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शनिवार, 6 दिसंबर 2025

नैसर्गिक खूबसूरती का सरताज-एडिनबर्ग

प्रस्तुति- मुकेश के झा 

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हरियाली का प्रतीक एडिनबर्ग को यूरोप में वास्तु और नगर योजना के अनुसार सबसे खूबसूरत शहर कहा जाता है। इसी कारण इसे नार्थ एथेंस की संज्ञा दी जाती है। यहां पर स्कॉटलैंड की सीमा समाप्त होती है। सीमा पर होने के कारण यह शहर हमेशा दुश्मनों से लोहा लेता रहा है। यहां अतीत के भयावह मंजरों को अपने सीने में समाए कई किले भग्नावशेष के रूप में आज भी खड़े हैं। कहते हैं, यह शहर हमेशा से इंग्लैंड के ताज की रक्षा करता रहा है। यहां केवल ऐतिहासिक चिन्ह ही नहीं बल्कि काफी कुछ और भी है। खासकर यहां की नदियों, पहाडिय़ों, वादियों की नैसर्गिक खूबसूरती देखते ही बनती है।



एडिनबर्ग को दुनिया के खूबसूरत शहरों में गिनती की जाती है। यह स्कॉटलैंड की राजधानी है। यह इंग्लैंड का सातवां सबसे बड़ी सिटी होने के साथ, यह स्कॉटिस सिटी के अन्तर्गत ग्लासगो के बाद दूसरी सबसे बड़ी सिटी भी है। यह स्कॉटलैंड के 32 लोकल स्थानिय कौंसिल सिटी में से एक है, जो दक्षिण-पूर्व में स्थित एडिनबर्ग ईस्ट कोस्ट के सेन्ट्रल बेल्ट के साथ लगा हुआ फर्थ फोर्थ नॉर्थ सी के पास है। मध्यकाल और ग्रेगोरियन समय के वास्तुकारों ने इस शहर को एक अनोखे रूप में ढ़ाला है। खासकर पत्थरों के सहारे इसके ऊपर-नीचे की भौगोलिक स्थिति को घरों का रूप देखकर आप दांत तले उंगली दबा लेंगे। इसी फीचर के कारण इसे यूरोप के सबसे बेहतरीन शहरों में से एक कहा जाता है। यह शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों का मिला-जुला रूप है, जो करीब 78 किमी. में फैला हुआ है। स्कॉटलैंड की राजधानी वर्ष 1437 से पूर्व डफरीन थी, जो बाद में एडिनबर्ग में परिवर्तित हो गयी। उत्तर के एथेंस के नाम से मशहूर यहां का प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ एडीनबर्ग बौद्धिक जगत के लिए मक्का से कम नहीं है।

एडिनबर्ग दो मुख्य शहरों में विभाजित है। जहां एक ओर ओल्ड टाऊन में पुरानी सभ्यता, कला और संस्कति की झलक मिलती है, वहीं दूसरी तरफ न्यू टाऊन आधुनिकता के रंग में रंगा हुआ नज़र आता है। इन दोनों ही शहरों को यूनस्को ने विश्व विरासत की सूची में वर्ष 1995 में शामिल कर लिया है। इस प्रसिद्ध शहर में करीब 4500 प्रमुख बिल्डिंग हैं, जो अपनी एक अलग पहचान रखती हैं। वर्ष 2001 के जनगणना के मुताबिक एडिनबर्ग की जनसंख्या करीब 5 लाख थी। यह शहर को वार्षिक उत्सव के शहर के रूप में भी जाना जाता है। यहां साल में अगस्त महीने के चार सप्ताह तक उत्सवों का दौर अपने चरम पर रहता है। एडिनबर्ग में उत्सव के कार्यक्रम आकर्षण के केन्द्र में होते हैं। दुनिया भर के लोग यहां फेस्टिीव सीजन का लुत्फ उठाने आते हैं और यहां के आवो-हावा इनको इतना भाता है कि यहीं के होकर रह जाते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा परफार्मिंग आट्र्स फेस्टिवल एडिनबर्ग फ्रीन्ज, सबसे बड़ा कॉमेडी फेस्टिवल, इंटरनैशनल फेस्टिवल, मिलिट्री टैटू, इंटरनैशनल बुक फेस्टिवल ये सारे फेस्टिवल एडिनबर्ग की परम्परा और संस्कृति की पहचान है। यहां Hogmanay स्ट्रीट पार्टी, बर्नस नाइट पार्टी, St. Andrew's Day पार्टी और the Beltane Fire Festival बेल्टेने फायर फेस्टिवल प्रसिद्ध है और यह रोमांच ही आज आधुनिक एडिनबर्ग की पहचान बन चुका है। लंदन के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक यहीं आते हैं।
इतिहास के पन्नों
इस प्रसिद्ध क्षेत्र के इतिहास का जिक्र लौह युग और कांस्य युग के समय ही आता है। मानव उद्भव के अस्तित्व के कई पहचान इन प्रसिद्ध इलाकों के आस-पास हॉलीरूड, क्रेगलॉकहॉर्ट हील, पेंटलैंड्स में प्रारम्भिक प्रस्तर युग में ही दिखाई देती हैं। वास्तविक रूप में इस प्रसिद्ध शहर की नींव ग्रेट ब्रिटेन के पूर्व एनगिलीयन राज्य के मुख्य भाग नार्थ अमब्रिया राज्य के अन्तर्गत पड़ी, जो प्रसिद्ध नदी हंबर से संर्कीण सागर शाखा आगे के हिस्सा का एक प्रमुख भाग था, जो अब कैसल रॉक से घिरा हुआ है।
नार्थ अम्रबिया राज्य के एक प्रसिद्ध ईसाई शासक ने एडबिन पहाड़ी पर किले का निर्माण कराया ताकि अन्य राज्यों के हमले से बचा जा सके। इस प्रसिद्ध किले को ब्राइथोनिक भाषा में Din Eidyn कहते हैं। ईसाई शासक द्वारा किले के निर्माण के कुछ दिनों बाद कैसलहिल के आस-पास आबादी बसने लगी। इसके बाद इस प्रसिद्ध स्थान पर रियासत को चलाने के लिए कई निर्माण ने एक सुन्दर शहर का रूप ले लिया। यह स्थान विकास के सोपान क्रम को चढ़ते हुये पहले एडीनबर्च के नाम से जाना जाने लगा लेकिन बाद में यह स्थान एडिनबर्ग के नाम से मशहूर हुआ। नार्थ अम्रबिया के प्रसिद्ध शासक St. Oswald  के निधन के बाद Danelaw   के अन्तर्गत यह शहर धीरे-धीरे विकास करता गया। 10 वीं शताब्दी में यह शहर स्कॉटवासी के अधीन रहा। दो सौ साल के बाद इस छोटे से शहर के साथ इसके पूर्व में एक और स्थान का विकास हुआ, जिसे हॉलीरुड कहा जाता था। यहां पर एक व्यवस्थित रूप में शासकों को रहने के लिए यह स्थान प्रसिद्ध हो चुका था। बाद में एडिनबर्ग में Anglo-Saxon का मुख्य रूप से शासन रहा लेकिन कालान्तर में इस स्थान के सीमाई इलाके विवादों के केन्द्र में आ गये। इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच मुख्य विवाद के पीछे इसका बॉर्डर इलाका ही रहा। इंग्लैंड ने इस Anglo-Saxon  राज्य के अधिकार के खारिज करना शुरु कर दिया। इंग्लैंड ने दावा किया कि यह स्थान हमारे राज्य क्षेत्राधिकार में आता है, जबकि स्कॉटलैंड का कहना था कि सुदूर दक्षिण के हड्रीन के दीवार तक का स्थान हमारा है। परिणाम स्वरूप दोनों के बीच इस मामले को लेकर कई युद्ध भी हुये। एडिनबर्ग का किला इंग्लैंड के अधीन तो आ गया लेकिन 15 वीं शताब्दी तक यहां पर ज्यादा समय तक स्कॉट वासियों का ही नियंत्रण रहा।
इंग्लैंड के प्रसिद्ध शासक James IV    जेम्स ने इंग्लैंड के वर्चस्व को बढ़ाने के लिये स्कॉटलैंड की राजधानी हॉलीरूड को घोषित किया लेकिन सांस्कृति और आर्थिक रूप से इस क्षेत्र में वर्चस्व स्कॉटीश का ही था। वर्ष 1603 में इंग्लैंड का राजा James VI  ने इंग्लैंड के साथ आयरलैंड का भी शासन भार अपने हाथों में ले लिया और उसके बाद उन्होंने एडिनबर्ग किला के ग्रेट हॉल को पहली बार पार्लियामेंट के काम-काज का मूर्त रूप दिया। बाद में इस पार्लियामेंट हॉल को टोलबुथ के नाम से जाना गया। अब यही पार्लियामेंट स्कॉटलैंड के सुप्रीम कोर्ट के रूप में तब्दिल हो चुका है। वर्ष 1639 में इंग्लैंड के राजा चाल्र्र्स प्रथम के द्वारा इन सारे पूर्व के विवादों को खत्म करने के लिए प्रेस्बिटेरियन चर्च और अंग्रेज़ी चर्च को एक योजना के तहत विलयन की मांग की। बिशप युद्धों के नेतृत्व में विभाजित St. Giles' Cathedral  को पुन: एक करने के लिए अंग्रेज़ों के सीविल वार के नेतृत्व में और ओलिवर क्रोमवेल के राष्ट्रमंडल बलों द्वारा एडिनबर्ग पर अंतिम कब्ज़ा के साथ ही कई जगहों को नुकसान भी इसे उठाना पड़ा। बाद में 1670 ई. में इंग्लैंड के राजा चाल्र्स द्तिीय ने एक कमीशन गठन के द्वारा पुराने हॉलीरुड पैलेस का पुनर्निर्माण किया। यह शहर 17 वीं शताब्दी में आकर ब्रोन्डीज़ ऑफ सिटीज् के नाम से प्रसिद्ध हो गया, जिसके कारण यह रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा। प्रतिबन्धित क्षेत्र इस इलाके में होने के कारण यह स्थान विकास क्रम में आगे बढ़ता चला गया है और सुरक्षा के लिहाज से ऐसा होना लाजिमी ही था। यहां पर छोटे, मझोले और बड़े बिल्डिंगों ने भव्य नगर का स्वरूप ले लिया और 11 मंजिले बिल्डिंग सामान्य रूप से नज़र आने लगी थी। कई बिल्डिंग तो 14 मंजिल का रूप भी ले चुकी थी । कुल मिलाकर यहां का निर्माण आधुनिक गगनचुम्बी इमारतों के निर्माण के लिए एक प्रकार से मार्ग प्रशस्त किया। पत्थरों के सहयोग से बने कर्ई खूबसूरत बिल्डिंग इस शहर की पहचान बन चुकी थी, जिसे अभी भी यहां के प्रसिद्ध स्थान ओल्ड टाऊन में इसे देखे जा सकते हैं। 19 वीं शताब्दी आते-आते यह शहर लैथ बंदरगाह पर बने निर्माण कार्य से एक पूर्ण विकसित औद्योगिक शहर का रूप ले लिया। यह अलग बात है कि ग्लोसगो शहर बहुत कम समय में विकास के सोपान क्रम में एडीबर्ग को पीछे छोड़ते हुये आगे निकल चुका था। इसकी गिनती एक औद्योगिक, वाणिज्य और व्यापार के केन्द्र के रूप में की जाने लगी। लेकिन स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को अपने में समेटे हुये, वर्तमान में इंग्लैंड का सबसे बेहतर और बड़ी सांस्कृतिक स्थल का केन्द्र है। यह प्रसिद्ध शहर दो भागों में प्रिंस स्ट्रीट गार्डन के हरियाली के विस्तृत क्षेत्र से विभाजित है। जहां एक तरफ एडिनबर्ग का दक्षिणी भाग किलों के सौन्दर्य से प्रभावित है और अपनी सभ्यता और संस्कृति के रूप में ओल्ड टाऊन के रूप में प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर उत्तरी भाग प्रिंसेस स्ट्रीट और आधुनिकता के रंग में रंगा न्यू टाऊन से घिरा हुआ है।
ओल्ड टाऊन-
यहां के प्रसिद्ध स्थान प्रिंसेस ऑफ गार्डन के उत्तर-पूर्व की ओर बसा यह शहर मध्यकालीन योजनाएं और अन्य कई सुधार युग महत्वपूर्ण भवनों के रूप में संरक्षित किये हुये है। इस शहर का एक किनारा किलों से घिरा हुआ है और इसका एक मुख्य स्थान रॉयल माइल जो छोटी सड़कों से जाते हुये डाउनहिल जो herringbone पैर्टन से सुशोभित है, वास्तव में यह रचना इस स्थान को सुदृढ़ता प्रदान करती है। यह स्थान पर कई खूबसूरत बिल्डिंग हैं जो यहां की शान बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। खासकर herringbone और लॉ कॉर्टस् इस स्थान की सुन्दरता में चार चांद लगाती हैं।

