Hut Near Sea Beach

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House Boat

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Poly House

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Lotus Temple Delhi

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Enjoy holiday on Ship

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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

एक नज़र इधर भी ...

हाय री महंगाई----

महंगाई-महंगाई और महंगाई----मंत्रोच्चार से चहुंदिश गुजंयमान है। इसकी बढ़ती जोर और शोर से हर बंदा टेंशनिया गया है। इसकी बढ़ती रफ्तार तो मानो राजधानी और शताब्दी को भी मात देने लगी है। इस मामले में जनता को तो छोडिय़े सरकार भी कन्फ्यूजिया गयी है। उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा है कि इसे रोके कैसे? गाहे-बगाहे जो बैठक और विचार-विमर्श का जो दौर चल रहा है, वह भी बिना किसी खास नतीज़े पर पहुंचे, खत्म हो जा रही है। पवार जी के जुबान के पावर को देखकर आम लोग भले ही घबरा गये हों लेकिन मलाई काटने वाले लोग काफी खुश नज़र आ रहे हैं। आलम यह है कि जो चीज़ पहले 30-35 रुपये किलो बिक रही थी, महाशय जी के मुखारविंद से ऐसी चटकिली और चमकीली बात निकली कि कई आवश्यक पदार्थों के मूल्य को देखकर लोगों का रंग फिका हो गया है। चाय की चीनी फिकी हो गयी है। तर्क-वितर्क का दौर जारी है। कुछेक का कहना है कि सरकार इसी रफ्तार से मंहगाई बढ़ाती रही तो मानकर चलिये कि लोग-बाग हवा और सूर्य की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त करके फिल्म कोई मिल गया के तर्ज पर जादू के भूमिका में नज़र आ सकते हैं।
मेरे पास एक धांसू आइडिया है। चाहे तो सरकार या फिल्म वाले इस पर गौर फरमा सकते हैं। फिल्म का नाम-महंगाई- डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ---नायक और खलनायक के बारे में फिल्म बनाने वाले मुझसे बेहतर सोच सकते हैं। फिल्म का कुछ दृश्य का फिल्माकंन यों हो सकता है। नायक दिन भर भूखा है। पैसे तो हैं लेकिन इतना नहीं है कि वह खा सकता है। लेकिन वह फिल्म का नायक है इसलिये जनता की प्रेरणास्त्रोत बन सकता है। एक और  दो दिन के बाद नायक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है। जुबान लरखड़ाने लगी है। लेकिन तेबर कम नहीं है। जो नायिका पहले उसे प्यार से देखती थी, आज उसके सूखे बाल और सूखे गाल को देखकर कन्नी काटने के मुड में है। नायिका कुछ देर के लिये ख्याबों की दुनिया में जाकर पुराने दिनों को याद कर रही है।
