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सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

समय का चक्र

मुकेश कुमार झा


समय का चक्र ऐसा चलता है कि आपके लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह नहीं मिल पाता है जो आप चाहते हैं। शायद इस चक्र को ही भाग्य की नियति मान लिया जाता है। यह अवधारणा कर्मवाद के सिद्धांत से काफी अलग होता है, इसलिए तुलसीदास जी ने रामायण में कहा कि ' होई है सोई जो राम रचि राखाÓ।  कहीं न कहीं यह कथन भाग्यवादी होने का सबूत देता है। लेकिन कहते हैं न---यदि हर इंसान को अपनी सोच और समझ के हिसाब से सब कुछ मिल जाय तो फिर दुनिया-दारी का क्या होगा। इसी दुनिया-दारी का एक भाग है- मिस्टर अशोक। अशोक बचपन से ही कर्म में आस्था रखता था। उसके  लिए गीता का उपदेश 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनÓ (कर्म पर तेरा अधिकार है फल पर नहीं )में ही जि़न्दगी का सार नज़र आता। साधारण घर का होने के कारण उसे पता था कि मेहनत से ही मुकाम बनाया जा सकता है और आगे बढऩे के लिए इसके सिवाय कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। लगन और मेहनत को आत्मसात कर उसने अपनी जि़न्दगी के फलसफे बना लिया।  अपने आप में सीमित रहने वाला अशोक वक्त के साथ कदमताल करने के लिए अपनी पढ़ाई पर खूब मेहनत करता था। कई सालों के बाद उसका मेहनत रंग लाया। मेहनत ने ही उसे एक बेहतर मुकाम दिलाया। उस मुकाम पर पहुंचकर वह संतुष्टï रहने लगा। उसे सरकारी नौकरी मिल गई। लेकिन वक्त के साथ रफ्तार में बने रहने के लिए वह संघर्ष ही कर रहा था। इस संघर्ष में इसे मजा भी आ रहा था। कहावत है, यदि आपके जीवन में आगे बढऩे के लिए संघर्ष न हो तो जि़दगी का मजा नहीं रह जाता। वह भी इसी सिद्धंात को आदर्श  मानकर जि़दगी के ऊबर-खाबर रास्ते पर चल पड़ा था।  लेकिन रह-रह कर उसे पुरानी दिनों की बात याद आती थी। जब गांव के पाठशाला में गुरूजी आदर्शवाद और सिद्धांत से बच्चों को प्रेरित करने के लिए नीति-उपदेश के पोथी पढ़ाते थे। इस किताब में ज्यादातर पंचतंत्र और हितोपदेश के साथ अन्य सत्यनिष्ठïा और चरित्रवान व्यक्तियों का जीवन चरित होता था। लेकिल जब वह इन सभी बातों की तुलना बदलते वक्त के साथ करता तो वह समाज में चल रहे परिवर्तन को देखकर असहज हो जाता। उसे गुरूजी की कही हर एक अच्छी बात वक्त के थपेड़ों से टूटकर बिखर जाने जैसा लगता। मां-बाबूजी की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए अशोक ने  कभी अपनी वसूलो और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।  खैर- अशोक जानता था कि यह रोज की दिमागी खुराक की सोच है, जो बचपन में घूटी के रूप में पिलाई गई है। अशोक ये सारी बातों को सोच ही रहा था कि घड़ी की अलार्म ने उसकी तंद्रा भंग कर दी। वह तुरन्त ऑफिस जाने
के लिए तैयार होने लगा। वह तैयार होकर बस स्टॉप पर चल पड़ा था। बस स्टॉप पर प्रत्येक दिन की भांति चहल- पहल थी। कुछ देर के बाद एक बस आई, फिर क्या था, बस में चढऩे के लिए आपाधापी का माहौल बन गया। सब को जल्दी थी, सभी चाहते थे कि  बस में किसी प्रकार से सीट मिल जाए लेकिन न तो सीटों की संख्या बढ़ाई जा सकती थी और न यात्रियों की संख्या घटायी जा सकती थी। खैर- किसी प्रकार से अशोक बस में चढऩे में कामयाब रहा। बस भी वायुयान की भांति सड़क पर कुछ देर के बाद फर्राटे भरने लगी। करीब एक घंटे के बाद बस उसको ऑफिस के सामने वाली स्टॉप पर उतार दिया। बस दस मिनट की दूरी पर उसका ऑफिस था। वह करीब दस