यहां स्कॉटलैंड का प्रसिद्ध संग्रहालय रॉयल म्यूजियम ऑफ स्कॉटलैंड, स्कॉटिश पार्लियामेंट बिल्डिंग, पैलेस ऑफ हॉलीरुड हाउस, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग , सर्जन हॉल्स, गुफानुमा गलियां और मैकइवान हॉल प्रमुख दर्शनीय स्थान हैं। यहां के गलियों की रूप रेखा में ज्यादातर क्वाटर्स पुराने नार्थ यूरोप कै पैर्टन पर आधारित हैं और इस निर्माण में यहां की सभ्यता और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। रॉयल माइल के नीचे एक भ्रंश चट्टïानों के शिखर के ग्रीवा के ऊपर बना किलानुमा महल यहां आकर्षण के केन्द्र है। यह किलानुमा महल एक विलुप्त ज्वालामुखी पर्वत के अवशेषï पर बना हुआ है। इस प्रसिद्ध शहर का स्थलाकृति को चट्टानों  के crag and tail  के रूप में जाना जाता है। अंतिम हिम युग में ग्लेसियर के पीछे हटने के कारण और नरम मिट्टी के आगे बढऩे से इस स्थान का निर्माण हुआ। साथ ही इसका भू-आकृति में विविधता के कारण सुरक्षा के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण स्थान बन गया। बाद में ज्वालामुखी चट्टान  के कठिन crags  के द्वारा यह स्थान सुदृढ़ रूप ले लिया, जिसके कारण इसका भाग एक विकसित शहर के रूप में विकसित हो गया , जिसे आधुनिक एडिनबर्ग कहते हैं। कैसल रॉक के स्थान विकास क्रम थोड़ा कमजोर रहा। वास्तव में शहर के दक्षिण और एक झील पर दलदली भूमि के पास रुशष्द्ध साथ एक बड़ी आसानी से बचाव जगह बन चुकी थी। यह स्थान सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो गया था। इसका दक्षिणी भाग के लॉच और उत्तरी भाग में स्थित Loch नॉर लॉच के सहारे सुरक्षा आसानी से की जा सकती थी। इसलिए यहां मुख्य सड़क को विभिन्न प्रकार के फाटकों और दीवारों के माध्यम से एक सुरक्षित क्षेत्र बनाया गया, जिसे खंडयुक्त Flodden दीवार से प्रतिबन्धित किया गया। ओल्ड टाउन कुछ दिनों के बाद ही जल्द से जल्द ही कई महत्वपूर्ण भवनों और आवासीय इमारतों का घर बन गया । यहां पर 1500 से भी ज्यादा इस तरह का घर बनना अपने आप में एक उत्कृष्टï निर्माण के उदाहरण थे। इस स्थान के लिए सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि, जहां 17 वीं शताब्दी में करीब 80,000 रेसीडेंट रहते थे, वहीं आज करीब 20,000 रेसीडेंट रह रहे हैं। 1824 ई. में यहां भीषण अग्निकांड से कई महत्वपूर्ण बिल्डिंग क्षतिग्रस्त हो गयीं। इस घटना के बाद ओल्ड टाऊन के रूप-रेखा में बहुत कुछ परिवर्तन हो गया। ओल्ड टाऊन के Cowgate काउगेट नामक स्थान के कई महत्वपूर्ण बिल्डिंग 7 दिसम्बर, 2007 को अग्निकांड से क्षतिग्रस्त हो गये। इस अग्निकांड में कॉमेडी क्लव और गिलडेड बैलून को बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा था।
न्यू टाऊन-
 न्यू टाऊन में आधुनिकता के रंग में रंगा नज़र आता है। यह एडिनबर्ग के केन्द्रबिन्दु में अवस्थित है। आधुनिक नगर योजना के कारण यह अपना एक अलग ही छटा बिखेरता है। यह स्थान विश्व विरासत सूची में शामिल है। इस स्थान का आधुनिकीकरण वर्ष 1765 से लेकर 1850 के बीच वास्तु युग के neo-classical अवधि में हुआ। पूर्व के नोर लॉच स्थान में भौगौलिक परिवर्तन के कारण यह स्थान अपने नए स्वरूप में आया। प्रसिद्ध प्रिसेंस स्ट्रीट, एडिनबर्ग किला से जुड़े कई महत्वपूर्ण भाग उसके हिस्से हैं। 18 वीं शताब्दी में आकर जब ओल्ड टाऊन में जनसंख्या ज्यादा हो गयी तो यह नये कॉन्सेप्ट के साथ बना। इस सिटी का डिज़ायन तैयार करने के लिये एक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया था, जिसे जेम्स के्रग नवयुवक वास्तुकार ने जीता। इस सिटी का निर्माण के समय एक आर्दश रूप की संकल्पना तैयार की गयी, जो आधुनिकता होने के साथ मज़बूत और आत्मज्ञान पर केन्द्रित थी। मुख्य सड़क जॉर्ज स्ट्रीट बनाते समय ओल्ड टाऊन के उत्तर में प्राकृतिक रिज के रूप का अनुसरण करना था। इसी बात का अनुसरण करते हुये यहां के प्रिंसेस स्ट्रीट और क्वीन स्ट्रीट का निर्माण किया गया। आज वहीं प्रिंसेस स्ट्रीट आकर्षण के केन्द्र में होने के साथ मुख्य शॉपिंग प्लेस बन गया है। यहां कुछ सुन्दर जॉर्जियाई बिल्डिंग का निर्माण भी किया गया। इन स्ट्रीट को एक दूसरे से जोडऩे के लिए लम्बत दिशा में सड़को की श्रृंखला थी। इसका पूर्वी और पश्चिमी किनारा सैंट एन्ड्रू स्क्वेयर औरCharlotte स्क्वेयर से मिलकर समाप्त हो जाता है। इसे बाद में रॉबर्ट एड्म ने एक खूबसूरत रूप दिया । यहां का जोर्जियाई स्क्वेयर निर्माण की दुनिया में एक अलग पहचान रखता है। यहां बूट हाऊस स्कॉटलैंड के प्रमुख का निवास स्थान है, जो Charlotte स्क्वेयर के उत्तर में स्थित है। नॉर लॉच का प्रमुख स्थान ग्लेन ओल्ड टाऊन और न्यू टाऊन के बीच जल उपलब्धता और सीवर डम्पिंग में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 1820 में यह स्थान सूखाग्रस्त हो चुका था, लेकिन प्रिंसेस स्ट्रीट गार्डन अपनी अहमियत बरकरार रखी थी।

इन स्थानों पर बिल्डिंग निर्माण से बचा अतिरिक्त अवशिष्ट प्रदार्थ को लॉच में डम्प किये जाने से यहां एक नयी आकृति बननी शुरु हो गयी। जहां 19 वीं शताब्दी के मध्य स्कॉटलैंड के नेशनल गैलरी और रॉयल स्कॉटीश एकेडमी के भवनों का निर्र्माण किया गया। इस नये स्थान ने न्यू टाऊन के आधुनिक रूप बनने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिसके कारण इस स्थान को जोर्जियाई वास्तुकला और योजना का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। यहां प्रमुख स्थानों में प्रिन्स  स्ट्रीट, क्वीन स्ट्रीट, सैंट गैल्स स्ट्रीट और रोज स्ट्रीट के नाम आते हैं। न्यू टाऊन को यदि गलियों का शहर कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
लैथ-
लैथ एडिनबर्ग का एक बंदरगाह है, जो अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है। सन् 1920 में जब इस स्थान को बर्ग से मिला दिया गया तो लोगों में गहरा असंतोष छा गया। अपनी अलग पहचान के लिए यह स्थान सदैव आगे रहा है। आज भी एडिनबर्ग नार्थ और लैथ के नाम से यहां के पार्लियामेंट सीट को जाना जाता है। लैथ का विकास क्रम आगे बढ़ता रहा और वर्तमान में यहां की प्रसिद्ध क्रूज कंपनियों द्वारा नार्वे, स्वीडन,डेनमार्क, जर्मनी जैसे यूरोपिय देशों को क्रूज उपलब्ध करा रही है। इस स्थान पर ही Royal Yacht Britannia जो महासागर टर्मिनल और ईस्टर रोड के पीछे स्थित है।
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग
 एडिनबर्ग में स्थित यह यूनिवर्सिटी शिक्षा जगत में उपलब्धियों से भरपूर रही है। यह अंतर्राष्ट्रीय  स्तर की शिक्षा और अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना वर्ष 1582 में हुयी थी। ब्रिटीश द्वीप में यह छठा पुराना यूनिवर्सिटी है, जो अपनी महत्ता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यूर्निवर्सिटी की दुनिया में यह टॉप रैकिंग में है। जहां एक तरफ इसे तीसरे यूरोपियन रिपोर्ट ऑन साइंस एंड टैक्रालॉजी इंडीकेटर द्वारा इसे यूरोप में पांचवा, इंग्लैंड में तीसरा रैंक दिया गया, वहींimes Higher Education Supplement (THES)  द्वारा इंग्लैंड और पूरे यूरोप में पांचवा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 23 वां रैंक दिया गया। इसे द गार्जियन यूनिवर्सिटी गाइड द्वारा वर्ष 2008 में इस यूनिवर्सिटी को इंग्लैंड में 7 वां, कम्प्यूटर साइंस और  भौतिकी में प्रथम स्थान एवं चिकित्सा व पशु चिकित्सा विज्ञान में दूसरा स्थान दिया। दुनिया भर के कई हस्तियां इस प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी से पढ़ चुके हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एड्म स्मिथ, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री गोरडॉन ब्राउन, लॉर्ड पामर्सटन, लॉर्ड जॉन रसेल, प्रसिद्ध अन्वेषक एलेक्जेंडर ग्राहम बेल, चाल्र्स डार्बिन,प्रसिद्ध उपन्यासकार सर ऑथर कॉनन डॉयल, दार्शनिक डेविड हूम जैसे हस्तियां इस यूनिवर्सिटी की शान हैं। यह यूनिवर्सिटी इस शहर के वातावरण में उमंग और जोश पैदा करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। इस यूनिवर्सिटी में स्टॉफों की संख्या 2752 और स्टूडेंटस की संख्या वर्ष 2007-08 में 24,220 थी, जिसमें अंडर ग्रेजूएट स्टूडेंटस की संख्या 16,980 और पोस्ट ग्रेजूएट स्टूडेंट्स की संख्या 7,240 थी। कुल मिलाकर प्रकृति की गोद में बसा एडिननबर्ग वास्तव में एक ऐसा शहर है, जो अपने वर्तमान और अतीत दोनों का याद दिलाता है.

खूनी हवेली

मुकेश के झा 


इनमें से किसी को पता नहीं था कि यह सफर मौत का सफर है, जिसे भाग्य की नियति ने एक खेल से बांध रखा है।


 यह कहानी काल्पनिक है। इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबन्ध नहीं है।

 
अंधेरी रात पूरे वातावरण को और भी भयावह बनाती जा रही थी। हड्डी को जमा देने वाली कड़ाके की इस ठंड में धुंध और कोहरा इतना छाया हुआ था कि दिन के उजियारे में ही रात होने का अहसास दिला रहा था। सर्द मौसम में जोर से जब हवा चली तो एकबारगी प्रलय जैसा ही लगा उत्पल को। उसके कान के समीप एक डरावनी आवाज़ उसे बेहोश कर दिया। उसका माथा अन्नत गहराइयों में गोता लगाने लगा था। होश आने पर वह अपने को एक सुनसान और निर्जन स्थान में पाया। कुछ देर के लिये उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि इस सुनसान स्थान पर इतनी अच्छी हवेली भी हो सकती है। उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि वह यहां पहुंचा कैसे। हवेली के बारे में सोचकर उसका दिमाग चक्करघिन्नी की तरह घूमने लगा। उसे रह-रह कर डरावनी आवाज़ सुनाई देने का भ्रम हो रहा था। वह डरावनी आवाज़ उसके कानों में अभी तक गूंज रही थी। वह इस घटना के बारे में जितना सोचता, उतना ही उलझ जाता। कुछ देर बाद उसके सामने से एक परछाई हवा के झौंके माफिक गुजर गयी। यह परछाई अन्धेरी रात के गहराइयों में समा गयी। यहां का पूरा का पूरा वातावरण अजीब बन चुका था, जिसे उत्पल ही महसूस कर सकता था। वह उस पल को कोस रहा था, जब अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने का प्रोगाम बनाया। जल्दी ही सारे दोस्त मिलकर पिकनिक की पूरी तैयारी कर ली । इनके दोस्तों को एडवेंचरस लाइफ कुछ ज्यादा पसंद था। कार पर सब सवार होकर सुबह ही निकल पड़े। मौसम का मिजाज को देखकर उत्पल ने अपने दोस्तों को कहा-यार , आज यह प्रोगाम कैन्सल करते हैं। जब मौसम बेहतर हो जाएगा, तब पिकनिक का आन्नद उठाया जाएगा। लेकिन उसके दोस्तों को यह बात नागबार गुजरी। रोहन ने कहा यार, तुम बहुत डरपोक हो। लाइफ में कुछ एडवेंचरस हो तो जीने का मजा ही कुछ और है। विनीत ने कहा दोस्तों-लगता है उत्पल अभी भी बच्चा का बच्चा ही है। उसे छोड़ बाकी लोग चलते हैं। लेकिन बीच में प्रीति बोली-यार तुम लोग भी न, गज़ब हो। उत्पल के बिना तो पार्टी का रंग ही फीका हो जाएगा। हमलोगोंं को गीत-संगीत से मनोरंजन तो यह तानसेन ही कर सकता है।


