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रविवार, 7 दिसंबर 2014

शांति की खोज में !

मुकेश कुमार झा+++++++++++++++++++++++++यह कहानी पूर्ण काल्पनिक है। इसका किसी स्थान, जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।+++++++++++++++++++++++++

छोटी सी भूल भी जिंदगी के लिये शूल बन जाती है। धर्मेश ने घर खरीदने से पहले कुछ सावधानियां नहीं बरती, जिसका खमियाजा इसे भुगतना पड़ा। वह और उसकी पत्नी किसी प्रकार से मौत के मुंह से तो निकल गयी...लेकिन उसके मन-मस्तिष्क पर, उस काली रात की भयानक दृश्य अभी तक बरकरार है। उसे शांति की खोज में ऐसी अशांति मिली, जिसके बारे में कभी वह कल्पना में भी नहीं सोचा था।
महानगर की संस्कृति ऐसी होती है कि इसके माहौल में जो जितना धुलेगा, उतना ही उसे बच कर रहना होता है। धर्मेश भी इसी महानगर का एक भाग था। लिखने-पढऩे का शौक उसे बचपन से ही था। इसे पन्नों में उकेरे गये शब्दों के साथ कल्पनाओं की उड़ान भरना अच्छा लगता। हर एक शब्द को वह इस रूप में ढालना चाहता था कि वह शब्द -शब्दों से गूंथकर एक ऐसा शिल्प बन जाय जो अनमोल धरोहर से कम न हो। लेकिन इस बदलते परिवेश में वह खुद को अभी तक ढाल नहीं पाया था। उसमें वहीं गंबईपन और बचपना था, जिसे यहां के लोग रफ्तार की जि़न्दगी में भूल चुके थे। मेहनत और लगन के सिवाय यहां मार्केट में बने रहने के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ होती है- जुगाड़। लेकिन सीधा-साधा धर्मेश इस जुगाड़ टैक्नोलॉजी से कोसो दूर था। जब मामला ऐसा हो तो वक्त कितना संगीन हो जाता है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है और धर्मेश भी वक्त के थपेड़ों से लड़ रहा था। दिन प्रति दिन उसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी। उसकी शब्द रूपी कल्पना की उड़ान एक मोह जाल में फंस कर रह गया। उसका सृजनात्मकता बदलते वक्त के साथ जुडऩा चाह रहा था लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था। कई दिनों तक उसे फंकाकसी में भी गुजारनी पड़ी। कई सालों के बाद उसकी प्रतिभा को किसी ने माना तो वह था, मिस्टर भीम सिंह। उन्होंने उसकी लेखनी को एक नया प्लेटफॉर्म दिया। इस प्लेटफॉर्म पर उसकी लेखनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। धर्मेश के लिखे गये नॉवेल, लोगों की पहली पसंद बन गयी।

आम जनता की नब्ज़ को पकडऩे वाला धर्मेश साहित्य जगत का सितारा बन चुका था। पब्लिकेशन वाले इस पर पैसों की बरसात करना शुरू कर दिया। उसके द्वारा लिखे गये नॉबेल पर इसे खूब रॉयल्टी भी मिलने लगी। अब वह इस बेदर्द महानगर का सितारा यानि सैलेब्रिटी बन गया। यहां के रहन-सहन, चाल-चलन इसे बेहतर लगने लगा। वह हाई -फाई जि़न्दगी का भाग बन चुका था। उसे एक पार्टी में बला की खूबसूरत लड़की से आंखे चार हुयी। उस दिन के बाद तो उसे सब कुछ बदला-बदला नज़र आने लगा। इस दो पल की प्यार ने उसे आशिक बना दिया था। उसके आंखों के सामने रह-रहकर उसकी प्यारी सूरत घूम जाती थी। ऐसी स्थिति में उसकी लेखनी भी आशिक की तरह