मिनट के बाद ऑफिस में नियत समय पर हाजिरी वाली रजिस्टर्ड में अपना नाम दर्ज कर चुका था। वह जिस डिपार्टमेंट में काम करता था, उसके बारे में एक बात काफी मशहूर थी कि देश में सबसे ज्यादा मलाई आप यहां से ही काट सकते हैं। उसे नौकरी कुछ दिन बीत जाने के बाद यह धीरे-धीरे पता होने लगा था कि क्यों लोग इस डिपार्टमेंट को मलाईदार बताते हैं। कुल मिलाकर यह सरकारी दफ्तर भ्रष्ट्राचार का अड्डा था। कभी-कभी तो छोटा-मोटा काम को करवाने के लिए उसके पास भी गिफ्ट का पैकेज आने लगा लेकिन अशोक के अंतरआत्मा ने इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया। ईमानदारी के कारण अशोक आज इन बुलंदियों को नहीं छू पाया था, जहां बाकी उसके कुलीग पहुंच चुके थे। उसके कुलीग कार, बंगला और हाइ-फाई लाइफ स्टाइल का भाग बन चुके थे।  अशोक अभी भी बदलने को तैयार नहीं था। ऑफिसों में लोग-बाग इसको अलग मिट्टी से बने हुए इंसान कहते। कुछ दिन के बाद ऑफिस में एक सज्जन अधिकारी आए। देखने से एकदम संभ्रांत और उच्च कुल के लग रहे थे।  वह बात बनाने के फन में माहिर थे और ऊपर के अधिकारी के चमचागिरी में अव्वल दर्जे के थे। सच में देखा जाय तो चमचागिरी में कोई पदक होता तो हर बार के प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक उनकी झोली में होती। इन सारी खूबियों के कारण महाशय बातों ही बातों में किसी को फांस लेते थे। उनकी महिमा को देखकर अशोक समझ चुका था कि यह एक नंबर का पहुंचा हुआ चीज़ है और उसकी सेटिंग यहां नहीं, ऊपर तक है।  फिर तो दरवार रोज़ 

सजने लगी।  इनके महफील में चमचा रूपी जीव चार चांद लगाने लगे। कुल मिलाकर यह ऑफिस नहीं, चमचों का अड्डïा था। कुछ दिन के बाद ऑफिस में एक घटना घटी।  कुछ महत्वपूर्ण फाइलों की चोरी हो गई। इस फाइल का डाटा रिकॉर्ड कम्प्युटर पर भी नहीं था। इस घटना में साजिश की बू आने लगी।  इस फाइल का रिकॉर्ड मिस्टर राजू के पास ही रहता था। उसे पता था कि यह फाइल कितना महत्वपूर्ण है। इस फाइल में कई महत्वपूर्ण कंपनियों के वित्तिय रिपोर्ट थी। कुल मिलाकर टैक्स के मामले में चोरी करने वालों का रिकॉर्ड था।  भाई, जब ऑफिस में ऐसे-ऐसे महारथी हों तो कुछ भी संभव था।  अशोक को जब इस बात का पता चला तो वह समझ गया कि यह किसकी करतूत हो सकती है। पूरी बात की जिम्मेदारी बेचारे राजू पर थौंप दिया गया। राजू को पता था कि यदि वह समझौता वाली नीति अपनाता है तो पूरे जांच-पड़ताल का ऐसा दौड़ चलेगा कि फाइल का मामला फाइल में ही दबकर रह जाएगी। लेकिन इंसानियत भी कोई चीज़ होती है। इस बार अन्य बार की तरह राजू ने समझौता की नीति को मानने से इनकार कर दिया।  यह बात ऑफिस में जंगल में आग की तरह फैल गई कि राजू ने क्रांति कर दिया है।  उसे सत्य और निष्ठा की बीमारी लग गई है। फिर होना क्या था, एक से बढ़कर एक चोर, उसे दुनिया-दारी समझाने लगे। अंत में अधिकारियों की जमात भी पहुंची, जिसमें नए-नए बहाल हुए बगुला भगत भी धर्म और  अध्यात्म के  सहारे राजू को बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन सब व्यर्थ। राजू पर इन सारी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने सिद्धांत पर अंत तक अटल रहा। राजू, सिर्फ और सिर्फ अशोक को ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठï मानता था। बाकी सबको वह भलीभांति जानता था लेकिन ऑफिस में कुछ लोग थे, जो राजू के इस निर्णय को ऊपर से समर्थन नहीं कर रहे थे लेकिन कहीं न कहीं मन ही मन राजू की बात को स्वीकार कर चुके थे। उसने ऑफिस के इतिहास को अशोक सामने उड़ेल दिया। लेकिन अशोक भी कुछ नहीं कर सकता था। 
