Hut Near Sea Beach

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House Boat

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Poly House

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Lotus Temple Delhi

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Enjoy holiday on Ship

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बुधवार, 17 दिसंबर 2014

अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस अनोखा आइलैंड


आईलैड का एक समूह संयुक्त अरब अमीरात की औद्योगिक राजधानी दुबई की खाड़ी में बनाया जा रहा है। यहां करीब 300 द्वीप समूह बनाए जा रहे हैं, जो 9.5 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस परियोजना के तहत मैरिन विलेज को भी विकसित किया जा रहा है। यहां रहने वाले लोगों और आगुतंकों के लिए उचित भोजन की व्यवस्था, खरीदारी के लिए रिटेल शॉप, 150 कमरों का मॉडर्न व शानदार होटल, स्पा जैसी कई आधुनिक सुख सुविधाएं उपलब्ध होंगी। समुद्र की अथाह गहराइयों में दुनिया बसाना आसान नहीं होता। एक्सट्रीम इंजीनियरिंग के प्रयोग से समुद्र की अतल गहराइयों में द्वीप समूह बनाने के लिए समुद्री बालू का इस्तेमाल किया जाता है। अनुमान है कि इसे बनाने में करीब 320 मिलियन क्यूबिक मीटर बालू की जरूरत होगी।
                        अमर उजाला के ब्लॉग कोना में -प्रॉपर्टी संसार में मुकेश कुमार झा
दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतुम  और नखील प्रॉपर्टी ने इसे जीवंत कर दिया है। इस आइलैंड को आवासीय और व्यावसायिक दोनों तरह के उपयोग के लिए बनाया है। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी परियोजना से जुड़ी कंपनियां ज्यादा संजीदा है। वे ऐसा सुरक्षा तंत्र बनाना चाहती है जो विश्व में उदाहरण बन सके। इस आइलैंड को लेकर इतनी जिज्ञासा है कि यहां के करीब 50 प्रतिशत द्वीपों को विश्व भर की प्रसिद्ध हस्तियों ने खरीद लिया है। यहां प्राइवेट रिजॉर्ट, रेस्टोरेंट, याचेट क्लब, स्कूबा डाइविंग, मैरिस, बिच क्लब जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके बनने के साथ ही यहां आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस 40 लग्जेरियस रिजॉर्ट होंगे, जो यहां के माहौल को और भी रंगीन बना देंगे। दुनिया भर की प्रसिद्ध ब्रांडेड कंपनियां यहां अपनी सेवाएं देंगी। इस जगह का एक आइलैंड की कीमत 15 मिलियन डॉलर से लेकर 50 मिलियन डॉलर तक है। एक प्रसिद्ध आइलैंड की कीमत तो करीब 250 मिलियन डॉलर आंकी गई है। यहां द्वीपों को कई श्रेणियों में बांटा गया है और प्रत्येक श्रेणी की दुनिया भी अलग अलग अंदाज में होगी। अपने अनोखेपन के कारण यह द्वीप समूह रियल एस्टेट की दुनिया में चर्चा का विषय बन चुका है। अनुमान है कि आने वाले समय में इसकी लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊंचा होगा। यह पर्यटन उद्योग के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।


शनिवार, 13 दिसंबर 2014

आम से खास

मुकेश कुमार झा
मेरे पास एक धांसू आइडिया है। चाहे तो सरकार या फिल्म वाले इस पर गौर फरमा सकते हैं। फिल्म का नाम-महंगाई- डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ---नायक और खलनायक के बारे में फिल्म बनाने वाले मुझसे बेहतर सोच सकते हैं। फिल्म का कुछ दृश्य का फिल्माकंन यों हो सकता है। नायक दिन भर भूखा है। पैसे तो हैं लेकिन इतना नहीं है कि वह खा सकता है। लेकिन वह फिल्म का नायक है इसलिये जनता की प्रेरणास्त्रोत बन सकता है। एक और दो दिन के बाद नायक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है। जुबान लरखड़ाने लगी है। लेकिन तेबर कम नहीं है। जो नायिका पहले उसे प्यार से देखती थी, आज उसके सूखे बाल और सूखे गाल को देखकर कन्नी काटने के मुड में है। नायिका कुछ देर के लिये ख्याबों की दुनिया में जाकर पुराने दिनों को याद कर रही है।
इसी याद के दरम्यान डायरेक्टर अतीत और वर्तमान की महंगाई की तुलना फिल्म में दृश्य के सहारे कर सकते हैं। नायक की बढ़ती भूख और बेबसी ने उसे बगावत पर ला खड़ा किया है। बगाबत से फिल्म में जान आ सकती है। हाफ टाइम से कुछ पहले प्रमुख खाद्ध पदार्थ के वर्तमान और अतीत के मूल्य को दिखाकर, जनता से  ओपिनियन  ली जा सकती है। चाहे तो सरकार की पॉलिसी की बखिया भी जनता उतार सकती है। लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ नायक को लाया जा सकता है जो खुद भूखा होकर भूखे लोगों के लिये एक नयी मिसाल कायम कर सकता है। लेकिन बगाबत पर उतरे नायक जब अपनी आवाज़ बुलंद करता है, ठीक उसी समय डायरेक्टर महोदय खलनायक की इंट्री करा सकते हैं। चमाचम गाड़ी से उतरा खलनायक,नायक को हर बॉलीवुड फिल्म की भांति फब्तियां कस रहा है। लेकिन यहां पर ढिशुम-ढिशुम दृश्य के साथ  साउंड न डाला जाय यानि sound को Mute कर दिया जाय तो फिल्म की सेहत के साथ नायक की सेहत के लिये ज्यादा बेहतर होगा। नायक बेबस है, लाचार है और इस मौके पर खून जलाने के लिये डायरेक्टर चाहे तो प्यार को बेवफा साबित करने के लिये नायिका को खलनायक के साथ कार पर घूमते हुये भी देखा सकते हैं।

इस सीन में भावना की प्रवाह महंगाई की प्रवाह भले ही थोड़ी तेज हो लेकिन महंगाई की जय-जय वाली गीत से खलनायक की खलनायिकी में जान डाली जा सकती है। अब में डायरेक्टर को थोड़ी देर के लिये राजनीति की दुनिया में फिल्म को ले जाने की सलाह दूंगा ताकि वह जनता और नायक की भावना का सम्मान कर सकें। कुछ हकीकत को यों दिखाया जाय कि जनता सच्चाई के रूप में महंगाई को स्वीकार करें लेकिन बरगालने का यह मामला थोड़ी पेंचदगी में उलझ सकता है, इसलिये बेहतर यह है कि नायक को भरपूर मौका दिया जाय कि हकीकत को डंक मार कर जनता के सामने लाये। ऐसा करने पर सभी फिल्मों की भांति इस फिल्म के नायक का टीआरपी बढ़ सकती है। नायक की लोकप्रियता में चार-चांद लग चुका है। चुनाव में जनता ने उसे सर आंखों पर बैठा दिया है। उसकी जीत के साथ वह भी अब आम से खास बन चुका है। अब नायिका को अपनी गलती का अहसास हो रहा है। वह अपने प्यार को याद कर रही है। इस सीन के फिल्मांकन यदि नायिका के साथ नायक भी हो तो बेकार गीतों पर भी जनता सिटी बजा सकती है। गीत खत्म होते ही खलनायक को अपनी करनी की सजा को चुनाव के जीत या हार से बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता है। जनता का लोकप्रिय हो चला नायक असली रूप में आ गया है। वह अब प्यार और सम्मान पा चुका है। भूल गया है, वह अपनी अतीत को वर्तमान में,जब फिर से कोई नयी बात यानि महंगाई बढ़ेगी तो फिर से एक नायक पैदा हो गया जो नायक की भूमिका में खलनायक भी हो सकता है। जिस प्रकार से क्रमश: महंगाई बढ़ती जा रही है, ठीक उसी प्रकार से फिल्म के कई सिक्वल भी बनाये जा सकते हैं।

प्रॉपर्टी के देखरेख की जि़म्मेदारी



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बचाएं पैसा ताकि हर मुश्किल हो आसान

जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, ठीक उसी प्रकार से एक-एक रूपये की बचत से वर्तमान और भविष्य दोनों सुरक्षित रहता है। यह बात भी सही है कि आजकल के दौड़ में जहां एक बेहतर जिन्दगी जीना आसान नहीं रह गया है, ऐसी परिस्थिति में पैसा बचत करना थोड़ा मुश्किल भरा कदम हो सकता है लेकिन आप बेहतर प्लानिंग करें तो यह काम भी आसान हो सकता है। अनिश्चितता भरे संसार में आपको सबसे पहले आर्थिक स्थिरता के बारे में उपाय करने ही चाहिए।
मुश्किल भरा दौड़ जि़न्दगी में पूछ कर नहीं आता है। परिस्थिति विपरित होने पर हौसला पस्त होने लगता है। इस हौसला को बरकरार रखने के लिए पैसे की बचत करना काफी महत्वपूर्ण है। इसके मद्देनज़र आप अपने मन में कभी-कभी यह ज़रूर सोचा होगा कि क्या हम अपने मुश्किल दिनों के लिए पैसे बचाए हैं ? अगर कोई आपात स्थिति आए तो मैं इसे कैसे मैनेज करूंगा? घर के डाउन पेमेंट के लिए मेरे पास पैसा है या नहीं? अपने ब'चों की ऊंची शिक्षा के लिए मेरे पास रकम होगी या नहीं? और क्या मेेरे ऊपर कजऱ् है? इस सब सवालों का उत्तर भी आप अपने मन-मस्तिष्क में ज़रूर सोचा होगा। आप निष्कर्ष पर पहुंचे होंगे कि इन सभी सवालों का हल पैसे की बचत में समाहित है। बढ़ती महंगाई के इस जमाने में पैसे की बचत करना भले ही थोड़ा मुश्किल ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं। एक बेहतर रणनीति के साथ घर का बजट तैयार करें तो सब कुछ धीरे-धीरे आसान होने लगेगा। इस मामले में आपको पता होना चाहिए कि आपकी गाढी मेहनत की कमाई कहां खर्च हो रही है। और इस दिशा में आपका सबसे पहले कदम होगा एक सेविंग प्लान लेना। यहां पर आप सोच रहे होंगे कि बंधी-बंधाई आमदनी में से आप अपने खर्चे पूरे कर लें, यही बहुत है, ऐसे में बचत कैसे होगी। 
सबसे पहले देखें कि आपको खर्च कहां हो रहा है। हर महीने के खर्च के लिए एक डायरी रखें, कॉफी ब्रेक से लेकर घर के सामान पर खर्च हुए एक-एक पैसे का हिसाब रखें। आपको हैरानी होगी कि इन्हीं जगहों से आपको सबसे 'यादा पैसा बचाने की जगह मिलेगी। अपना बजट बनाना उतना मुश्किल भी नहीं है जितना आप सोच रहे हैं। खर्चों और व्यय के लिए लक्ष्य बनाकर चलें। जो तय खर्चे हैं जैसे कि घर का किराया, विभिन्न प्रकार के बिल, कार लोन-होम लोन की किश्तें, क्रेडिट कार्ड के बिल उनमें तो कांट-छांट नहीं हो सकती है। हां, लेकिन घर के सामान और कपड़ो के लिए खर्च की सीमा रखें, साथ ही मनोरंजन और यात्राओं के लिए भी तयशुदा सीमा से 'यादा खर्च ना करें। आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता आपात स्थिति के लिए एक फंड बनाकर रखना होनी चाहिए। अगर आपने इसके बारे में नहीं सोचा हो तो सबसे अ'छा विकल्प यही होगा कि आपकी आय में से हर महीने कुछ पैसा इसके लिए कटता रहे और इस पैसे को आप फिक्सड या रिकरिंग डिपॉजिट में रख सकते हैं। महंगाई के इस जमाने में बचत करना इतना आसान नहीं रह गया है। आपकी वेतन वहीं की वहीं है लेकिन जिस चीज़ की कीमत छह महीने पहले 3 रुपये थी, आज वह बढ़कर पांच रूपये तक हो चली है। गौरतलब है कि मार्केट में जिस चीज़ की कीमत एक बार बढ़ जाती है, विरले ही देखने को मिलता है इसकी कीमत घट जाए। खासकर, दैनिक उपभोग में खाने वाली 
चीज़ों के दाम रफ्तार में ही दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में आप अपने और अपने बगो के भविव्य को लेकर चिन्तित रहते है। क्योंकि महंगाई के हिसाब से बगाों को सही शिक्षा देना इतना आसान नहीं रह गया है । बेहतर यह है कि आप समय रहते एक बेहतर चाइल्ड प्लान लेकर अपने बगो की भविष्य को सुरक्षित कर लें।

बढ़ती महंगाई को देखकर ज्यादातर लोग परेशान हैं। इसकी रफ्तार को देखकर आमदनी मुसीबत में है। घर का पूरा का पूरा बजट इसके कारण कोमा में चला गया है। कुल मिलाकर आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपये वाली स्थिति हो गई है। इस परिस्थिति में ज्यादातर लोग अपने और अपने बगो की भविष्य को लेकर चिन्तित रहने लगे हैं। खासकर, महंगी शिक्षा, भविष्य को लेकर अस्थिरता और करियर को लेकर बढ़ती चिंता ने तो नींद उड़ा दी है। उन्हें अपने उस मासूम ब'चे के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है। इस बढ़ती महंगाई के ग्राफ में सही शिक्षा देना इतना आसान नहीं रह गया है। बेहतर शिक्षा दे पाना एक प्रकार से पैरेंट्स के लिए आज एक चुनौती हो गया है। ऐसे में प्लानिंग सबसे कारगर साबित होती है। ब'चे की शिक्षा और भविष्य में होने वाले खर्चों का सामना करने के लिए एक बेहतर चाइल्ड प्लान बेहद उपयोगी होता है। यह प्लान एक निवेश के तरह ही है। जिसमें निवेश करके व्यक्ति भविष्य के लक्ष्यों को हासिल कर सकता है। साथ ही ज़रूरत के समय भी यह निवेश मददगार साबित होता है। एक्सपर्ट के अनुसार एक बेहतर चाइल्ड प्लान में किया गया निवेश उसी तरह बढ़ता है जिस तरह समय के साथ आपके ब'चे भी बड़े होते हैं। चाइल्ड प्लान को लेते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान रखें तो वर्तमान के साथ भविष्य भी सुरक्षित हो सकता है। कोई भी चाइल्ड प्लान लेते समय पहले प्रपोजल फॉर्म में दी गई सारी जानकारी अ'छी तरह से पढ़ लें। वहीं साथ ही प्लान लेते समय यह ध्यान रखें कि भविष्य में यदि आप न हों तब ये प्लान ब'चे का सहारा बन सके। प्लान लेते समय इस बात का ध्यान रखें की आप जो प्लान ले रहे हैं वह चाइल्ड प्लान ही है, क्योंकि कई बार चाइल्ड प्लान के नाम पर धोखाधड़ी हो जाती है। इसलिए ज़रूरी है कि प्लान लेते समय यह जांच लें कि जो प्लान आप ले रहे हैं वह चाइल्ड प्लान ही है या कोई दूसरा प्लान जिसे अक्सर चाइल्ड प्लान के नाम पर आपके हाथ में थमा दिया जाता है। इसके बाद एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको सही चाइल्ड प्लान को लेने के लिए एक्सपर्ट बताते हैं कि चाइल्ड प्लान एक इंश्योरेंस प्लान है। जो एंडॉवमेंट और यूलिप दोनों की स्वरूपों में उपल्बध है। साथ ही समय समय पर यह आपको रिटर्न भी देता है। प्लान लेते समय यह सुनिश्चित कर लें प्लान की मै'युरिटी पर मिलने वाली राशि आपके ब'चे की ज़रूरतों को पूरा कर पाएंगे या नहीं। 
चाइल्ड प्लान में यह भी देखें की आपके ब'चे की शिाक्षा, 

मुख्य एंडॉवमेंट चाइल्ड प्लान
आईसीआईसी पू्र स्मार्ट किड
एचडीएफसी चिड्रेन्स प्लान
एलआईसी कोमल जीवन
मैक्स न्यूयॉर्क स्टेपिंग स्टोन
बजाज एलियांज चाइल्ड प्लान
एलआईसी जीवन अनुराग

मुख्य यूनिट-लिंक्ड प्लान
मैक्स न्यूयॉर्क शिक्षा प्लस 2
टाटा एआईजी लाइफ यूनाइटेड उ'जवल भविष्य सुप्रीम
एसबीआई लाइफ- स्मार्ट स्कॉलर
बीएसएलआई ड्रीम्स चाइल्ड प्लान
अविवा यंग स्कॉलर
इंडिया फस्र्ट यंग इंडिया प्लान

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

क्या है कारपेट एरिया और बिल्टअप एरिया ?