जब होने लगा तो अंतत: भीम सिंह ने पूछा-आखिर धर्मेश, तुम को क्या हो गया हैïï? तुम कोई भी काम दिल लगाकर नहीं करते, यार कहीं तुम, दिल तो किसी से लगा नहीं बैठो हो। यार-मतलब परस्ती लोगों की दुनिया है, यहां संगदिल सनम ही ज्यादा मिलते हैं। तुम अपने काम पर ध्यान दो। यह बात आयी और गयी, लेकिन धर्मेश के दिमाग से इश्क का बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने अपने सबसे प्यारे दोस्त भीम सिंह को पार्टी वाली सारी बात बता दी। भीम सिंह ने पूछा- यार, तुम किस लड़की के बारे में बात कर रहे हो, मेरी समझ मेें तो कुछ नहीं आ रहा है। धर्मेश ने दिल की बात जूंबा पर लाते हुये कहा, यार मैं इस लड़की की एक नज़र में घायल हो गया। इस दर्दे दिल की दवा मात्र वह लड़की है। भीम सिंह ने लड़की के बारे में पता लगाया। दोनों को प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि शादी के मंडप तक बात पहुंच गयी। दोनों की शादी बड़ी-धूमधाम से हो गयी। वह दोनों एक जिस्म, एक जान बनकर रहने लगे। उसने अपनी पत्नी से कुछ खास बातों पर बातचीत कर ही रहा था कि प्रिया ने कहा , धर्मेश, किराये के मकान में रहते-रहते मैं तंग अर चुकी हूं। कुछ उपाय करो, कल ही मकान मालिक से बिजली बिल को लेकर हॉट टॉक हो चुकी है। मैं, अब किसी भी हालत में इस किराये के मकान में नहीं रहूंगी। धर्मेश को यह बात, दिल को छू गयी। उसने कहा, ठीक है, भगवान ने चाहा तो अगले महीने ,नये मकान में होंगे। धर्मेश, मकान लेने की बात, दोस्तों के बीच एक पार्टी में छेड़ दी। उसके बाद, तो उसका मोबाइल हर 10 मिनट पर घनघना उठता था।
मोबाइल से अक्सर एक ही आवाज़ आती थी, मिस्टर धर्मेश से बात हो सकती है। प्रॉपर्टी डिलरों के लिये नामचीन धर्मेश किसी हॉट केक से कम नहीं था। रात के दस बज रहे थे, अचानक फिर उसका मोबाइल घनघना उठा। मोबाइल से आवाज़ आयी, सर, आपको किस तरह का मकान चाहिये। आप अपना बज़ट और लोकेशन बताइये। हमारी कंपनी ने हाल ही में एक से बढ़कर एक अपार्टमेंट बनायी है। आप चाहो तो सर, किसी एक को फिक्सड कर दूं।धर्मेश ने कहा, मुझे आप सोचने का वक्त दीजिये। उधर से आवाज़ आयी, ठीक है सर, मैैं आपके कॉल का इंतज़ार करूंगा। धर्मेश कॉल अटैंड करते-करते परेशान हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसकी बातों को माने और किसकी बातों को नहीं माने। अंतत: उसने सोचा कि चलो इस भागम-भाग से दूर कहीं एक शांत स्थान में अपना आशियाना लिया जाय। उसने एक प्रॉपर्टी डीलर को कहा कि हमें शहर से दूर, कहीं शांत स्थान में एक लक्जरियस घर चाहिये। उधर से आवाज़ आयी, क्यों नहीं सर। हमारी कंपनी ने हाल ही में यहां से करीब 135 किमी. की दूरी पर प्रकृति की गोद सुरम्य स्थान पर आप जैसे लोगों के लिये ही कई शानदार घर बनवायी है। आप चाहो तो कल ही हम आपके घर पहुंचे। धर्मेश ने कहा ठीक है- कल आप 10-11 बजे के बीच मिल सकते हैं। एक दिन बाद ठीक समय से पहले ही प्रॉपर्टी डीलर, उसके घर पर डेरा जमा चुका था। कुछ देर के लिये तो धर्मेश को यह बात अटपटा भी लगा। लेकिन उसे भी तो घर लेना