सारे दोस्त, उत्पल की बात का मजाक उड़ा रहे थे। सिर्फ अमित ही था, जो उसकी बातों को गंभीरता से सोच रहा था। उसे उत्पल की बात $खराब तो नहीं लगी थी, लेकिन दोस्तों की बात वह भी आकर रंग में भंग डालना उचित नहीं समझा। वह भी कुछ देर बाद गु्रप के अन्य लोगों की तरह ही वह भी हां-हां मिलाना ही बेहतर समझा। कुछ देर बाद सारे दोस्तों ने एक ही सांस में पूरी प्रोग्राम की खाका तैयार कर ली। उत्पल अपनी दोस्तों की बात रखने के लिए साथ हो लिया। सफर की शुरूआत  हो चुकी थी। इनमें से किसी को पता नहीं था कि यह सफर मौत का सफर है, जिसे भाग्य की नियति ने एक खेल से बांध रखा है। यह खेल कार के स्टार्ट होने से ही शुरू हो चुकी थी। जब वे लोग अपने कॉलोनी से कुछ ही दूरी की सफर तय की, उसी समय एक काली बिल्ली रास्ता के बीच से निकल गयी। कुछ देर के लिये सबका माथा तो ठनका लेकिन ये लोग उसे उमंग और उत्साह में इसे भूला दिया। कुछ देर बाद कार ही बंद हो गयी, जिसे लाख प्रयास करने के बावजूछ भी स्र्टाट ही नहीं हो पायी । काफी मशक्कत के बाद रोहन और गार्गी को मैकेनिक मिले। मैकेनिक आने के बाद कार तो स्र्टाट हो गयी लेकिन उसने कुछ ऐसा बात बोला कि सबके होश फख्ता हो गए। मैकेनिक ने कहा, यहां आप लोग क्या करने आए हुए हैं। सभी ने समवेत स्वर में कहा, पिकनिक मनाने आए हैं और क्या। मैकेनिक ने कहा मुझे लग रहा कि आप लोग गलत रास्ते पर आ गए हैं। यह रास्ता आगे बहुत ही खतरनाक है। मौसम भी ठीक नहीं है। आप लोग इस रास्ते को छोड़कर पल्ली साइड का रास्ता पकड़ लें तो ज्यादा बेहतर होगा। सारे दोस्तों ने कहा ,क्यों भाई यह रास्ता क्या जहन्नुम को जाती है। मैकेनिक को इन लोगों की एटिटयूड समझते देर न लगी। वह बोला-बरखुदार - यह रास्ता सही में जहन्नुम की ओर ही जाती है।  मेरा फर्ज था, सही बताना मैंने आप लोगों को बता दिया। आगे आपकी मर्जी। कुछ पल के लिए दोस्तों के बीच इस मसले को लेकर खूब तर्क-विर्तक हुआ,लेकिन होनी को कोई टाल सकता है। गार्गी बोली अरे भाई, मुझे तो इसी पल की तलाश थी। मैं तो एक-एक पल के रोमांच को कैमरे में कैद करूंगी। तर्क-विर्तक के कारण समय काफी बीत चुका था। अन्त में रोहन ने कहा, यार छोड़ो, इस पागल मैकेनिक की बात को। सब लोग कुछ देर बाद फिर जोश और उमंग खोने लगे। मैकेनिक की बात को इन लोगों ने मजाक मेें उड़ा दिया लेकिन उसकी बातों में दम था। जिसे ये लोग आने वाले समय में महसूस कर सकते थे। थोड़ी ही देर बाद गाड़ी अचानक बंद हो गयी। सब लोग थक हार कर वहीं बैठ गये। अमित ने कहा, यार अब क्या किया जाय। मैन रास्ता से हम लोग बहुत आगे निकल चुके हैं। गार्गी बोली - अब तो  हम लोग मैकेनिक को भी ढूंढ कर नहीं ला सकते हैं। रोहन को आश्चर्य भी हो रहा था कि गाड़ी तो एक दम नयी है लेकिन बार -बार खराब क्यों हो जा रही है। कार तो परसो ही खरीदी गयी है। यह सोचकर भी कुछ नहीं बोल पा रहा था। चुपचाप सबकी बातों को सुनने लगा। दोस्तों की हंसी-ठिठोली के बीच समय कैसे बीता पता ही नहीं चल पाया, सभी को। शाम घिर आयी। शाम होते ही पूरा का पूरा रास्ता विरान सा लगने लगा। सभी को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि शाम होते ही रास्ता विराना सा क्यों लगने लगा। रोहन ने गाड़ी स्र्टाट करने के लिए फिर से मशक्कत करने लगा लेकिन कितना भी प्रयास करने के बाद गाड़ी नहीं स्र्टाट हो पायी तो तंग आकर उसने गाड़ी को वहीं छोड़कर दोस्तों के साथ बैठ गया। सारे लोग वहीं बैठकर पिकनिक मनाने की बात करने लगे। अमित, रोहन, गार्गी और उत्पल सब मिलकर गप्पे हांकने शुरू कर दिये। फिर खाने-पीने का समान निकाला गया। सब ने खूब मौज-मस्ती की । दो घंटे के बाद वहां का वातावरण सिहरन पैदा करने लगा। इन लोगों को दूर 

तक पहाड़ी से कोई बसेरा नजऱ नहीं आ रहा था। तभी कार चलने की आवाज़ सुनाई दी। सभी चौंक गए कि खराब गाड़ी को रोहन ने कैसे स्र्टाट कर दिया। लेकिन सहसा सभी चौंक गये कि रोहन तो बैठा हुआ है। गाड़ी को फिर किसने स्र्टाट की? कार का बल्ब अपने आप जलने-बूझने लगा। हॉर्न की आवाज़ भी सुनाई देने लगी। यह दृश्य को देखकर सभी हालत खराब हो गयी। अब इन लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। कुछ देर के बाद एक दम सब कुछ शान्त हो गया। कार भी अपने स्थान पर ही खड़ी थी, मानों इस घटना को देखकर यह भी स्तब्ध हो गयी हो। इस घटना के थोड़ी देर बाद ही यहां जोर से हवा चली। हवा की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही थी। सबों की हालत हवा की रफ्तार के साथ खराब होने लगी। बढ़ती हवा ने रात में यह हवा मंजर को और भी खतरनाक बना दिया। तभी अचानक हवा में तैरती एक विचित्र हंसी गूंजी। यह हंसी यहां के वातावरण में घुल कर माहौल को और भी संगीन कर दिया। डर के मारे सभी की हालत खराब थी। इस कड़ाके की ठंड में भी सभी के माथे पर पसीने की बंूदे छलक आई थी। सभी लोगों की हालत इस कदर खराब हो गयाी थी, मानों की सांस की डोर टूटने ही वाली है। सभी के चेहरे पर हवाईयां उडऩे लगी। अचानक उसी समय एक चेहरा विचित्र हंसी के साथ उभर आया। यह चेहरा इतना खौफनाक था कि सबों को देखकर ही बेहोशी छाने लगी। रोहन और गार्गी के पास यह चेहरा पहुंच चुका था और अपनी आगोश में इन दोनों को लेने का प्रयास करने लगा। दोनों चाहकर भी भाग नहीं पा रहे थे। कुछ देर बाद रोहन और गार्गी कियी को नजऱ नहीं आया। उत्पल और अमित को यह दृश्य को याद कर रौंगटे खड़े होने लगे। उत्पल के सामने ही अमित को यह चेहरा अपने आगोश में ले चुका था, लेकिन सब कुछ देखकर भी उत्पल कुछ कर नहीं पाया। यह दृश्य को देखकर उत्पल का दिमाग अन्नत गहराइयों में हिचकोले खाने लगा। जब उसे होश आया तो एक हवेली के पास अपने को पाया। उसका पूरा माथा चक्कर दे रहा था। सिर इतना भारी हो चुका था कि उसमें सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गयी थी। हिम्मत करके वह अपने दोस्तों को खोजने लगा लेकिन बहुत दूर तक खोजने के बाद उसके हाथ कुछ नहीं आया। रात की भयानक मंजर को याद करके उसके शरीर में सिहरन होने लगी थी। उत्पल के लिए यह  हवेली ने एक रहस्मय दुनिया बन चुका थी। उसे यह हवेली विचित्र लग रहा था। उसने हिम्मम करके हवेली में जाने का मन बना रहा था कि उसे फिर रात वाली विचित्र हंसी ने जाने नहीं दिया। दिन के उजाले में यह हंसी खौफनाक मंजर बना दिया था। उत्पल किसी प्रकार से भागने का प्रयास करने लगा लेकिन उसका पांव उसका साथ छोड़ चुका था। वह धम्म से ज़मीन पर गिर पड़ा, उसे एकबारगी लगा कि उसका प्राण नहीं बचेंगे। लेकिन हिम्मत में बहुत दम होता है। उसने फिर हिम्मत दिखाते हुए, वहां से भागने में सफल रहा। वह बदहवास भाग रहा था, अचानक उसे रास्ते में एक गड़ेडिय़ा मिला लेकिन जब तक वह पूरी बात बताता कि वह फिर से बेहोश हो गया। उसे गड़ेडिय़ा ने उठाकर घर ले आया। गड़ेडिय़ा के काफी मशक्कत करने के बाद उसकी आंख खुली। गड़ेडिय़ा को समझते देर न लगी कि खूनी हवेली ने फिर से मौत का खेल खेला है। उत्पल की सारी वृतांत सुनने के बाद,वह बोला- आप बाबू,बहुत भाग्यशाली हो कि इस खूनी हवेली के कोप से बच गए। नहीं तो जो भी इसके इर्द-गिर्द मंडराता है, वह जान से हाथ धो बैठता है। उत्पल्ल से रहा नहीं गया, उसने पूछा, आखिर, इस हवेली में ऐसा क्या है, जो लोगों की जान की दुश्मन बन चुकी है। गड़ेडिय़ा एक लंबी सांस लेकर कहा, बेटा यह हवेली किसी ज़माने में यहां का शान हुआ करती थी, लेकिन अचानक कुछ ऐसी घटना घटी कि सब कुछ बिखर  गया। राजा भानसिंह का रूतबा अपने राज्य ही में नहीं बल्कि दस प्रदेशों तक था। उनकी न्यायप्रियता से जनता बहुत खुशहाल रहती थी। जनता उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते नहीं थकती। वक्त के साथ सब कुछ बदलता है। अंग्रेजों के अधीन भारत हो गया। इस प्रदेश के आस-पास के जितने इलाके थे, सभी को अंग्रेज़ों ने अपने अधीन कर लिया था। सिर्फ , एक यह स्थान बचा था, जिसे वह लाख चाहने के बावजूछ अधीन नहीं कर पाया। 

भानसिंह अंग्रेज़ों के आंखों की किरकिरी बन गए थे। उसने इस प्रदेश को अधीन करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद चारों का सहारा लिया। भानसिंह का छोटा भाई मान सिंह को अंग्रेज़ो ने अपने जाल में फांस लिया। राज्य का प्रलोभन देकर उसे बगाबत करने को मज़बूर कर दिया। भानसिंह को जब इस बात का पता चला तो वह आग बबूला हो गया। उसने अंग्रेज़ों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में मात देने की बात सोचने लगा लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। अचानक रात में अंग्रेजों ने हमला बोल दिया। चूंकि मानसिंह सेनापति था, इसलिए सैनिकों के बीच आपसी फूट बढ़ चुकी थी लेकिन वफादार सैनिकों के कारण भानसिंह का हौसला पस्त नहीं हुआ था। अचानक हमला से सब हैरान थे,  युद्ध लडऩे सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा था । इस युद्ध में दोनों तरफ से व्यापक जान-माल की क्षति हुयी। र्मोचे पर लड़ते -लड़ते भानसिंह थक कर चूर हो चुका था। आपसी रंजिश के कारण मानसिंह एक मातहत को यह सही मौका नजऱ आया। उसने थके भानसिंह पर हमला कर दिया। भानसिंह अपने मातृभूमि के लिये जान की बाजी लगा दी। भानसिंह को चारों तरफ से अंग्रेजों के सैनिकों ने घेर लिया। वह अंतिम सांस तक लड़ता रहा। युद्ध में भानसिंह वीरगति को प्राप्त हुआ। कुछ दिन राज करने के बाद मानसिंह को कपटी अंग्रेजों की चाल पता चल चुका था। अंग्रेज चाहते थे कि मानसिंह की हालत भी भानसिंह की तरह कर दिया जाय और राज्य को अपने में मिला लिया जाय । 
अब मानसिंह को अपने किये कार्य पर शर्मिंदा होने लगा।अंग्रेजो की नियत भांपकर मानसिंह ने एक भोज के आयोजन में अंग्रेजों को बुलाया। अंग्रेज जब इस हवेली में पहुंचा तो उसका भव्य स्वागत हुआ। मानसिंह दांव चलते ही सभी अंग्रेजों को गिरफ्तार कर लिया। सभी को मौत की सजा के तहत चुन-चुन कर मरबा डाला। इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने बदला लेने के लिए अपनी पूरी शक्ति मानसिंह के खिलाफ झौंक दी। पूरे कीले को अंग्रेज़ों ने चारों ओर घेर लिया और बाहर निकलने वाले व्यक्तियों को चून-चून कर मारना शुरू कर दिया। इस घटना में कीले के अंदर हवेली में कोई भी बच नहीं पाया। उसी समय से इस हवेली का खूनी खेल चल रहा है। उत्पल को सारी कहानी सुनने के बाद सारे रहस्यमयी राज का पता चल गया। 

जाने वसीयत की दुनिया को

मुकेश के झा 


 