इसी याद के दरम्यान डायरेक्टर अतीत और वर्तमान की महंगाई की तुलना फिल्म में दृश्य के सहारे कर सकते हैं। नायक की बढ़ती भूख और बेबसी ने उसे बगावत पर ला खड़ा किया है। बगाबत से फिल्म में जान आ सकती है। हाफ टाइम से कुछ पहले प्रमुख खाद्ध पदार्थ के वर्तमान और अतीत के मूल्य को दिखाकर, जनता से ओपीनियन ली जा सकती है। चाहे तो सरकार की पॉलिसी की बखिया भी जनता उतार सकती है। लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ नायक को लाया जा सकता है जो खुद भूखा होकर भूखे लोगों के लिये एक नयी मिसाल कायम कर सकता है। लेकिन बगाबत पर उतरे नायक जब अपनी आवाज़ बुलंद करता है, ठीक उसी समय डायरेक्टर महोदय खलनायक की इंट्री करा सकते हैं। चमाचम गाड़ी से उतरा खलनायक,नायक को हर बॉलीवुड फिल्म की भांति फब्तियां कस रहा है। लेकिन यहां पर ठीसूं -ठीसूं दृश्य न डाला जाय यानि  sound को Mute  कर दिया जाय तो फिल्म की सेहत के साथ नायक की सेहत के लिये ज्यादा बेहतर होगा। नायक बेबस है, लाचार है और इस मौके पर खून जलाने के लिये डायरेक्टर चाहे तो प्यार को बेवफा साबित करने के लिये नायिका को खलनायक के साथ कार पर घूमते हुये भी देखा सकते हैं।
इस सीन में भावना की प्रवाह महंगाई की प्रवाह भले ही थोड़ी तेज हो लेकिन महंगाई की जय-जय वाली गीत से खलनायक की खलनायिकी में जान डाली जा सकती है। अब में डायरेक्टर को थोड़ी देर के लिये राजनीति की दुनिया में फिल्म को ले जाने की सलाह दूंगा ताकि वह जनता और नायक की भावना का सम्मान कर सकें। कुछ हकीकत को यों दिखाया जाय कि जनता सच्चाई के रूप में महंगाई को स्वीकार करें लेकिन बरगालने का यह मामला थोड़ी पेंचदगी में उलझ सकता है, इसलिये बेहतर यह है कि नायक को भरपूर मौका दिया जाय कि हकीकत को डंक मार कर जनता के सामने लाये। ऐसा करने पर सभी फिल्मों की भांति इस फिल्म के नायक का टीआरपी बढ़ सकती है। नायक की लोकप्रियता में चार-चांद लग चुका है। चुनाव में जनता ने उसे सर आंखों पर बैठा दिया है। उसकी जीत के साथ वह भी अब आम से खास बन चुका है। अब नायिका को अपनी गलती का अहसास हो रहा है। वह अपने प्यार को याद कर रही है। इस सीन के फिल्मांकन  यदि नायिका के साथ नायक भी हो तो बेकार गीतों पर भी जनता सिटी बजा सकती है। गीत खत्म होते ही खलनायक को अपनी करनी की सजा को चुनाव के जीत या हार से बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता है। जनता का लोकप्रिय हो चला नायक असली रूप में आ गया है। वह अब प्यार और सम्मान पा चुका है। भूल गया है, वह अपनी अतीत को वर्तमान में,जब फिर से कोई नयी बात यानि महंगाई बढ़ेगी तो फिर से एक नायक पैदा हो गया जो नायक की भूमिका में खलनायक भी हो सकता है। जिस प्रकार से क्रमश: महंगाई बढ़ती जा रही है, ठीक उसी प्रकार से फिल्म के कई सिक्वल भी बनाये जा सकते हैं।
 मुकेश कुमार झा