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 रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट) बिल  में कारपेट एरिया की परिभाषा दी गई है। इससे बिल्डर्स के लिए सुपर एरिया के आधार पर अपार्टमेंट बेचना मुश्किल हो जाएगा। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कारपेट एरिया क्या होता है और बिल्टअप एरिया और सुपर बिल्टअप एरिया क्या होता है। इन तीनों में बेसिक फर्क क्या है।  इस मामले को समझना काफी ज़रूरी होता है, प्रत्येक होम बायर्स के लिए। 
वास्तव में देखा जाय तो कारपेट एवं सुपर बिल्टअप एरिया में 20 फीसदी तक का फर्क रहता है। यदि ग्राहक फ्लैट या आफिस लेना चाहता है, तो बिल्डर दो विकल्प देता है जैसे पहला विकल्प 1000 स्क्वयेर फीट का फ्लैट 16 लाख रुपए में, दूसरा विकल्प 1200  स्क्वयेर फीट का फ्लैट भी 16 लाख रुपए में। ऐसे में ग्राहक बराबर कीमत को देखते हुए 1200  स्क्वयेर फीट  का फ्लैट लेना चाहेगा। बस गड़बड़ी भी यहीं से शुरू होती है। बाज़ार के नीति के अनुसार कीमत कारपेट एवं सुपर बिल्टअप दोनों को मिलाकर तय की जाती है। फ्लैट खरीदते समय सामान्य जोड़-घटाव के बदले एरिया के कैलकुलेशन पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण स्वरूप यदि फ्लैट का सुपर बिल्टअप एरिया 1200  स्क्वयेर फीट है, तो इसका मतलब हुआ कि उपयोग वाला एरिया 960  स्क्वेयर  फीट ही हुआ। यानि पेमेंट 1200  स्क्वेयर फीट का और इस्तेमाल के लिए एरिया 960  स्क्वेयर फीट मिला। डील फाइनल करते समय एरिया की स्पष्ट जानकारी बिल्डर से लेनी चाहिए। अगर बिल्डर एरिया की बात कर रहा है तो वास्तविक उपयोगी एरिया को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

कारपेट एरिया :
कारपेट एरिया का मतलब है कि फ्लैट में इस्तेमाल की कितनी जगह मिलेगी। इसे दीवार से दीवार तक का कुल एरिया भी कहा जा सकता है। दूसरे अर्थ में अगर दीवार से दीवार तक कारपेट बिछाना है, तो जितने बड़े कारपेट की ज़रूरत पड़ेगी, वह फ्लैट का कारपेट एरिया माना जाएगा। फ्लैट का दरवाजा बंद करने के बाद जो हिस्सा है, वह कारपेट एरिया होता है।

बिल्टअप एरिया :
फ्लैट, मकान, ऑफिस, दुकान के कारपेट एरिया में दीवारों के नीचे की जगह को शामिल किया जाए तो वह कुल बिल्टअप एरिया कहलाता है। बिल्टअप एरियों को फ्लैट का कुल बिल्टअप एरिया कहा जाता है।
सुपर बिल्टअप एरिया :
कारपेट एरिया, बिल्टअप एरिया के साथ कॉमन स्पेस को जोड़ दिया जाए तो वह सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है। बिल्डर्स, बायर्स से हमेशा सुपर बिल्टअप एरिया की बात करते हैं। बिल्डिंग में कॉमन रूम, सीढिय़ां, एलीवेटर, फ्लैट के बाहर की गैलरी को बिल्टअप एरिया में जोड़कर सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है। सुपर बिल्टअप एरिया में क्या-क्या शामिल हो, इसे बिल्डर अपने हिसाब से तय करता है। एक्सपर्ट की राय में बड़े और प्रोफेशनल बिल्डर्स को साझा इस्तेमाल की कुछ चीज़ों को सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल नहीं करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सोसायटी का ऑफिस, कॉमन टायलेट, इलेक्ट्रिक मीटर रूम, पंप रूम, जेनरेटर रूम, सिक्युरिटी चेम्बर, सीढिय़ां, लिफ्ट मशीन रूम, ओवरहेड एवं अंडरग्राउंड टैंक, कॉमन टैरेस, ओपन स्टोट्र्स एरिया, स्वीमिंग पूल, कपड़े सुखाने का एरिया आदि। 
अक्सर देखने में आता है कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में लिफ्ट एवं सीढिय़ां होती हैं, इसलिए इसे सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल कर लिया जाता है। अभी तक लगभग रियल एस्टेट सेक्टर में यह भी तय नहीं था कि बिल्टअप अथवा सुपर बिल्टअप एरिया में से कीमतें किस पर तय होगी। सब कुछ बिल्डर पर निर्भर है। सुपर एरिया कैलकुलेशन में भी बिल्डर्स की मजऱ्ी चलती है। कस्टमर मार्केट इनके शिकंजे में फंस जाता है। 
जब ग्राहक बिल्डर के पास जाता है तो उसे अलग-अलग एरिया के नाम पर कीमतें बताई जाती है। एरिया को लेकर कोई भ्रम नहीं हो, इसके लिए ज़रूरी है कि सुपर बिल्टअप एरिया का कॉन्सेप्ट बिल्डर्स और बायर्स मार्केट के बीच स्पष्ट हो। इसके लिए एक स्टैंडर्ड तय किया जाना चाहिए। अगर बिल्डर इसका पालन करेंगे तो, सुपर बिल्टअप एरिया का कॉन्सेप्ट ज्यादा बेहतर तरीके से अपनाया जा सकता है। ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड के अलावा कई अन्य सरकारी एजेंसियां इस पर मंथन कर रही है। कारपेट एरिया को नेशनल रेफरेंस एरिया के आधार पर कीमतें निर्धारित करने का कानून बनाए जाने की पहल हो रही थी और इस बिल में इसके बारे में तय कर दिया गया। अक्सर देखने में आता है कि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में लिफ्ट एवं सीढिय़ां होती हैं, इसलिए इसे सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल कर लिया जाता है। अभी तक लगभग रियल एस्टेट सेक्टर में यह भी तय नहीं था कि बिल्टअप अथवा सुपर बिल्टअप एरिया में से कीमतें किस पर तय होगी। सब कुछ बिल्डर पर निर्भर है। सुपर एरिया कैलकुलेशन में भी बिल्डर्स की मजऱ्ी चलती है। कस्टमर मार्केट इनके शिकंजे में फंस जाता है। 
एक्सपर्ट की राय में बड़े और प्रोफेशनल बिल्डर्स को साझा इस्तेमाल की कुछ चीज़ों को सुपर बिल्टअप एरिया में शामिल नहीं करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सोसायटी का ऑफिस, कॉमन टायलेट, इलेक्ट्रिक मीटर रूम, पंप रूम, जेनरेटर रूम, सिक्युरिटी चेम्बर, सीढिय़ां, लिफ्ट मशीन रूम, ओवरहेड एवं अंडरग्राउंड टैंक, कॉमन टैरेस, ओपन स्टोट्र्स एरिया, स्वीमिंग पूल, कपड़े सुखाने का एरिया आदि।

निर्माण की गुणवत्ता को कैसे परखें?



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 हर इंसान के जि़न्दगी में घर खरीदने का फैसला बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि घर रोज़-रोज़ नहीं खरीदे जा सकते। हर कोई इसे खरीदने से पहले बहुत सोच-विचार करता है। ढ़ेर सारी जानकारी इक्ट्ïठा करता है कि प्रोजेक्ट का लोकेशन कैसा है, कौन डेवलपर डेवलप कर रहा है, रेट क्या है, फ्लैट का इंटीरियर कैसा है, कब तक बन कर तैयार होगा आदि। लेकिन एक जो सबसे मुख्य जानकारी होती है, वह कम कस्टमर ही जानने की कोशिश करता है, वह है प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन क्वालिटी कैसी है। ऐसा इसलिए भी होता है कि कंस्ट्रक्शन के विषय में आम कस्टमर को जानकारी न मात्र की होती है। प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन क्वालिटी को आप कैसे जांचे आइए जानते हैं।
रियल एस्टेट एक के बाद एक नई इबारत लिख रहा है। देश के छोटे-बड़े शहरों में गगनचुंबी इमारत से लेकर लग्जुरियस अपार्टमेंट का निर्माण हो रहा है। डेवलपर्स भी घर की बढ़ती ज़रूरत को देखते हुए नए-नए प्रोजेक्ट लॉन्च करते जा रहे है। लॉन्च हुए प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते है। मार्केट में प्रतिस्पर्धा होने से कस्टमर कि ओर से शिकायत आती है कि उसे जो घर दिया गया है उसमें निर्माण में कई तरह की खामियां है। इसके लिए डेवलपर्स को दोषी ठहराना जायज नहीं होगा। इसके लिए सरकारी तंत्र भी जि़म्मेदार है। जानकारों का मानना है कि बढ़ता भ्रष्टïाचार, लेट-लतीफी नौकरशाही के कारण निर्माण में बिल्डिंग कोड का बड़े पैमाने पर उल्लंघन भी है। डेवलपर्र्स अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में बिल्डिंग की संरचना और सुरक्षा में लापरवाही बरत रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह सिर्फ वहां पर रह रहे लोगों के लिए किसी बड़े दुर्घटना के आमंत्रण से कम नहीं है, बल्कि आस-पास रह रहे लोगों के लिए भी खतरा हो सकता है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम कर रहे कामगार बताते हैं कि यह बड़ा ही पेचीदा मामला है और इस सेक्टर के सभी पहलुओं पर प्रकाश नहीं डाला जा सकता। उदाहरण के तौर पर, सामान्य लोगों को यह पता नहीं होता है कि इस बिल्डिंग स्ट्रक्चरली ठीक है या नहीं। इसके लिए कस्टमर को चाहिए कि वह बिल्डिंग का स्ट्रक्चरल और आर्किटेक्चरल विवरण एक स्वतंत्र वास्तुकार से दिखाकर समझे। वह आपको बिल्डिंग की सही जानकारी उपलब्ध कराएगा। आप नीचे दिए गए कुछ बिंदुओं को जानकर खुद भी सारी जानकारी इक्ट्ïठा कर सकते हैं। 
सही पेपर वर्क
हालांकि रियल एस्टेट में काम कर रहे सभी डेवलपर्स क्वालिटी कंस्ट्रक्शन कि बात करते हैं, पर इस विषय पर कोई गहन विवरण कस्टमर को पेपर पर उपलब्ध नहीं कराते, लेकिन एक डेवलपर्स के लिए ज़रूरी है कि वह अपने कस्टमर को कंस्ट्रक्शन संबन्धी जानकारी दें। कस्टमर को भी कंस्ट्रक्शन संबन्धी जानकारी जानने का हक है। हालांकि डेवलपर्स अपने कस्टमर को बुकिंग के दौरान बिल्डिंग में क्या सुविधा मिलेगी, फ्लोरिंग कैसा होगा, दरवाजे और खिड़की, सेनेटरी, बिजली वायरिंग किस क्लास का यूज किया जाएगा आदि जानकारी देता है, पर वह इसका विस्तृत विवरण नहीं देता। कस्टमर को चाहिए कि अपने फ्लैट का पजेसन लेने से पहले यह सुनिश्चत कर लें कि बुकिंग के समय डेवलपर्र्स ने जो वादा किया था, उसे पूरा किया है या नहीं। काफी कस्टमर की शिकायत होती है कि जो वादा किया गया, उसे पूरा नहीं किया गया। यदि किया भी गया तो जिस रूप-रेखा में कहा गया था, वैसा नहीं किया गया है। कस्टमर को चाहिए कि घर की चाबी लेने से पहले डेवलपर्स पर दवाब डालें कि आपने जो पेपर पर मेनसन किया था, वह सारी सुविधा उपलब्ध कराई जाए। 
मीङ्क्षटग

जब आप घर खरीदने जा रहे हैं और जिस प्रोजेक्ट में आप घर लेने का मन बनाया है, उस प्रोजेक्ट का मुआयना स्वयं करें। इससे आपको उस प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन क्वालिटी किस दजऱ्े की है, वह पता लग जाएगा। आप बिना बताए साइट पर जाएं और देखें कि निर्माण में किस प्रकार का मैटीरियल यूज किया जा रहा है। 
मिट्टïी की जांच

इमारत की बुनियाद की मज़बूती मिट्टी  पर निर्भर करती है। मिट्टी की क्वालिटी पर निर्माण की गुणवत्ता अलग-अलग जगहों पर तय की जाती है। उदाहरण के तौर पर क्लेरिच मिट्टीका गुण होता है वह नमी को सोखता है। हर बिल्डर निर्माण से पहले मिट्टïी की जांच करता है। आप डेवलपर्स सेमिट्टी की जांच की एक कॉपी मांग सकते है। 
स्ट्रक्चर डिज़ाइन
एक आम इंसान के लिए बिल्डिंग का डिज़ाइन और ले-आउट समझना मुश्किल काम है। इसके लिए आप उस प्रोजेक्ट के स्ट्रक्चर डिज़ाइन को किसी थर्ड स्ट्रक्चरल डिज़ाइनर से दिखा कर जानकारी हासिल कर सकते हैं और उस प्रोजेक्ट के विषय में तमाम जानकारी इक्ट्ïठा कर सकते हैं। आप प्रोजेक्ट के ले-आउट डिज़ाइन से यह जानकारी इक्ट्ठा कर सकते हैं। आप जिस प्रोजेक्ट में घर लेने जा रहे है वह भूंकपरोधी है या नहीं। यदि है तो वह कितने रियेक्टर पैमाने के भूंकप को सह सकता है। जहां पर प्रोजेक्ट को डेवलप किया जा रहा है, वह किस सिसमिक ज़ोन में आता है। क्या उस सिसमिक ज़ोन के अनुरूप प्रोजेक्ट का डिज़ाइन किया गया है। मौजूदा समय में ज्यादातर प्रोजेक्ट का निर्माण 4 रिक्टर पैमाने को सहने की क्षमता किया जा रहा है। कुछ बिल्डिंग का निर्माण 9 रिक्टर पैमाने पर भी किया जा रहा है। यह पैमाना बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन पर निर्भर करता है कि वह ज़मीन पर कितना दवाब दे रहा है और उसके निर्माण में इस्पात की गुणवत्ता कैसी है।
कंक्रीट मिश्रण
कंक्रीट का मिश्रण स्ट्रक्चर की मज़बूती पर निर्भर करता है। स्ट्रक्चर का लोड के अनुसार कंक्रीट का मिश्रण किया जाता है। कोई भी डेवलपर्स के लिए यह संभव नहीं है कि वह साइट पर जाकर हमेशा कंक्रीट के मिश्रण का अवलोकन करे, उनके लिए पहले से तैयार मिश्रण एक अच्छा विकल्प होता है। आप बिल्डर से पूछ सकते हैं या जानकारी ले सकते हैं कि किस परीक्षण प्रयोगशाला से मैटीरियल की जांच करायी गयी है और वह प्रयोगशाला ने क्या रेटिंग दी है। 
दीवार की मोटाई

बिल्डर को बुकिंग के समय ले-आउट डिज़ाइन में दीवार की चौड़ाई व मोटाई का उल्लेख करना  चाहिए। आप साइट पर जाकर यह पता कर सकते हैं कि बिल्डर ने जो आपसे कहा है उसका वह पालन कर रहा है की नहीं। 
इंटीरियरडेवलपर्स आपसे वादा करता है कि बिल्डिंग की फिनिशिंग अला दजऱ्े की होगी और इसमें लगने वाले समान उत्तम क्वालिटी का होगें। आप पजेसन लेने के समय खुद से बाथरूम फिटिंग, इलेक्ट्रिक तार, स्वीच फिटिंग, टाइल्स, पलम्बर, प्लास्टर, टाइल्स, मारबल और पेंट की क्वालिटी आदि की जांच कर लें। क्या बिल्डिंग में जो समान इस्तेमाल हुए हैं, वह भारतीय बिल्डिंग मानक को पूरा कर रहे हैं या नहीं। यदि आपको किसी भी प्रकार का संदेह है तो आप बिल्डर से उसके बारे जानकारी ले सकते हैं और पूछ सकते हैं कि इसमें कौन सा ब्रांड यूज किया गया है। यदि बिल्डिंग में घटिया क्वालिटी का पेंट और टाइल्स का उपयोग किया गया है तो आप उसे चेंज करने को कह सकते हैं। 
तीसरे पक्ष का प्रमाणपत्र
समय की कमी और दूसरे काम का बोझ होने से यह संभव नहीं है कि आप बिल्डिंग के हर पहलुओं की जांच खुद से करें। इसके लिए आप थर्ड पार्टी जो इस सेक्टर का जानकार हो, उसकी राय ले सकते हैं। वह आपको सभी पहलुओं का विस्स्तृत ब्यौरा उपलब्ध कराता है। थर्ड पार्टी आपको कई मायने में फायदेमंद हो सकता है। भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया से भी आप संपर्क कर सकते हैं। आप डेवलपर्स से कह सकते हैं कि आप एक स्वतंत्र लेखा परीक्षक को हायर करें, जो प्रोजेक्ट को मॉनीटर कराएं। इससे आपके ऊपर बोझ भी कम होगा और प्रोजेक्ट का काम भी क्वालिटी का होगा। कई प्रतिष्ठिïत बिल्डर इस तरह की पहल कर भी रहे हैं। उन्होंने अपने प्रोजेक्ट कोCIDC-CQRA  गुणवत्ता प्रमाण पत्र ले रहे हैं। ये बॉडी कंस्ट्रक्शन क्वालिटी की रेङ्क्षटग देते हैं। ये उपक्रम भारत सरकार के कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री डेवलपमेंट कौंसिल द्वारा मान्या प्राप्त है। इसकी बॉडी को योजना आयोग द्वारा सहयोग मिलता है। आप यदि खुद से कंस्ट्रक्शन क्वालिटी की जांच करना चाहते हैं तो भी आप किसी पेशेवर ऑडिटर से सेवा आवश्य लें। एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जो प्रॉपर्टी आप खरीद रहे हैं, उसके लेकर आप सर्तक रहें। 