वसीयत सबसे महत्वपूर्ण कानूनी कागज़ी दस्तावेज होता है। प्रॉपर्टी की दुनिया में इसका महत्व बहुत ज्यादा है। इसमें वसीयत करने वाला अपनी मौत के बाद जायदाद के बंटबारे के बारे में वर्णन किया होता है। इसमें पूरे चल और अचल संपत्ति के बारे में ब्यौरे लिखा होता है। संपत्ति के अधिकार को पुख्ता करने में इसका रोल महत्वपूर्ण होता है। वसियत केवल संपत्ति का अधिकार प्रदान ही प्रदान नहीं करता है, बल्कि वसियत से कई तरह के टैक्स के फायदे भी उठाये जा सकते हैं। वसीयत के जरिये संपत्ति को ट्रांसफर करने के बाद एक अल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल की जा सकती है। यहां हम आपको वसीयत के बारे में कई महत्वपूर्ण बात बताने जा रहे हैं। 
वसीयत के बिना संपत्ति का अधिकार नहीं मिल पाता है। आपके दिमाग में एक प्रश्न बार-बार आता होगा कि मेरी प्रॉपर्टी को मेरे जाने के बाद क्या होगा। किसे इसे वाजिब हक के रूप में दिया जाय। इन सभी परेशानी को हल करने के लिए आप पहले जाने की वसीयत बनता कैसे है। 
स्टेप वन- आपका वसीयत एक सादे कागज पर साफ राइटिंग में लिखी या टाइप्ड होना चाहिए।
स्टेप टू-वसीयत बनाने के बाद आखिर में दो गवाहों के समक्ष  हस्ताक्षर करें। गवाह भी अपना पूरा नाम और पता लिखकर हस्ताक्षर करें। एक बात का ज़रूर ध्यान रखें कि गवाह की उम्र वसीयत करने वाले से कम होनी चाहिए। 
स्टेप थ्री- आप अपने वसीयत में लिखे कि मैं अपने होशोहवाश में, पूरी तरह से स्वस्थ मानसिक अवस्था में वसीयत कर रहा हूं। इसमें आप अपनी शैक्षणिक योग्यता का जिक्र ज़रूर करें। 
स्टेप फोर-आप अपने वसीयत यह ज़रूर लिखें कि इस तारीख से पहले ( तारीख और समय का जिक्र ज़रूर करे) में लिखा जाना चाहिए कि इस तारीख के पहले की कोई भी वसीयत मान्य नहीं है। वसीयत का एक इग्जेक्यूटर (मरने पर संपत्ति बांटने वाला) होना चाहिए। 
स्टेप फाइव-वसीयत के हर पृष्ठ पर संख्या डालकर हस्ताक्षर करें। अंत में पूरे पृष्ठ पेज संख्या लिखें। कहीं करेक्शन किया गया हो, तो वहां भी हस्ताक्षर ज़रूर करें। 
स्टेप सिक्स-वसीयत कहां रखी गई है, इस बारे में इग्जेक्यूटर और वसीयत का लाभ पाने वालों को पता होना चाहिए। एक ऑप्शन अपने वकील के पास वसीयत की कॉपी रखने का भी हो सकता है। 
इन बातों का भी रखें ख्याल
  •   -इसकी भाषा भाषा सीधी और सरल होनी चाहिए।
  • -वसीयत पूरा हो जाने के बाद यदि आपको कुछ और याद आने लगा हो तो उसे अलग से लिखकर वसीयत में जोड़ा जा सकता है। इसे पूरक कहते हैं। यदि एक ही चीज़ कई लोगों को देनी है, तो उसकी कीमत न लिख कर उसका प्रतिशत लिखें। 
  • - इस बात का भी गौर रखें कि यदि वसीयत लिखने में बहुत ज्यादा करेक्शन हो गए हों, तो इसकी नई कॉपी बनाना ही मुनासिब होगा। अगर वसीयत में किसी तरह के ट्रस्ट के बनाए जाने की बात हो, तो उस ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है। 
  • - आप चाहें तो वसीयत की विडियोग्राफी भी करा सकते हैं। इसमें हर बात साफ-साफ बोलकर और डॉक्युमंट दिखाकर रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए। 

 वसीयत और टैक्स कि दुनिया 
अगर आपने किसी व्यक्ति ने वसीयत नहीं की है तो मरने वाले के परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ही होगा। मृतक की पत्नी या पति को खुद-ब-खुद संपत्ति नहीं मिलती बल्कि बच्चे और रिश्तेदार भी इसके हकदार होते हैं। इसमें वकील और अदालत की ज़रूरत आ पड़ती है। इंडियन सक्सेसन ऐक्ट 1925 की धारा 2 (।।) के अनुसार यह प्रावधान हिंदू, सिख, जैन, बौद्घ एवं ईसाइयों पर ही लागू होता है। मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जिसके अनुसार उनकी वसीयत बनती है। वसियत केवल संपत्ति का अधिकार प्रदान ही प्रदान नहीं करता है, बल्कि वसियत से कई तरह के टैक्स के फायदे भी उठाये जा सकते हैं। वसीयत के जरिये संपत्ति को ट्रांसफर करने के बाद एक अल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल की जा सकती है। ऐसा करने के लिये संयुक्त परिवार इसी तरह, अवयस्क बच्चों या अवयस्क पोतों के लिए वसीयत की जा सकती है जिससे सेक्शन 64 (1) के प्रावधान के अधीन इनकम की क्लबिंग न हो। वसीयत के द्वारा एसेट्स को कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी या अपनी पुत्रवधु को बिना किसी तरह का लेन-देन किए ट्रांसफर कर सकता है तथा इस पर सेक्शन 64 (1) के प्रावधान की क्लबिंग भी नहीं लागू होगी।
जहां पर कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद टैरिटेबल ट्रस्ट का निर्माण करना चाहता हो या चैरिटी के उद्देश्य से जनहित में संपत्ति को ट्रांसफर करना चाहता हो तो वह ऐसा वसीयत के माध्यम से आसानी से कर सकता है। यहां पेश है वसीयत द्वारा टैक्स प्लानिंग के कुछ उदाहरण 
1. वसीयत द्वारा एचयूएफ तैयार कर टैक्स की बच
वसीयत के द्वारा टैक्स प्लानिंग का एक महत्वपूर्ण जरिया है एक हिन्दू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) का गठन। इनकम टैक्स एक्ट-1961 के सेक्शन 64 (2) के प्रावधानों के अधीन जहां एक हिन्दू परिवार का कोई सदस्य एक संयुक्त परिवार की संपत्ति के साथ खुद हासिल की गई को दिखाता है तो उससे हासिल होने वाली इनकम उसकी अन्य इनकम के साथ क्लब कर दी जाएगी। इस घाटे वाली स्थिति से हिन्दू कानून के मिताक्षरा स्कूल द्वारा शासित एक हिन्दू की सहदायिकी के पक्ष में संपत्ति के ट्रांसफर के द्वारा उबरा जा सकता है ताकि एक पृथक अविभाजित हिन्दू परिवार (एचयूएफ) अस्तित्व में आ जाए जो इनकम टैक्स कानून के तहत एक स्वतंत्र और पृथक टैक्सेबल इकाई होगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप कोई संपत्ति अपने पुत्र, उसकी पत्नी तथा उसके बच्चों के नाम ट्रांसफर करना चाहते हैं। आप एक वसीयत बनाएं और संपत्ति अपने पुत्र के अविभाजित हिन्दू परिवार को ट्रांसफर कर दें और उसमें यह स्पष्ट रूप से लिख दें कि ट्रांसफर की गई संपत्ति केवक पुत्र के अविभाजित हिन्दू परिवार की होगी न कि किसी एकल सदस्य की। यह संपत्ति केवल तभी अविभाजित हिन्दू परिवार को वसीयत में मिलेगी और उसे एक पृथक टैक्स इकाई माना जाएगा। नई तैयार हुई एचयूएफ को इस समय लागू फाइनेंस एक्ट के अधीन किसी टैक्सपेयर को मिलने वाली पृथक छूट सीमा का लाभ मिलेगा।
2. वसीयत के द्वारा बच्चों या पोतों के लिए टैक्स प्लानिंग 
सेक्शन 64 (1) के प्रावधान के अधीन यदि कोई व्यक्ति अपने अवयस्क बच्चों, अवयस्क पोतों को किसी तरह का उपहार देता है तो अवयस्क बच्चों या अवयस्क पोतों (शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों को छोड़कर) को उससे होने वाली आय को, जैसी भी स्थिति हो, दाता की आय में क्लब किया जाएगा। बहरहाल, ऐसा तब नहीं होगा जब कोई व्यक्ति अपने अवयस्क बच्चों या अवयस्क पोतों को यह उपहार वसीयत में देता है।
कारण स्वाभाविक है, वसीयत लिखने वाले की मृत्यु के बाद अवयस्क बच्चे को दी गई एसेट्स अवयस्क बच्चे के लिए अलग फंड के रूप में रहेगी और उससे होने वाली आय अवयस्क के वयस्क होने पर उसकी अपनी आय में क्लब नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (सीआईटी बनाम श्री दोषी, (1995) 211 एआईआर 1 (एससी)) के आधार पर अवयस्क के लिए एक ट्रस्ट में पैसा रखने से अवयस्क की आय को क्लब किए जाने से बचाया जा सकता है। इससे वसीयत को टैक्स बचाने के लिए उनके नाम संपत्ति को ट्रांसफर किया जा सकता है।
3. वसीयत द्वारा अपनी पत्नी को फंड्स ट्रांसफर द्वारा टैक्स प्लानिंग
सेक्शन 64 (1) के प्रावधानों के अधीन यदि कोई टैक्सपेयर अपने जीवनकाल में अपनी पत्नी को कोई उपहार देता है तो उसे देने वाले की आय में जोड़ा जाता है। बहरहाल, यदि वसीयत के द्वारा अपनी पत्नी को यह उपहार दिया जाए तो यहां इनकम की क्लबिंग का कोई प्रश्न नहीं उठता। इससे काफी टैक्स बचाया जा सकता है। इस माध्यम से एस्टेट डय़ूटी खत्म होने के साथ ही साथ वसीयत द्वारा संपत्ति के ट्रांसफर के अन्य तरीकों को अपनाना काफी फायदेमंद हो सकता है।
4. वसीयत द्वारा पुत्रवधु को संपत्ति ट्रांसफर द्वारा टैक्स प्लानिंग
इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 64 (1) (6) तथा (8) के प्रावधानों के अधीन पुत्रवधु के पक्ष में संपत्ति का ट्रांसफर सीधे या ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में उसके लाभ के लिए किया जाता है तो ट्रांसफर की गई एसेट से होने वाली आय देने वाले की आय के साथ जोड़ी जाएगी। बहरहाल, इस मुश्किल को वसीयत द्वारा दूर किया जा सकता है। इससे पुत्रवधू के पक्ष में वसीयत की जा सकती है जिसमें उसे पूर्ण अधिकार दे दिया जाए और वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद एक टैक्सेबल इकाई हो जाएगी, यदि वह पहले से न हो। वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद मृतक व्यक्ति की संपत्ति के साथ वसीयत करने वाले इनकम के साथ पुत्रवधु की आय की कोई क्लबिंग नहीं की जाएगी।
वसीयत द्वारा एक विवेकाधीन ट्रस्ट भी बनाई जा सकती है जिस पर सामान्य दर पर टैक्स लगेगा। इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 164 (1) के पहले प्रावधान के क्लॉज (2) में लिखा है कि यदि वसीयत द्वारा केवल एक ट्रस्ट घोषित की गई है तो उस ट्रस्ट की आय इनकम टैक्स के योग्य होगी जैसे एक वैयक्तिक की कुल आय होती है। यह सुनिश्चित करें कि वसीयत द्वारा केवल एक ही ऐसी ट्रस्ट बनाई जाए।

आगरा का किला

प्रस्तुति- मुकेश के झा


आगरे का किला वास्तु का अनुपम उदाहरण पेश करता है। भारतीय वास्तु शैली के साथ ईरानी वास्तु शैली का अनोखा संगम इसे अद्भूत रूप प्रदान करता है। इस किला का मुगल काल में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी महत्व था। यहां से प्रमुख मुगल शासकों ने देश में राज किया था। उस समय देश की राजधानी आगरा होने के कारण यह किला राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।