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

अजब- गज़ब

कुछ हटकर होना  भी खास बन जाता है। चाहे मामला आदमी के व्यक्तित्व का हो या बिल्डिंग की संरचना का। बिल्डिंग की दुनिया में कुछ ऐसी भी बिल्डिंग हैं, जिनको आप एकबारगी देखें तो चौंकें बिना नहीं रह सकते हैं कि कहीं ऐसी भी बिल्डिंग भी हो सकती हैं। यहां दी जा रही बिल्डिंग भी कुछ हटकर और खास हैं। इसकी यह अजीब डिज़ाइन और ले-आउट के पीछे, कुछ में तर्कशास्त्र ने काम किया है तो कुछ में भौगोलिक और सांस्कृतिक प्रभाव ने। निर्माण की दुनिया को एक अनोखे अंदाज़ में ढालने वाली ये बिल्डिंग ज्यादातर समय खबरों की सुर्खियों में बनी रहती है। जरा आप भी फुर्सत के क्षणों में इनकी दुनिया से नाता जोडिय़े और फर्क महसूस कीजिये। संभव है कि आपके मूड को बदलकर रख दे।
 हाउसिंग कॉम्प्लैक्स
ऊपर दिया गया चित्र एक प्रसिद्ध हाउसिंग कॉम्प्लैक्स का है। इस प्रसिद्ध हाउसिंग कॉम्प्लैक्स का नाम हैबिटेट-67 है। यह कनाडा के मुख्य राज्य मांट्रियल की राजधानी क्यूबेक सिटी में है। इस प्रसिद्ध हाउसिंग कॉम्प्लैक्स को 2600 Pierre Dupuy Avenue के नाम से भी जाना जाता है। क्यूबेक सिटी के Marc-Drouin Quay नामक स्थान पर स्थित है। हाउसिंग कॉम्प्लैक्स-67 का उपनाम ''मैन एंड हीज वर्ल्ड ' है, यह शब्द Antoine de Saint Exupéry's memoir Terre des hommes से लिया गया है। इस अनोखे हाउसिंग कॉम्प्लैक्स का वास्तुकार मोशे सफदी हैं, जो वर्ष 1967 के एक खास एक्पो के दौरान इसे बनाया था। एक्पो में आने वाले आगुन्तकों के लिये इसका निर्माण किया गया था। उस समय यह अस्थायी निवास और थिमेटिक पैवेलियन के रूप में था। वर्तमान में यह कॉम्प्लैक्स यहां रहने वाले किरायेदारों का है, जो एक लिमिटेड पार्टनरशिप कनाडा मॉर्गेज और हाउसिंग कॉरपोरेशन का संयुक्त उपक्रम है। वास्तुकार ने इसका निर्माण अपने मास्टर डिग्री के विषयों पर आधारित रखा जो उन्होंने मैक्गिल यूनिवर्सिटी (Mcgill University)से प्राप्त की थी। शुरुआत में प्रोजेक्ट की आधारशिला को अर्फोडेबल हाउसिंग के हिसाब से रखा गया था लेकिन बाद में यहां पर बने अपार्टमेंट्स पुराने अपार्टमेंट्स की तुलना में ज्यादा महंगे हो गये। यहां पर प्राइवेट क्वाटर्र के साथ एक गार्डन भी जुड़ा हुआ है। इस मॉडर्न अपार्टमेंट्स की घनत्व को मॉडयूलर और इंटरलॉकिंग कंक्रीट रूप में बनवाया गया था, जो आधुनिक होने के साथ-साथ सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस था। इस स्थान पर लोग इतने मात्रा में एकत्रित होकर एक नये लाइफ स्टाइल को अपना कर रह रहे हैं। यह अपने आप में यूनिक बातें हैं। इस स्थान पर कई वीडियो फिल्मों के एल्बम का फिल्मांकन भी हुआ है। इस प्रसिद्ध स्थान पर प्रसिद्ध बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कनाडियन गायक लियोनार्डो कोहेन ने अपनी म्यूजि़क एल्बम 'इन माय सीक्रेट लाइफ' का फिल्मांकन किया था। यहां पर विश्व का सबसे बड़ी प्रदर्शनी का आयोजन वर्ष 1967 में किया गया था। एक्पो के लिये हाउसिंग कॉम्प्लैक्स एक मुख्य थीम के रूप में था। हैबिटेट-67 का निर्माण क्यूब (घन) आकार के ज्यामीतिय आधार था। इस हाउसिंग कॉम्प्लैक्स में क्यूब( घन) के रूप में बनाये जाने के पीछे तर्क यह था कि यह घन स्थायित्व का द्योतक है। ऐसे क्यूब को बुद्धिमता, सचाई और मज़बूत नैतिकता से जोड़ कर देखा जाता है। इस हाउसिंग कॉम्प्लैक्स में 146 रेसीडेंशस हैं, जो 354 घन के आकार के ज्यामीतिय आधार से जुड़ा हुआ है। हैबिटेट-67 ने सैंट लॉरेन्स नदी की दुनिया को धरती और आकाश के बीच हरियाली से इस प्रकार से जोड़ा है, मानो एक शानदार भूरे रंग, नदी के पानी पर प्रकाश से परावर्तित किरणें एक नयी जहां बसा ली हो।
अनोखा क्यूबिक हाउस
 क्यूबिक हाउस देखने में भले ही विचित्र लगे लेकिन वास्तु का अनुपम उदाहरण है। इसे बनाने में लीक से हटकर सोच और मेहनत ने रंग लाया है। यह प्रसिद्ध हाउस नीदरलैंड के रौत्तेर्दम राज्य में स्थित है। हाउस का पता है-ऑवरब्लॉक 70, 3011 एमएच, रौत्तेर्दम ( नीदरलैंड)। इसे वर्ष 1982-84 में बनाया गया था। इसके वास्तुकार पियट ब्लोम हैं। यह एक प्रकार से हाउसिंग कॉम्प्लैक्स है। इस हाउस को बनाने का आइडिया सर्वप्रथम वर्ष 1970 में आया था। हाउस बनाने के पीछे पियट की अभिधारणा थी कि प्रत्येक निर्माण घन के आकार में हो जो निर्माण की भव्यता को प्रकट कर सके और वह ज्यादा देखने में जटिल भी न हो। यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता तो संभव था कि निर्माण की दुनिया एक जंगल का रूप ले लेता। क्यूब आकार के निर्माण में रहने वाले स्थान को तीन भागों में बांटा गया। पहला भाग त्रिकोण आकार लोअर लेवल का है, जो लीविंग एरिया के रूप में है। हाउस का मध्य लेवल स्लीपिंग एरिया और बाथरूम से लैस है। हाउस का टॉप लेवल त्रिभुजाकार के रूप में है और इसका इस्तेमाल एक्स्ट्रा बेडरूम और लीविंग स्पेस के रूप में होता है। वास्तुकार ब्लोम को रोत्तेर्दम सिटी के प्रमुख ने कहा था कि यहां पर स्थित पैडेस्ट्रीन ब्रिज के ऊपर बनाना है । इस बात को सुनकर पहले तो ब्लोम सोच में पड़ गये लेकिन उनको लगा कि यदि यहां पर क्यूबनुमा हाउस के कॉन्सेप्ट को प्रयोग किया जाय तो बात बन सकती है। यहां पर घनाकार आकार के रूप को षष्टकोणिय आकार के पोल संरचना ने मज़बूती प्रदान की, जिस पर पूरा हाउस फीट बैठ गया। घनाकार आकार की संरचना इस आकृति पर थोड़ी सी झुकी हुयी भी है। हाउस के टॉप से घर की सुन्दरता का नयनाभिराम दृश्य देखा जा सकता है, जो तीन तरफ से पिरामीड आकार लिये लगता