था। पैसे और डॉक्युमेंट जमा करने के बाद धर्मेश अपनी पत्नी के साथ उस स्थान पर पहुंच गया, जहां उसके सपनों का आशियाना उसका इंतज़ार कर रहा था। घर की सुन्दरता और वातावरण को देखकर धर्मेश मोहित हो गया। उसने जो सोचा था, ठीक उसी प्रकार का यह घर था। घर शहर से दूर एक शानदार स्थान पर था लेकिन उसके आस-पास का माहौल, उसकी पत्नी को कुछ अजीब लगा। उसने धर्मेश से पूछा, घर तो सुन्दर है लेकिन इतना दूर और ऊपर से पहाड़ी की घाटी में। धर्मेेश बोला- मैं इस महानगर के वातावरण से तंग आकर, यहां घर ले रहा हूं। मेरा काम क्रियटीविटी का है, यह वातावरण इसके लिये प्रफेक्ट है। यह सुनकर उसकी पत्नी चुप रह गयी। कुछ दिनों के बाद ही वह इस सपनों के आशियाने में रहने लगा। लेकिन जब रात की विरानगी, इस घर को अपने आगोश में ले लेती थी, तो अन्धेरी रात में यहां का वातावरण और भी डरावना और भयावह बन जाता था लेकिन इस बात का अनुभव सिर्फ उसकी पत्नी कर रही थी। धर्मेश अपनी लेखनी की उड़ान को इस वातावरण में एक नया आयाम देने में जुट गया। वह अपनी नॉवेल के बारे में कुछ सोच ही रहा था कि अचानक कुछ परछाईंया, उसके सामने से होकर निकल गयी। यह परछाईंया इतनी स्पष्टï थी कि चेहरा एक दम साफ दिख रहा था। उसने सोचा हो सकता है, रामू हो लेकिन रामू तो यहां अकेला है और परछाईंया, तो... तीन-चार की संख्या में। अब उसकी दिमाग की बत्ती गुल हो चुकी थी। पूरे शरीर में कंपकंपाहट पैदा होने लगी। उसे लगा कि एक क्षण के लिये उसका दिमाग अन्नत गहराइयों में डूबने-उतरने लगा हो। माथे पर पसीने की बूंदे साफ झलकने लगी। उसकी घिघ्घी बंध चुकी थी। उसे यह परछाईंया कई चेहरे के रूप में नज़र आने लगा और उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। कुछ देर के बाद इस संगीन वातावरण में विष घोलती हुयी, एक हल्की सी हंसी उसके कानों में जम चुकी थी। पत्थर की बूत की तरह यह अक्श कुछ देर तक रही और बाद में अचानक चली गयी। अब तो धर्मेश को काटो तो खून नहीं। वह हिम्मत करके पत्नी को पुकारा। कहीं से कोई आवाज़ नहीं आयी। कुछ देर के लिये उसका दिमाग दूसरी दुनिया में भी गया लेकिन सामने पत्नी को देखकर एक मिनट के लिये, वह स्तब्ध रह गया। उसने इस घटना का जिक्र सिर्फ, अपने सबसे प्यारे दोस्त भीम सिंह से शेयर की। भीम सिंह ने पूछा- यार क्या बात है, तुमने मुझे, यहां बुलाया है। धर्मेश बोला यार- यह स्थान तो मुसीबतों का अड्डïा है। उसने सारी कहानी उसके सामने उकेड़ दी। भीम सिंह ने कहा ऐसी बात है, इसी कारण तुम दो-तीन दिन से महफील में नहीं दिख रहे थे। धर्मेश ने कहा-यार, यहां मय्यत निकलने की बारी है और तुम महफील की बात कर रहे हो। क्या यार, तुम भी न जाने क्या, क्या देखते रहते हो और एक बुद्धिजीवी होकर अंधविश्वास और भूत-प्रेतों पर विश्वास करते हो। धर्मेश ने कहा, सर , ऐसा है न, जब सामना होता है, तब बुद्धिजीवी भी बुद्धूजीवी बन जाते हैं। दोनों की हल्की हंसी इस सुरम्य वातावरण में तैरने लगी थी कि अचानक घर से चिखने की आवाज़ आयी तो दोनों चौंक पड़े। धर्मेश फिर से कांपते हुये