसे कहा है उसका वह पालन कर रहा है की नहीं। 
इंटीरियरडेवलपर्स आपसे वादा करता है कि बिल्डिंग की फिनिशिंग अला दजऱ्े की होगी और इसमें लगने वाले समान उत्तम क्वालिटी का होगें। आप पजेसन लेने के समय खुद से बाथरूम फिटिंग, इलेक्ट्रिक तार, स्वीच फिटिंग, टाइल्स, पलम्बर, प्लास्टर, टाइल्स, मारबल और पेंट की क्वालिटी आदि की जांच कर लें। क्या बिल्डिंग में जो समान इस्तेमाल हुए हैं, वह भारतीय बिल्डिंग मानक को पूरा कर रहे हैं या नहीं। यदि आपको किसी भी प्रकार का संदेह है तो आप बिल्डर से उसके बारे जानकारी ले सकते हैं और पूछ सकते हैं कि इसमें कौन सा ब्रांड यूज किया गया है। यदि बिल्डिंग में घटिया क्वालिटी का पेंट और टाइल्स का उपयोग किया गया है तो आप उसे चेंज करने को कह सकते हैं। 
तीसरे पक्ष का प्रमाणपत्र
समय की कमी और दूसरे काम का बोझ होने से यह संभव नहीं है कि आप बिल्डिंग के हर पहलुओं की जांच खुद से करें। इसके लिए आप थर्ड पार्टी जो इस सेक्टर का जानकार हो, उसकी राय ले सकते हैं। वह आपको सभी पहलुओं का विस्स्तृत ब्यौरा उपलब्ध कराता है। थर्ड पार्टी आपको कई मायने में फायदेमंद हो सकता है। भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया से भी आप संपर्क कर सकते हैं। आप डेवलपर्स से कह सकते हैं कि आप एक स्वतंत्र लेखा परीक्षक को हायर करें, जो प्रोजेक्ट को मॉनीटर कराएं। इससे आपके ऊपर बोझ भी कम होगा और प्रोजेक्ट का काम भी क्वालिटी का होगा। कई प्रतिष्ठिïत बिल्डर इस तरह की पहल कर भी रहे हैं। उन्होंने अपने प्रोजेक्ट कोCIDC-CQRA  गुणवत्ता प्रमाण पत्र ले रहे हैं। ये बॉडी कंस्ट्रक्शन क्वालिटी की रेङ्क्षटग देते हैं। ये उपक्रम भारत सरकार के कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री डेवलपमेंट कौंसिल द्वारा मान्या प्राप्त है। इसकी बॉडी को योजना आयोग द्वारा सहयोग मिलता है। आप यदि खुद से कंस्ट्रक्शन क्वालिटी की जांच करना चाहते हैं तो भी आप किसी पेशेवर ऑडिटर से सेवा आवश्य लें। एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जो प्रॉपर्टी आप खरीद रहे हैं, उसके लेकर आप सर्तक रहें। 