आप रहें जागरूक

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 बड़े-बड़े नामी-गिरामी बिल्डर्स, प्रोजेक्ट के नाम पर अलॉटमेंट के समय बड़े प्यार से ग्राहकों से पैसा लेते हैं, लेकिन किसी कारणवश उसी ग्राहक को पैसा वापस लेना होता है, तो उन्हें लोहे के चने-चबाने पड़ते हैं। ज्यादातर मामलों में रिफंड का फंडा इतना जटिल हो जाता है कि ग्राहक खुद ठंडे पड़ जाते हैं।  कुछ जगह पर तो बिल्डर्स द्वारा स्कीम लॉन्च करने के बाद पैसों को लेकर चंपत हो जाने की बात भी सामने आई है। आखिर इसकी वजह क्या है। इस रिफंड के मामले को लेकर पूरे मामले की तह में जाकर इस विषय से जुड़े कई अनसुलझी बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं ।
रियल एस्टेट की विभिन्न कंपनियां प्रॉपर्टी बाज़ार में तेज़ी लाने के लिए तमाम सस्ती हाउसिंग स्कीमें ला रही हैं। ऐसे में आम आदमी भी अपने आशियाने की चाहत को पूरा करने के लिए इन स्कीमों का फायदा उठाना चाह रहे हैं। कुछ ग्राहक ऐसे भी हैं जो भविष्य को ध्यान में रखकर रियल एस्टेट में पैसा इसलिए लगा रहे हैं  कि उन्हें भविष्य में उनके पैसे का अधिक से अधिक रिटर्न मिलेगा। ग्राहकों के इस मूड को देखते हुए कई ऐसे तमाम बिल्डर व कंपनियां सामने आयी हैं, जो सिर्फ लुभावने विज्ञापनों के जरिए निर्धारित समय पर बिल्डिंग और फ्लैट का कब्ज़ा देने की बात कर रही हैं। इसके अलावा कुछ कंपनियां प्रॉपर्टी नहीं मिलने पर तुरंत पैसा वापस करने की भी बात कर रही हैं। ...लेकिन वास्तविकता यह हैं कि खरीददार यानि ग्राहक ऐसी लुभावनी स्कीमों में पैसा लगाकर फंसा हुआ महसूस कर रहा है। जिन्होंने पहले से प्रॉपर्टी में पैसा निवेश कर रखा है, वे रिटर्न को लेकर काफी चिंतित हैं। वहीं फाइनेंसर कंपनियां पैसा फंस जाने के कारण परेशान हैं। खास बात तो यह है कि बिल्डर और डेवलपर अपने प्रोजेक्ट में पैसे व खरीददार के अभाव में प्रॉपर्टी न बिकने को लेकर काफी दुखी हैं। जिन लोगों ने बैंकों से लोन लेकर प्रॉपर्टी में पैसा लगाया है, उन्हें ब्याज की चिंता सताये जा रही है। इसी कारण कुछ स्थानों पर बिल्डर्स  अपने पूर्व किए गए वादों से भी मुकर रहे हैं। ग्राहकों से वायदा करने वाले  कुछ  बिल्डर्स  उनके साथ धोखाधड़ी का खेल भी खेलने में लगे हैं। एक ओर जहां ग्राहक पूरी बिक्री राशि का भुगतान कर बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों के कजऱ् तले डूबे हुए हैं, वहीं बिल्डरों के वादे को पूरा न होते देख उनके घर की चाहत का सपना भी टूटता नज़र आ रहा है। वायदा करने वाले कई बिल्डर अपने ऑफिस बदलकर गायब हो चुके हैं या फिर वे फोन पर बात नहीं करना चाहते हैं। और कुछ बिल्डर अपने वादे पूरा करने के एवज में प्रॉपर्टी में बढ़ी कीमतों के चलते ज्यादा पैसे की मांग कर रहे हैं, जबकि इन सभी मामलों में कब्ज़े मिलने की संभावनायें दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है। ऐसे मामलों में खरीददार अपने आप को बेसहारा, प्रताडि़त एवं फंसा हुआ महसूस कर रहा है। अहम् सवाल यह है कि ग्राहकों को रियल एस्टेट की जालसाल कंपनियों एवं बिल्डरों के चंगुल से कैसे बचाया जाये? 
परेशान ग्राहक कहां करें शिकायत
हमारे देश में प्रॉपर्टी में धोखाधड़ी के मामले को लेकर कुछ कानून बनाये गये हैं। ग्राहकों के साथ गड़बड़ी करने वाले बिल्डर्स पर लगाम लगाने के सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत बिल्डर्स द्वारा ग्राहकों को मुआवजा दिलाने, बुक कराये गये फ्लैट देने के लिए बिल्डर्स को मज़बूर करने का प्रावधान दिया गया है। धोखाधड़ी का शिकार ग्राहक, बिल्डर द्वारा सेवा में दी गई कमी का उल्लेख करते हुए उपभोक्ता फोरम जैसे राज्य, जिला और  राष्ट्रीय आयोग में शिकायत कर सकता है। इनमें जिनकी प्रॉपर्टी की कीमत बीस लाख रुपये से कम है, उनकी शिकायत जिला फोरम में और बीस लाख से ज्यादा एक करोड़ से कम, उनकी शिकायत राज्य आयोग में दजऱ् करायी जा सकती है। ...और जहां प्रॉपर्टी की कीमत एक करोड़ से ज्यादा होगी, उसकी शिकायत राष्टï्रीय आयोग में ही दर्ज  करायी जा सकती है। यह शिकायत  बिल्डर्स के खिलाफ व्यक्तिगत या फिर सामूहिक रूप से कर सकते हैं। बशर्ते शिकायतें एक ही बिल्डर के खिलाफ हों, इसके लिए बिल्डर ग्रुप एसोसिएशन या कंज्यूमर एसोसिएशन की मदद ली जा सकती है। इसके अलावा ग्राहक कोर्ट में भी मुकदमा दर्ज  कर सकता है। साइट का फोटो लेकर कोर्ट में दिखाया जा सकता है कि बिल्डर ने क्या वायदा किया था और वर्तमान में उसकी कार्य की स्थिति क्या है। इन सभी साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट में अपनी शिकायत को मज़बूती प्रदान कर सकता है। उपरोक्त कानून के माध्यम से ग्राहक शिकायत दजऱ् कर अपने मामले का निपटारा करा सकता है। 
खरीददार बने जागरुक 
शहर में अपना फ्लैट हो, यह भला कौन नहीं चाहता, लेकिन फ्लैट बुक करने से पहले कंपनी या संबन्धित बिल्डर्स के बारे में और लोकेशन के बारे में जितनी बेहतर जानकारी होगी, उतने ही बेहतर नतीज़े पर आप पहुंच सकेंगे। प्रॉपर्टी के विज्ञापनों में दिये गये टेलीफोन नंबर व वेबसाइट पर स्वयं सर्च करके और प्रॉपर्टी एजेंट्स एवं डीलर्स की सहायता से अ'छी तरह से जानकारी लेना न भूलें।  दूसरी बात यदि आप प्रॉपर्टी फाइनेंस करा रहे हैं तो फाइनेंस कंपनियों व बैंकों की स्कीमों के बारे में यानि लोन स्कीम में कुछ हिडन कॉस्ट भी हो, उसकी भी पूरी जानकारी लें। ऐसे में आप बिल्डर्स की धोखाधड़ी से बच सकते हैं। 

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

ऐसा भी होता हैï?

मुकेश कुमार झा
लेकिन सच्चाई की जूबां लोक और इहलोक दोनों में कायम है और नासमझ होते हैं, जो इस बातों पर भरोसा नहीं करते हैं। यहां प्रस्तुत कहानी इसी बात को केन्द्र में रखकर लिखी जा रही है। ++++++++++++

कहते हैं न, झूठ के हाथ पांव नहीं होते हैं, उसे सहारे की ज़रूरत होती है।  इसका सहारा भी कुछ ऐसा होता है कि आप इसके जाल फंसते चले जाते हैं और आप कितना भी प्रयास करो इससे निकलने की आप इसके भ्रम उलझते ही चले जाएंगे। यह एक ऐसा मकडज़ाल है, जिससे दूर रहना ही बेहतर होता है, लेकिन मानव की प्रवृति ही कुछ ऐसी होती है कि इससे वह बहुत दूर नहीं रह सकता है। वर्तमान में झूठ  शाश्वत सत्य बनता जा रहा है  परन्तु हमारे पौरणिक ग्रंथ मुण्डोकोपनिषद में कहा गया है 'सत्मेव जयतेÓ यानि सदा सत्य की ही जीत होती है । अंतत: इस बात पर आकर ही झूठ की कहानी खत्म होती है।  यह अलग बात है कि इस बात की सत्यता भी बहुत बाद में और कठिन दौर के बाद साबित होती है, लेकिन सच्चाई की जूबां लोक और इहलोक दोनों में कायम है और नासमझ होते हैं, जो इस बातों पर भरोसा नहीं करते हैं। यहां प्रस्तुत कहानी इसी बात को केन्द्र में रखकर लिखी जा रही है। 

समय का चक्र ऐसा चलता है कि आपके लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह नहीं मिल पाता है जो आप चाहते हैं। शायद इस चक्र को ही भाग्य की नियति मान लिया जाता है। यह अवधारणा कर्मवाद के सिद्धांत से काफी अलग होता है, इसलिए तुलसीदास जी ने रामायण में कहा कि ' होई है सोई जो राम रचि राखाÓ।  कहीं न कहीं यह कथन भाग्यवादी होने का सबूत देता है। लेकिन कहते हैं न---यदि हर इंसान को अपनी सोच और समझ के हिसाब से सब कुछ मिल जाय तो फिर दुनिया-दारी का क्या होगा। इसी दुनिया-दारी का एक भाग है- मिस्टर अशोक। अशोक बचपन से ही कर्म में आस्था रखता था। उसके  लिए गीता का उपदेश 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनÓ (कर्म पर तेरा अधिकार है फल पर नहीं )में ही जि़न्दगी का सार नज़र आता। साधारण घर का होने के कारण उसे पता था कि मेहनत से ही मुकाम बनाया जा सकता है और आगे बढऩे के लिए इसके सिवाय कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। लगन और मेहनत को आत्मसात कर उसने अपनी जि़न्दगी के फलसफे बना लिया।  अपने आप में सीमित रहने वाला अशोक वक्त के साथ कदमताल करने के लिए अपनी पढ़ाई पर खूब मेहनत करता था। कई सालों के बाद उसका मेहनत रंग लाया। मेहनत ने ही उसे एक बेहतर मुकाम दिलाया। उस मुकाम पर पहुंचकर वह संतुष्टï रहने लगा। उसे सरकारी नौकरी मिल गई। लेकिन वक्त के साथ रफ्तार में बने रहने के लिए वह संघर्ष ही कर रहा था। इस संघर्ष में इसे मजा भी आ रहा था। कहावत है, यदि आपके जीवन में आगे बढऩे के लिए संघर्ष न हो तो जि़दगी का मजा नहीं रह जाता। वह भी इसी सिद्धंात को आदर्श  मानकर जि़दगी के ऊबर-खाबर रास्ते पर चल पड़ा था।  लेकिन रह-रह कर उसे पुरानी दिनों की बात याद आती थी। जब गांव के पाठशाला में गुरूजी आदर्शवाद और सिद्धांत से बच्चों को प्रेरित करने के लिए नीति-उपदेश के पोथी पढ़ाते थे। इस किताब में ज्यादातर पंचतंत्र और हितोपदेश के साथ अन्य सत्यनिष्ठïा और चरित्रवान व्यक्तियों का जीवन चरित होता था। लेकिल जब वह इन सभी बातों की तुलना बदलते वक्त के साथ करता तो वह समाज में चल रहे परिवर्तन को देखकर असहज हो जाता। उसे गुरूजी की कही हर एक अच्छी बात वक्त के थपेड़ों से टूटकर बिखर जाने जैसा लगता। मां-बाबूजी की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए अशोक ने  कभी अपनी वसूलो और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।  खैर- अशोक जानता था कि यह रोज की दिमागी खुराक की सोच है, जो बचपन में घूटी के रूप में पिलाई गई है। अशोक ये सारी बातों को सोच ही रहा था कि घड़ी की अलार्म ने उसकी तंद्रा भंग कर दी। वह तुरन्त ऑफिस जाने
के लिए तैयार होने लगा। वह तैयार होकर बस स्टॉप पर चल पड़ा था। बस स्टॉप पर प्रत्येक दिन की भांति चहल- पहल थी। कुछ देर के बाद एक बस आई, फिर क्या था, बस में चढऩे के लिए आपाधापी का माहौल बन गया। सब को जल्दी थी, सभी चाहते थे कि  बस में किसी प्रकार से सीट मिल जाए लेकिन न तो सीटों की संख्या बढ़ाई जा सकती थी और न यात्रियों की संख्या घटायी जा सकती थी। खैर- किसी प्रकार से अशोक बस में चढऩे में कामयाब रहा। बस भी वायुयान की भांति सड़क पर कुछ देर के बाद फर्राटे भरने लगी। करीब एक घंटे के बाद बस उसको ऑफिस के सामने वाली स्टॉप पर उतार दिया। बस दस मिनट की दूरी पर उसका ऑफिस था। वह करीब दस मिनट के बाद ऑफिस में नियत समय पर हाजिरी वाली रजिस्टर्ड में अपना नाम दर्ज कर चुका था। वह जिस डिपार्टमेंट में काम करता था, उसके बारे में एक बात काफी मशहूर थी कि देश में सबसे ज्यादा मलाई आप यहां से ही काट सकते हैं। उसे नौकरी कुछ दिन बीत जाने के बाद यह धीरे-धीरे पता होने लगा था कि क्यों लोग इस डिपार्टमेंट को मलाईदार बताते हैं। कुल मिलाकर यह सरकारी दफ्तर भ्रष्टïाचार का अड्डïा था। कभी-कभी तो छोटा-मोटा काम को करवाने के लिए उसके पास भी गिफ्ट का पैकेज आने लगा लेकिन अशोक के अंतरआत्मा ने इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया। ईमानदारी के कारण अशोक आज इन बुलंदियों को नहीं छू पाया था, जहां बाकी उसके कुलीग पहुंच चुके थे। उसके कुलीग कार, बंगला और हाइ-फाई लाइफ स्टाइल का भाग बन चुके थे।  अशोक अभी भी बदलने को तैयार नहीं था। ऑफिसों में लोग-बाग इसको अलग मिट्टïी से बने हुए इंसान कहते। कुछ दिन के बाद ऑफिस में एक सज्जन अधिकारी आए। देखने से एकदम संभ्रांत और उच्च कुल के लग रहे थे।  वह बात बनाने के फन में माहिर थे और ऊपर के अधिकारी के चमचागिरी में अव्वल दर्जे के थे। सच में देखा जाय तो चमचागिरी में कोई पदक होता तो हर बार के प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक उनकी झोली में होती। इन सारी खूबियों के कारण महाशय बातों ही बातों में किसी को फांस लेते थे। उनकी महिमा को देखकर अशोक समझ चुका था कि यह एक नंबर का पहुंचा हुआ चीज़ है और उसकी सेटिंग यहां नहीं, ऊपर तक है।  फिर तो दरवार रोज़ 