कहा, अब तो विश्वास हुआ कि जो मैनें बोला, उसमें कितनी सचाई है। धर्मेश का चेहरा पिला पड़ चुका था, उसके मुंह से शब्द टूट-टूट कर निकल रहे थे। भीम सिंह भी कुछ देर के लिये सोच में पड़ गया, बोला यार, यह आवाज़ तो भाभी की है। यह शब्द सुनते ही धर्मेश और भीम सिंह लॉन से घर की तरफ दौड़ते हुये पहुंचा। अचानक किचिन में रोने की आवाज़ आने लगी और साथ में कई स्थानों से हंसने की आवाज़। हंसी और रोने के मिलेजुले आवाज़ ने तो अचानक यहां की फीजा ही बदल दी। तभी हांफती हुयी, उसकी पत्नी ने कहा कि मैंने कहा था न कि यह स्थान अजीब है, आप मानते ही नहीं थे, लो अब भुगतो। भीम सिंह ने कहा-क्या हुआ भाभी-भाई साहेब-मैं जब किचिन में बर्तन साफ कर रही थी कि अचानक बत्ती चली गयी, सामने देखा-इतना बोलते ही, वह बेहोश हो गयी। भीम सिंह ने हिम्मत से काम लेते हुये कहा, यार धर्मेश, हिम्मत से काम लो। जरा पानी लाना, धर्मेश किसी तरह से किचिन की तरफ जाकर पानी का नल खोला ही था कि उसके हलक से चीख निकल गयी। किसी तरह से भागता हुआ, वह भीम सिंह के पास पहुंचा, बोला यार, गजब हो रहा है, टंकी में पानी के स्थान पर खून आ रहा है। भीम सिंह यह सुनकर चौंक गया, अरे भाई, कहीं से पानी तो लाओ। उसने नौकर को आवाज़ दी लेकिन रामू तो किसी और दुनिया में विचरण कर रहा था। उसकी आत्मा ने कहा मालिक, पानी, पानी। इतना कहकर वह रोने लगा। किसी तरह उस पानी से धर्मेश ने पत्नी के मुंह पर छिटें मारे। वह होश में आ गयी लेकिन बोली, धर्मेश यहां से जल्दी भागो नहीं तो जान नहीं बचेंगे।
किसी तरह से वो तीनो हिम्मत करके घर से बाहर निकल आये। धर्मेश बोला-रामू कहां है- वह चुप रह गयी। धर्मेश और भीम सिंह वक्त की नजाकत को समझते हुये, चूप रहने में ही भलाई समझा। कार के पास तीनों पहुंचे ही थे कि पीछे से लंगराता हुआ रामू- रामू मालिक-मालिक चिल्ला रहा था। उसकी पत्नी ने धर्मेश से कहा, पीछे मत देखो, रामू मर चुका है। कार ऐन वक्त पर धोखा देने लगी अब तो तीनों को समझ नहीं आ रहा था कि उपाय क्या करें। भीम सिंह ने अचानक कुछ चीज़ो को समझते हुये, कहा,यार यह बहुत ही खतरनाक स्थान है और भटकती आत्माओं का सैरगाह भी। अब तो कार भी काम करना बंद कर चुकी है। धर्मेश और भीम दोनों कार स्टार्ट करने का प्रयास कर रहा था। काफी मशक्कत के बाद कार स्टार्ट हो पायी। वे तीनों बैठे ही थे कि इस घर का रंग अपने आप बदलने लगा था । पूरा का पूरा घर भयानक हंसी और भयानक चेहरों के आगोश में आ चुका था। सारे चेहरे, कार की तरफ ही बढ़ रहे थे। भीम सिंह ने कहा, यार देख क्या रहे हो, जल्दी स्पीड बढ़ाओ औैर भागो यहां से नहीं तो प्राण नहीं बचेंगे। कार ने अपनी रफ्तार पकड़ी और इन लोगों की जान बच गयी। इसके बाद यहां पर कोई भी रहने नहीं आया। जब एक दिन धर्मेश को प्रॉपर्टी डीलर मिला तो धर्मेश ने पूछा, क्या भाई ऐसे घर भी बेचते हो, जहां सिर्फ और सिर्फ मौत बसती है। प्रॉपर्टी डीलर मुंह को बनाते हुये बोला, क्या हुआ धर्मेश बाबू। भीम सिंह ने कहा, कुछ बचा हो तो बताएं। यह सुनते ही उसके होठों पर कुटिल मुस्कान तैर गयी।