 
आगरा किले के निर्माण के पीछे उस समय की राजनीतिक कारक मुख्य भूमिका निभाया थी। अकबर मात्र 14 साल की उम्र में ही भारत की गद्दी पर बैठा। उस समय आगरा देश की राजधानी थी, इसलिये सुरक्षा के मद्देनज़र और साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिये उन्होंने आगरा किले को एक नये सिरे से निर्माण करवाया। इसे वर्ष 1565 से लेकर 1573 के मध्य बनाया गया। इस किले के समकक्ष ही दिल्ली में हुमायूं का मकबरा का निर्माण हुआ था। यह मूल रूप से ईंटों का किला था। इस किले पर प्रारंभ में सीकारवार राजपूतों का अधिकार था। इस बात का जिक्र 1080 ई. में इतिहासकारों ने किया है। बाद में महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्ज़ा कर लिया था। आगरा का किला लोधी वंश के शासन काल के समय ध्वसत मिट्टी  के अनियमित स्वरूप में था, जो किले की दीवार को बरकरार रखा था। कालान्तर में यह किला सुरक्षा की लिहाज से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा। लोधी वंश का प्रथम शासक और दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान सिकंदर लोधी आगरा के किले में रहा करता था। इस स्थान से उसने देश पर शासन किया। सिकंदर लोधी ने आगरा को देश की राजधानी बनाया। उसकी मृत्यु इसी किले में 1517 ई. में हुई थी। सिकंदर लोधी की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र इब्राहिम लोधी ने नौ वर्षों तक राज किया। उसने अपने शासन काल में यहां कई स्थान पर मस्जिदें व कुएं बनवाये थे। इब्राहिम लोधी को प्रथम मुगल शासक और मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ई. में जब हराया तो मुगलों ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया। उस समय किले पर अधिकार के बाद मुगलों को खूब संपत्ति हाथ लगी थी। कहा जाता है कि उस संपत्ति में सबसे मूल्यवान कोहिनूर हीरा भी मुगलों को मिला था। यहां पर मुगल शासक अकबर, जहांगीर, शाहजहां के समय लाल पत्थर और उजले संगमरमर से कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किये गये, जो किला को काफी आकर्षक और सुन्दर बना दिया। इस किले का आकार मानव कान की संरचना से काफी मिलता-जुलता है। इसकी दीवार उसके परिधि से 20 मीटर ऊंचा और 2.5 मीटर चौड़ा है। किला खाई से घिरा हुआ है। अकबर के समय यह किला सेना के अंग का रणनीतिक हिस्सा होने के साथ-साथ राजशाही महल भी था। अकबर के बाद इस किले में जहांगीर और शाहजहां के समय कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य कराये गये। यहां का ज्यादातर निर्माण कई वास्तु शैलियों का मिश्रण है। किले में कई वास्तुशिल्प को अपने अंदर समाहित करने के कारण, इसकी भव्यता और सुन्दरता दोनों बढ़ गयी है। उदाहरण के तौर पर जहांगीर महल जिसे अकबर ने बनबाया था। यह महल इस्लामिक और हिन्दू वास्तु शैलियों का अनोखा संगम है। यहां कई और निर्माण मिश्रित शैलियों के युग्म से बना है, जो इसे काफी आकर्षित बनाता है। इस किले को भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है, जो मुगल काल के स्थापत्य कला को यह एक नये कलेवर और फ्लेवर में प्रस्तुत करता है। यमुना के दांये किनारे पर बसी इस विश्व धरोहर इमारत को लोधी वंश के शासकों ने कई महत्वपूर्ण रूप दिये थे। इसे आगरे का लाल किला भी कहा जाता है। इस प्रसिद्ध स्मारक के लगभग 2.5 किमी. उत्तर-पश्चिम में विश्व प्रसिद्ध ताजमहल स्थित है। इसे लोग प्राय: चहारदीवारी से घिरी नगरी कहते हैं। यहां प्रसिद्ध मुगल शासक पूरे भारत पर यहीं से शासन किया करते थे। शासन के केन्द्र में होने के कारण यहां राज्य का सर्वाधिक खज़ाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। यहां विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना-जाना लगा रहता था। इस स्थान की गौरवपूर्ण सभ्यता और संस्कृति में यह किला चार चांद लगाता है। मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने इस किले को अपने आधिपत्य में करने के बाद यहां एक बावली बनवायी। आगरे के इसी किले में 1530 ई. में मुगल सम्राट हुमायूं का राजतिलक भी हुआ। हुमायूं 1540 ई. में बिलग्राम के प्रसिद्ध युद्ध में शेरशाह सूरी से हार गया। इसके बाद सूर वंश का संस्थापक और शंहशाह शेरशाह का इस किले पर कब्ज़ा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्ज़ा पांच वर्षों तक रहा। पानीपत के द्वितीय युद्ध 1556 ई. में मुगल शासक बाबर ने दिल्ली के शासक हेमू को पराजित करने के बाद यह किला पुन: मुगलों के अधीन आ गया। इस स्थान की केन्द्रीय स्थिति को देखते हुये अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाना निश्चित किया। यहां वे 1558 ई. में आये। अकबर के समकालीन इतिहासकार अदुल फज़ल के शब्दों में ''यह किला वस्तुत: एक ईंटों का किला था, जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था। इसी कारण अकबर को इसे दोबारा बनवाना पड़ा था। उन्होंने इसे लाल बलुआ पत्थर से बनवाया। इसकी नींव प्रसिद्ध वास्तुकारों ने रखी थी। इसे अंदर से ईंटों से बनवाया गया और बाहरी आवरण के लिये लाल बलुआ पत्थर लगवाया गया। इसके नये रूप को बनाने में चौदह लाख, चौवालीस हजार कारीगर व मज़दूरों ने आठ वर्षों तक मेहनत की।''
मुगल शासक शाहजहां ने इस स्थल को वर्तमान स्वरूप दिया। उसने किले के निर्माण के समय, कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया, जिससे कि किले में कई इमारतें भी हैं, जहां पर शाहजहां ने श्वेत संगमरमर और सोने व कीमती रत्न जड़वाए।
सोमगढ़ युद्ध जो 1658 ई. में हुआ था, उसके बाद औरंगजेब ने इस किले को अपने अधीन करके , वहां पानी सप्लाई को बंद करवा दिया था। चूंकि शाहजहां कुंए का पानी नहीं पीता था, इसलिये नदी के पानी को औंरगजेब ने जब बंद करवा दिया तो उसने औरंगजेब की अधीनता स्वीकार कर ली। जीवन के अंतिम दिनों में शाहजहां को उसके पुत्र औरंगजेब ने इसी किले में बंदी बनाकर रखा था। एक ऐसी सजा, जो कि किले के महलों की विलासिता को देखते हुए उतनी कड़ी नहीं थी। यह भी कहा जाता है कि शाहजहां की मृत्यु किले के मुसम्मन बुर्ज में ताजमहल को देखेते हुए हुई थी। इस बुर्ज के संगमरमर के झरोखों से ताजमहल का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है। बंदी के रूप में शाहजहां यहां पर आठ साल तक रहा और 1666 ई. में उसका देहांत हो गया।
1638 ई. में शाहजहां ने औपचारिकता रूप से आगरा से देश की राजधानी दिल्ली बना दिया था। उसके बाद शाहजहां दिल्ली में ही रहने लगा। उसके निधन के बाद आगरा ने अपनी वैभवशाली चमक खो दी। औरंगजेब ज्यादातर समय दक्षिण के युद्ध में ही व्यस्त रहा। हालांकि कुछ समय के बाद यहां की रौनक फिर लौटने लगी। औरंगजेब यहां पर रहने लगा और राज कार्य भी यहीं से संचालित करने लगा। यहां पर दरवार फिर से सजने लगा। यहां के दीवान-ए-खास में औरंगजेब शिवाजी से 1666 ई. में मिला था। इस मिलन के समय में ही औरंगजेब शिवाजी को गिरफ्तार करना चाहता था लेकिन शिवाजी चालाकी से यहां से भाग निकले। औरंगजेब के 1707 ई. में निधन हो जाने के बाद मुगलों का पराभव शुरू हो चुका था। उसके बाद उत्तरोतर मुगल शासकों के बीच इतनी शक्ति नहीं रह गयी थी कि इस किले की महानता और गौरव की रक्षा कर पाते। मराठा और  जाट के शासकों ने कुछ दिनों तक देश की इस शान की रक्षा की। लेकिन वे भी अंग्रेज़ों के चाल से निपट नहीं पाये और अंतत: 1803 ई. में मराठा से अंग्रेज़ों ने इसे छीन लिया। उसके बाद अंग्रेजों ने इस किले का उपयोग सैनिक छाबनी और अस्त्र-शस्त्र के रूप में किया। इस किले से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। प्रथम भारतीय स्वत्रंता संग्राम 1857 ई. के समय यह किला युद्ध स्थली भी बना। इस प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के कारण ही भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य समाप्त हुआ। उसके बाद लगभग एक शताब्दी तक ब्रिटेन का भारत पर सीधे शासन चला और उसके बाद 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली।
जहांगीर महल
जहांगीर महल पहला उल्लेखनीय भवन है जो अमर सिंह प्रवेश द्वार से आने पर अतिथि सबसे पहले देखते हैं। यहां से आप जब दांयी ओर बढ़ते हैं, तो पवित्र दरगाह की ओर चले जाते हैं। महल के अहाते में हरित क्षेत्र से अच्छादित अच्छा खासा बड़ा लॉन है, जहां रहकर आप प्रकृति से अपने को करीब पाएंगे। अकबर ने इस महल का निर्माण राज घराने के औरतों के रहने के लिये करवाया था। यह स्थान जनाना घर के नाम से भी जाना जाता है। यह महल अपने में सादगी को लपेटे हुये सुन्दरता की एक बेहतर मिसाल है। इसे बालू पत्थर के द्वारा बनबाया गया था। लेकिन यहां पर जो निर्माण वर्तमान में दिख रहा है, उस में से कुछ ही निर्माण ऐसे बचे हैं, जिसका अकबर के देखरेख में निर्माण हुआ था। इस महल के सिर्फ जनाना कक्ष women's quarters  ही वर्तमान में अस्तित्व में है, जिसका निर्माण अकबर ने करबाया था। इस महल की वास्तुशिल्प में सबसे सुन्दर भाग महल से लगे खम्भे को पत्थरों के द्वारा सहारा देकर अलंकृत किया जाना है। इमारत के सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी सजावटी पत्थर द्वारा महल के बीम (धरन)को मज़बूती प्रदान करना है। वास्तव में इस प्रकार के वास्तुशिल्प और तकनीकी का प्रयोग सर्वप्रथम इसी महल में हुआ है, बाद में देश के अन्य महत्वपूर्ण इमारत में इसकी नकल की गयी। जहांगीर महल के सामने पत्थर से बना एक बड़ा कटोरा आकार का जलपात्र भी है, जिसमें संभवत: नहाने के लिये गुलाब जल रखा जाता था। महल में ईरानी शैलियों के वास्तुकला का प्रयोग जहांगीर ने करवाया था। इस शैली ने महल की बाहरी सुन्दरता को और भी निखार दिया था। आगरा किले में स्थित जहांगीर महल का निर्माण अकबर ने कराया था। आगरा किले में यह सबसे बड़ा आवासीय भवन है। इस भवन में हिन्दू और एशियाई वास्तुकला का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता है। अकबर ने जहांगीर महल के पास अपनी मनपसंद रानी जोधा बाई के लिए एक महल का निर्माण भी कराया था।                             
दीवान-ए-आम
जब आप किले की उत्तर की तरफ आप रूख करते हैं, तो आप दीवान-ए-आम से रूबरू होते हैं। इसे दी हॉल ऑफ पब्लिक ओडियन्स यानि आम जनता के दरबार के नाम से जाना जाता था। यह स्थान मछ्छी भवन के सामने स्थित है। दीवान-ए-आम पहुंचने के लिये आपको नीचे लगे सीढियों  का सहारा लेना होगा। यह मुगल बादशाह का प्रमुख सभागार था। यहां पर मयूर सिंहासन या तख्ते ताउस स्थापित था। दीवान-ए-आम का प्रयोग आम जनता से बात करने और उनकी फरियाद सुनने के लिये होता था। यहां पर मुगल बादशाह अपने अधिकारियों से भी मिलते थे। प्रारंभ में इसके ढ़ांचे का निर्माण मूल रूप से लकड़ी से किया गया था। बाद में मुगल शासक शाहजहां ने उसे वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। यहां पर शाहजहां शैली के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यहां पर लगे संगमरमर पर की गई फूलों की नक्काशी ने इसकी सुन्दरता को काफी आकर्षक बना दिया है। यहां से एक रास्ता नगीना मस्जिद और महिला बाजार की ओर जाता है, जहां केवल महिलाएं ही मुगल औरतों को सामान बेच सकती थीं। इस सभागार की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि प्रवेश करने वाले को कोई नहीं देख सकता था लेकिन तख्ते ताउस पर बैठा शंहशाह प्रवेश करने वाले शख्स को आसानी से देख सकते थे। यहां पर उपस्थित सभा जन के हर एक गतिविधि को राजा तख्ते ताउस से आसानी से देख सकता था। लेकिन यहां प्रवेश करने वाले को यहां उपस्थित जन नहीं देख पाते थे क्योंकि पीछे मुडऩे पर कोई  न कोई पीलर सामने आ जाता था। लेकिन उपस्थित सभा जन जो सभागार के दांये या बांये ओर होते थे, उनको सिंहासन पर बैठा शंहशाह दिखाई देती थी। यहां की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस सभागार में जहां मयूर सिंहासन था, उसके ठीक दीवार में जालीनुमा खिड़की लगी हुयी थी, जो दूर से या नज़दीक से दिखाई भी नहीं देता था लेकिन इस जालीनुमा स्थान के पास राजघराने की महिलाएं दरबार की हरेक गतिविधियों को देख सकती थी। जब शाहजहां अपनी राजधानी आगरे से हटाकर दिल्ली कर दिया तो इस तख्ते ताउस को दिल्ली के लाल किले में ले आया। जिसे कालान्तर में ईरानी शासक और लुटेरा नादिरशाह लुटकर ले गया।          
   शीश महल
 किले का एक महत्वपूर्ण बिल्डिंग शीश महल है, जो मुस्समन बुर्ज  के विपरित दिशा में है। यह महल दीवान-ए-खास के नीचे है। यह स्थान देश के उन चुनिंदा स्थानों में आता है, जहां पर शीशे के द्वारा बेहतर सजावट की गयी है। यह राजघराने की महिलाओं का ड्रेसिंग रूम था। महल की दीवारों पर छोटे-छोटे शीशे के आइने गढ़े हुये थे । इस महल को ग्लास मौजेक करके सजाया गया था। यह अलंकारिक रूप से शीशे से सजाया गये महलों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर था। यह महल वस्तुत दो बड़े हॉल्स के मिलने से बना है। इन दोनों बड़े हॉल्स की लंबाई 11.15 मीटर और चौड़ाई 6.40 मीटर है। ये दोनों ग्लास हॉल्स बड़े मेहराब के सहारे महल के केन्द्र से जुड़े हुये हैं । यह महल दोनों तरफ से एक संर्कीण गलियारे की ओर खुलता है। शीश महल के हमाम के अंदर सजावटी पानी की अभियांत्रिकी का उत्कृट उदाहरण है।
दीवान-ए-खास
यह सभागार शीश महल की दांयी ओर स्थित है। शंहशाह इस सभागार में राज कार्य और अन्य कामों के लिये वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करते थे। यह इनका व्यक्तिगत सभागार था। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह महल संगमरमर रंगसाजी का उत्कृष्ट नमूना है। सभागार की आंतरिक और गृहमुख पर बेहतर नक्काशी की गयी है। यहां पर संगमरमर की पीलरर्स को बेहतर अलंकारिक रूप में सजाया गया है। शाहजहां द्वार निर्मित पूरी तरह से संगमरमर का बना हुआ खास महल विशिष्ट हिन्दू -इस्लामिक शैली में है। दीवान-ए-खास को बादशाह का सोने का कमरा या आरामगाह भी माना जाता था। खास महल में सफेद संगमरमर की सतह पर चित्र कला का सबसे सफल उदाहरण दिया गया है।
मुसम्मन बुर्ज
यह खास महल की बांयी ओर स्थित है। इसका निर्माण शाहजहां ने कराया था। यह सुंदर अष्टभुजी स्तंभ से अलंकारिक है। बुर्ज का खुलापन ऊंचाइयां और शाम की ठण्डी हवाएं इसकी कहानी कहती है। यही वह स्थान है जहां शाहजहां ने ताज को निहारते हुए अंतिम सांसें ली थी
ले-आउट डिज़ाइन
इस किले की रूपरेखा काफी प्रभावित करने वाली है। यहां भारतीय संस्कृति के कई रूप और रंग देखने को मिलते हैं। हिन्दू, इस्लामी सभ्यता और कला के संयोग से बना यह किला बरबस ही किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यह गंगा-यमुना संस्कृति का अनुपम सौगात है। इस किले में शहर की ओर का दिल्ली द्वार भव्यतम है। इसके अंदर एक और द्वार है, जिसे हाथी पोल कहते हैं, जिसके दोनों ओर दो पाषाण हाथी की मूर्तियां हैं। इन पाषाण मूर्तियों पर रक्षक भी खड़े हैं। द्वार से खुलने वाला एक पुल है, जो खाई पर बना है। इसमें लगा दरवाजा इसे अजेय बनाता है। इस किले का दिल्ली गेट और लाहौरी गेट प्रसिद्ध है। लाहौरी गेट को अमर सिंह गेट भी कहा जाता है। स्मारक स्वरूप दिल्ली गेट, सम्राट का औपचारिक द्वार था, जिसे भारतीय सेना द्वारा वर्तमान में पैराशूट ब्रिगेड हेतु प्रयोग किया जाता है। किले के उत्तरी भाग को छाबनी रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इसी कारण यह जन साधारण हेतु नहीं खुला है। यहां आने वाले पयर्टक लाहौर गेट से एंट्री ले सकते हैं। इस गेट के बारे में कहा जाता है कि इस गेट का 'मुख' पाकिस्तान स्थित लाहौर की तरफ होने के कारण इसे यह नाम दिया गया था। स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से यह स्थल अति महत्वपूर्ण है। प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फज़ल लिखते हैं कि यहां लगभग पांच सौ सुंदर इमारतें बंगाली व गुजराती शैली में बनी हैं। कई इमारतों को श्वेत संगमरमर से बनाने के लिये पहले की कई इमारतों को खत्म भी किया गया। अधिकांश निर्माण को अंग्रेजों ने 1803 से 1862 के बीच बैरेक बनवाने हेतु तुड़वा दिया। वर्तमान में दक्षिण-पूर्व की ओर मुश्किल से तीस इमारतें शेष हैं, इनमें से दिल्ली गेट, अकबर गेट व बंगाली महल है। जहांगीर ने अकबर दरवाजे का नाम बदलकर अमरसिंह द्वार कर दिया था। यह द्वार दिल्ली-द्वार से मेल खाता हुआ है। दोनों ही लाल बलुआ पत्थर के बने हैं। यहा स्थित बंगाली महल भी लाल बलुआ पत्थर का बना है। अब यह दो भागों (अकबरी महल व जहांगीरी महल) में बंटा हुआ है। यहां हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं। निर्माण की स्थापत्यकला में इन दोनों संस्कृतियों के मेल किले की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं। किले में अजदहे, हाथी व पक्षी, इस्लामी अलंकरणों में ज्यामितीय नमूने, इबारतें, आयतें आदि फलकों की सजावट में दिखाई देती हैं। इसके ऐतिहासिक महत्व का देखते हुये इसे वर्ष 1987 में यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया।

