
सरवाइवल और रिवाइवल इंडियन रियल्टी सेक्टर नामक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 43 मिलियन स्क्वेयर फीट रिटेल स्पेस की मांग है। कॉमर्शियल ऑफिस मार्केट के बारे में रिपोर्ट का अनुमान है कि आने वाले कुछ समय में यह मार्केट भी बेहतर स्थिति में होगा और डिमांड और सप्लाई के स्तर पर मार्केट संतुलित रूख अपनाएगा। रपट में बताया गया है कि आने वाले पांच सालों में बैंगलूरू में जहां 34 मिलियन स्क्वेयर फीट ऑफिस स्पेस की ज़रूरत हो सकती है, वहीं चैन्नई में करीब 27 मिलियय स्क्वेयर फीट ऑफिस स्पेस की आवश्यकता महसूस की जा सकती है। इस विकास की रफ्तार को आगे बढ़ाने में बेहतर इकॉनमी ग्रोथ, सकारात्मक मार्केट रूख और आत्मविश्वास से भरा कॉरपोरेट सेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। रिटेल सेक्टर को लेकर बताया गया है कि इन सात प्रमुख शहरों में करीब 43 मिलियन स्क्वेयर फीट स्पेस की ज़रूरत होगी। अनुमान लगाया गया है कि अकेले बैंगलूरू में रिटेल स्पेस के लिये करीब सबसे ज्यादा 6.8 मिलियन स्क्वेयर फीट रिटेल स्पेस की आवश्यकता होगी। पुणे के बारे में बताया गया है कि आने वाले पांच सालों में सबसे ज्यादा वार्षिक वृद्धि के साथ जो करीब 51 प्रतिशत की दर से रिटेल स्पेस की मांग बनी रहेगी। इन स्थानों पर जो स्पेस की मांग बढ़ेगी, इसमें यमुना एक्सप्रेस-वे, इकॉनमी ग्रोथ के कारण बिज़नेस का ग्लोबल स्वरूप और सरकार की बेहतर आर्थिक नीति प्रमुख भूमिका निभा सकता है। शहरीकरण का बढ़ता दायरा, बढ़ती आमदनी ये दोनों कारक रिटेल और बिज़नेस सेंटर साकारात्मक प्रभाव डालेगा। जिसके कारण इन क्षेत्रों में स्पेस की मांग निश्चियत ही बढऩे का अनुमान है। एनसीआर के बारे में अनुमान लगाया गया है कि रिटेल सेक्टर में मांग काफी ऊंची रहेगी, क्योंकि यहां का वाणिज्यिक दृष्टिïकोण के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक दृष्टिïकोण का भी बहुत महत्व रहेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में इस साल तक रिटेल स्पेस की मांग 66.6 मिलियन स्क्वेयर फीट और रिटेल के 10.20 लाख हाउसिंग यूनिट्स की ज़रूरत होगी। इस सेक्टर को बूम तक ले जाने में कई कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। पहली बात मुंबई को देश की औद्योगिक राजधानी होने का फायदा होगा और दूसरी बात यह है कि औद्योगिक राजधानी होने के कारण यहां ग्लोबल होती दुनिया से बिज़नेस के लिये हमेशा लोग आते-जाते रहेंगे। यहां पर रिटेल स्पेस की मांग करीब 6.19 मिलियन स्क्वेयर फीट स्पेस की हो सकती है। पुणे के बारे में बताया गया है कि यहां पर रिटेल स्पेस वार्षिक ग्रोथ रेट 51 प्रतिशत स्तर की दर से करीब 1.76 मिलियन स्क्वेयर फीट स्पेस की मांग होगी। यहां की बढ़ती आबादी इन सब मामलों में महत्चपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बैंगलूरू के बारे में बताया गया है कि इस साल तक करीब 7 मिलियन स्क्वेयर फीट रिटेल सेक्टर के लिये ज़रूरत होगी। बैंगलूरू में इन सेक्टरों में मांग की वृद्धि दर करीब 14 प्रतिशत के आस-पास होगी। बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर, बेहतर निर्माण और प्रतिस्पर्धा से भरे मार्केट ऐसे मुख्य कारक होंगे, जिसके कारण यहां के कॉरपोरेट सेक्टर को फायदा होने के साथ-साथ ऑफिस स्पेस की मांग बनी रहेगी। अब हम दक्षिण भारत के प्रमुख शहर हैदराबाद की बात करें तो इस रपट में स्पष्टï कहा गया है कि जहां ऑफिस स्पेस की मांग करीब 16.6 मिलियन स्क्वेयर फीट रहेगी, वहीं करीब बैंगलूरू की तरह ही करीब 3 लाख हाउसिंग यूनिट्स की ज़रूरत होगी। रपट बताती है कि यहां पर वार्षिक ग्रोथ रेट करीब 14 प्रतिशत होने का अनुमान है। रपट में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के बारे में बताया गया है कि यहां पर करीब 9 मिलियन स्क्वेयर फीट ऑफिस स्पेस की जहां आवश्यकता है, वहीं रिटेल के लिये करीब 4.5 मिलियन स्क्वेयर फीट स्पेस की आवश्यकता होगी। यह रिपोर्ट रियल एस्टेट के लिए काफी सकारात्मक रूप दर्शा सकता है। रियल्टी 2014 को इंवेस्टमेंट के परिप्रेक्ष्य से अगर देखा जाए तो मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, बैंगलुरू , कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, पूणे, गुडगांव, चंडीगढ, तथा जयपुर भारत के ऐसे शहर हैं, जो कमर्शियल प्रोपर्टी में इंवेस्ट करने के लिए हॉट स्पॉट के रूप में पहले से बेहतर ढंग से उभर सकता है। बहुत सारे माने हुए डेवलपर्स जैसे डीएलएफ, हिरानंदानी, रहेजा, वाटिका, पल्र्स तथा बेस्ट ग्रुप काफी बडी राशि रियल एस्टेट के विकास में लगा रहे हैं। भारत अपनी विरासत से अपने बेहतर भविष्य का निर्माण करने की क्षमता रखता है। इस वक्त भारत की जनसंख्या बढ तो रही है लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है कि इसकी 54 प्रतिशत जनसंख्या की उम्र 25 साल से कम है। इन युवाओं में कठोर मेहनत कर बाजार से 'यादा से 'यादा सुविधाएं अर्जित करने तथा 'यादा मांग को बढावा देने की ताकत है। यह भारत के विकास की दौड के लिए लंबी रेस के घोड़े साबित होंगे। आईटी तथा बीपीओ सेक्टर सिर्फ ऑफिस स्पेस को सजाने-संवारने तथा बेहतरीन जॉब अपॉर्चुनिटिज देने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों या गांवों से पलायन करने वालें के लिए यह रेजिडेंशियल प्रॉपर्टीज में भी संभावनाओं को बढ़ा रहे हैं और फिर बढती आमदनी तथा रिटेल और मॉल कल्चर के फैलते चलन ने भी रियल एस्टेट के क्षेत्र को विस्तार दिया है।