है और उसके चारों ओर खिड़कियां घिरी हुयी है। यहां पर क्यूबनुमा पारंपरिक घर 45 डिग्री पर झुका हुआ है और बाकी घर षष्टïकोणिय आकार के खम्भे पर टिका हुआ है। इस हाउसिंग कॉम्प्लैक्स में 38 क्यूब और 2 सुपर क्युब, जो एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। हाउस में तीन फ्लोर हैं। ग्राउंड फ्लोर इन्ट्रेस है। फस्र्ट फ्लोर पर लीविंग रूम और किचन रूप है। दूसरे फ्लोर पर दो बेडरूम और बाथरूम हैं। टॉप फ्लोर का प्रयोग कभी-कभार गार्डन के रूप में किया जाता है। हाउस के दीवार और खिड़की के बीच 54.7 डिग्री का कोण बनता है, जो संरचना के अनुकूलता को दर्शाता है। अपार्टमेंट 100 स्क्वेयर मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है लेकिन अपार्टमेंट के चारों ओर काफी खाली स्थान है, पर इसके क्यूबनुमा संरचना इन दीवारों को छत के नीचे ला दिया है। जिसके कारण यह स्थान का कोई इस्तेमान नहीं हो पाता है।
डांसिंग हाउस
संगीत की रिद्म पर आप झूमते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि संगीत की रिद्म पर बिल्डिंग भी झूमती है। जी हां- संगीत चीज़ ही ऐसी है कि निर्जीव वस्तुओं में भी जान फूंक सकती है। हम यहां बात कर रहे हैं डांसिंग हॉउस की। यह अनोखा हाउस चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के न्यू टाउन में है। इसे तान्सिकी दम ((Tancící dum) के नाम से भी जाना जाता है। इसने पैराग्वे की प्रसिद्ध नदी वाल्टवा की दुनिया को संगीत की थीम से सरोबोर कर दिया है। इसे वर्ष 1992-96 में निर्माण किया गया। यह बिल्डिंग चारों ओर से शीशा से घिरी हुयी है, जो वास्तु का अनुपम उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। डासिंग बिल्डिंग देखने में काफी भव्य है और उसकी बाहरी आकृति वक्र है। इसका प्रारंभिक नाम एस्टैयर एंड रोजरर्स बिल्डिंग था, जो बाद में डांसिंग हाउस के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसका वास्तुकार चेक गणराज्य के व्लादो मिलुनिक हैं। इस बिल्डिंग के साथ एक कहानी भी जुड़ी हुयी है। वर्तमान में जो यह दिख रही है, वह ऐसी हालात में नहीं थी क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इस पर जमकर बमबारी की गयी जिसके कारण यह नष्टï प्राय: हो गयी। कई सालों बाद वास्तुकार व्लादो और उनके निकट सहयोगी फ्रांसिसी वास्तुकार फ्रैंक गैरी  ने इसका डिज़ाइन वर्ष 1992 में तैयार किया। उसके चार साल के बाद वह वर्तमान रूप में आया। उस समय बिल्डिंग की डिज़ाइन को लेकर काफी विवाद भी रहा। विवाद के पीछे मुख्य कारण यह था कि इसका डिज़ाइन लीक से हटकर तैयार की गयी थी, जो शायद चेक परम्परा के अनुसार नहीं था। लेकिन चेक राष्ट्रपति Václav Havel ने इसका सर्मथन किया। उनका कहना था कि मुझे उम्मीद है