सजने लगी।  इनके महफील में चमचा रूपी जीव चार चांद लगाने लगे। कुल मिलाकर यह ऑफिस नहीं, चमचों का अड्डïा था। कुछ दिन के बाद ऑफिस में एक घटना घटी।  कुछ महत्वपूर्ण फाइलों की चोरी हो गई। इस फाइल का डाटा रिकॉर्ड कम्प्युटर पर भी नहीं था। इस घटना में साजिश की बू आने लगी।  इस फाइल का रिकॉर्ड मिस्टर राजू के पास ही रहता था। उसे पता था कि यह फाइल कितना महत्वपूर्ण है। इस फाइल में कई महत्वपूर्ण कंपनियों के वित्तिय रिपोर्ट थी। कुल मिलाकर टैक्स के मामले में चोरी करने वालों का रिकॉर्ड था।  भाई, जब ऑफिस में ऐसे-ऐसे महारथी हों तो कुछ भी संभव था।  अशोक को जब इस बात का पता चला तो वह समझ गया कि यह किसकी करतूत हो सकती है। पूरी बात की जिम्मेदारी बेचारे राजू पर थौंप दिया गया। राजू को पता था कि यदि वह समझौता वाली नीति अपनाता है तो पूरे जांच-पड़ताल का ऐसा दौड़ चलेगा कि फाइल का मामला फाइल में ही दबकर रह जाएगी। लेकिन इंसानियत भी कोई चीज़ होती है। इस बार अन्य बार की तरह राजू ने समझौता की नीति को मानने से इनकार कर दिया।  यह बात ऑफिस में जंगल में आग की तरह फैल गई कि राजू ने क्रांति कर दिया है।  उसे सत्य और निष्ठïा की बीमारी लग गई है। फिर होना क्या था, एक से बढ़कर एक चोर, उसे दुनिया-दारी समझाने लगे। अंत में अधिकारियों की जमात भी पहुंची, जिसमें नए-नए बहाल हुए बगुला भगत भी धर्म और  अध्यात्म के  सहारे राजू को बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन सब व्यर्थ। राजू पर इन सारी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने सिद्धांत पर अंत तक अटल रहा। राजू, सिर्फ और सिर्फ अशोक को ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठï मानता था। बाकी सबको वह भलीभांति जानता था लेकिन ऑफिस में कुछ लोग थे, जो राजू के इस निर्णय को ऊपर से समर्थन नहीं कर रहे थे लेकिन कहीं न कहीं मन ही मन राजू की बात को स्वीकार कर चुके थे। उसने ऑफिस के इतिहास को अशोक सामने उड़ेल दिया। लेकिन अशोक भी कुछ नहीं कर सकता था। 
राजू इस बात को भलीभांति जानता था। 
कुछ दिनों के बाद राजू के खिलाफ,ऑफिस में  तिकड़म का ऐसा चाल चला गया कि वह दिन-प्रतिदिन फंसता ही चला गया।  बेचारे ने ऊपर तक बात पहुंचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन उसे आश्वासनों के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा। वह एक प्रकार से भंबर जाल में फंस चुका था, जहां से निकालना मुश्किल ही नहीं, असंभव था। वह मानसिक अवसाद से ग्रसित रहने लगा। आखिर कब तक अकेला दुनिया से जंग लड़ता। वह कुछ दिनों के बाद तंग आकर खुदकुशी कर ली। इस आकस्मिक मौत को कितनों ने जश्न के रूप में मनाया तो कितनों ने राजू के बेवकुफी से भरा कदम बताया। लेकिन उस दिन के बाद से ऑफिस का वातावरण में खास प्रकार की मायूसी सी छा गयी। वहां का मंजर अपने-अपने आप बदलने लगा। पूरा का पूरा ऑफिस में अब मातम पसरा हुआ नज़र आने लगा। ऑफिस में रोज कुछ न कुछ अनहोनी घटनाएं होने लगी। 
यहां पर रहने वाले सिक्युरिटी गार्ड रामदीन ऑफिस के बदलते माहौल से बेफ्रिक होकर रात में सोने के क्रम में ही था। तभी अचानक जोर से हवा चली। पूरा का पूरा वातवरण काली स्याह के बादलों में लिपटा हुआ नज़र आने लगा। सन्नाटे को चिरती हुई आवाज़ भी उसके कानों में स्पष्टï सुनाई देने लगी। यह आवाज़ काफी डरावनी थी। हंसी और रोने के सम्मिलत स्वर ने पूरे इलाके को झकझोंर कर रख दिया।  उसने एक काली स्याह छाया को ऑफिस में जाते हुए देखा। वह कुछ देर के बाद ऑफिस के खिड़की से झांक कर देखा तो उसके होश उड़ गए। ऑफिस में राजू को बड़े मजे से कुर्सी पर बैठा और उसने इधर-उधर नज़र दौडा़ई, मानों कोई चीज़ को ढूंढ रहा हो। कुछ देर खामोश बैठने के बाद, उसने एक विचित्र हंसी, हंसी। यह हंसी इतना असामान्य था कि सुनकर किसी का भी रूह कांप सकता था। उस विचित्र हंसी के बाद ऑफिस का वातावरण अपने आप बदलने लगा। पूरा का पूरा ऑफिस काली चादर में लिपटी हुयी नज़र आने लगी। चारों तरफ धुंआ फैल गया। माहौल संगीन हो चला था। कुछ देर बाद ऑफिस से कोई चीज़ टूटने की आवाज़ जोर-जोर से आने लगी। 
रामदीन उत्सुकता से ऑफिस के बांयी ओर वाली खिड़की को थोड़ा और सरका देखा तो उसके होश फख्ता हो गए। ऑफिस का पूरा समान हवा में तैर रहा था। टेबल और कुर्सी आसमान में हिचकोले भर रहा था। कम्प्यूटर से धुंआ उठने लगा था, जैसे पूरे कम्प्यूटर में शॉट-सर्किट हो गया हो। यह पूरा दृश्य देखकर रामदीन डर से कांपने लगा। राजू ने ऑफिस में कोई भी समान को सुरक्षित नहीं रहने दिया। एक -एक कर उसने सब कुछ नष्टï कर दिया। उसके बाद राजू ने भयंकर हंसी हवा में उड़ेल दी। उसकी हंसी वातावरण में विष घोलने लगी थी और रामदीन का माथा चक्करघन्नी की तरह घूमने लगा। कुछ देर बाद उसे लगा कि उसका दिमाग अनंत गहराइयों में खोता जा रहा है। सुबह होने पर जब चपरासी ने ऑफिस का मैन गेट खोला तो वह अंदर के दृश्य को देखकर चौंक गया। सब-कुछ तहस-नहस हो चुका था। वह जब इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो उसने खिड़की के सामने  रामदीन को बेहोश पाया। उसने तुरन्त नल से पानी लाकर उसके चेहरे पर छिटें मारे और कुछ देर के बाद रामदीन होश में आया। 11 बजते -बजते ऑफिस में सारे लोग आ चुके थे। रामदीन ने रात वाली घटना क्रम को बताया तो सबके होश उड़ गए। सभी लोगों को यह बात समझते देर न लगी कि राजू की आत्मा बदले की आग में जलकर ऐसा कर रहा है। उसके बाद तो जो राजू के फंसाने के दुश्चक्र में जो शामिल थे, सभी की पांव तले ज़मीन खिसक गई। यहां पर दिन भर सिर्फ और सिर्फ राजू की आत्मा की बात होती रही। सब बात करने में मशगूल थे कि तभी खबर आई कि ऑफिस का एक साथी कार एक्सिडेंट में मरा जा चुका है। यह एक्सिडेंट में मारे गए व्यक्ति का राजू के मामले में काफी गहरे ताल्लुकात थे। रिपोर्ट के अनुसार, उसकी मौत, स्पीड ड्राइविंग का नतीजा माना गया लेकिन सचाई  यह थी कि राजू ने बदला लेते हुए 

उसे दर्दनाक मौत दी थी। उसका चेहरा इस कदर बिगड़ चुका था कि लोगों के पहचान में नहीं आ रहा था। कार के ऊपर खरोंच तक नहीं आई थी। यह मामला रहस्यमयी सा लगता था। ऑफिस की दुदर्शा को देखकर वरिष्ठï अधिकारियों के आने के बाद एक मीटिंग बुलाई गई। मीङ्क्षटग में कुछ लोगों के चेहरे पर मौत की रेखा स्पष्टï नज़र आ रही थी। सर्वप्रथम इस मीटिंग में दोनों सिक्युरिटी गार्ड रामदीन से पूछा गया कि तुम रात में यहां नहीं थे। उसने एक सांस में रात की पूरी घटना सुना दी। इसे सुनने के बाद सभी के रौंगटे खड़े हो गए। लोगों को समझ में आ चुका था कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है। दिन -प्रतिदिन यहां का माहौल काफी डरावना होता जा रहा था। राजू की आत्मा इन लोगों को चुन-चुन कर मारने लगा जो उसे अकाल मौत की तरफ ले गया था। रोज ही किसी न किसी की मौत की खबर आने लगी। इन लोगों की मौत विभत्स रूप में हो रही थी। रोज कोई न कोई रहस्यमयी रूप से कोई घर से लापता हो जाता या कोई घर लौट कर ही नहीं आ पाता। एक दिन दोपहर का समय था। ऑफिस के सभी कर्मचारी लंच कर रहे थे कि तभी अचानक ऑफिस से चीखने की आवाज़ आई। सभी आवाज़ की तरफ भागे। सामने देखा तो सबके होश फख्ता हो गए। अनिष्का बेहोश की हालत में ऑफिस के फर्श पर पड़ी हुई मिली। उसे किसी प्रकार से यहां से उठाकर केबिन में लाया गया। पानी के छिंटे चेहरे पर मारे गए । कुछ देर के बाद उसे होश आया। उसने कहा कि यह ऑफिस राजू के भटकती आत्मा का सैरगाह बन चुका है। मैं जब बाथरूम में जा रही थी । अचानक आइने के सामने एक विभत्स चेहरा देखा। यह चेहरा धीरे-धीरे परिवर्तित होकर राजू का रूप ले लिया। नल से अपने आप पानी के बदले खून आने लगा। मैं जब दूसरे बाथरूम में गईं तो वहां भी वही हालात थे। मैैं दौड़कर भागी कि सामने राजू को चेहरा और डरावना और विकृत हो गया, जिसको देखकर में बेहोश हो गई। इतना बोलते ही फिर से ऑफिस का वातावरण परिवर्तित होने लगा। यहां का वातावरण काफी डरावना हो चुका था। राजू के हंसने की आवाज़ स्पष्टï सुनी जा सकती थी। सबके कानों में उसकी आवाज़ विष घोलने लगी। डर के मारे सबके हालात बुरे हो चुके थे। एक-एक कर सभी भागने लगे लेकिन मुख्य द्वार बंद हो चुका था। सबकी सांसे डर के मारे एक प्रकार से रूक चुकी थी। सभी को लगने लगा कि अब प्राण नहीं बचेंगे, तभी अचानक अशोक ने मुख्य द्वार पर दस्तक दी। उसके हाथ लगते ही मुख्य द्वार अपने आप खुल गया। लोग जान बचाकर भागे। उस दिन के बाद इस ऑफिस में कोर्ई भुलकर कदम नहीं रखा। जो भी उसके आस-पास जाने का दु:साहस किया, बचकर नहीं लौटा। भ्रष्टïाचारियों का यह अड्डïा अब हॉन्टिड प्लैस में बदल चुका था। कुछ दिनों के बाद अशोक ने यहां से ट्रांसफर करा ली। नया स्थान पर जाने के बाद अशोक अपने मेहनत और लगन से जल्दी ही वरिष्ठï अधिकारी बन गया। वह अपने सिद्धांतों और आदर्शों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। अपने सत्यनिष्ठïा और कर्तव्यपराणयता के कारण कुछ महीनों के बाद उसे राष्टï्रपति ने पुरस्कार भी मिला। लेकिन उसे अभी तक राजू की शहादत याद है और उसका बदला भी। 

संपत्ति के अनेक साझेदार

जब संपत्ति के कई साझेदार हो तो समस्याएं बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया में ढंग से पता नहीं चल पाता है कि संपत्ति का असली मालिक कौन है। कई बार तो मामले कोर्ट तक पहुंच जाते हैं, जहां पर असली मालिक को भी संपत्ति का हक लेने में कई साल तक लग जाते हैं। इससे बेहतर है कि सब कुछ आपस में ही समझौते के तहत निपटारा कर लिया जाय। इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर आप गौर करें तो यह समस्याएं आसानी से सुलझ सकती है। +++++++++++++++++++++

कई लोग बजट  ज्यादा न होने की स्थिति में साझेदारी करके प्रापर्टी में निवेश करते हैं। हालांकि इस दौर पर आपको इसके तमाम कानूनी पहलुओं के बारे में भी जानकारी जरूर रखना चाहिए। अगर किसी प्रापर्टी का मालिकाना हक एक से 'यादा व्यक्तियों के नाम हो तो इसे 'वाइंट ओनरशिप या साझा मालिकाना हक कहतें हैं। पैतृक संपत्ति में बेटे व बेटियों का साझा व समान हिस्सा होता है। किसी भी प्रापर्टी का कोई को-आनर के नाम नाम हस्तांतरित कर सकता है। यह हस्तांतरण पाने वाला व्यक्ति प्रापर्टी का को-आनर हो जाता है। बंटवारे के जरिए को-आनरशिप को इकलौते मालिकाना हक में भी तबदील किया जा सकता है। अगर किसी प्रापर्टी में किसी का शेयर है तो इसका मतलब हुआ कि उस प्रापर्टी का 'वाइंट ओनरशिप है। को-आनर के पास प्रापर्टी पर कब्ज़े का अधिकार, उसका इस्तेमाल करने का अधिकार और यहां तक कि उसे बेचने तक का अधिकार होता है।
टेनेंट्स इन कामन को-आनरशिप का एक प्रकार है लेकिन इस तरह की को-आनरशिप के बारे में कानूनी दस्तावेजों पर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया गया है। पूरी प्रापर्टी में प्रत्येक टेनेंट इन कामन का अलग-अलग हित होता है। अलग-अलग हित होने के बावजूद प्रत्येक टेंनेंट इन कामन के पास यह अधिकार होता है कि वह पूरी प्रापर्टी का पजेशन रख सकता है या उसे इस्तेमाल कर सकता है।
यह जरूरी नहीं कि पूरी प्रापर्टी में प्रत्येक टेनेंट इन कामन का अलग-अलग लेकिन बराबर हित हो। पूरी प्रापर्टी में उनके हक एक दूसरे से कम अथवा ज्यादा भी हो सकते हैं। उन सबके पास अपने-अपने हित दूसरे के पास हस्तांतरित करने का अधिकार भी होता है। 