भविष्य के शहर के लिए, भविष्य की बिल्डिंग

प्रस्तुति- मुकेश के झा
 



बिल्डिंग इन मोशन को भविष्य के शहर के लिए, भविष्य की बिल्डिंग की संज्ञा दी जा रही है। यह रोटेटिंग स्काई स्क्रैपर, जो लगातार अपनी आकृति बदलता रहता है, इटली की चरम सृजनात्मकता का एक अद्वितीय डिज़ाइन उत्पाद है। इतिहास में यह पहला भवन है, जो स्थिर नहीं बल्कि गतिशील है। इसकी आकृति इस तरह बनाई गई है कि आप किसी भी पल अपने बेडरूम से सूर्यादय और सूर्यास्त देख सकेंगे। मौसम के अनुसार नजारे भी  देख सकेंगे। इस बिल्डिंग का डिज़ाइनर इटैलियन आर्किटेक्ट डॉ. डेविड फिशर हैं। वह इटली के फ्लोरेंस में ही पले-बढ़े। फिशर ने अपने जीवन की शुरुआत एक कलाकार और मूर्तिकार के रूप में की और बाद में वे एक दिग्गज वास्तुशिल्पी और बिल्डर बन गए। डॉ. फिशर अपने रोटेटिंग टावर्स का वर्णन ''जीवन द्वारा आकार दिया गया, समय द्वारा डिजाइन किया गया' कहकर करते हैं।
आपने डायनेमिक्स बिल्डिंग का नाम ज़रूर सुना होगा। यह एक ऐसी बिल्डिंग है, जो हमेशा गतिशील रहती है। इसकी गति को बदलते समय की मांग मान सकते हैं। समय की रफ्तार में तो हम आपकी जि़दगी भी चल पड़ी है, तो भला बिल्डिंग की रफ्तार क्यों रूकी रहे। बिल्डिंग बनाने का कॉन्सेप्ट नया ज़रूर है लेकिन वर्तमान में इसका स्वरूप कंपनियों को खूब भा रही है। इसकी चमक खासकर, विदेशों में जमकर दिखाई दे रही है। दुनिया के चुनिन्दा स्थानों पर बिल्डिंग इन मोशन ने जो रंग जमाया है, इसको देखकर तो यही कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इस कॉन्सेप्ट के पर लगेंगे और अपनी चमक से निर्माण की दुनिया में नित नयी इबारत लिखेगी। इसका स्वरूप काफी व्यापक हो चुका है।

डायनेमिक्स बिल्डिंग्स आर्किटेक्चर के नए एक युग का सूत्रपात भी करती है। गौरतलब है कि पारंपरिक निर्माण वास्तुकला के लिए, जो अब तक पिंडों पर आधारित रही थी, इसके लिए यह कॉन्सेप्ट चुनौती से भरा हो सकता है।


डायनेमिक आर्किटेक्चर और बिल्डिंग्स इन मोशन एक यूनिक और गति के लॉजिक को एक नये सिरे से परिभाषित भी कर रही है। संभव है यह सिद्धांत हमारे शहरों की रूपरेखा और जीवन यापन की अवधारणाओं को बदल कर रख दे। बिल्डिंग्स इन मोशन हमारी लगातार बदलती रहने वाली जरूरतों, डिजाइन की हमारी अवधारणा और हमारे मनोभावों के अनुरूप एडजस्ट करने वाली है। बिल्डिंग इन मोशन प्रकृति की धुनों पर थिरकती हुई प्रतीत होती है, जो बसन्त से ग्रीष्म तक, सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिशा और आकृति बदलते हैं और मौसम के अनुसार अपने आपको भी बदल सकती है। इसका बिल्डिंग इन मोशन निर्माण की दुनिया को एक जीवंत और आश्चर्यजनक स्वरूप भी प्रदान कर रही है। जिसे आप एक बार देखें तो दांतो तले अंगुली दबाने को मज़बूर हो जाएं। ऐसे भी देखा जाय तो वर्तमान में बिल्डिंग के चार महत्वपूर्र्ण आयाम होते हैं। इन आयामों में चौथा आयाम समय है। समय को इस यूनिट आर्किटेक्ट का सबसे प्रभावी अंग बनाया गया है। बिल्डिंग इन मोशन धरातलीय प्रकृति का स्वरूप बदल रहे हैं। यह निर्माण ऊंचे हो सकते हैं या नीचे भी। यह अपनी चमक रेसीडेंट, ऑफिस टावर्स या होटल सब में बिखर रही है।


इस निर्माण के प्रत्येक कमरे से आप प्राकृतिक सौन्दर्य का सुन्दर नजारा भी भलीभांती देख सकते हैं। इसका प्रत्येक फ्लोर अलग-अलग रूप-स्वरूप में घूमता है, इसलिए बिल्डिंग की आकृति लगातार बदलती रहती है। गति की इस दुनिया में फ्लोर प्लान किसी भी रूप का हो सकता है और प्रत्येक को अलग अलग गति में, या अलग अलग समय पर घुमाकर, आप पूरी तरह अलग अलग आकृतियां प्राप्त कर सकते हैं। यह आधुनिकता और वातावरण के बीच, विकास और चिर-स्थायित्व के बीच पारम्परिक संबन्ध स्थापित करने में सक्षम है। तकनीकी दृष्टि से रोटेट टावर की मुख्य विशिष्टता अपनी ऊर्जा स्वत: प्राप्त करने और अतिरिक्त ऊर्जा की आपूर्ति ऊर्जा नेटवर्क तक कर सकने की उसकी क्षमता है। बिल्डिंग इन मोशन सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए ऊर्जा उत्पन्न नहीं करती, बल्कि ऊर्जा की अतिरिक्त मांग भी पूर्ति करती है।
इसके बारे में जानकारों का कहना है कि इस प्रकार का यूनिक कॉन्सेप्ट एक प्रकार से तीसरी औद्योगिक क्रान्ति का स्वरूप हो सकता है। यह प्री-फैब्रिकेशन-अचल सम्पत्ति के क्षेत्र में एक नया विचार-दर्शन है, जो फैक्टरी में बनाए गए हिस्सों से बना पहला भवन है, जो औद्योगिक उत्पादों के फायदे, ऊर्जा की बचत, निर्माण के समय और लागत में कमी, उपलब्ध कराता है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बिल्डिंग के निर्माण को भी अन्य उत्पादों से भिन्न नहीं होना चाहिए और इसीलिए अब के बाद उनका निर्माण उत्पादन संयंत्रों में होना चाहिए। डायनैमिक आर्किटेक्चर, डिजाइन के किसी भी समाधान का कार्यशाला में उत्पादन किए जाने की सुविधा देता है। यह पहले से एसेम्बल किए गए खण्डों में बनाए जाते हैं, जो निर्माण स्थल पर शीघ्रता से इंस्टॉल किए जाने के लिए पहुंचा दिए जाते हैं। इसके हर ''यूनिट'' को फैक्टरी में ही पूरी तरह फिनिश किया जाता है और इसमें प्लम्बिंग और बिजली कि सभी सिस्टम लगे होंगे, जिनमें फर्श से लेकर छत तक, बाथरूम्स, किचिन, केबिनेट, प्रकाश व्यवस्था और फर्नीचर शामिल हैं। निर्माण स्थल पर उन्हें एक दूसरे के साथ मशीनों के सहारे बस हुक कर दिया जाता है और बहुत कम समय में एक आधुनिक और समय की रफ्तार में तैयार बिल्डिंग उपलब्ध हो जाती है।
उत्पादन
इस यूनिक बिल्डिंग के लिए रॉ मैटेरियल का निर्माण रोटेटिंग टावर ग्रुप की इटली स्थित नई फैक्टरी में किया जाता है। निर्माण के बाद उसे विश्वभर में निर्यात किया जा रहा है । इस तकनीक से बनी बिल्डिंग का आप तत्काल रख रखाव कर सकते हैं क्योंकि सभी हिस्सों की आसानी से जांच पड़ताल और मरम्मत की जा सकती है। इस सुविधा के कारण बिल्डिंग इन मोशन की जीवन अवधि भी अधिक होगी, अन्य समकालीन बिल्डिंग की अपेक्षा काफी अधिक मज़बूत भी है।
मुख्य विशेषताएं
- गुणवत्ता का उच्च स्तर।
- उच्च गुणवत्ता से फिनिश
- कोई भी डिज़ाइन समाधान और अनुकूलित (कस्टमाइज) किए गए घर
- साफ सुथरा और पर्यावरणीय निर्माण स्थल : सामग्री की सीमित अन- लोडिंग और मलबे की कोर्ई लोडिंग नहीं, न शोर, न धुआं, न धूल।
- निर्माण-कर्मियों के लिए काम करने की बेहतर स्थिति
- दुर्घटनाओं की कम जोखिम और इस प्रकार कम जन-हानि
- निर्माण के समय में 30 प्रतिशत से भी अधिक की कमी
- निर्माण की लागत में 10 प्रतिशत से भी अधिक की बचत




ग्रीन बिल्डिंग्स के कॉन्सेप्ट पर आधारित बिल्डिंग इन मोशन है। यह अपनी ऊर्जा की ज़रूरतों को प्राकृतिक तत्वों से पूरा करती है।