राजू इस बात को भलीभांति जानता था। 
कुछ दिनों के बाद राजू के खिलाफ,ऑफिस में  तिकड़म का ऐसा चाल चला गया कि वह दिन-प्रतिदिन फंसता ही चला गया।  बेचारे ने ऊपर तक बात पहुंचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन उसे आश्वासनों के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा। वह एक प्रकार से भंबर जाल में फंस चुका था, जहां से निकालना मुश्किल ही नहीं, असंभव था। वह मानसिक अवसाद से ग्रसित रहने लगा। आखिर कब तक अकेला दुनिया से जंग लड़ता। वह कुछ दिनों के बाद तंग आकर खुदकुशी कर ली। इस आकस्मिक मौत को कितनों ने जश्न के रूप में मनाया तो कितनों ने राजू के बेवकुफी से भरा कदम बताया। लेकिन उस दिन के बाद से ऑफिस का वातावरण में खास प्रकार की मायूसी सी छा गयी। वहां का मंजर अपने-अपने आप बदलने लगा। पूरा का पूरा ऑफिस में अब मातम पसरा हुआ नज़र आने लगा। ऑफिस में रोज कुछ न कुछ अनहोनी घटनाएं होने लगी। 
यहां पर रहने वाले सिक्युरिटी गार्ड रामदीन ऑफिस के बदलते माहौल से बेफ्रिक होकर रात में सोने के क्रम में ही था। तभी अचानक जोर से हवा चली। पूरा का पूरा वातवरण काली स्याह के बादलों में लिपटा हुआ नज़र आने लगा। सन्नाटे को चिरती हुई आवाज़ भी उसके कानों में स्पष्टï सुनाई देने लगी। यह आवाज़ काफी डरावनी थी। हंसी और रोने के सम्मिलत स्वर ने पूरे इलाके को झकझोंर कर रख दिया।  उसने एक काली स्याह छाया को ऑफिस में जाते हुए देखा। वह कुछ देर के बाद ऑफिस के खिड़की से झांक कर देखा तो उसके होश उड़ गए। ऑफिस में राजू को बड़े मजे से कुर्सी पर बैठा और उसने इधर-उधर नज़र दौडा़ई, मानों कोई चीज़ को ढूंढ रहा हो। कुछ देर खामोश बैठने के बाद, उसने एक विचित्र हंसी, हंसी। यह हंसी इतना असामान्य था कि सुनकर किसी का भी रूह कांप सकता था। उस विचित्र हंसी के बाद ऑफिस का वातावरण अपने आप बदलने लगा। पूरा का पूरा ऑफिस काली चादर में लिपटी हुयी नज़र आने लगी। चारों तरफ धुंआ फैल गया। माहौल संगीन हो चला था। कुछ देर बाद ऑफिस से कोई चीज़ टूटने की आवाज़ जोर-जोर से आने लगी। 
रामदीन उत्सुकता से ऑफिस के बांयी ओर वाली खिड़की को थोड़ा और सरका देखा तो उसके होश फख्ता हो गए। ऑफिस का पूरा समान हवा में तैर रहा था। टेबल और कुर्सी आसमान में हिचकोले भर रहा था। कम्प्यूटर से धुंआ उठने लगा था, जैसे पूरे कम्प्यूटर में शॉट-सर्किट हो गया हो। यह पूरा दृश्य देखकर रामदीन डर से कांपने लगा। राजू ने ऑफिस में कोई भी समान को सुरक्षित नहीं रहने दिया। एक -एक कर उसने सब कुछ नष्टï कर दिया। उसके बाद राजू ने भयंकर हंसी हवा में उड़ेल दी। उसकी हंसी वातावरण में विष घोलने लगी थी और रामदीन का माथा चक्करघन्नी की तरह घूमने लगा। कुछ देर बाद उसे लगा कि उसका दिमाग अनंत गहराइयों में खोता जा रहा है। सुबह होने पर जब चपरासी ने ऑफिस का मैन गेट खोला तो वह अंदर के दृश्य को देखकर चौंक गया। सब-कुछ तहस-नहस हो चुका था। वह जब इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो उसने खिड़की के सामने  रामदीन को बेहोश पाया। उसने तुरन्त नल से पानी लाकर उसके चेहरे पर छिटें मारे और कुछ देर के बाद रामदीन होश में आया। 