कि यह बिल्डिंग कल्चरल एक्टिविटी का सेंटर बनेगा। इसका वास्तविक नाम फ्रेड एंड जिंजर, एस्टैयर और जिंजर रोजर्स के बाद पड़ा। इसका यह नाम हाउस के अस्पष्ट नर्तकों की एक जोड़ी जैसा दिखता है। डांसिंग हाउस नये अलंकृत स्वरूप और नये गौथिक शैली का मिश्रण है। इसका सुन्दर वास्तुकला पूरे चेक गणराज्य में प्रसिद्ध है। कुद लोग इस घर को ड्रंक हाउस के नाम से भी पुकारते हैं। डांसिंग हाउस के टॉप फ्लोर पर सिटी का प्रसिद्ध रेस्टोरेंट भी है। यहां से आप विभिन्न तरह के व्यंजनों के आनंद लेने के साथ-साथ प्राग की नयनाभिराम दृश्य भी देख सकते हैं।
कैप्सुल टॉवर
ऊपर दिये गये चित्र कैप्सुल टॉवर का है। इस टॉवर का नाम नाकागिन कैप्सुल टॉवर है। यह जापान की राजधानी टोकियो के शिमबाशी नामक स्थान पर स्थित है। इस बिल्डिंग का इस्तेमाल ऑफिस स्पेस और रेसीडेंशल दोनों रूप में हो रहा है। इस अनोख बिल्डिंग के वास्तुकार किशो कुरोकावा है। इसे वर्ष 1972 में बना लिया गया था। जापान के युद्ध के बाद सांस्कृतिक पुनरूत्थान के द्योतक के रूप में यह एक दुलर्भ निर्माण है, जो उभरता जापान की शक्ति को दर्शाता है। यह बिल्डिंग पूरे विश्व के निर्माण की दुनिया का पहला उदाहरण है, जो कैप्सुलनुमा आकार में है। इस आकार में इसका इस्तेमाल होना अपने आप में इसे अजूबा बना रहा है। वास्तव में यह बिल्डिंग दो इंटरकोनेक्टेड कंक्रीट टॉवर से जुड़ा हुआ है। इसका 11 वीं मंजिल और 13 वीं मंजिल के जुडऩे से इसका वास्तविक निर्माण हुआ है। बिल्डिंग में 140 कैप्सुलनुमा पूर्वनिर्मित मॉड्यूल्स के रूप में है। प्रत्येक मॉड्यूलस एक यूनिट के रूप में है। प्रत्येक कैप्सुल 2.3 m (8 ft) × 3.8 m (12 ft) × 2.1 m (7 ft)  की लंबाई, चौड़ार्अ और ऊंचाई में है। ये कैप्सुल में ही ऑफिस स्पेस और लीविंग स्पेस है। यह कैप्सुलनुमा आकार बड़े स्पेस से मिला हुआ है जो जुड़कर मज़बूती से टिका हुआ है। प्रत्येक कैप्सुल एक मुख्य छड़ से जुड़ी हुयी है जो चार उच्च तनाव वाले बोल्ट से जुड़े होने के कारण दृढ़ और मज़बूती से टिका हुआ है। इसे चाहे तो हटाया भी जा सकता है लेकिन अभी तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यहां पर बने रूम बेचलर्स और नौकरी-पेशा से जुड़े लोगों को लक्ष्य रखकर बनाया गया है। यहां पर बने अपार्टमेंट में दीवार के साथ होम अप्लाइंस जैसे किचन स्टोव, रेफ्रीजेरेटर, टेलीविज़न सेट और रील टू रील टेप डेक आदि की समुचित व्यवस्था की गयी है। बाथरूम की व्यवस्था दीवार की विपरित दिशा में की गयी है। बेड के ऊपर गोल आकार में खिड़की लगी हुयी है, जो रूम के अंत तक विस्तृत है। प्रत्येक कैप्सुलनुमा आकार हल्के स्टील पुलिंदा, जस्ती में सजे बक्से, रिब वेल्डेड संरचना स्टील पैनल से मज़बूती से जुड़ी हुयी है
मुकेश कुमार झा