टाइटिल यानि नो चिंता, नो फिक्र



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 प्रॉपर्टी की दुनिया में टाइटिल काफी महत्व रखता है। प्रॉपर्टी की खरीदारी लीगल है या नहीं, इसके प्रमाण को साबित करने में इसकी भूमिका अहम् हो जाता है। प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच को एक प्रकार से प्रॉपर्टी के मालिकाना हक की जांच करना भी कहते हैं। यह जांच कोई भी कर सकता है। आमतौर पर टाइटिल की जांच या तो प्रॉपर्टी खरीदने वाला व्यक्ति कराता है या फिर उस पर लोन देने वाला।+++++++++++++++++++
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले कई महत्वपूर्ण बातों को ध्यान रखना काफी ज़रूरी माना जाता है। इसके लिए कई महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट की जांच-पड़ताल करना आवश्यक है। इसी महत्वपूर्ण जांच-पड़ताल करने की श्रेणी में टाइटिल का नाम भी शामिल किया जाता है। प्रॉपर्टी की मालिकाना हक को पुख्ता करने में इसकी महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। कानूनी रूप से प्रॉपर्टी पर अपना हक जमाने का यह एक सशक्त माध्यम है। प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच करने से यह पता किया जा सकता है कि प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक पूरी तरह स्पष्ट है या नहीं और इस पर कोई विवाद तो नहीं है। इससे प्रॉपर्टी खरीदने के बाद कोई झगड़ा पैदा होने का डर नहीं रहता। किसी भी प्रॉपर्टी की डील फाइनल करते समय सबसे पहले आप यह देखें कि  डील करने वाला व्यक्ति प्रॉपर्टी को कानूनन बेच भी सकता है या नहीं। इसके बाद गौर करें कि प्रॉपर्टी का वैध टाइटिल उस व्यक्ति के ही पास है या नहीं। टाइटिल की जांच करने के कई तरीके होते हैं। आमतौर पर टाइटिल की जांच का काम वकीलों को सौंपा जाता है। प्रॉपर्टी के टाइटिल की बेहतर ढंग से रिकॉर्ड्स की तलाश करें। प्रॉपर्टी जिस इलाके में स्थित है, उस इलाके के सबरजिस्ट्रार के कार्यालय में प्रॉपर्टी से जुड़े कागजों का होना ज़रूरी है। टाइटिल की जांच करने वाला वकील वहीं उनकी तलाश करता है। इस कड़ी में प्रॉपर्टी के सबसे पहले मालिक या पिछले 30 सालों का ब्योरा निकाला जाता है। इनमें से जो भी पहले हो, वही पर्याप्त है। इसके पीछे उद्देश्य यह जांच करना होता है कि इस समय से लेकर आज तक प्रॉपर्टी या ज़मीन किसी भी झगड़े और देनदारी से मुक्त है या नहीं। यदि आपको अगर टाइटिल के संबन्ध में ऐसी कोई आपत्तिजनक बात भी पता चले, जिसके बारे में खुद प्रॉपर्टी बेचने वाले को भी नहीं पता। उस स्थिति में बेचने वाले व्यक्ति को इसकी जानकारी देकर इस मामले को निपटारा किया जा सकता है। इस तरह प्रॉपर्टी के मौजूदा मालिक को पिछले 30 बरसों का हिसाब-किताब निकलवाने से फायदा हो जाता है। पहले तो टाइटिल की जांच करने वाले वकील 30 की बजाय 60 बरसों का रिकॉर्ड चेक करते थे, क्योंकि लिमिटेशन एक्ट के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि यदि कोई प्रॉपर्टी गिरवी रखी गई है, तो उसे मुक्त होने में 60 वर्ष का समय लगेगा। हालांकि लिमिटेशन एक्ट 1963 के आर्टिकल 61 के अंतर्गत अब यह समय सीमा घटाकर 30 बरस कर दी गई है। इतने समय बाद प्रॉपर्टी का पजेशन वापस मूल मालिक को मिल जाता है। हालांकि आजकल तैयार की जाने वाली मॉर्गेज डीड में प्रॉपर्टी गिरवी रखने का समय आमतौर पर दो से पांच बरस का होता है, इसलिए वकील 30-40 बरस का रिकॉर्ड चेक करने को पर्याप्त मानते हैं। इस मामले में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आप प्रॉपर्टी के विज्ञापनों पर भी नज़र रखें। आपने कभी-कभी अखबारों में ऐसे विज्ञापन भी देखे होंगे, जिनमें प्रॉपर्टी खरीदने वाले पक्ष का वकील खरीदार के प्रतिनिधि के रूप में यह कहता है कि उसके क्लाइंट अ प्रॉपर्टी को ब पक्ष से खरीदने जा रहे हैं। इस प्रॉपर्टी के संबन्ध में किसी किस्म की देनदारी, गिरवी होना, लीज, लीन एग्रीमेंट, गिफ्ट या किसी भी प्रकार के दावा 15 से 30 दिन के अंदर किया जा सकता है। इसके बाद किसी दावे पर विचार नहीं किया जाएगा। इस बारे में यह समझा जा सकता है कि ज़रूरी नहीं कि वास्तविक दावेदारों की नज़र इस विज्ञापन पर पढ़े, लेकिन वकील ऐसा विज्ञापन इसलिए प्रकाशित कराते हैं, जिससे बाद में कोई झगड़ा होने पर यह उनका पक्ष मज़बूत करे। टाइटिल के बारे में प्रॉपर्टी टैक्स की देनदारी एक महत्वपूर्ण भाग होता है, इसलिए इस बारे में भी गौर करें। इसके लिए आपको प्रॉपर्टी खरीदने से पहले उस इलाके के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के ऑफिस जाकर इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि प्रॉपर्टी पर किसी किस्म का कोई टैक्स तो बकाया नहीं है। इनमें हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि हो सकते हैं। यह जांच इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि प्रॉपर्टी का कंस्ट्रक्शन पूरा होने के बाद इन टैक्सों का बंटवारा दोनों पक्षों के बीच किया जाता है। उसका अनुपात कॉरपोरेशन ऑफिस से देनदारी का पता लगाने के बाद ही किया जा सकता है, जैसे- प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री की तारीख वाले दिन तक प्रॉपर्टी बेचने वाला और उसके बाद खरीदने वाला पक्ष प्रॉपर्टी के सभी टैक्स चुकाएगा। जानकारों का कहना है कि यदि आप प्रॉपर्टी खरीदने से पहले टैक्स की देनदारी की जांच नहीं करते हैं, तो इसका नुकसान आगे चलकर आपको उठाना पड़ सकता है। लंबे समय की देनदारी होने पर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन अपना पूरा बकाया वसूल करेगी, जिसे नहीं चुकाने पर आपके पास की प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार भी होता है। टाइटिल की जांच करने वाले वकील इस बात की भी जांच करते हैं कि पिछले 12 बरसों में सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी व्यक्ति ने उस प्रॉपर्टी को लेकर कोई कोर्ट केस तो दायर नहीं किया है। आम भाषा में इसे '12 सालाÓ भी  कहा जाता है। प्रॉपर्टी खरीदने के समय इनकम टैक्स क्लियरेंस के बारे में भी बेहतर ढंग से जांच-पड़ताल भी करें। इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 230 ए के अनुसार, अब किसी भी प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लियरेंस लेने की जरूरत नहीं है। फिर भी इस बात की सावधानी रखनी ज़रूरी है कि कहीं उस प्रॉपर्टी पर इनकम टैक्स या सरकार के प्रति कोई बड़ी रकम देय न हो। इसके लिए आप इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से न सही, लेकिन प्रॉपर्टी बेचने वाले व्यक्ति के चार्टर्ड अकाउंटेंट से क्लियरेंस सटिर्फिकेट ज़रूर ले लें। जमीन का आरक्षण के मामले के तह में भी जाएं। प्रॉपर्टी खरीदने से पहले संबन्धित वॉर्ड के वॉर्ड ऑफिसर से यह पता कर लेना चाहिए कि संबन्धित ज़मीन, प्रॉपर्टी या उसके किसी हिस्से को लैंड एक्विजिशन एक्ट के अंतर्गत आरक्षित तो नहीं कर दिया गया है या फिर प्रॉपर्टी को लेकर कोई अन्य नोटिस, नोटिफिकेशन, एक्शन या क्लेम तो पेंडिंग नहीं है। इन सभी बातों का यदि आप ख्याल रखते हैं, तो प्रॉपर्टी की दुनिया आपके लिए एक बेहतर वर्तमान और भविष्य दोनों लेकर आएगी। 
महत्वपूर्ण बात 
-कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले सबसे ज़रूरी काम यह है कि उसके टाइटिल को लेकर पूरी तरह से तसल्ली कर ली जाए। अगर इसमें ही कोई चूक हो गई, तो आप कानूनन ही उस प्रॉपर्टी से हाथ धो बैठेंगे। इसके जांच-पड़ताल करने के कई तरीके हैं, जिस पर गौर करने पर आपका वर्तमान और भविष्य दोनों ही सुरक्षित रह सकता है। 
-टाइटिल की जांच के लिए पहला कदम है कि आप प्रॉपर्टी के बैकग्राउंड को समझने के लिए सबरजिस्ट्रार ऑफिस इसके 30 साल का रिकॉर्ड का से चेक करें। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है कि आप प्रॉपर्टी संबन्धित कोर्ट यानि सिविल कोर्ट में जाकर इसके 12 साल का इतिहास मालूम करें। 
-प्रॉपर्टी की म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफिस में  देनदारी को भी देंखे। प्रॉपर्टी बेचने वाले के सीए से हासिल करें नो ड्यूज सर्टिफिकेट। 

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

फ्लैटस का बढ़ रहा है प्रचलन

   एक समय था जब लोगों की चाहत होती थी कि उनका एक बडा सा घर हो, उसमें खुला आंगन हो, कुछ पेड-पौधे और सैर-सपाटे के लिए भी पर्याप्त जगह भी मौजूद  हो। हांलाकि यह चाहत आज भी जीवित है और आज भी कई लोग प्लॉट खरीदकर मकान बनाने को तरजीह देते हैं लेकिन, शहरी इलाकों में तेजी से बढ रही आबादी और मकान बनाने के लिए कम हो रही जगह के कारण अब लोगों का रूख फ्लैटस की ओर बढ रहा है- इसकी दूसरी वजह प्लॉट्स की आसमान छूती कीमतें भी हैं।


दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में तो यह स्थिति और भी बदतर हो चुकी है, यहां अधिकतर लोग या तो किराए पर मकान लेकर रहते हैं या फिर बिल्डरों द्वारा तैयार किए गए फ्लैटस खरीदते हैं-प्लॉटस के लिए जगह तो लगभग समाप्त ही हो चुकी है बढती आबादी, विकास और बढती कीमतों के मिले जुले प्रभाव के कारण अब लोगों को फ्लैट कल्चर ही रास आने लगा है।
क्यों बढ रहा है चलन: भारत जैसे दिल्ली, मुंबई, जयपुर, नोएडा, गुडगांव आदि में पिछले दस वर्षों में जितने फ्लैट बने हैं इससे पहले कभी नहीं बने थे- इसका कारण बिल्डरों द्वारा लोगों की समस्या और जरूरत को समझते हुए मौके को भुनाया जाना है। दक्षिण दिल्ली स्थित एक प्रॉपर्टी डीलर सुरेश धींगडा का मानना है कि 'पिछले कुछ सालों से दिल्ली में फ्लैटस का चलन इसलिए बढा है क्योंकि एक तो यहां मकान बनाने के लिए जगह नहीं बची ऐसे में शहर में बने-बनाए मकान को कौन नहीं खरीदना चाहेगा। दूसरे, फ्लैटों में उपलब्ध सुविधाएं भी लोगों को आकर्षित करती हैं।
शहरों में खाली पडी जमीन अब तेजी से घिरती जा रही है, इसमें शॉपिंग मॉल्स, स्टेडियम,अस्पताल, शिक्षण संस्थान और अन्य विकास कार्यों के लिए जगह खरीदी जा रही है। प्रॉपर्टी डीलर धींगडा के अनुसार 'जब से दिल्ली में मैट्रो और फ्लाई ओवरों के काम ने जोर पकडा है तभी से विभिन्न विकास कार्यो में प्रगति हुई है, जिस कारण जिस जमीन की कीमत पहले तीन से चार हजार रुपए प्रति वर्गमीटर थी, वही अब बारह से पंद्रह हजार रुपए प्रति वर्गमीटर में बिक रही है।
इनमें क्या है खास :
 आकर्षक सुविधाएं- फ्लैटस की यही सबसे बडी खासियत होती है कि वहां आपको तमाम सुविधाएं आपके पहुंचने से पहले ही तैयार मिलती हैं, जिनमें पूरी तरह तैयार कमरे, बिजली और पानी का कनेक्सन व रहने के लिए पूरी तरह तैयार सुविधाएं शमिल है, वहीं प्लॉट खरीदकर मकान बनाने और उसमें अपनी जरूरतों के अनुसार तमाम सुविधाएं जुटाते समय धन और वक्त दोनों ही लगते हैं जिनका कि आज के समय लोगों के पास अभाव है।
रियल एस्टेट में  बढ रहे कम्पीटीशन के कारण भी अब कई नामी गिरामी बिल्डर अपने फ्लैटस में तमाम वह सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं जिनसे यह फ्लैटस किसी पॉश कॉलोनी से कम नहीं लगते। कुछ प्रमुख बिल्डर जैसे अंसल, जयपुरिया, डीएलएफ, ओमैक्स और गौडसंस जैसे बिल्डर अपने फ्लैटस में स्विमिंग पूल, स्र्पोटस ग्राउंड, क्लब और जिमनेजियम जैसी तमाम आकर्षक सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं।
एनसीआर के फ्लैटस तो इतने आधुनिक हैं कि इनमें अधिकतर एनआरआई ही रहना पसंद कर रहे हैं। हांलाकि इसके लिए उन्हें बहुत बडी रकम भुगतान करने पडते हैं। यह फ्लैटस अरेंज्ड व ऑथराइज्ड भी होता है। इन फ्लैटों में रोड मैप भी अवस्थित होता है, जिससे आप एक अव्यवस्थित शहर में कुछ तो सही पा ही सकते हैं। अब हरियााणा के धारूहेडा को ही लें, यहां बसाए जा रहे सेटेलाइट टाउन में आप शॉपिंग मॉल, हॉस्पिटल, स्कूल, बैंक, और तमाम बैंकों के एटीएम जैसी तमाम सुविधाएं पा सकते हैं।
सुरक्षा भी भरपूर- दिन-प्रतिदिन अपराध के बढ रहे ग्राफ को देखते हुए आजकल दिल्ली जैसे शहरों में जीना दूभर हो गया है, प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के लिए सिक्युरिटी की व्यवस्था तो कर नहीं सकता जिसके चलते चोरी, डाका होने का डर सदैव बना रहता है-इसके विपरीत फ्लैटों में चौकीदार या सुरक्षा प्रहरी की व्यवस्था होती है- साथ ही घरों के आस-पास होने के कारण चोरी जैसी वारदात भी कम ही होती है, इस प्रकार सुरक्षा की दृष्टि से भी फ्लैट लोगों की फस्र्ट 'वाइस बनते जा रहे हैं।
निवेश में भी फायदेमंद-रियल इस्टेट को फ्लैट निर्माण के चलते दिन दुगुना और रात चौगुना मुनाफा हो रहा हैं, धींगडा के अनुसार ' फ्लैट बनाने में बिल्डरों को दुगुने से भी अधिक का फायदा होता है। यदि कोई बिल्डर फ्लैट बनाने के लिए एक एकड जमीन एक करोड में खरीदता है तो उसमें वह करीब पचास फ्लैट बनाकर प्रत्येक को बीस लाख रुपए में बेचता है, ऐसे में आप स्वयं देख सकते हैं कि उसने कितना मुनाफा कमाया। Ó
दूसरी ओर, फ्लैट खरीदने वाला व्यक्ति भी घाटे का सौदा नहीं करता उसे भी शहर में रहने के लिए वाजिब दाम में एक बढिया सा मकान मिल जाता है, इससे बढकर और क्या फायदा होगा और ऐसे मेें बेचने वाला भी खुश और खरीददार भी। केवल उद्योगपति और प्रॉपर्टी में निवेश करने वाले ही नहीं, बल्कि अब तो मध्यम आय वर्ग के लोग भी इन फ्लैटों की ओर कूच कर रहे हैं।
सवाल कीमत का: दिल्ली और एनसीआर की बात करें तो यहां पिछले पांच वर्षों से कीमतों में भारी उछाल आया है। मैट्रो और शॉपिंग मॉल्स के कारण न केवल प्लॉट बल्कि फ्लैटस भी काफी मंहगे हो गए हैं। फ्लैट की कीमत एरिया लोकेशन, बिल्डर और सुविधाओं के हिसाब से तय होती है-अमूमन दो बेडरूम के फ्लैट की कीमत बारह से बीस लाख रुपए के बीच रहती है। वहीं तीन बेडरूम या इससे ज्यादा के फ्लैट जिनका क्षेत्र एक हजार वर्गफुट तक है, औसतन ४५ से ६० लाख रुपए में बिक रहे हैं। धारुहेडा में इस समय कीमत जमीन की कीमत १५०० से २००० रुपए प्रति वर्ग फुट है जो निकट भविष्य में दुगुनी होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। हांलाकि यह कीमतें लोकेशन के अनुसार घटती-बढती भी रहती हैं। इस समय दिल्ली और एनसीआर यथा गुडगांव, गाजियाबाद, धारुहेडा के इलाके में फ्लैटस की कीमत आसमान छू रही है।
शहरों की चकाचौंध-फ्लैटस के बढ रहे चलन का सबसे महत्वपूर्ण कारण लोगों के शहर में रहने की तमन्ना भी है। दूसरे राज्यों से आए अधिकतर युवा जब राजधानी जैसे शहरी इलाकों में रहने लगते हैं तो वह भी यहीं बसने का ख्वाब देखने लगते हैं। आखिर देखें भी क्यों नहीं, आजकल युवा मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे हैं जहां उन्हें मोटी रकम तन्ख्वाह के रूप में मिलती है, इससे वह आसानी से फ्लैट खरीद लेते हैं और अपनी चाहत पूरी करते हैं।
शहरों में एक वर्ग ऐसा भी है जो एक लंबे अर्से से यहां किराए पर जिंदगी बसर कर रहा है लेकिन अपना एक मकान पाने की हसरत भी मन में बिठाए रहता है। यह लोग अधिकतर रिटायरमेंट के बाद या फिर बचत के परिणामस्वरूप अंतत: फ्लैट के रूप में एक मकान हासिल कर लेता है। कुल मिलाकर इन सभी कारणों की वजह से शहरों में फ्लैट कल्चर को बढावा मिला है।
दूसरा पहलू भी-फ्लैटों में रहना और सुरक्षित भले ही हो, लेकिन सदैव आरामदायक और मनोनुकूल नहीं हो सकता। स्वनिर्मित मकान में रहने पर जितनी स्वतंत्रता हो सकती है उतनी फ्लैटस में नहीं होती। अकसर छोटी-छोटी बातों को लेकर फ्लैटस में लडाई-झगडे चलते रहते हैं। इनका कारण सीमित जगह होने के कारण हर कोई अपने हदबंदी कर लेता है ओर यदि ने किसी ने उसकी सीमा के अंदर अपना सामान रख दिया तो झगडा हो गया समझो।
फ्लैट देखने में भले ही भव्य और आकर्षक क्यों न लगते हों जब तक उनमें सुरक्षा के सभी उपाय न किए जाएं तो उनकी भव्यता भला किस काम की। मुनाफा कमाने के चक्कर में कई बिल्डर निर्माण के समय घटिया सामग्री का प्रयोग करके लोगों की जान-माल दोनों से खिलवाड करते हैं। भूकंपरोधी और अग्निशमन के तमाम उपाय करना भी बिल्डर का कर्तव्य बनता है।