सूर्य और हवा से गत्यात्मक ऊर्जा
रोटेटिंग टावर, इतिहास में स्वत: ऊर्जा प्राप्त करने वाला पहली बिल्डिंग है, जो प्रकृति से अपनी ऊर्जा का उत्पादन स्वयं करती है।
हवा
रोटेटिंग टावर फ्लोर्स के बीच में क्षैतिज रूप से लगे वायु टरबाइन से बिजली उत्पन्न करता है। लम्बवत लगे पारंरिक वायु टरबाइन्स के काफी कुछ नकारात्मक वातावरणीय प्रभाव होते हैं। दृश्य, आकार, नींव, उन्हें बनाने और उनके रख रखाव के लिए बनाई जाने वाली सड़कें...किंतु ये सभी मुद्दे क्षैतिज टरबाइन्स पर जो फ्लोर्स के बीच में लगे होते हैं, लागू नहीं होते। वे भवन की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं। इसके टरबाइन कार्बन फाइबर से बने होते हैं, जो अपने विशेष आकार के कारण शोर नहीं करते हैं। इस प्रकार के वायु टरबाइन्स, इस समय रोटेटिंग टावर्स की इटली-स्थित प्रौद्योगिकी फैक्टरी में विकसित किए जा रहे हैं, जिन्हें भविष्य में कई डायनेमिक आर्किटेक्चर टावर्स में लगाया जाएगा।
सूर्य
प्रत्येक घूमने वाले फ्लोर की छत पर फोटो वोल्टाइक सेल लगाए जाते हैं। रोटेटिंग सिस्टम के कारण, फोटोबोल्टाइक सेल्स पर सूर्य का अधिकतम प्रकाश पड़ सकता है। एयर कंडीशनिंग की सप्लाई के लिए सौर कन्वेक्टर्स का उपयोग किया जाता है।
सामग्री
अंदरूनी फिनिशिंग के लिए प्राकृतिक सामग्री, जैसे सेरामिक, ग्लास, लकड़ी, संगमरमर का उपयोग किया जाएगा। बचे हुए व्यर्थ पदार्थ को रिसाइकलिंग के लिए अलग कर लिया जाता है।
निर्माण
यह पहली बिल्डिंग है, जिसे फैक्टरी में तैयार किया जा रहा है, जिससे ऊर्जा, निर्माण में लगने वाले समय में बचत होगी और लागत घटेगी। प्री-फैब्रिकेशन के कारण, निर्माण-स्थल साफ-सुथरा और हरा रहेगा, शोर, धूल, धुआं, नहीं होगा, बेकार सामग्री नहीं बचेगी और निर्माण स्थल पर खतरे कम होंगे और हताहतों की संख्या सीमित होगी। निर्माण में कम समय लगने का यह अर्थ भी होगा कि ऊर्जा की खपत में भवन निर्माण के पारंपरिक तरीकों की तुलना में 1/50वां हिस्सा तक की कमी होगी।
ऊर्जा-कुशलता
बिल्डिंग्स की ऊर्जा कुशलता में और भी सुधार करने के लिए, इंसुलेटिंग ग्लास और संरचनात्मक इंसुलेटिंग पैनल्स का उपयोग किया जाएगा। बिजली के सभी उपकरण कम खपत वाले होंगे और कंप्यूटरीकृत स्मार्ट सिस्टम्स, उत्कृष्टï डोमोटिक सिस्टम, ऊर्जा कुशलता बढ़ाने में योगदान करेंगे। स्वत: ऊर्जा प्राप्त करने वाले बिल्डिंग के युग ने हमारे शहरों को अधिक हरित और हमारे जीवन को बेहतर बनाना शुरू कर दिया है।
रफ्तार में जि़दगी
वर्तमान में रोटेटिंग बिल्डिंग्स में से दो डिज़ाइन के उन्नत चरणों में है, जो विश्व के निर्माण के लिए लैंडमार्क हो जाएंगे। पहला : 80 फ्लोर का मिले जुले उपयोग वाली बिल्डिंग है, जिसे दुबई में बनाया जाएगा जबकि, दूसरा : रूस की राजधानी के नए केन्द्र मास्को शहर में बनाया जाने वाला 70 फ्लोर की बिल्डिंग है।
प्रत्येक बिल्डिंग की एक बिल्कुल अलग छवि होगी और यह अपनी आकृति लगातार बदलता रहेगा। यह जहां भी बनेगा वहां का एक अद्वितीय बिल्डिंग बन जाएगी। यह सभी नई वास्तुकला के प्रतीक बन जाएंगे, जो हमारे शहरों की रूपरेखा और जीवन-यापन की अवधारणा बदल देंगे।
परिक्रमणशील स्काई स्क्रैपर में प्री-फैब्रिकेशन इकाइयां होंगी, जिन्हें निर्माण स्थल पर असेम्बल करके, कंक्रीट के एक केन्द्रीय फिक्सड ट्रंक से हुक कर दिया जाएगा। प्रत्येक फ्लोर अलग अलग रोटेट करेगा और प्रति सेकेण्ड बिल्डिंग की आकृति बदल जाएगी।
इसलिए आप अपने बेडरूम में सूर्योदय को देखते हुए जाग सकते हैं और डिनर के समय समुद्र पर सूर्यास्त का आनन्द ले सकते हैं। आप बालकनी को नजारे और सूर्य के अनुसार एडजस्ट कर सकते हैं। प्रकृति का एक अंग बनकर।
इन दो टॉवरों में आप अपनी फरारी, अपने लग्जरी अपार्टमेंट के प्रवेश द्वार पर पार्क कर सकते हैं और विशेष कार-लिफ्ट से स्काई स्क्रैपर के ऊपर जा सकते हैं। लिफ्ट का दरवाजा ध्वनि से सक्रिय किए जाने वाले एक नियंत्रण सिस्टम से खुलेगा और कार आपके अपार्टमेंट की निजी पार्किंग में चली जाएगी। शीर्ष के अपार्टमेंट्स, जिन्हें ''विला'' कहा जाता है, में से प्रत्येक 1,000 वर्गमीटर से अधिक के होंगे, जिनमें इन-डोर स्विमिंग पूल और ओपन गार्डन भी होंगे।
हर एक फ्लोर है खास
- प्राकृतिक सौन्दर्य का नजारा
- ध्वनि से सक्रिय किया जाने वाला नियंत्रण सिस्टम
- उत्कृष्ट एवं बारीक डिज़ाइन;
- अत्यधिक परिष्कृत इलेक्ट्रॉनिक उपकरण;
- किराएदार की व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार, पूरी तरह अनुकूलित लग्जरी अपार्टमेंटस;
- पूरी गारंटी और मुफ्त रख रखाव सेवा;
- अत्यधिक उन्नत सुरक्षा सिस्टम
- अपार्टमेंट्स में पूल और सॉना
- इटली में लियोनार्दो द विंची संयन्त्र के प्रेशर मार्बल वाले अनुकूलित बाथरूम
- एक अद्वितीय बिल्डिंग जो, अपनी आकृति लगातार बदल सकता है, वह भी विश्व के एक नए आइकॉन में रहने की शान के साथ।
दुबई डायनेमिक टावर
डायनैमिक आर्किटेक्चर ग्रुप के नेतृत्ववाली रोटेटिंग टावर टेक्रालॉजी कम्पनी का निर्माण दुबई के पहले डायनैमिक टावर के लिए आप फ्लोर रिजर्व कर सकते है। इसमें 80 फ्लोर होंगे। अपार्टमेंट्स आकार में 124 वर्गमीटर (1,334 वर्ग फुट) से लेकर 1,200 वर्ग मीटर (12,900 वर्ग फुट) के फ्लोर हाउस तक के होंगे, जो अपार्टमेंट के अन्दर पार्किंग स्पेस से परिपूर्ण होंगे। विश्व का पहला गतिशील टावर अपनी आकृति लगातार बदलता रहेगा। यह आर्किटेक्चर के एक नए युग की शुरुआत करेगा, जिसमें भवन गतिशील होंगे, जिसकी आकृति एक बैले नर्तकी की तरह लगातार बदलती रहेगी।
यह टॉवर दुबई का नया आइकॉन भी हो सकता है। दुबई के शासक और संयुक्त अरब एमिरेट्स के उप-राष्टपति, शेख मोहम्मद बिन मकतूम को बहुत से लोगों द्वारा भविष्य का पुरुष माना जाता है। डॉ. फिशर के विजन को शेख मोहम्मद से काफी प्रोत्साहन मिला, जिनका कहना है कि ''भविष्य का अपने पास आने का इंतजार न करें, भविष्य का सामना करें।'' दुबई रोटेटिंग स्काई स्क्रैपर, जो 420 मीटर (1,380 फुट) ऊंचा 80 फ्लोर का टावर होगा, प्राइम लोकेशन में स्थित होगा और दुबई का सबसे प्रतिष्ठिïत बिल्डिंग हो सकती है।
रोटेटिंग स्काई स्क्रैपर की मुख्य विशेषताएं :-
कुल निर्मित क्षेत्र : 146,000 व.मी.
पहले 20 फ्लोर : कार्यालय भवन
उसके बाद के 15 फ्लोर : छह सितारा होटल
उसके बाद के 35 फ्लोर : लग्जरी अपार्टमेंट्स
ऊपर के 10 फ्लोर : विला
''विला'' के लिए एक विशेष पार्किंग, फ्लोर स्तर पर ही स्थित होगी, जहां तक आप एक विशेष तेज एलिवेटर से पहुंच सकेंगे। रोटेट करने वाले प्रत्येक फ्लोर के बीच में हवा के फिट किए गए टरबाइन और छत के कुछ हिस्सों में लगे सौर्य पैनल, हवा और सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा उत्पन्न करेंगे। पूरे सिस्टम से उत्पन्न की गई जरूरत से ज्यादा साफ सुथरी ऊर्जा आसपास के बिल्डिंग्स को बेची जाएगी।

बिल्डिंग की आधुनिक डिजाइन और विंग्स की कार्बन फाइवर की विशेष आकृति ध्वनि से संबन्धित मुद्दों पर नज़र रखेंगे। परियोजना अपार्टमेंट्स उपलब्ध कराएगी, जो आपको देंगे : आश्चर्यजनक नजारे : ''विला'' के किराएदार बस एक ध्वनि द्वारा सक्रिय किए जाने वाले सिस्टम के जरिए, सूर्योदय से सूर्यास्त तक, सूर्य के अनुसार अपार्टमेंट को घुमा सकेंगे;
रोटेटिंग स्काई स्क्रैपर के निर्माण में, असेम्बली संयन्त्र में सिर्फ 600 लोगों और निर्माण स्थल पर सिर्फ 80 तकनीशियनों की जरूरत होंगी, जबकि उसी विशालता के सामान्य निर्माण स्थल में 2,000 कर्मचारी की जरूरत होगी। निर्माण वर्ष के अंत के पहले ही शुरू करने की योजना है और दिसम्बर 2010 तक इसे पूरा कर लेने का लक्ष्य है।संयुक्त अरब अमीरात के सबसे महंगे रिहायशी अपार्टमेंट्स और निश्चित रूप से अत्यंत अद्वितीय और प्रतिष्ठिïत बिल्डिंग होने के कारण कीमतें 3,000 अमरीकी डॉलर प्रति वर्ग फुट तक जाने का अनुमान है।
स्वपनद्रष्टा डेविड फिशर

डॉ. डेविड फिशर ने अपनी करियर की शुरुआत फ्लोरेन्स में की। फ्लोरेंस (इटली पुनर्जागरण का प्रतीक) में फेकल्टी ऑफ आर्किटेक्चर से ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन करने के बाद डॉ.फिशर ने उसी विश्वविद्यालय और स्कूल ऑफ स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में आर्किटेक्चर (वास्तुकला) पढ़ाया। उनकी शैक्षिक उपलब्धियों और अनुसंधान संबन्धी गतिविधियों के कारण, डॉ. फिशर को, कोलम्बिया विश्वविद्यालय (न्यूयार्क) के प्रो. डियो इंस्टीटयूट द्वारा पीएचडी की मानद उपाधि दी। पिछले तीन दशकों से वे प्रकृति में ढले हुए घर डिज़ाइन करने और बिल्डिंग्स की तकनीकी और प्रौद्योगिकीय चरम सीमा निर्धारित करने के लिए खासकर लंदन, मास्को, हांगकांग, पैरिस और दुबई जैसे शहरी केंद्रों में तल्लीनता से, काम कर रहे हैं।
इसके साथ साथ डॉ. फिशर प्राचीन स्मारकों का पुनरुद्धार करने और सार्वजनिक बिल्डिंग्स के डिजाइन से भी सम्बद्ध रहे हैं। फिटेको लि. जिसकी शुरुआत उन्होंने अस्सी के दशक के मध्य में की थी, के न्यूयार्क कार्यालय के जरिए, डॉ. फिशर प्री-फैब्रिकेशन और भवन निर्माण प्रौद्योगिकियों के साथ साथ होटल परियोजनाओं के निर्माण और विकास से भी संबद्ध हुए।
उन्होंने जो प्रौद्योगिकियां विकसित कीं उनमें शामिल हैं ''स्मार्ट बाथरूम्स बाई लियोनार्दो दा विंची'' सिस्टम, जो लग्जरी होटलों और घरों के लिए एक पूरी तरह पहले से एसेम्बल किया जाने वाला बाथरूम सिस्टम है। भवन निर्माण में इसे पहला ''मैकेनिकल'' सिद्धांत माना जाता है क्योंकि यह एकमात्र फैक्टरी-निर्मित और समेकित बाथरूम सिस्टम है। डॉ. फिशर के एलडीवी ग्रुप ने इस सिस्टम को पहली बार, दुबई के होटल ले मेरीडियन में उपयोग किया। उन्होंने अपने कार्यों का विस्तार, मिलान, लंदन, मास्को, पैरिस और हांगकांग जैसे विभिन्न स्थानों के निर्माण स्थलों तक किया। इनफिनिटी डिजाइन कंपनी उनका आर्किटेक्चरल कार्यालय है, जो फ्लोरेंस जहां वे अपने परिवार के साथ रहते हैं, में स्थित है। डॉ. फिशर को पारंपरिक अर्थों में आर्किटेक्ट नहीं जाना जा सकता : अपने जीवन में उन्होंने, भवन निर्माण के संसार में चौतरफा अनुभव प्राप्त किए हैं: शिक्षक से लेकर डिजाइनर तक, बड़ी बड़ी परियोजनाओं के लिए व्यवहार साध्यता (फीजिबिलिटी) अध्ययन तैयार करने से लेकर बड़े बड़े प्रायोजनों के लिए वित्त के आंवटन तक,बिल्डिंग निर्माण प्रबंधन से लेकर अचल संपत्तियों के विकास तक, उत्पाद डिजाइन करने से लेकर बड़े बड़े औद्योगिक संयंत्रों के निर्माण और प्रबंधन तक।
आर्किटेक्चर को वे साध्यता (फिजीबिलिटी),प्रकार्यात्मकता (फंक्शनलिटी) और इंजीनियरिंग का संयोजन मानते हैं। वस्तुत: उन्हें आर्किटेक्चर से जुड़े सभी पहलुओं को अनुभव करने का सुअवसर मिला है। अनुभवों के इस मिश्रण ने उन्हें इस क्षेत्र की विशाल तकनीकी जानकारी दी है और उन्हें भवन निर्माण की पारंपरिक तकनीकों में भविष्य की वास्तुकला की दृष्टि से क्रांति लाने के लिए तैयार किया है।
डॉ. फिशर की व्यावसायिक गतिविधियां हमेशा दो अवधारणाओं पर केन्द्रित रही हैं : एक औद्योगिक सोच, जो प्री-फैब इकाइयों के उपयोग से सम्बद्ध है और गतिशील आर्किटेक्चर, जिसके अनुसार पारंपरिक 3-आयामी डिजाइन एक चौथा आयाम पूरा करती है : समय।
''बिल्डिंग निर्माण में प्रौद्योगिकी का उपयोग'', कला के शहर, फ्लोरेंस में पलने-बढऩे की प्रतिक्रिया थी। लेकिन फ्लोरेंस एक ऐसा शहर भी है, जिसने संसार को विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा ऐसे आविष्कार दिए हैं जिनसे हमारा संसार बदल गया है।
बिल्डिंग्स को गति देना उस जीवन का सैंद्धांतिक उत्तर था, जो बड़ी तेजी से बदल रहा है लेकिन उसकी शुरुआत भूमध्यसागर पर डूबते हुए सूरज को देखते हुए हुई थी। डॉ. फिशर के अनुसार, समय जीवन का सबसे शक्तिशाली आयाम है, क्योंकि यह सापेक्षता से बड़ी मजबूती से जुड़ा हुआ है। उनकी नई गगनचुंबी इमारत द रोटेटिंग टॉवर को, जिसे ''जीवन द्वारा आकार दिया गया, समय द्वारा डिजाइन किया गया है, ''आर्किटेक्चर का एक नया युग'' माना जाता है।

