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Lotus Temple Delhi

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सोमवार, 20 सितंबर 2010

निर्माण की दुनिया की सजाती बोतल

खाली बोतल जिसे हम वर्ज्य  पदार्थ समझकर अक्सर फेंक देते हैं, उसे संग्रह करने का समय आ गया है। यह खाली बोतल निर्माण की दुनिया को रूमानियत से भरा अंदाज़ देने को तैयार है। इन बोतलों से घर का निर्माण जोरों पर चल पड़ा है। ईंटों के बदले बोतल किस प्रकार से इमारत का इबारत  लिख रही  है, इस पर प्रस्तुत है एक खास लेख।
निर्माण की दुनिया वर्तमान में नित नये प्रयोग से गुजर रही है। हमेशा इसे बेहतर और सस्ते करने के लिये अनुसंधानकर्ता पूरे विश्व में जुटे रहते हैं। इसकी दुनिया को खूबसूरत और बेहतर बनाने के लिये रोज कोई न कोई कॉन्सेप्ट बनकर तैयार हो जाता है। खासकर, जिसे हम वर्ज्य  पदार्थ समझकर कुड़े के ढेर में डाल देते हैं, वह भी निर्माण की दुनिया को एक बेहतर और अनोखा अंदाज़ दे रहा  है। इस नये-नवेले कॉन्सेप्ट में प्लास्टिक की बोतलें और शीशे की बोतल हीरो के मानिद निर्माण की दुनिया में भूमिका निभा रही है। घर को सजाने में इन बोतलों को आप इस्तेमाल कर सकते हैं।
शराब या कोल ड्रींक की बोतल के कॉर्क को बढिय़ा तरीके से बन्द कर दिया जाता है और उसमें पानी या मिट्टी भर दिया जाता है। दीवारों के निर्माण के समय ईंटों के बदले इस बोतल का इस्तेमाल किया जाता है। आप यहां सोच रहे होंगे कि इन बोतलों से दीवार की मज़बूती और सुन्दरता दोनों में ही क्या भूमिका हो सकती है। बात यह है कि शराब की बोतलें जो होती है, इसका रूप, रंग और आकार-प्रकार काफी आकर्षक होती है। ज्यादातर शराब की बोतलें का ऊपरी यानि गर्दन का भाग उसके कॉर्क के ¾ inch अपेक्षा ज्यादा आकर्षक होता है। ऐसे देखा जाय तो कुछ कॉर्क की ऊंचाई डेढ इंच से लेकर 2 इंच के मध्य भी होता है। कुछ कॉर्क आधा इंच का भी होता है और हां, आप एक बात का ज़रूर ख्याल रखें कि बोतलों की जो कॉर्क होता है, वह काफी घिसा-पिटा भी हो सकता है, इसलिये इसका दीवार की बाहर की तरफ इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। दीवारों में इस्तेमाल किये गये लोहे की बीम जो तस्तरीनुमा आकार में होती है, उसे कॉर्क मज़बूती प्रदान करता है। यह कॉर्क बेहतर तापमान अवरोधक होता है, इसे आप रंग भी सकते हैं। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इसका प्रचलन जितना भारत के बहार है, क्या उतना ही अपने देश में सफल हो सकता है. जानकारों का कहना है कि हर जगह कि अलग-अलग भौगालिक स्थिति होती है और इसी पर काफ़ी हद तक यहाँ की निर्माण की दुनिया निर्भर करती है . ज़रूरी नहीं है कि जो कॉन्सेप्ट अन्य देशों के लिए फिट और हिट है, यह अपने देश के लिए भी हिट और फिट हो. मामला चाहे जो भी लेकिन विश्व के कुछ देशों में इस कॉन्सेप्ट का जलवा कायम है .
यहां पर कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दीवारों के आकर्षक करने के लिए दिया जा रहा है.
कॉर्कबोर्ड्स- कॉर्क को लकड़ी के फ्रेम के सहारे आकर्षक रूप दिया जा सकता है। इसे आप विभिन्न डिज़ाइन में सजा सकते हैं। कॉर्क को मज़बूत करने के लिये उसे ग्लू यानि सरेस से जोड़ा जा सकता है और पीन के सहारे इस काम को सहलूयित रूप से आप कर सकते हैं। यदि आप विभिन्न रूप-रंग के आकार-प्रकार में इस्तेमाल करते हैं, तो यह काफी स्टाइलिश हो जाता है।
 कॉर्क यूस टू रीथ- इन कॉर्क को आप चाहे तो मनमाफिक रूप में माले की तरह सजा सकते हैं। सरेस या ग्लू के सहारे आप कॉर्क को एक मानक फोम या विकर फ्रेम के रूप में बेहतर आकार भी दे सकते हैं।
कॉर्क ट्रिवइट- कॉर्क ट्रिवइट वाइन लवर के किचिन के लिये काफी खास होता है। कॉर्क को छोटे-छोटे लकडिय़ों के टुकड़े वाली फ्रेम को ग्लू के सहारे आप विभिन्न स्टाइलिश रूप में भी सजा सकते हैं। सामान्य रूप से डेढ इंच या दो इंज के कॉर्क को ही लोग प्रयोग में लाना चाहते हैं। कारण यह है कि इससे आयताकार स्वरूप अच्छा बनता है। यदि आप 12 x 12 बोर्ड की चौड़ाई और लंबाई के बीच फ्रेम को रखते हैं तो इससे दीवार की सजावट काफी बेहतर बन जाती है। यह ट्रिवइट किट्स दुकानों में कहीं-कहीं उपलब्ध भी हो सकता है। लेकिन अभी यह कॉन्सेप्ट विदेशों में प्रचलन में है। अत: देश के बाज़ारों में आने में भले ही कुछ समय लगे पर जानकारों का कहना है हि यह कॉन्सेप्ट आने वाले समय में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
क्लास ऑफ बोतल- निर्माण को बेहतर स्वरूप देने के लिये आप चाहे तो खास किस्म के बोतलों का इस्तेताल कर सकते हैं। खासकर, विदेशी शराबों की श्रेणी में आने वाली अंगूर की शराब के बोतल का रंग इसके डिज़ाइन में रूमानियत का सुरूर ज़रूर डाल सकता है। कोल ड्रींक के बोतल को भी आप इसी प्रकार से इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल घर के निर्माण में ही नहीं बल्कि छोटा-मोटा गार्डन बनाने में, चाहरदीवारी के निर्माण में भी कर सकते हैं। लेकिन जब कभी भी इस तकनीक के सहारे आप निर्माण कार्य करें तो उपरोक्त सभी बातों का ख्याल रखने के साथ-साथ आपके पास इस तकनीक के एक्सपर्ट का सलाह ज़रूर लें।
मुकेश कुमार झा