स्मार्ट होम


सिमी अपनी बेटी के एयर - कंडीशंडबेड रूम में बैठकर उसे कहानी सुनाकर सुलाने की कोशिश कर रही हैं। सिमी इस कमरे में बैठकर भी अपने फ्लैट में लगे क्लोज सर्किट कैमरे की बदौलत यह देख सकतीहैं कि मुख्य दरवाजे से कौन घर के अंदर आ रहा है या बाहर निकल रहा है। सिमीयहीं बैठकर अपनी किचेन के लाइट बंद कर सकती हैं। फ्लैट के प्रत्येक कमरे में एकपैनल लगा है जिसके जरिए रिमोट कंट्रोल के इस्तेमाल से पूरे फ्लैट की लाइटिंग कानियंत्रण किया जा सकता है। पैसेज में कोई गतिविधि होने के साथ ही लाइट ऑन होजाती है। इसकी वजह पैसेज में लगा सेंसर है जो खुद ब खुद लाइट ऑन या ऑफ करदेता है। 



कार्यस्थल के अलावा घर ही एकऐसी जगह है जहां हम अपनाअधिकांश समय बिताते हैं। कार्यस्थलकी सजावट और डिजाइन आदि कोतय करना हमारे हाथ में नहीं होतालेकिन घर के डिजाइन और साज -स'जा को हम अपनी मर्जी और रूचि केअनुसार तैयार कर सकते हैं या फिरइसमें बदलाव ला सकते हैं।

सुविधा , सुरक्षा और सौंदर्य का ख्याल

स्मार्ट होम के दौर में आपका स्वागत है। इन घरों में आधुनिक तकनीक के साथ हीनवीनतम डिजाइन और कला के इस्तेमाल से सुविधा , सुरक्षा और जीवन के सौंदर्य कोबढ़ाया जाता है। तकनीक में परिवर्तन आने के साथ ही हमारे जीवन की सुखसुविधाओं में भी दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है। अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तारबढऩे के साथ ही लोगों की आमदनी भी बढ़ी है। रियल एस्टेट के बाजार में तेजी औरआकांशाओं के बढऩे के साथ ही नए मैटीरियल , गैजेट और डिजाइन सेवाओं केउपलब्ध होने से स्मार्ट होम अब भारत में वास्तविकता बन गए हैं और आर्थिक रूप सेमजबूत परिवार अब ऐसे घरों की ओर बड़ी संख्या में आकर्षित हो रहे हैं।

रियल्टी कंपनियों ने भी ग्राहकों की नब्ज पकड़कर अपनी रणनीतियों में बदलाव किएहैं। कंपनियां अब ऐसे अपार्टमेंट बना रही हैं जिनका डिजाइन ग्राहक अपनीइ'छानुसार तय कर सकता है। ग्राहक अब अपने घर के आसपास का माहौल औरसुविधाओं के लिए कुछ अधिक खर्च करने को भी तैयार हैं। इसे देखते हुए रियल्टीकंपनियां बहुमंजिला पार्किन्ग , स्मार्ट लिफ्ट , बेहतर सिक्युरिटी सिस्टम , क्लब हाउस, स्विमिंग पूल , एयर - कंडीशंड और फर्नीश्ड लॉबी के साथ साफ सफाई औरइलेक्ट्रीशियन , प्लम्बर और माली जैसी सेवाएं भी उपलब्ध करा रही हैं।इस सबसे हमारे सोचने और जीने के तरीके में बड़ा बदलाव आया है। वे दिन बीत गएजब हम अपने घर के डिजाइन के अनुसार खुद को ढालते थे। घर का डिजाइन अबइसके मालिक की जीवनशैली के अनुरूप तैयार किया जाता है और इसे बेहतर बनानेमें कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।

बाथरूम पर दिल खोल कर खर्च हो रहा है

स्मार्ट होम में बाथरूम पर खास ध्यान दिया जाता है और इसपर काफी खर्च होता है।बाजार में सैनिटरीवेयर , टाइल और अन्य सामान में बेहतरीन और आधुनिकडिजाइन मौजूद हैं। बाथरूम में गीले और सूखे भाग होते हैं। इसके साथ ही रेन शावर ,तापमान के नियंत्रण वाले बॉडी शावर और प्रेशर पंप भी लगे होते हैं। बाथटब केबाजार में बहुत से विकल्प मौजूद हैं। अब आप बाथटब में ही जैकुजी , स्टीम क्यूबिकल, संगीत , एफएम रेडियो , मिनी बार और डीवीडी प्लेयर की सुविधा का इस्तेमालकर सकते हैं। इसके अलावा वॉशबेसिन के भी बहुत से सुंदर डिजाइन मौजूद हैं।बाथरूम की सजावट पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है। बाथरूम में मैगजीन रैकऔर वजन मापने वाली मशीन भी रखी जा रही है।

होम ऑटोमेशन - तकनीक का अदभुत इस्तेमाल

होम ऑटोमेशन सिस्टम आज के घरों में आधुनिक तकनीक का शायद सबसे बेहतरउदाहरण हैं। इनमें सबसे आगे लाइटिंग और सिक्योरिटी सिस्टम हैं। होम ऑटोमेशनसिस्टम के जरिए पूरे घर की बिजली व्यवस्था पर नियंत्रण किया जाता है। इनमें टच -स्क्रीन एलसीडी मॉनीटर लगे होते हैं जिनपर पूरे अपॉर्टमेंट को देखा जा सकता है औरआप एक पॉइंट से ही इलेक्ट्रीक्लस को कंट्रोल कर सकते हैं। मोशन सेंसर के जरिएकमरे में किसी की मौजूदगी होने या न होने पर लाइट खुद ब खुद ऑन या ऑफ होजाती हैं। इसमें एक मास्टर रिमोट कंट्रोल भी उपलब्ध होता है जिससे आप अपनेएयरकंडीशनर और टेलीविजन के साथ ही लाइटिंग को भी कंट्रोल कर सकते हैं। घर की सुरक्षा में सिक्युरिटी सिस्टम अहम भूमिका निभा रहे हैं। इनमें क्लोज सर्किटकैमरों के साथ बायोमैट्रिक लॉकिंग सिस्टम और बरगलर अलार्म भी लगा होता है।सुरक्षा में कोई भी सेंध लगने पर अलार्म बज जाता है और अगर आप घर से बाहर हैंतो आपके मोबाइल पर एसएमएस के जरिए संदेश आ जाता है।

होम थिएटर : जोर पकड़ रहा है चलन

घर के किसी एक कमरे को होम थिएटर के रूप में तब्दील करने का चलन काफीलोकप्रिय हो रहा है। इसमें एक प्रोजेक्टर , सराउंड साउंड , चौड़ी और आरामदायककुर्सियां और अन्य सुविधाएं मौजूद होती हैं। होम थिएटर के साथ आप घर पर हीमल्टीप्लेक्टस सिनेमाहॉल जैसे अनुभव के साथ अपनी पंसदीदा फिल्म का लुत्फ लेसकते हैं।

सुविधाजनक किचन

रसोईघर घर का एक अहम हिस्सा होता है। आज के दौर में किचेन में आधुनिकउपकरणों के साथ ही अन्य सुविधाएं भी मौजूद होती हैं। डिशवॉशर को वॉशिंग मशीन, चिमनी को बर्नर और माइक्रोवेव को ओवन के साथ जोड़ा जा रहा है। रेफ्रीजरेटर काआकार तो बढ़ा ही है , इसके साथ ही इसमें वॉटर फिल्टर को भी जोड़ा जा रहा है।किचेन में अब आकर्षक डिजाइन वाली यूनिट लगाई जा रही हैं। इनमें आप बर्तन औरअन्य सामान रख सकते हैं।

लिविंग रूम - स्टाइल और सुविधा का संगम

लिविंग रूम में बड़े आकार वाले सोफा चलन बढ़ रहा है। इसके साथ ही बड़ी स्क्रीनवाले एलसीडी टेलिविजन को भी पसंद किया जा रहा है। इसी कमरे में एक मिनी बारको भी जगह दी जा रही है। इसमें काउंटर , बार स्टूल और अन्य सामान मौजूद रहताहै। इसके डिजाइन पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है।

बेडरूम - बदल रहा है स्टाइल
बेडरूम घर का वह कमरा होता है जहां दिनभर की थकान के बाद व्यक्ति चैन की नींद लेने के लिए पहुंचता है। बेडरूम में भी बहुत से बदलाव देखे जा रहे हैं। इसमें बड़ेआकार के बेड पर आरामदायक गद्दों और खूबसूरत बेडशीट का इस्तेमाल हो रहा है।साथ ही इसमें एलसीडी टेलिविजन , मसाज चेयर , परफ्यूम कैबिनेट , डिजाइनर पर्दोंको भी जगह दी जा रही है। ब'चों के बेडरूम को उनकी उम्र और रूचि के अनुसारडिजाइन किया जा रहा है। ब'चों की स्टडी टेबल और लाइब्रेरी भी बेडरूम में भी मौजूद होती है।

साज - सज्जा  में बढ़ रहा है कला इस्तेमाल
घर की सजावट और इसमें सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए पेंटिंग और कला कीअन्य वस्तुओं के साथ ही फेंग शुई का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। घर के डिजाइनमें कला को विशेष महत्व मिलने लगा है। यह कहा जा सकता है कि अगर आपके पासधन की कमी नहीं है तो आधुनिक सुविधाओं और नए डिजाइन के साथ आप अपनेसपनों के आशियाने को हकीकत में तब्दील कर सकते हैं।

घर लेते समय यह बात भी जानें



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घर का सपना हर एक किसी का होता है। इस सपने को पूरा करना इतना आसान नहीं है। खासकर, आज -कल की बढ़ती महंगाई में। लेकिन इसके साथ लोगों की आमदनी में भी अच्छी -खासी बढ़ोत्तरी हो रही है। घर लेना पहले जि़न्दगी  की अंतिम पड़ाव माना जाता था, पर आज के दौड़ में युवा पीढ़ी 30-35 साल के होते ही घर लेने के बारे में सोचने लग ता है। इसके पीछे दुनिया का अर्थशास्त्र काम करता है। इन सभी बातों के साथ घर लेने के समय कुछ महत्वपूर्ण बातें भी काफी मायने रखती हैं- जानते हैं कैसे। 
जि़न्दगी भर  की  जमा-पूंजी का सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में घर होता है। एक अदद आशियाने के सपने का सकार करना आज कल लोगों  का मुख्य ध्येय बनता जा रहा है। खासकर, इस माममे में युवा पीढी  तीस की उम्र के आसपास ही इसकी योजना बनाने लग ते हैं। स्मार्ट बैंकिंग  और हाउस लोन ने उनके इस सपने को पूरा करने के लिए ज़मीन भी तैयार की है। बड़े शहरों में मकानों और फ्लैट्स की एक सीमित क्षमता होने के चलते ऐसे लोगों  के लिए आसपास के इलाकों में जाने का विकल्प बचता है। लेकिन यहां कुछ महत्वपूर्ण बातों पर गौर करें तो आपका वर्तमान और भविष्य दोनों ही सुरक्षित रहेगा । जिस डेवलपर से आप फ्लैट लेने जा रहे हैं, सबसे पहले बाज़ार में उसकी विश्वसनीयता की जांच कर लें। उसने पहले कौन से प्रोजेक्ट तैयार किए हैं, ये ज़रूर देखलें। अगर फ्लैट्स निर्माणाधीन हैं तो यह पता कर लें कि इससे पहले उस डेवलपर ने अपने प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे किए या नहीं। उन प्रोजेक्ट्स में रहने वालों लोगों से मिलकर यह पता कर लें कि क्या उन फ्लैट्स में वे सारी सुविधाएं मौजूद हैं, जिनके वादे किए गए थे। यह भी पता कर लें कि वह डेवलपर ग्रुप  हाउसिंग  या टाउनशिप प्रोजेक्ट्स से जुड़ा हुआ है अथवा नहीं। डेवलपर की विश्वसनीयता जांचने के बाद कानूनी पहलुओं को देखना भी ज़रूरी है। एक डेवलपर को तमाम विभागों  जैसे, नगर निगम, वन, पर्यावरण आदि से इजाजत लेनी पड़ती है। यह देख लें कि उसकी लापरवाही की वजह से बाद में आपको किसी कानूनी पचड़े में न फंसना पड़े। इसके साथ ही यह भी जांच लें कि प्रोजेक्ट को बैंक से लोन मिला है या नहीं। दरअसल यदि बैंक ने लोन दिया है तो इसका मतलब यह होता है कि प्रोजेक्ट के लिए कानूनी औपचारिक ताएं पूरी कर ली ग ई हैं। यह भी ज़रूरी है कि प्रोजेक्ट निर्माणधीन होने की स्थिति में डेवलपर के साथ एग्रीमेंट  साइन कर लें। ये काम आप जितनी जल्दी कर लें उतना ही अच्छा  है क्योंकि साइन करने के बाद आप समय समय पर प्रोजेक्ट की ग ति देख सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि आपका फ्लैट आपकी मर्जी के मुताबिक बन रहा है या नहीं। आपको फ्लैट की वास्तविक लोकेशन की जानकारी भी होनी चाहिए ताकि डेवलपर उसमें कोई बदलाव न कर सके। इस बात का ध्यान रखें कि एक बार कब्ज़ा मिल जाने के बाद आपको लोकेशन चार्ज, क्लब मेंबरशिप या कारपार्किंग  के नाम पर अलग  से पैसा न देना पड़े क्योंकि डेवलपर आपसे छिपाकर इस तरह का घालमेल कर सकते हैं। इसके साथ ही उस प्रॉपर्टी पर आपको कितना टैक्स देना पड़ेगा, यह भी पता कर लें। 
खरीदते समय याद रखें
-प्रॉपर्टी का चयन-यह निर्धारित करना सबसे जरूरी है।
-प्री लांच प्रॉपर्टी की खरीदारी-यह प्रॉपर्टी बाजार के रेट से 10-15 प्रतिशत सस्ती होती है।
-ब्रोकर फीस-प्रॉपर्टी के हिसाब से होती है।
-खरीदारी के लिए बजट तैयार करना 
-शब्दों के जाल में फंसने की बजाय यह सुनिश्चित कर लें कि जो प्रॉपर्टी आप लेने जा रहे हैं, उसके लिए आपको कितना भुग तान करना होगा ।
-टोकन मनी -बुकिंग  तय होने पर इसका भुग तान करना होता है। प्रापर्टी की कीमत के हिसाब से 50,000 से पांच लाख के बीच हो सकती है।
-डाउन पेमेंट - निर्माणाधीन और तैयार फ्लैट्स के लिए डाउन पेमेंट की दर अलग  होती है।
-बैंक लोन - बैंक से लोन लेने की प्रक्रिया टोकन मनी देने से पहले ही पूरी कर लेनी चाहिए।
-कुछ विश्वसनीय बिल्डर्स का बैंक से समझौता होता है, जिसके चलते वह इस काम में आपकी मदद भी कर सकते हैं।
-प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन-डाउन पेमेंट और बैंक लोन के बाद प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन करा लें ।
-फ्लैट का कब्ज़ा -सभी सुविधाओं को जांच लें।
-बिल्डर द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं 
-यह देख लें कि बिल्डर बाद में कि तने समय तक किसी सेवा के लिए जि़म्मेदार होगा । हाउसिंग  सोसाइटी का निर्माण सोसाइटी एक्ट के तहत बिल्डर सोसाइटी का निर्माण कराते हैं।
क्या आप जानते हैं
डिलीवरी की तारीख
बिल्डर के लिए यह अनिवार्य होता है कि वह अपार्टमेंट की बुकिं ग  के समय खरीदार के करार में डिलीवरी की तारीख का वर्णन करें। लेकिन बिल्डर को किसी भी देरी के लिए कुछ भुग तान करना होगा यह शर्त में अनिवार्य नहीं होता।
निश्चित मुआवजा
बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें बिल्डर ने प्रोजेक्ट में देरी की और खरीदने वाले को अधर में लटका दिया। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी देरी के लिए मुआवज़ा मिले तो डिलीवरी तारीख की शर्त के साथ मुआवजे की शर्त को भी करार में शामिल करें।इस बात को उस वक्त भी दिमाग  में रख सकते हैं जब आप बिल्डर का चुनाव करते हैं। याद रखें यह तभी लागू  होगा जब बुकिंग  प्रोजेक्ट के सॉफ्ट लॉन्च के दौरान की गई हो। प्रोजेक्ट की औपचारिक घोषणा के पहले की स्थिति इसके तहत आती है। सामान्य रूप से बिल्डर इस दौरान छूट भी देते हैं।
कितना मुआवजा होगा ठीक ?
मुआवजे की ग णना करने के दो रास्ते हैं। पहला यह कि मुआवजा फ्लैट के किराये के लग भग  बराबर होना चाहिए। दूसरा तरीका यह होता है कि मुआवजा 5 से 7 रुपये प्रति वर्ग  फीट होना चाहिए।होम लोन लेने से पहले पूरे खर्च का आकंलन करना ज़रूरी है। इसके लिए बैंक चुनते समय ज्यादातर ग्राहक  अपना ध्यान सिर्फ ब्याज दर पर ही रखते हैं जबकि लोन के साथ कुछ दूसरे खर्च भी जुड़े होते हैं, जिनके बारे में भी जानकारी होना
ज़रूरी है-
एप्लीकेशन फीस
एप्लीकेशन फीस वह राशि है, जो लोन देने वाली कंपनी या बैंक लोन की एप्लीकेशन के साथ चार्ज करते हैं। कुछ बैंक, फीस के तौर पर निश्चित रकम लेते हैंं जबकि कुछ बैंक फीस के तौर पर कुल लोन अमाउंट का .5 प्रतिशत से .7 प्रतिशत अमाउंट लोन की एप्लीकेशन पर चार्ज करते हैं। यह अमाउंट आामतौर नॉन रिफंडेबल होता है।
प्रोसेसिंग  फीस
प्रोसेसिंग  फीस में डॉक्यूमेंट वेरीफिकेशन, क्रैडिट कैपेसिटी, प्रॉपर्टी की जांच और पहले किए ग ए लोन्स आदि से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए फीस ली जाती है। इसके लिए हर लोन कंपनी के पास लीग ल और फाइनेंस एक्सपटर््स समेत प्रशासनिक स्टॉफ की टीम होती है। 
कितनी राशि पर ब्याज
आज के दौर में बैंक कि सी भी प्रॉपर्टी के लिए शत प्रतिशत फाइनेंस नहीं कर रहे हैं। बल्कि वे प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन के अनुसार ही फाइनेंस क र रहे हैं। इसलिए पता कर लें कि अग र आपने दस लाख की एप्लीकेशन लग ाई है और बैंक ने साल भर तक आपको के वल चार लाख का लोन कि या तो क हीं वह शेष छह लाख पर तो कोई बयाज नहीं लग ाने जा रहा। अक्सर ब्याज के वल दिए ग ए धन पर ही लग ता है लेकिन कुछ संस्थान पूरे अमाउंट पर भी ब्याज चार्ज करते हैं। इसलिए इस बारे में बैंक या वित्तीय संस्थान से पहले ही जानकारी हासिल क र लें।
प्री पेमेंट पेनाल्टी
लोग  अपना लोन जल्द से जल्द चुकाना चाहते हैं। यदि उन्हें कहीं से कोई बड़ा अमाउंट मिलता है तो वे लोन चुकाने को वरीयता देते हैं। एक मुश्त भुग तान से बैंक को मिलने वाले ब्याज का नुकसान होता है, इसलिए 'यादातर बैंक इस पर पेनाल्टी चार्ज क रते हैं, जिसे प्री पेमेंट पेनाल्टी क हा जाता है। इसलिए जांच लें कि आपका बैंक भी तो आपसे एक मुश्त भुग तान की स्थिति में प्री पेमेंट पेनाल्टी चार्ज तो नहीं लेने जा रहा ।
दाम पता करें इस उम्मीद पर कि इंटरेस्ट रेट नहीं बढ़ेंगे, अमूमन लोग  फिक्स्ड रेट पर ही होम लोन लेना पसंद क रते हैं। फिक्स्ड रेट आमतौर पर फ्लोटिंग  रेट से 'यादा होते हैं। फिक्स्ड रेट पर लोन लेने वाले तमाम लोगों  की लोन रेट रिवाइज किए जाने की शिकायत रहती है। इससे कई बार फिक्स्ड रेट, फ्लोटिंग  रेट के बराबर या 'यादा हो जाते हैं। इसलिए लोन एग्रीमेंट  साइन करते समय ध्यान रखें कि बैंक फ्लोटिंग  रेट को रिवाइज करने जैसी शर्त तो नहीं रख रहा ।
ध्यान रखें
कुछ बैंक क स्टमर पर लीगल और टेक्निकल फीस जैसे चार्ज भी लग ाते हैं जबकि कुछ बैंक रजिस्ट्रेशन फीस और स्टाम्प ड्यूटी कस्टमर पर ही चार्ज करते हैं। इनके अलावा मेंटीनंस,फर्निशिंग  और वुड वर्क, प्रॉपर्टी टैक्स और एसोसिएशन की फीसआदि ऐसे तमाम खर्चे भी ज़रूरी हैं, जिनका ध्यान रखें।

ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट

ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट  आज कल लोकप्रिय हो चला है। यह ज़मीन के मालिक और बिल्डर्स दोनों के लिये फायदेमंद है। इसमें जहां एक ओर ज़मीन के मालिक को निर्माण के लिए रकम के इंतज़ाम और अन्य ज़रूरतों के लिए परेशान नहीं होना पड़ता, वहीं दूसरी ओर बिल्डर को ज़मीन मिल जाती है जिसे खरीदने के लिए उसे कोई रकम नहीं देनी होती है। 
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++प्रॉपर्टी  के सौदे में फायदे  को लेकर कई बातों पर ध्यान रखना ज़रूरी होता है। सामान्य तौर पर देखा जाता है कि जब आप  किसी रियल एस्टेट में निवेश के लिए प्लॉट खरीदते हैं। इससे मुनाफा कमाने के लिये आपको कुछ समय तक के लिये अपनी प्रॉपर्टी को होल्ड पर रखकर दाम बढऩे का इंतज़ार करना होता है। ऐसे देखा जाय तो खरीदी ग यी ज़मीन पर भी निर्माण कार्य करके भी अच्छा-खासा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। इस बात के लिये प्रॉपर्टी के मालिक को इस बात के लिये ज़रूरी अनुमतियां लेने के साथ ही निर्माण की निग रानी करनी होती है। मुनाफा कमाने के लिये प्रॉपर्र्टी के मालिक के पास इन विकल्पों के साथ एक अन्य विकल्प भी है जो आजकल काफी लोकप्रिय हो रहा है, जिसे ज्वाइंट डेवलपमेंट एग ्रीमेंट (संयुक्त विकास अनुबंध)कहा जाता है। यह एग्रीमेंट बिल्डरों के साथ किया जाता है।  इस एग्रीमेंट  के अनुसार बिल्डर प्लाट पर फ्लैट बनाता है। इस निर्माण में साइट का एक हिस्सा मालिक के लिए अलग  रखा जाता है। बाकी का क्षेत्र या फ्लैट की बिक्री सीधे बिल्डर करता है। इससे दोनों ही पक्षों की ज़रूरतें पूरी होती हैं। इसमें जहां एक ओर ज़मीन के मालिक को निर्माण के लिए रकम के इंतज़ाम और अन्य ज़रूरतों के लिए परेशान नहीं होना पड़ता, वहीं दूसरी ओर बिल्डर को ज़मीन  मिल जाती है जिसे खरीदने के लिए उसे कोई रकम नहीं देनी होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस एग ्रीमेंट से रियल एस्टेट की कंपनियों को प्रोजेक्ट की लाग त में ज़मीन की कीमत का  खर्च बच जाता है। इससे बिल्डर की एक बड़ी रकम ब्लॉक नहीं होती और प्लॉट पर निर्माण की ग ति भी तेज़ रहती है। इस नियम में देखा जाय तो एक प्रकार से बिल्डर और साइट का मालिक संयुक्त उपक्रम के आधार पर साइट डेवलप करते हैं। इस लोकप्रिय प्रोसेस से साइट के मालिक को आमतौर पर 30 से 40 फीसदी हिस्सेदारी मिलती है और बाकी का बिल्डर के पास जाता है। इस प्रोसेस से लाभ के हिस्से का बंटवारा अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करता है। संपत्ति के मालिक को बिल्डर के पक्ष में एक जनरल पावर ऑफ एटॉर्नी करनी होती है जिसे वह वापस नहीं ले सकता। जनरल पॉवर ऑफ एटॉर्नी को दोनों पक्षों के लिए कानूनी तौर पर बाध्य बनाने के लिये इसे उपयुक्त मूल्य के स्टॉम्प पेपर पर रजिस्ट्रार के पास पंजीकृत कराना होता है। निर्माणकर्ता को ज्वाइंट डेवलपमेंट एग ्रीमेंट के तहत दी जाने वाली इस तरह की जीपीए के लिए स्टाम्प ड्यूटी 1,000 रुपये होती है। यह स्टाम्प ड्यूटी अलग -अलग  राज्य में अलग  हो सकती है। जनरल पावर ऑफ एटॉर्नी(जीपीए)होने के साथ दोनों पक्ष ज्वाइंट डेवलपमेंट एग ्रीमेंट में शामिल हो जाते हैं, इसके बाद बिल्डर ज़रूरी अनुमतियां लेने के बाद ज़मीन पर निर्माण कार्य शुरू करता है। यदि बिल्डर वित्तीय या किसी अन्य प्रकार से अनुबन्ध का उल्लंघन करता है तो ज़मीन के मालिक के पास जीपीए को वापस लेने का अधिकार भी होता है और ज़मीन पर निर्माण पूरा होने तक प्रॉपर्टी की सुरक्षा का इंतजाम मालिक को भी करना होता है। प्रॉपर्टी एक्सपर्ट का मानना है कि इस प्रोसेस में  योजना को मंजूरी मिलने के बाद मालिक को अवाटंन अनुबन्ध (एलाकेशन एग्रीमेंट )करा लेना चाहिए। इस  एग्रीमेंट  में यह जानकारी होती है कि कितने क्षेत्र पर निर्माण किया जाएग ा और इसमें मालिक और बिल्डर का कितना हिस्सा होग ा। इमारत के तैयार होने और एलाकेशन एग्रीमेंट  हो जाने पर डीड ऑफ डिक्लेयरेशन कराना भी बेहतर होता है, जिसमें यह जानकारी होती है कि साइट के मालिक के लिए निर्माण ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट के तहत हो रहा है। सामान्य तौर पर देखा जाता है कि निर्माणकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि मालिक उनके द्वारा चुने ग ए संभावित खरीदारों के पक्ष में एक सेल डीड जारी कर दे। इससे फायदा यह होता है कि ज्वाइंट डेवलपमेंट एग ्रीमेंट के तहत साइट का मालिक या उसके कानूनी वारिस उन्हें सौंपी ग ई निमिर्त प्रॉपर्टी को बेचने के हकदार होते हैं। मालिक निर्मित क्षेत्र में अपना हिस्सा रख सकता है और उसके पास इसे बाद में बेचने का विकल्प भी मौजूद रहता है। ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट  उन लोगों  बेहतर बेहतर होता है, जिनके पास ज़मीन तो मौजूद है लेकिन उनकी वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वे उस पर निर्माण कार्य कर सकें। इसके लोकप्रिय ज्वाइंट डेवलपमेंट एग ्रीमेंट के जरिये वे बिना कुछ खर्च किए ज़मीन पर निर्माण करवा सकते हैं। इसमें उन्हें अपनी ज़रूरत  की जगह  पर रहने के लिए तैयार फ्लैट भी  मिल जाता है और साथ कई अन्य अधिकार भी उनके पास होते हैं।   

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

फ्लैट बुक

क्या आप फ्लैट बुक कराने जा रहे हैं तो आपके मन में भी कुछ न कुछ दुविधा ज़रूर होती होगी। उदाहरण के लिए, बिल्डर को पूरा पेमेंट एक साथ करें या किस्तों में बिल्डर समय से पजेशन देगा  या नहीं और भी न जाने क्या-क्या।  मन की दुविधा को खत्म करने के लिए आपको हम यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं। 

++++++++++++++++++++प्रॉपर्टी की दुनिया के बारे में जानकारों का स्पष्ट कहना है कि प्रॉपर्टी के लेन-देन और खरीद-ब्रिकी में आप शुरूआत में ही सावधानी बरतें तो वर्तमान के साथ भविष्य भी सुरक्षित रह सकता है। इस मामले में कहा जा सकता है कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। प्रॉपर्टी के समस्या को आप समय रहते निवारण करना चाहते हैं और सुख-चैन की जि़न्दगी  जीना चाहते हैं तो कुछ महत्वपूर्ण बातों को गांठ बांध ले। खासकर, निर्माणाधीन मकान को लेने से पहले हर स्तर पर जांच पड़ताल करें। सुरक्षा संबन्धित बातों को किसी भी हालात को नज़र अंदाज़ न करें। हालांकि इस मामले में डेवलपर्र्स भी संजीदा हैं लेकिन स्वयं की जांच-पड़ताल ज़रूरी है।

पेमेंट वन टाइम या कंस्ट्रक्शन लिंक्ड
अगर आपको चॉइस दी जा रही है तो कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान ही चुनने की कोशिश करें। अगर बिल्डर कंस्ट्रक्शन बीच में ही रोक देता है तो आपके ऊपर आगे  की पेमंट करने का कोई प्रेशर नहीं होगा । अगर आप लोन ले रहे हैं तो बैंक को भी इसी तरह के पेमेंट में सुविधा होती है। अग र पूरा पेमेंट एक साथ कर रहे हैं तो प्रॉजेक्ट की हालत देख लें। अगर लगे  कि काफी काम हो चुका है , तभी पूरे पेमेंट का ऑप्शन चुनें। वैसे बूम के टाइम पर कई ऐसे मामले हुएए जब बिल्डर्स ने बिना काम पूरा हुए ही तय वक्त पर इनवेस्टर्स से अपनी किस्त  ले ली। 
कंस्ट्रक्शन लिंक्ड में भी लोचा
जो बिल्डर्स कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट की बात करते हैं, वह एक छोटा सा खेल और खेल सकते हैं। स्कीम में स्लैब का काम होने तक ही बिल्डर 80 फीसदी पेमेंट ले लेते हैं। आजकल जिस टेक्नॉलजी का यूज किया जा रहा है, उसमें स्लैब का काम पूरा होने में बहुत कम समय लग ता है। स्लैब का काम पूरा हो जाने के बाद जो काम होता है, उसमें कंस्ट्रक्शन के लिए निर्धारित कुल समय का 80 फीसदी समय लग ता है। ऐसे में काफी काम बचा होने के बावजूद बिल्डर इनवेस्टर से पूरा पैसा हासिल कर लेता है। 
बुकिंग  कैंसल 
अग र एक बार फ्लैट बुक कराने के बाद आप बुकिंग  कैंसल करते हैं, तो आपको पेनल्टी देनी होगी। पेनल्टी कितनी देनी होगी, यह बिल्डर पर निर्भर करता है। वैसे देखा जाय तो पेनल्टी का जिक्र आपके कॉन्ट्रैक्ट में होना चाहिए, लेकिन कई बार बिल्डर ऐसा नहीं करते ताकि वक्त पडऩे पर मनमाफिक पेनल्टी वसूली जा सके। अग र पजेशन मिलने से पहले ही आप अपने फ्लैट को किसी और के नाम ट्रांसफर करना चाहते हैं तो इसके लिए भी बिल्डर आपसे कुछ रकम चार्ज करेगा । 
बारगेनिंग  
बिल्डर फ्लैट की जितनी कीमत कोट करते हैं ,इस मामले में आपको जितना हो बारगेन कर लेना चाहिए। कई बार बिल्डर लोगों  को आकर्षित करने के लिए फ्लैट की बुकिंग  के वक्त कोई आकर्षक गिफ्ट रख देते हैं। ध्यान रखें कि यह गिफ्ट फ्री नहीं होता। अगर बिल्डर आपको गिफ्ट दे रहा है तो बारगेनिंग में वह थोड़ा टाइट हो जाएगा । ऐसे में गिफ्ट ऑफर से बहुत ज्यादा  प्रभावित होने की ज़रूरत नहीं है । 

रविवार, 7 दिसंबर 2014

शांति की खोज में !