11 बजते -बजते ऑफिस में सारे लोग आ चुके थे। रामदीन ने रात वाली घटना क्रम को बताया तो सबके होश उड़ गए। सभी लोगों को यह बात समझते देर न लगी कि राजू की आत्मा बदले की आग में जलकर ऐसा कर रहा है। उसके बाद तो जो राजू के फंसाने के दुश्चक्र में जो शामिल थे, सभी की पांव तले ज़मीन खिसक गई। यहां पर दिन भर सिर्फ और सिर्फ राजू की आत्मा की बात होती रही। सब बात करने में मशगूल थे कि तभी खबर आई कि ऑफिस का एक साथी कार एक्सिडेंट में मरा जा चुका है। यह एक्सिडेंट में मारे गए व्यक्ति का राजू के मामले में काफी गहरे ताल्लुकात थे। रिपोर्ट के अनुसार, उसकी मौत, स्पीड ड्राइविंग का नतीजा माना गया लेकिन सचाई  यह थी कि राजू ने बदला लेते हुए उसे दर्दनाक मौत दी थी। उसका चेहरा इस कदर बिगड़ चुका था कि लोगों के पहचान में नहीं आ रहा था। कार के ऊपर खरोंच तक नहीं आई थी। यह मामला रहस्यमयी सा लगता था। ऑफिस की दुदर्शा को देखकर वरिष्ठï अधिकारियों के आने के बाद एक मीटिंग बुलाई गई। मीङ्क्षटग में कुछ लोगों के चेहरे पर मौत की रेखा स्पष्टï नज़र आ रही थी। सर्वप्रथम इस मीटिंग में दोनों सिक्युरिटी गार्ड रामदीन से पूछा गया कि तुम रात में यहां नहीं थे। उसने एक सांस में रात की पूरी घटना सुना दी। इसे सुनने के बाद सभी के रौंगटे खड़े हो गए। लोगों को समझ में आ चुका था कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है। दिन -प्रतिदिन यहां का माहौल काफी डरावना होता जा रहा था। राजू की आत्मा इन लोगों को चुन-चुन कर मारने लगा जो उसे अकाल मौत की तरफ ले गया था। रोज ही किसी न किसी की मौत की खबर आने लगी। इन लोगों की मौत विभत्स रूप में हो रही थी। रोज कोई न कोई रहस्यमयी रूप से कोई घर से लापता हो जाता या कोई घर लौट कर ही नहीं आ पाता। एक दिन दोपहर का समय था। ऑफिस के सभी कर्मचारी लंच कर रहे थे कि तभी अचानक ऑफिस से चीखने की आवाज़ आई। सभी आवाज़ की तरफ भागे। सामने देखा तो सबके होश फख्ता हो गए। अनिष्का बेहोश की हालत में ऑफिस के फर्श पर पड़ी हुई मिली। उसे किसी प्रकार से यहां से उठाकर केबिन में लाया गया। पानी के छिंटे चेहरे पर मारे गए । कुछ देर के बाद उसे होश आया। उसने कहा कि यह ऑफिस राजू के भटकती आत्मा का सैरगाह बन चुका है। मैं जब बाथरूम में जा रही थी । अचानक आइने के सामने एक विभत्स चेहरा देखा। यह चेहरा धीरे-धीरे परिवर्तित होकर राजू का रूप ले लिया। नल से अपने आप पानी के बदले खून आने लगा। मैं जब दूसरे बाथरूम में गईं तो वहां भी वही हालात थे। मैैं दौड़कर भागी कि सामने राजू को चेहरा और डरावना और विकृत हो गया, जिसको देखकर में बेहोश हो गई। इतना बोलते ही फिर से ऑफिस का वातावरण परिवर्तित होने लगा। यहां का वातावरण काफी डरावना हो चुका था। राजू के हंसने की आवाज़ स्पष्टï सुनी जा सकती थी। सबके कानों में उसकी आवाज़ विष घोलने लगी। डर के मारे सबके हालात बुरे हो चुके थे। एक-एक कर सभी भागने लगे लेकिन मुख्य द्वार बंद हो चुका था। सबकी सांसे डर के मारे एक प्रकार से रूक चुकी थी। सभी को लगने लगा कि अब प्राण नहीं बचेंगे, तभी अचानक अशोक ने मुख्य द्वार पर दस्तक दी। उसके हाथ लगते ही मुख्य द्वार अपने आप खुल गया। लोग जान बचाकर भागे। उस दिन के बाद इस ऑफिस में कोर्ई भुलकर कदम नहीं रखा। जो भी उसके आस-पास जाने का दु:साहस किया, बचकर नहीं लौटा। भ्रष्टïाचारियों का यह अड्डïा अब हॉन्टिड प्लैस में बदल चुका था। कुछ दिनों के बाद अशोक ने यहां से ट्रांसफर करा ली। नया स्थान पर जाने के बाद अशोक अपने मेहनत और लगन से जल्दी ही वरिष्ठï अधिकारी बन गया। वह अपने सिद्धांतों और आदर्शों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। अपने सत्यनिष्ठïा और कर्तव्यपराणयता के कारण कुछ महीनों के बाद उसे राष्टपति ने पुरस्कार भी मिला। लेकिन उसे अभी तक राजू की शहादत याद है और उसका बदला भी।