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

दिल्ली की शान- दिल्ली सचिवालय

दिल्ली की शान के रूप में प्रसिद्ध दिल्ली सचिवालय वास्तुकला के बेहतरीन नमुना पेश करता है। इसके स्वरूप में आधुनिकता और सौम्यता का पुट इसे काफी आकर्षक बना दिया है। सत्ता के केन्द्र में स्थित इस सचिवालय में दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री, कैबिनेट स्तर के मंत्री और प्रमुख वरिष्ठ अधिकारियों का दफ्तर भी है।
दिल्ली सचिवालय का वास्तविक नाम प्लेयर्स बिल्डिंग है। यहां पर दिल्ली सरकार की वरिष्ठ अधिकारियों का दफ्तर है। सचिवालय में मुख्यमंत्री, मंत्रालय के प्रमुख अधिकारी और कैबिनेट स्तर के मंत्रियों के भी दफ्तर हैं। दिल्ली सरकार के कई महत्वपूर्ण विभागों का दफ्तर भी इसी बिल्डिंग में है। इस बिल्डिंग के निर्माण का इतिहास काफी रोचक है। दिल्ली में 1982 ई. में जब एशियन गेम्स हो रहा था, तब इसे एथेलिट के रहने के लिये बनाया जा रहा था लेकिन किसी कारणवश इसे परिणति तक नहीं पहुंचाया जा सका। इसका निर्माण कार्य अधुरा रह गया। एशियन गेम्स के समय तक इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं किया जा सका। इस बिल्डिंग को आधे-अधुरी की स्थिति में करीब 15 साल तक छोड़ दिया गया। इस दरम्यान इसे प्राकृतिक रूप से नुकसान भी झेलना पड़ा। इतने सालों में इस आधी-अधुरी बिल्डिंग की हालात और भी खास्ता हो गयी। बाद में दिल्ली लोक निर्माण विभाग ने वर्ष 1998-2000 के बीच इसे नया करने के साथ इसे मरम्मत भी करवायी। इसे  नया  करने के समय बिल्डिंग की रूप-रेखा को निखारने के साथ-साथ वर्ष 1974 के इंडियन बिल्डिंग कोड के अनुसार संरक्षित ही नहीं, बल्कि उसकी मज़बूती को और बेहतर करने के लिये खासतौर पर भूकंपरोधी बनाया गया। दिल्ली चूंकि भूंकप प्रभावित जोन चार में आता है। यहां का इलाका भूकंप के मामले में संवदेनशील है, इसलिये इस बिल्डिंग को नया रूप देने के समय इस बात का खास ख्याल रखा गया। दिल्ली सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतरार्ष्ट्रीय विकास एजेंसी के संयुक्त प्रयास के द्वारा इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को पूरा किया गया। दुनिया की जानी-मानी भूकंपरोधी विकासकर्ता कंपनी GeoHazards International (GHI) ने अपने तत्वाधान में जाने-माने भारतीय इंजीनियर के दल और संयुक्त राज्य अमेरिका के एक्सपर्ट इंजीनियर के दल ने इस बिल्डिंग को किस प्रकार से भूकंपरोधी और मज़बूत बनाया जाये, इसके लिये समीक्षा की और पांच ग्रुप के एक्सपर्ट ने इसे बेमीसाल मज़बूती से पूर्ण बनाया। इसे इस प्रकार से बनाया गया कि भविष्य में इसके साथ कई और भी बिल्डिंग का निर्माण किया जाय तो इसकी भूकंपरोधी और मज़बूती पर प्रभाव न पड़े। दिल्ली लोकनिर्माण विभाग ने बिल्डिंग की डिज़ाइन, कन्सट्रक्शनऔर नया रूप देने के समय की पूरी रिपोर्ट के आधार पर इसके भूकंपरोधी प्रभाव की समीक्षा की और पाया कि बिल्डिंग के निर्माण और नया रूप देने के दरम्यान इन सभी बातों को ख्याल रखा गया है। वर्ष 2005 में दिल्ली लोक निर्माण विभाग ने बिल्डिंग की आंतरिक क्षमता को लेकर समीक्षा फिर से की, समीक्षा के दौरान पाया गया कि बिल्डिंग की ऊपरी तल कुछ मामले में कमजोर है लेकिन बाद में इन सभी खामियों को दूर कर लिया गया।
ले-आइट
दिल्ली सचिवालय विकास मार्र्ग पर स्थित है। बिल्डिंग 11 मंजिला है। बिल्डिंग से लगभग  1 किमी. की दूरी पर यमुना नदी बहती है। यह नदी बिल्डिंग स्थल से पूर्व की ओर है। दिल्ली सचिवालय का आकार अंग्रेज़ी के अक्षर Y  से काफी मिलता जुलता है। बिल्डिंग समान रूप से तीन बराबर भागों में केन्द्रीय कोर के चारों तरफ से है। इसके नीचे की मंजिल और प्रथम मंजिल ऊपर की मंजिल की अपेक्षा बड़ी और विस्तृत है। नया रूप देने  बाद विंग ए जो बांयी तरफ है। यहां पर प्लान के मुताबिक नीचे वाली मंजिल थोड़ी विस्तृत और फैली हुयी है, जबकि ऊपर वाली मंजिल छोटी है। इस बिल्डिंग में ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां पर आप को अंकों के मामले में काफी अंतर देखने को मिल सकता है। शायद भूकंपरोधी प्रभाव को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिये ऐसी युक्ति सोची गयी हो। बिल्डिंग के विंग और केन्द्रीय स्वरूप में काफी असमानता दिखायी देती है। सेंटर कोर को जुड़े हुये विंग से अलग-थलग है। यहां पर 25 एमएम भूकंपरोधी जोड़ पूरी बिल्डिंग की ऊंचाई से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो इस तरह के निर्माण का मतलब है कि भूकंप के समय पूरी बिल्डिंग सुरक्षित रहे, वह भी बिना क्षति पहुंचे। बिल्डिंग के फ्लोर प्लेट्स क्षैतिज रूप से पंक्तिबद्ध किया गया है, ताकि बिल्डिंग के स्तम्भ गिरने के कारण नहीं बने। बिल्डिंग को कंक्रीट फ्रेम के साथ मज़बूती के साथ दीवार से जोड़ा गया है, जिसके कारण निर्माण में फौलाद की शक्ति आ गयी।
मुकेश कुमार झा