मुकेश कुमार झा+++++++++++++++++++++++++यह कहानी पूर्ण काल्पनिक है। इसका किसी स्थान, जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।+++++++++++++++++++++++++

छोटी सी भूल भी जिंदगी के लिये शूल बन जाती है। धर्मेश ने घर खरीदने से पहले कुछ सावधानियां नहीं बरती, जिसका खमियाजा इसे भुगतना पड़ा। वह और उसकी पत्नी किसी प्रकार से मौत के मुंह से तो निकल गयी...लेकिन उसके मन-मस्तिष्क पर, उस काली रात की भयानक दृश्य अभी तक बरकरार है। उसे शांति की खोज में ऐसी अशांति मिली, जिसके बारे में कभी वह कल्पना में भी नहीं सोचा था।
महानगर की संस्कृति ऐसी होती है कि इसके माहौल में जो जितना धुलेगा, उतना ही उसे बच कर रहना होता है। धर्मेश भी इसी महानगर का एक भाग था। लिखने-पढऩे का शौक उसे बचपन से ही था। इसे पन्नों में उकेरे गये शब्दों के साथ कल्पनाओं की उड़ान भरना अच्छा लगता। हर एक शब्द को वह इस रूप में ढालना चाहता था कि वह शब्द -शब्दों से गूंथकर एक ऐसा शिल्प बन जाय जो अनमोल धरोहर से कम न हो। लेकिन इस बदलते परिवेश में वह खुद को अभी तक ढाल नहीं पाया था। उसमें वहीं गंबईपन और बचपना था, जिसे यहां के लोग रफ्तार की जि़न्दगी में भूल चुके थे। मेहनत और लगन के सिवाय यहां मार्केट में बने रहने के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ होती है- जुगाड़। लेकिन सीधा-साधा धर्मेश इस जुगाड़ टैक्नोलॉजी से कोसो दूर था। जब मामला ऐसा हो तो वक्त कितना संगीन हो जाता है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है और धर्मेश भी वक्त के थपेड़ों से लड़ रहा था। दिन प्रति दिन उसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी। उसकी शब्द रूपी कल्पना की उड़ान एक मोह जाल में फंस कर रह गया। उसका सृजनात्मकता बदलते वक्त के साथ जुडऩा चाह रहा था लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था। कई दिनों तक उसे फंकाकसी में भी गुजारनी पड़ी। कई सालों के बाद उसकी प्रतिभा को किसी ने माना तो वह था, मिस्टर भीम सिंह। उन्होंने उसकी लेखनी को एक नया प्लेटफॉर्म दिया। इस प्लेटफॉर्म पर उसकी लेखनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। धर्मेश के लिखे गये नॉवेल, लोगों की पहली पसंद बन गयी।

आम जनता की नब्ज़ को पकडऩे वाला धर्मेश साहित्य जगत का सितारा बन चुका था। पब्लिकेशन वाले इस पर पैसों की बरसात करना शुरू कर दिया। उसके द्वारा लिखे गये नॉबेल पर इसे खूब रॉयल्टी भी मिलने लगी। अब वह इस बेदर्द महानगर का सितारा यानि सैलेब्रिटी बन गया। यहां के रहन-सहन, चाल-चलन इसे बेहतर लगने लगा। वह हाई -फाई जि़न्दगी का भाग बन चुका था। उसे एक पार्टी में बला की खूबसूरत लड़की से आंखे चार हुयी। उस दिन के बाद तो उसे सब कुछ बदला-बदला नज़र आने लगा। इस दो पल की प्यार ने उसे आशिक बना दिया था। उसके आंखों के सामने रह-रहकर उसकी प्यारी सूरत घूम जाती थी। ऐसी स्थिति में उसकी लेखनी भी आशिक की तरह जब होने लगा तो अंतत: भीम सिंह ने पूछा-आखिर धर्मेश, तुम को क्या हो गया हैïï? तुम कोई भी काम दिल लगाकर नहीं करते, यार कहीं तुम, दिल तो किसी से लगा नहीं बैठो हो। यार-मतलब परस्ती लोगों की दुनिया है, यहां संगदिल सनम ही ज्यादा मिलते हैं। तुम अपने काम पर ध्यान दो। यह बात आयी और गयी, लेकिन धर्मेश के दिमाग से इश्क का बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने अपने सबसे प्यारे दोस्त भीम सिंह को पार्टी वाली सारी बात बता दी। भीम सिंह ने पूछा- यार, तुम किस लड़की के बारे में बात कर रहे हो, मेरी समझ मेें तो कुछ नहीं आ रहा है। धर्मेश ने दिल की बात जूंबा पर लाते हुये कहा, यार मैं इस लड़की की एक नज़र में घायल हो गया। इस दर्दे दिल की दवा मात्र वह लड़की है। भीम सिंह ने लड़की के बारे में पता लगाया। दोनों को प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि शादी के मंडप तक बात पहुंच गयी। दोनों की शादी बड़ी-धूमधाम से हो गयी। वह दोनों एक जिस्म, एक जान बनकर रहने लगे। उसने अपनी पत्नी से कुछ खास बातों पर बातचीत कर ही रहा था कि प्रिया ने कहा , धर्मेश, किराये के मकान में रहते-रहते मैं तंग अर चुकी हूं। कुछ उपाय करो, कल ही मकान मालिक से बिजली बिल को लेकर हॉट टॉक हो चुकी है। मैं, अब किसी भी हालत में इस किराये के मकान में नहीं रहूंगी। धर्मेश को यह बात, दिल को छू गयी। उसने कहा, ठीक है, भगवान ने चाहा तो अगले महीने ,नये मकान में होंगे। धर्मेश, मकान लेने की बात, दोस्तों के बीच एक पार्टी में छेड़ दी। उसके बाद, तो उसका मोबाइल हर 10 मिनट पर घनघना उठता था।
मोबाइल से अक्सर एक ही आवाज़ आती थी, मिस्टर धर्मेश से बात हो सकती है। प्रॉपर्टी डिलरों के लिये नामचीन धर्मेश किसी हॉट केक से कम नहीं था। रात के दस बज रहे थे, अचानक फिर उसका मोबाइल घनघना उठा। मोबाइल से आवाज़ आयी, सर, आपको किस तरह का मकान चाहिये। आप अपना बज़ट और लोकेशन बताइये। हमारी कंपनी ने हाल ही में एक से बढ़कर एक अपार्टमेंट बनायी है। आप चाहो तो सर, किसी एक को फिक्सड कर दूं।धर्मेश ने कहा, मुझे आप सोचने का वक्त दीजिये। उधर से आवाज़ आयी, ठीक है सर, मैैं आपके कॉल का इंतज़ार करूंगा। धर्मेश कॉल अटैंड करते-करते परेशान हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसकी बातों को माने और किसकी बातों को नहीं माने। अंतत: उसने सोचा कि चलो इस भागम-भाग से दूर कहीं एक शांत स्थान में अपना आशियाना लिया जाय। उसने एक प्रॉपर्टी डीलर को कहा कि हमें शहर से दूर, कहीं शांत स्थान में एक लक्जरियस घर चाहिये। उधर से आवाज़ आयी, क्यों नहीं सर। हमारी कंपनी ने हाल ही में यहां से करीब 135 किमी. की दूरी पर प्रकृति की गोद सुरम्य स्थान पर आप जैसे लोगों के लिये ही कई शानदार घर बनवायी है। आप चाहो तो कल ही हम आपके घर पहुंचे। धर्मेश ने कहा ठीक है- कल आप 10-11 बजे के बीच मिल सकते हैं। एक दिन बाद ठीक समय से पहले ही प्रॉपर्टी डीलर, उसके घर पर डेरा जमा चुका था। कुछ देर के लिये तो धर्मेश को यह बात अटपटा भी लगा। लेकिन उसे भी तो घर लेना था। पैसे और डॉक्युमेंट जमा करने के बाद धर्मेश अपनी पत्नी के साथ उस स्थान पर पहुंच गया, जहां उसके सपनों का आशियाना उसका इंतज़ार कर रहा था। घर की सुन्दरता और वातावरण को देखकर धर्मेश मोहित हो गया। उसने जो सोचा था, ठीक उसी प्रकार का यह घर था। घर शहर से दूर एक शानदार स्थान पर था लेकिन उसके आस-पास का माहौल, उसकी पत्नी को कुछ अजीब लगा। उसने धर्मेश से पूछा, घर तो सुन्दर है लेकिन इतना दूर और ऊपर से पहाड़ी की घाटी में। धर्मेेश बोला- मैं इस महानगर के वातावरण से तंग आकर, यहां घर ले रहा हूं। मेरा काम क्रियटीविटी का है, यह वातावरण इसके लिये प्रफेक्ट है। यह सुनकर उसकी पत्नी चुप रह गयी। कुछ दिनों के बाद ही वह इस सपनों के आशियाने में रहने लगा। लेकिन जब रात की विरानगी, इस घर को अपने आगोश में ले लेती थी, तो अन्धेरी रात में यहां का वातावरण और भी डरावना और भयावह बन जाता था लेकिन इस बात का अनुभव सिर्फ उसकी पत्नी कर रही थी। धर्मेश अपनी लेखनी की उड़ान को इस वातावरण में एक नया आयाम देने में जुट गया। वह अपनी नॉवेल के बारे में कुछ सोच ही रहा था कि अचानक कुछ परछाईंया, उसके सामने से होकर निकल गयी। यह परछाईंया इतनी स्पष्टï थी कि चेहरा एक दम साफ दिख रहा था। उसने सोचा हो सकता है, रामू हो लेकिन रामू तो यहां अकेला है और परछाईंया, तो... तीन-चार की संख्या में। अब उसकी दिमाग की बत्ती गुल हो चुकी थी। पूरे शरीर में कंपकंपाहट पैदा होने लगी। उसे लगा कि एक क्षण के लिये उसका दिमाग अन्नत गहराइयों में डूबने-उतरने लगा हो। माथे पर पसीने की बूंदे साफ झलकने लगी। उसकी घिघ्घी बंध चुकी थी। उसे यह परछाईंया कई चेहरे के रूप में नज़र आने लगा और उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। कुछ देर के बाद इस संगीन वातावरण में विष घोलती हुयी, एक हल्की सी हंसी उसके कानों में जम चुकी थी। पत्थर की बूत की तरह यह अक्श कुछ देर तक रही और बाद में अचानक चली गयी। अब तो धर्मेश को काटो तो खून नहीं। वह हिम्मत करके पत्नी को पुकारा। कहीं से कोई आवाज़ नहीं आयी। कुछ देर के लिये उसका दिमाग दूसरी दुनिया में भी गया लेकिन सामने पत्नी को देखकर एक मिनट के लिये, वह स्तब्ध रह गया। उसने इस घटना का जिक्र सिर्फ, अपने सबसे प्यारे दोस्त भीम सिंह से शेयर की। भीम सिंह ने पूछा- यार क्या बात है, तुमने मुझे, यहां बुलाया है। धर्मेश बोला यार- यह स्थान तो मुसीबतों का अड्डïा है। उसने सारी कहानी उसके सामने उकेड़ दी। भीम सिंह ने कहा ऐसी बात है, इसी कारण तुम दो-तीन दिन से महफील में नहीं दिख रहे थे। धर्मेश ने कहा-यार, यहां मय्यत निकलने की बारी है और तुम महफील की बात कर रहे हो। क्या यार, तुम भी न जाने क्या, क्या देखते रहते हो और एक बुद्धिजीवी होकर अंधविश्वास और भूत-प्रेतों पर विश्वास करते हो। धर्मेश ने कहा, सर , ऐसा है न, जब सामना होता है, तब बुद्धिजीवी भी बुद्धूजीवी बन जाते हैं। दोनों की हल्की हंसी इस सुरम्य वातावरण में तैरने लगी थी कि अचानक घर से चिखने की आवाज़ आयी तो दोनों चौंक पड़े। धर्मेश फिर से कांपते हुये कहा, अब तो विश्वास हुआ कि जो मैनें बोला, उसमें कितनी सचाई है। धर्मेश का चेहरा पिला पड़ चुका था, उसके मुंह से शब्द टूट-टूट कर निकल रहे थे। भीम सिंह भी कुछ देर के लिये सोच में पड़ गया, बोला यार, यह आवाज़ तो भाभी की है। यह शब्द सुनते ही धर्मेश और भीम सिंह लॉन से घर की तरफ दौड़ते हुये पहुंचा। अचानक किचिन में रोने की आवाज़ आने लगी और साथ में कई स्थानों से हंसने की आवाज़। हंसी और रोने के मिलेजुले आवाज़ ने तो अचानक यहां की फीजा ही बदल दी। तभी हांफती हुयी, उसकी पत्नी ने कहा कि मैंने कहा था न कि यह स्थान अजीब है, आप मानते ही नहीं थे, लो अब भुगतो। भीम सिंह ने कहा-क्या हुआ भाभी-भाई साहेब-मैं जब किचिन में बर्तन साफ कर रही थी कि अचानक बत्ती चली गयी, सामने देखा-इतना बोलते ही, वह बेहोश हो गयी। भीम सिंह ने हिम्मत से काम लेते हुये कहा, यार धर्मेश, हिम्मत से काम लो। जरा पानी लाना, धर्मेश किसी तरह से किचिन की तरफ जाकर पानी का नल खोला ही था कि उसके हलक से चीख निकल गयी। किसी तरह से भागता हुआ, वह भीम सिंह के पास पहुंचा, बोला यार, गजब हो रहा है, टंकी में पानी के स्थान पर खून आ रहा है। भीम सिंह यह सुनकर चौंक गया, अरे भाई, कहीं से पानी तो लाओ। उसने नौकर को आवाज़ दी लेकिन रामू तो किसी और दुनिया में विचरण कर रहा था। उसकी आत्मा ने कहा मालिक, पानी, पानी। इतना कहकर वह रोने लगा। किसी तरह उस पानी से धर्मेश ने पत्नी के मुंह पर छिटें मारे। वह होश में आ गयी लेकिन बोली, धर्मेश यहां से जल्दी भागो नहीं तो जान नहीं बचेंगे।
किसी तरह से वो तीनो हिम्मत करके घर से बाहर निकल आये। धर्मेश बोला-रामू कहां है- वह चुप रह गयी। धर्मेश और भीम सिंह वक्त की नजाकत को समझते हुये, चूप रहने में ही भलाई समझा। कार के पास तीनों पहुंचे ही थे कि पीछे से लंगराता हुआ रामू- रामू मालिक-मालिक चिल्ला रहा था। उसकी पत्नी ने धर्मेश से कहा, पीछे मत देखो, रामू मर चुका है। कार ऐन वक्त पर धोखा देने लगी अब तो तीनों को समझ नहीं आ रहा था कि उपाय क्या करें। भीम सिंह ने अचानक कुछ चीज़ो को समझते हुये, कहा,यार यह बहुत ही खतरनाक स्थान है और भटकती आत्माओं का सैरगाह भी। अब तो कार भी काम करना बंद कर चुकी है। धर्मेश और भीम दोनों कार स्टार्ट करने का प्रयास कर रहा था। काफी मशक्कत के बाद कार स्टार्ट हो पायी। वे तीनों बैठे ही थे कि इस घर का रंग अपने आप बदलने लगा था । पूरा का पूरा घर भयानक हंसी और भयानक चेहरों के आगोश में आ चुका था। सारे चेहरे, कार की तरफ ही बढ़ रहे थे। भीम सिंह ने कहा, यार देख क्या रहे हो, जल्दी स्पीड बढ़ाओ औैर भागो यहां से नहीं तो प्राण नहीं बचेंगे। कार ने अपनी रफ्तार पकड़ी और इन लोगों की जान बच गयी। इसके बाद यहां पर कोई भी रहने नहीं आया। जब एक दिन धर्मेश को प्रॉपर्टी डीलर मिला तो धर्मेश ने पूछा, क्या भाई ऐसे घर भी बेचते हो, जहां सिर्फ और सिर्फ मौत बसती है। प्रॉपर्टी डीलर मुंह को बनाते हुये बोला, क्या हुआ धर्मेश बाबू। भीम सिंह ने कहा, कुछ बचा हो तो बताएं। यह सुनते ही उसके होठों पर कुटिल मुस्कान तैर गयी।