आप रहें जागरूक

              Pls Visit- /http://www.propertysansar.in/


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 बड़े-बड़े नामी-गिरामी बिल्डर्स, प्रोजेक्ट के नाम पर अलॉटमेंट के समय बड़े प्यार से ग्राहकों से पैसा लेते हैं, लेकिन किसी कारणवश उसी ग्राहक को पैसा वापस लेना होता है, तो उन्हें लोहे के चने-चबाने पड़ते हैं। ज्यादातर मामलों में रिफंड का फंडा इतना जटिल हो जाता है कि ग्राहक खुद ठंडे पड़ जाते हैं।  कुछ जगह पर तो बिल्डर्स द्वारा स्कीम लॉन्च करने के बाद पैसों को लेकर चंपत हो जाने की बात भी सामने आई है। आखिर इसकी वजह क्या है। इस रिफंड के मामले को लेकर पूरे मामले की तह में जाकर इस विषय से जुड़े कई अनसुलझी बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं ।
रियल एस्टेट की विभिन्न कंपनियां प्रॉपर्टी बाज़ार में तेज़ी लाने के लिए तमाम सस्ती हाउसिंग स्कीमें ला रही हैं। ऐसे में आम आदमी भी अपने आशियाने की चाहत को पूरा करने के लिए इन स्कीमों का फायदा उठाना चाह रहे हैं। कुछ ग्राहक ऐसे भी हैं जो भविष्य को ध्यान में रखकर रियल एस्टेट में पैसा इसलिए लगा रहे हैं  कि उन्हें भविष्य में उनके पैसे का अधिक से अधिक रिटर्न मिलेगा। ग्राहकों के इस मूड को देखते हुए कई ऐसे तमाम बिल्डर व कंपनियां सामने आयी हैं, जो सिर्फ लुभावने विज्ञापनों के जरिए निर्धारित समय पर बिल्डिंग और फ्लैट का कब्ज़ा देने की बात कर रही हैं। इसके अलावा कुछ कंपनियां प्रॉपर्टी नहीं मिलने पर तुरंत पैसा वापस करने की भी बात कर रही हैं। ...लेकिन वास्तविकता यह हैं कि खरीददार यानि ग्राहक ऐसी लुभावनी स्कीमों में पैसा लगाकर फंसा हुआ महसूस कर रहा है। जिन्होंने पहले से प्रॉपर्टी में पैसा निवेश कर रखा है, वे रिटर्न को लेकर काफी चिंतित हैं। वहीं फाइनेंसर कंपनियां पैसा फंस जाने के कारण परेशान हैं। खास बात तो यह है कि बिल्डर और डेवलपर अपने प्रोजेक्ट में पैसे व खरीददार के अभाव में प्रॉपर्टी न बिकने को लेकर काफी दुखी हैं। जिन लोगों ने बैंकों से लोन लेकर प्रॉपर्टी में पैसा लगाया है, उन्हें ब्याज की चिंता सताये जा रही है। इसी कारण कुछ स्थानों पर बिल्डर्स  अपने पूर्व किए गए वादों से भी मुकर रहे हैं। ग्राहकों से वायदा करने वाले  कुछ  बिल्डर्स  उनके साथ धोखाधड़ी का खेल भी खेलने में लगे हैं। एक ओर जहां ग्राहक पूरी बिक्री राशि का भुगतान कर बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों के कजऱ् तले डूबे हुए हैं, वहीं बिल्डरों के वादे को पूरा न होते देख उनके घर की चाहत का सपना भी टूटता नज़र आ रहा है। वायदा करने वाले कई बिल्डर अपने ऑफिस बदलकर गायब हो चुके हैं या फिर वे फोन पर बात नहीं करना चाहते हैं। और कुछ बिल्डर अपने वादे पूरा करने के एवज में प्रॉपर्टी में बढ़ी कीमतों के चलते ज्यादा पैसे की मांग कर रहे हैं, जबकि इन सभी मामलों में कब्ज़े मिलने की संभावनायें दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है। ऐसे मामलों में खरीददार अपने आप को बेसहारा, प्रताडि़त एवं फंसा हुआ महसूस कर रहा है। अहम् सवाल यह है कि ग्राहकों को रियल एस्टेट की जालसाल कंपनियों एवं बिल्डरों के चंगुल से कैसे बचाया जाये? 
परेशान ग्राहक कहां करें शिकायत
हमारे देश में प्रॉपर्टी में धोखाधड़ी के मामले को लेकर कुछ कानून बनाये गये हैं। ग्राहकों के साथ गड़बड़ी करने वाले बिल्डर्स पर लगाम लगाने के सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत बिल्डर्स द्वारा ग्राहकों को मुआवजा दिलाने, बुक कराये गये फ्लैट देने के लिए बिल्डर्स को मज़बूर करने का प्रावधान दिया गया है। धोखाधड़ी का शिकार ग्राहक, बिल्डर द्वारा सेवा में दी गई कमी का उल्लेख करते हुए उपभोक्ता फोरम जैसे राज्य, जिला और  राष्ट्रीय आयोग में शिकायत कर सकता है। इनमें जिनकी प्रॉपर्टी की कीमत बीस लाख रुपये से कम है, उनकी शिकायत जिला फोरम में और बीस लाख से ज्यादा एक करोड़ से कम, उनकी शिकायत राज्य आयोग में दजऱ् करायी जा सकती है। ...और जहां प्रॉपर्टी की कीमत एक करोड़ से ज्यादा होगी, उसकी शिकायत राष्टï्रीय आयोग में ही दर्ज  करायी जा सकती है। यह शिकायत  बिल्डर्स के खिलाफ व्यक्तिगत या फिर सामूहिक रूप से कर सकते हैं। बशर्ते शिकायतें एक ही बिल्डर के खिलाफ हों, इसके लिए बिल्डर ग्रुप एसोसिएशन या कंज्यूमर एसोसिएशन की मदद ली जा सकती है। इसके अलावा ग्राहक कोर्ट में भी मुकदमा दर्ज  कर सकता है। साइट का फोटो लेकर कोर्ट में दिखाया जा सकता है कि बिल्डर ने क्या वायदा किया था और वर्तमान में उसकी कार्य की स्थिति क्या है। इन सभी साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट में अपनी शिकायत को मज़बूती प्रदान कर सकता है। उपरोक्त कानून के माध्यम से ग्राहक शिकायत दजऱ् कर अपने मामले का निपटारा करा सकता है। 
खरीददार बने जागरुक 
शहर में अपना फ्लैट हो, यह भला कौन नहीं चाहता, लेकिन फ्लैट बुक करने से पहले कंपनी या संबन्धित बिल्डर्स के बारे में और लोकेशन के बारे में जितनी बेहतर जानकारी होगी, उतने ही बेहतर नतीज़े पर आप पहुंच सकेंगे। प्रॉपर्टी के विज्ञापनों में दिये गये टेलीफोन नंबर व वेबसाइट पर स्वयं सर्च करके और प्रॉपर्टी एजेंट्स एवं डीलर्स की सहायता से अ'छी तरह से जानकारी लेना न भूलें।  दूसरी बात यदि आप प्रॉपर्टी फाइनेंस करा रहे हैं तो फाइनेंस कंपनियों व बैंकों की स्कीमों के बारे में यानि लोन स्कीम में कुछ हिडन कॉस्ट भी हो, उसकी भी पूरी जानकारी लें। ऐसे में आप बिल्डर्स की धोखाधड़ी से बच सकते हैं।