टॉप टेन शॉपिंग मॉल


 मुकेश के झा

शॉपिंग की दुनिया रफ्तार में है। यह निर्माण के संसार में नित नये आकार-प्रकार में दिखने लगा है। ग्लैमर ने इसकी दुनिया को और भी रंगीन कर दिया है। बदलते लाइफ स्टाइल में शॉपिंग मॉल एक अहम् पड़ाव है, जहां लोगों को एक छत के नीचे तमाम तरह की वस्तुएं मिल जाती है। 21 वीं सदी में लीविंग स्टैंडर्ड में काफी बदलाव आया है और इसी बदलाव के कारण रिटेल सेक्टर बूम पर है। इस मामले में क्या विकसित देश और विकासिल देश, एक ही रंग में नज़र आ रहे है, तभी तो विश्व के ज्यादातर देशों में कम से कम दर्ज़नों  हाई-फाई शॉपिंग मॉल खुल रहे हैं। शॉपिंग मॉल मुंबई से शंघाई से, कैलीफोर्निया तक की यात्रा में गज़ब की चमक बिखेर रहे हैं। बदलती जि़दगी, बदलता रहन-सहन के बीच शॉपिंग मॉल ने अपनी ऐसी जगह बना ली है, जहां पर खरीददारी है, मस्ती है और उमंग है और तरंग है। यहां पर आपको विश्व भर में प्रसिद्ध शॉपिंग मॉल के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो अपनी विशालता से अपनी एक अलग पहचान बना ली है।
साउथ चाइना शॉपिंग मॉल
साउथ चाइना शॉपिंग मॉल दुनिया के टॉप टेन शॉपिंग मॉल की फेहरिस्त में शुमार है। यह चीन के गुंग्दोग प्रोविंस Guangdong province के दोंग्गु  Dongguan सिटी में अवस्थित है। शॉपिंग मॉल में करीब 1,500 स्टोरर्स हैं, जो 6.5 मिलियन स्क्वेयर फीट के फ्लोर एरिया में विस्तृत है। इस शॉपिंग मॉल को 7 मुख्य जोन में बांटा गया है। दुनिया के प्रमुख सिटी के नाम पर इस जोन को बांटा गया है। इन जोन के नाम एम्स्टर्डम, पेरिस, रोम, वेनिस, इजिप्ट, कैरिबियेन और कैलीफोर्निया हैं। हालांकि इसे 2005 में ही खोल दिया गसा था लेकिन अभी भी यहां रिटेलर्स के लिये स्पेस खाली है। जानकारों का कहना है कि यहां रिटेलर्स के लिये स्पेस इसलिये खाली पड़ी है क्योंकि यह सिटी बेहतरीन ढंग से अभी तक चीन के पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम से नहीं जुड़ी हुयी है।
गोल्डन रिसोर्स शॉपिंग मॉल
टॉप टेन शॉपिंग मॉल की लिस्ट में गोल्डेन रिसोर्स शॉपिंग मॉल का दूसरा स्थान है। यह प्रसिद्ध शॉपिंग मॉल चीन की राजधानी बीजिंग के फोर्थ रिंग रोड में स्थित है। यह 7.3 मिलियन स्क्वेयर फीट एरिया में है। शॉपिंग मॉल में 6 फ्लोरर्स हैं। गोल्डेन रिसोर्स शॉपिंग मॉल मॉल ऑफ अमेरिका से डेढ़ गुणा बड़ी है। 20 महीने के निर्माण कार्य के बाद इसे 20 अक्टूबर, 2004 में खोल दिया गया था।
सेंटर वर्ल्ड  शॉपिंग मॉल 
शॉपिंग मॉल की दुनिया में सेंटर वर्ल्ड  शॉपिंग मॉल काफी प्रसिद्ध है। यह सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है, जो करीब 8 लाख स्क्वेयर मीटर में फैला हुआ है। सेंटर वल्र्ड 8 मंजिल की है। इसमें ऑफिस कॉम्प्लेक्स भी है। यह प्रसिद्ध शॉपिंग मॉल पर सेंटर गु्रप का स्वामित्व है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में यह सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है और हांग-कांग के ओसियन टर्मीनल से भी बड़ा है। वास्तविकता में इसे वर्ल्ड  ट्रेड सेंटर के नाम से पुकारा जाता है। इसे वर्ष 1990 में खोला गया था।
द एसएम मॉल ऑफ एशिया
दुनिया के टॉप टेन शॉपिंग मॉल की फेहरिस्त में द एसएम मॉल ऑफ एशिया चौथे पायदान पर है। सामान्य रूप से इसे मॉल ऑफ एशिया के नाम से भी जाना जाता है। यह फिलीपींस का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है। मॉल ऑफ एशिया 4,07,101 स्क्वेयर मीटर के क्षेत्र में विस्तृत है। इसे 21 मई, 2006 में खोला गया था। मॉल का संचालन एसएम प्राइम होलडिंगस कंपनी करती है। इस मॉल को अमेरिका की प्रसिद्ध आर्किटेक्ट कंपनी Arquitectonica ने बनाया है। मॉल में 750 स्टोरर्स और 220 भोजन के लिये रेस्तरां हैं। रिटेल फ्लोर एरिया 3,90,193 स्क्वेयर मीटर है। 800 कारों की यहां पर पार्किंग की व्यवस्था है। यहां पर करीब 2 लाख विजिटर्स रोज आते हैं। फिलीपिन्स में यह पहला ऐसा मॉल है, जहां पर आइमैक्स थियेटर की व्यवस्था है।
शॉपिंग मॉल ड्रीम मॉल
ताइवान का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल ड्रीम मॉल है, जो टॉप टेन की लिस्ट में पांचवे स्थान पर है। ड्रीम मॉल ताइवान के कोह्सिउंग सिटी Kaohsiung नामक स्थान पर स्थित है। यह एशिया में मॉल ऑफ एशिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है। मॉल लगभग 4 लाख स्क्वेयर मीटर में विस्तृत है। इस प्रसिद्ध मॉल को इंटरनेशनल फेम आॢकटेक्ट फर्म आरटीकेएल ने तैयार किया है। मॉल को 12 मई, 2007 को खोला गया। मॉल प्रसिद्ध रेस्टोरेंट, मुवी थियेटर, जीम खाना और इंटरटेनमेंट जैसी सुविधाओं से लैस है।
वेस्ट एड्मोंतों मॉल
वेस्ट एड्मोंतों मॉल टॉप टेन शॉपिंग मॉल की श्रेणी में 6वें पायदान पर है। यह हाई-फाई शॉपिंग मॉल कनाडा के एड्मोंतो अल्बर्टा नामक स्थान पर स्थित है। मॉल करीब 3 लाख, पचास हज़ार स्क्वेयर मीटर में फैला हुआ है। यहां पर करीब 800 से ज्यादा स्टोर्स हैं। करीब 20 हज़ार गाडिय़ों की पार्किंग की उम्दा व्यवस्था है। इस मॉल में करीब 23 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं। प्रत्येक साल यहां पर करीब 3 करोड़ विजिटर्स आते हैं। एड्मोंतों मॉल प्रसिद्ध एम्मूजमेंट पार्क, थीम पार्क, मूवि थियेटर और रेस्तरां जैसी कई सुविधाओं से लैस है।
Cevahir Shopping Centre
सवाहिर शॉपिंग सेंटर Cevahir Shopping Centre आधुनिकता और सौम्यता का भव्य रूप लिये हुये है। यह शॉपिंग सेंटर तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में स्थित है। सवाहिर शॉपिंग सेंटर खरीददारी और मनोरंजन के लिये काफी प्रसिद्ध है। यह करीब 3,48000 स्क्वेयर मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सवाहिर मॉल यूरोप का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल है और पूरे विश्व में इसका स्थान 7 वां है। वास्तव में यह ट्रेड कॉम्प्लैक्स के रूप मेें शुरू में था लेकिन बाद में शॉपिंग सेंटर के रूप में तब्दिल हो गया। इसका डिज़ाइन अमेरिकी आर्किटेक्ट Minoru Yamasaki और उनके साथियों ने वर्ष 1987 में तैयार किया था। हालांकि इसकी नींव पहले रख दी गयी थी लेकिन काम किसी कारण वश धीमा रफ्तार में रहा जिसके कारण इसे 8 साल में तैयार किया जा सका।
एसएम सिटी नार्थ ईडीएसए शॉपिंग मॉल
टॉप टेन शॉपिंग सेन्टर की लिस्ट में एसएम सिटी नार्थ ईडीएसए 8 वें पायदान पर है। यह शॉपिंग मॉल फिलीपींस के क्यूजोन सिटी के नॉर्थ एवेन्यू में स्थित है। इस शॉपिंग मॉल के डेवलपर्स एसएम प्राइम होलडिंगस कंपनी है। फिलीपीन्स में यह सबसे बड़ा रिटेल कॉरपोरेशन है। मॉल को अमेरिका की प्रसिद्ध आर्किटेक्ट कंपनी Arquitectonica ने बनाया है। यहां पर 11,00 शॉप स्टोर्स हैं। एसएम सिटी नार्थ ईडीएसए ३३१,८६१स्क्वेयर मीटर में विस्तृत है। इसमें फुड कोर्ट, गार्डन, मनोरंजन केन्द्र और 12 थियेटर हैं, जो शॉपिंग की दुनिया को एक बेहतर अंदाज़ दे रहे हैं। इसे वर्ष 1983 ई. में खोला गया था, उसके बाद उसके रूप-रेखा में कई परिवर्तन किये गये हैं।
एस एम मेगा शॉपिंग मॉल
एस एम मेगा मॉल शॉपिंग की दुनिया को एक बेहतर अंदाज़ देने में महती भूमिका निभा रहा है। यह शॉपिंग मॉल फिलीपींस की राजधानी मनिला के ओटिगस सेंटर में स्थित है। एस एम मेगा मॉल ३३१,६७९ स्क्वेयर मीटर में फैला ुहआ है। फिलीपींस में यह पहला ऐसा मॉल है, जहां आइस स्केटिंग करने की सुविधा है। यहां के टॉप फ्लोरर्स पर तीन एस एम मेगाट्रेड हॉल्स हैं, जो हर प्रकार के प्रोग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां के दो मुख्य बिल्डिंग में कई महत्वपूर्ण रेस्तरां हैं, जो खाने के शौकिनों के लिये खास जगह है।
बेर्जय टाइम्स स्क्वेयर कुलालम्पुर शॉपिंग मॉल
टॉप टेन के अंतिम पायदान पर आने वाला मॉल इस बिल्डिंग का हिस्सा है, जो 7 लाख स्क्वेयर मीटर में फैली हुयी है। इसका नाम बेर्जय टाइम्स स्क्वेयर कुलालम्पुर शॉपिंग मॉल है। यह ३२०,००० स्क्वेयर मीटर में फैला हुआ है। यहां पर 1,000 रिटेल शॉप्स, 12,00 लग्जुरियस सर्विस सूट और 65 फुड आउटलेट्स हैं। इसमें एशिया का सबसे बड़ा इंडोर थीम पार्क, कॉस्मोस वल्र्ड और आईमैक्स 2 डी और 3 डी थियेटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध है
मुकेश कुमार झा